Indore.महापौर टिकट के लिए कांग्रेस के जाल में उलझी भाजपा ने तमाम संभावित और 'इच्छुक' दावेदारों को चयन मंडल में डालकर कार्यकर्ताओं को और भौंचक कर दिया है। इन नामों को दौड़ से बाहर करने के बाद अब पार्टी और कार्यकर्ताओं में नए-नए नामों को लेकर मंथन और चर्चा शुरू हो गई है।
महापौर के लिए अभी तक भाजपाई तबके में रमेश मेंदोला ( Ramesh Mendola) टॉप पर चल रहे थे। सामान्य सीट होने, कांग्रेस के उम्मीदवार संजय शुक्ला (Sanjay Shukla) भी ब्राम्हण होने के चलते आम राय यही बन रही थी कि मेंदोला पार्टी के उम्मीदवार हो सकते हैं, लेकिन गुरुवार देर रात जारी चयन समिति की सूची में रमेश मेंदोला सहित मधु वर्मा (Madhu Verma) और जीतू जिराती को डालकर पार्टी ने टिकट के तीनों नामों को चर्चा से बाहर कर दिया। इसके बाद ही कयास लगाए जाने लगे हैं कि ये तीनों नहीं तो कौन। इन्हीं नेताओं के साथ एक नाम उमेश शर्मा (Umesh Sharma) का भी चल रहा है। ये वो नाम है जो पार्टी के तमाम पदों के लिए चलता है और अंततः चलता ही रह जाता है। करीब तीन दशक से पार्टी के लिए लाठी खाने, मुकदमें झेलने वाले उमेश शर्मा हर बार नगर अध्यक्ष के तगड़े दावेदार माने जाते हैं लेकिन हर बार इनके दावे पर कोई और दाँव लगा देता है। इस बार भी यही हुआ। यहां तक कि नगर अध्यक्ष की कुर्सी छिटक जाने के बाद इंदौर विकास प्राधिकरण के चेयरमैन की कुर्सी के लिए नाम चला पर इस बार उनके सपनों को देवास के नेता जयपालसिंह चावड़ा ले उड़े। फिलहाल वे महापौर पद के लिए दावेदार माने जा रहे हैं। कारण एक तो सामान्य वर्ग से ही आते हैं, पार्टी के बरसों पुराने वफादार हैं और पार्टी में रहकर भी 'निर्दलीय' हैं। मतलब किसी गुट विशेष की छाप उन पर नहीं है। वे सभी से संतुलन बनाकर चलते हैं।
कैलाश शर्मा
ये एक नया नाम अचानक पार्टी हलकों में लिया जाने लगा है। पुराने बजरंगी, संघ से जुड़े हैं। पार्षद, नगर निगम के सभापति, भाजपा के नगर अध्यक्ष और सुमित्रा महाजन के चुनाव संचालक रह चुके हैं। यूं देखने में इनकी प्रोफाइल समृद्ध है। पार्टी सामान्य वर्ग का जो उम्मीदवार ढूंढ रही है उस फार्मेट में भी उतर रहे हैं लेकिन एक-दो ऋणात्मक पहलू हैं जो इन्हें अटका सकते हैं। पहला यह कि पद से हटने के बाद पार्टी के आयोजनों से किनारा कर लेते हैं। नगर अध्यक्ष का कार्यकाल पूरा होते हैं लंबे समय तक पार्टी आयोजनों से दूर रहे। दूसरा चार नंबर से टिकट के लिए पार्टी लाइन से बाहर जाकर राजनीति कर चुके हैं। तब लक्ष्मणसिंह गौड़ के स्वर्गवास के बाद उपचुनाव में टिकट की दावेदारी कर रहे थे। पार्टी तब मालिनी गौड़ को टिकट देना चाहती थी। हालांकि तब पार्टी ने इनके प्रतित ज्यादा नाराजगी जाहिर नहीं की थी लेकिन उनकी ये 'राजनीति' कहीं न कहीं पार्टी के दस्तावेजों में दर्ज हो गई थी।
भाग्य के धनी हैं
वैसे कैलाश शर्मा भाग्य के धनी हैं। जिस समय उन्हें नगर अध्यक्ष बनाया गया था, उससे पहले भी वे तकरीबन पार्टी के कामों से वैराग्य की मुद्रा में आ गए थे । अचानक पार्टी ने घर से बुलाकर नगर अध्यक्ष बना दिया तो वे फिर फार्म में आ गए। महापौर टिकट के लिए भी भाग्य काम करता है या नहीं ये देखना होगा।
टीनू जैन भी चर्चा में
एक नाम पार्षद दीपक (टीनू) जैन का भी चलने लगा है। सौम्य और मिलनसार छवि वाले टीनू जैन समाज से आते हैं जिनका बड़ा वोट बैंक इंदौर में है। पार्टी में उनके प्रति किसी को सीधी नाराजगी भी नहीं है और न किसी गुट से सीधा ताल्लुक रखते हैं। पार्टी के बड़े नेताओं तक सीधी पहुंच के चलते भी एक तबका इन्हें दावेदार मान रहा है। इनके अलावा सुदर्शन गुप्ता सहित कई नाम हैं लेकिन कुछ चयन समिति के कारण बाहर हो गए तो कुछ पार्टी के बनाए प्राथमिक मापदंडों के कारण। सुदर्शन चूंकि विधानसभा चुनाव हार चुके हैं, संजय शुक्ला से ही हारे हैं, इसलिए वे दावेदारी में धीमे हो गए हैं।
पहली बार फंसी भाजपा
भाजपा पहली बार महापौर के टिकट में फंस गई है। पहले होता यह था कि भाजपा का उम्मीदवार देखकर कांग्रेस अपना चेहरा तय करती थी, इस बार कांग्रेस ने ये बाजी तो जीतकर भाजपा को फंसा दिया है। इसीलिए 'आराम से' टिकट तय करने वाली भाजपा को इस बार खूब 'सोच-विचार' करना पड़ रहा है।