BHOPAL. दुनिया के कुछ बड़े देशों में अंतरिक्ष पर्यटन का दौर आरंभ हो चुका है। भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में अपनी ही धरती से स्वदेशी राकेटों के जरिए अपने बनाए और अन्य देशों के उपग्रहों को अंतरिक्ष में विदा करने के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त कर ली है। यही नहीं, अंतरिक्ष पर्यटन (स्पेस टूरिज्म) की शुरुआत होने वाली है। यह बात इसरो के अध्यक्ष डा. एस सोमनाथ ने मंगलवार को मौलाना आजाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (मैनिट) में आयोजित आठवें भारत अंतरराष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव (आइआइएसएफ) के समापन अवसर पर कही। उन्होंने बताया कि इसके लिए टूरिज्म व्हीकल का निर्माण किया जा रहा है।
मीथेन गैस का ईंधन के रूप में होगा उपयोग
यह वाहन निजी कंपनियों की सहायता से बनाया जा रहा है। अंतरिक्ष में यात्रा का आनंद लेने के लिए पर्यटकों को छह करोड़ रुपये खर्च करने पड़ेंगे। डॉ. सोमनाथ ने कहा कि भविष्य में अंतरिक्ष यान को भेजने के लिए मीथेन गैस का ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा। इसके लिए नए इंजनों का निर्माण किया जा रहा है। चंद्रमा और मंगल पर भेजे जाने वाले यानों में भी मीथेन का उपयोग किया जाएगा। दरअसल, यह भविष्य का ईंधन है, जिसका इस्तेमाल कई तरह से लाभकारी रहेगा।
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वैश्विक प्रतिस्पर्धा में विज्ञान की अहम भूमिका
तोमर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भारत को जो स्थान प्राप्त हुआ है, उसमें विज्ञान की अहम भूमिका है। आज खेती-किसानी के क्षेत्र में विज्ञान और प्रौद्योगिकी का महत्व बढ़ गया है। 2014 में विज्ञान का बजट दो हजार करोड़ था, जिसे अब बढ़ाकर छह हजार करोड़ रुपये कर दिया गया है।
विद्यार्थियों को दिए प्रमाण पत्र
अंतरिक्ष विज्ञान में हुए शोध मानव समाज की भलाई के लिए हैं। उन्होंने बताया कि गगन यान इसी वर्ष अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। समापन अवसर पर मुख्य अतिथि के तौर पर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग भारत सरकार के सचिव डा. एस चंद्रशेखर, मप्र के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री ओमप्रकाश सखलेचा, परिषद के महानिदेशक डा. अनिल कोठारी उपस्थित थे। इस दौरान कार्यक्रम में शामिल विद्यार्थियों को प्रमाणपत्र वितरित किए गए।