Shahdol : नर्मदा बचाओ अभियान, यूकेलिप्टस के वन कटने शुरू; 2 महीने में बनेगा STP

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Rahul Tiwari
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Shahdol : नर्मदा बचाओ अभियान, यूकेलिप्टस के वन कटने शुरू; 2 महीने में बनेगा STP

Shahdol. अमरकंटक के संकट से पर्यावरणविद चिंतित हैं। धीरे ही सही लेकिन मध्यप्रदेश सरकार ने नर्मदा को बचाने के लिए कुछ कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। अमरकंटक के वन प्रांतर से करीब 100 एकड़ के इलाके से यूकेलिप्टस के पेड़ हटाए जा रहे हैं। उनकी जगह पर बरसात में साल और सागौन के पौधे लगा दिए जाएंगे। शहडोल कमिश्नर राजीव शर्मा का कहना है कि पाइन के फॉरेस्ट हटाने का भी प्रस्ताव भेज रहे हैं। ये अमरकंटक की मूल प्रजाति नहीं है इसे बाहर से लाकर रोपा गया था।



सालवन ही बचा सकते हैं उद्गम



अमरकंटक और मैकल की तराई अपने हरे-भरे सालवनों के लिए जानी जाती है। साल के पेड़ वाटर रिचार्ज करते हैं। उनमें जल संग्रहण की गजब की क्षमता होती है। ये आश्चर्य का विषय है कि किन विशेषज्ञों ने किस उद्देश्य की पूर्ति के लिए यूकेलिप्टस और पाइन के फॉरेस्ट तैयार करने की राय दी थी।



बाक्साइट की खदानें तत्काल बंद हो



मैकल पर्वत की भूगर्भीय संरचना में बाक्साइट प्रचुर है। स्पॉन्जी होने से ये बरसात का जल ग्रहण करता है और इसी से सोन-नर्मदा-जुहिला का उद्गम रिचार्ज होता है। पहले बाल्को-हिन्डाल्को की बड़ी खदानें थीं। वे तो बंद हैं लेकिन मैकल की तराई में वैध-अवैध खनन उसी रफ्तार से जारी है। कमिश्नर राजीव शर्मा का कहना है कि वे मैकल पर्वन पर खनन को रोकने के लिए सरकार के पत्र लिखेंगे।



अमरकंटक की बस्ती भी बड़ी समस्या



नर्मदा के उद्गम को घेरे हुए 15 हजार की आबादी है। 50 से अधिक छोटे-बड़े आश्रम हैं। श्रद्धालुओं की भीड़ बनी ही रहती है। इन सबका निस्तार नर्मदा जी पर ही निर्भर है। उद्गम और जलधारा दोनों दूषित होती हैं। कमिश्नर राजीव शर्मा ने बताया कि सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट दो महीने में बन जाएगा लेकिन आबादी को शिफ्ट करना होगा। अमरकंटक तभी सुरक्षित हो सकता है जब यहां कम से कम मानवीय हस्तक्षेप हो।



सेटेलाइट सिटी है विकल्प



सरकार ने अमरकंटक की आबादी को विस्थापित करने के लिए 15 किलोमीटर पहले ही पोड़की गांव में सेटेलाइट सिटी का प्रकल्प तैयार किया है। यहां एक शहर की सभी सुविधाएं होंगी। यहां वाहनों को प्रतिबंधित करना जरूरी होगा। जो भी जाएं  इको फ्रेंडली वाहनों से जाएं या पैदल जाएं। अमरनाथ और कैलाश मानसरोवर के लिए पदयात्रा हो सकती है तो मां नर्मदा के लिए पदयात्रा क्यों नहीं हो सकती। प्रकृति में क्षरण की प्रक्रिया धीरे-धीरे होती है। समझ में तब आता है जब सबकुछ नष्ट हो जाता है। अमरकंटक को संकट से निकालने का आगे का रास्ता यही है।


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