मध्यप्रदेश में छोटे दलों के खौफ के साथ ही शिवराज-वीडी के भरोसे जीत पर भी संशय? अब बाबा साहेब की शरण में बीजेपी

author-image
Harish Divekar
एडिट
New Update
मध्यप्रदेश में छोटे दलों के खौफ के साथ ही शिवराज-वीडी के भरोसे जीत पर भी संशय? अब बाबा साहेब की शरण में बीजेपी

BHOPAL. चुनाव नजदीक आते आते बीजेपी के सारे पुराने जख्म हरे होते जा रहे हैं। उन जख्मों को राहत देने के लिए बीजेपी की चुनावी फॉर्मेसी में नए नए रसायन तैयार हो रहे हैं। इन रसायनों से तैयार हो रही है नई योजना नाम की चुनावी दवा। बस जख्म कौन दे रहा है उस वर्ग या तबके के अनुसार दवा के रसायन में कुछ फेरबदल होता है और उसे एक सभा के जरिए लॉन्च कर दिया जाता है। अब यही दवा लगाकर एक वर्ग विशेष से मिले जख्मों को भरने की तैयारी है। जिसके लिए बीजेपी जोर शोर से तैयारी कर रही है पर पार्टी की मुश्किल ये है कि हार के जिन जख्मों को वो भरना चाहती है, उन्हें कुरेदने के लिए कुछ नए नेता प्रदेश में नया मोर्चा खोलने वाले हैं। अब हाल ये है कि अब तक सिर्फ कांग्रेस को टक्कर देने की तैयारी कर रही बीजेपी को कुछ नए चेहरों से भी मुकाबला करना है और, ये इतना आसान नहीं है। इसलिए अब बीजेपी को बाबा साहब की याद आ रही है।



सीएम शिवराज बाब साहेब की जन्म स्थली, महू जाने की तैयारी में



बीजेपी को ये जख्म मिले थे प्रदेश के एससी और एसटी वोटर्स ने। जिन्होंने पिछले चुनाव में बीजेपी से तकरीबन मुंह मोड़ ही लिया था। इस तबके को रिझाने के लिए बीजेपी ने बड़ी योजना तैयार की। बाबा साहेब अंबेडकर की जयंती को जलसे के रूप में मनाने की तैयारी की गई है। खुद सीएम शिवराज सिंह चौहान बाब साहेब की जन्म स्थली, इंदौर के पास स्थित महू जाने की तैयारी में है। 14 से 16 अप्रैल तक बीजेपी बाबा साहेब के नाम का गुणगान कर वर्ग विशेष को अपना बनाने की कोशिश में जुटी रहेगी। इसके अलावा जिन बस्तियों में अनुसूचित जाति के वोटर्स की तादाद ज्यादा है वहां स्नेह यात्रा निकालने की भी तैयारी है। महू के अलावा ग्वालियर चंबल के रूठे SC-ST मतदाताओं को भी मनाना है। इसके लिए बीजेपी ग्वालियर में जोरदार सम्मेलन करने की तैयारी कर रही है। जिसमें सीएम शिवराज सिंह चौहान के अलावा ग्वालियर चंबल से जुड़े तमाम दिग्गज नेता भी मौजूद होंगे। इसी सभा में सीएम वर्ग विशेष के लिए बड़ी योजना का भी ऐलान कर सकते हैं।



बाबा साहेब के अलावा संत रविदास को भी महत्व मिलने वाला है



ये जतन इतने पर ही बस नहीं होंगे। बाबा साहेब के अलावा संत रविदास को भी खास स्थान दिया जाने वाला है। सागर में उनके नाम का मंदिर बनेगा। जिसके लिए हर व्यक्ति से एक मुट्ठी चावल, एक ईंट और गांव की मिट्टी ली जाएगी। ताकि हर मतदाता को ये अहसास करवाया जा सके कि पार्टी उनके लिए क्या क्या नहीं कर रही। ऐन चुनाव से पहले ये सारे जतन करने में जुटी बीजेपी ये मान लेना चाहती है कि इतने से ही एससी एसटी मतदाता उसके पाले में आ जाएंगे। जिन्होंने 2018 में उसे बुरी तरह धोखा दिया था।



2018 का SC-ST सीटों का गणित




  • मध्यप्रदेश में 82 सीटें आरक्षित हैं


  • बीजेपी केवल 34 सीटें ही जीत सकी थी

  • जीती सीटों में SC की 18 और ST की 16 सीटें शामिल थीं

  • 2013 में कुल सीटों का ये आंकड़ा 59 था



  • 2018 में बीजेपी का खेल एससी-एसटी वोटर्स ने बिगाड़ा था



    एससी एसटी सीटों पर आई इतनी बड़ी गिरावट का असर ये हुआ था कि बीजेपी सत्ता से ही बाहर हो गई थी। पिछले चुनाव के कुल 5 करोड़ मतदाताओं में एससी वोटर्स की संख्या 73 लाख 77 हजार 150 थी और एसटी वोटर्स 1 करोड़ 5 लाख 2 हजार 949 थे। सामान्य वर्ग के वोटर्स के मुकाबले इन तबकों के वोटर्स ने ज्यादा मतदान किया था और 2018 में बीजेपी का खेल बिगाड़ दिया था।



    कांग्रेस के लिए भी परफोर्मेंस बरकरार रखना मुश्किल है



    अब बीजेपी हर हाल में इन दोनों ही तबकों का विश्वास जीतना चाहती है, लेकिन ये इतना आसान नहीं है। न सिर्फ बीजेपी के लिए बल्कि कांग्रेस के लिए भी पुराना परफोर्मेंस बरकरार रखना मुश्किल है। इस सीमित वोट बैंक पर डाका डालने कुछ नए चेहरे मैदान में उतर चुके हैं। अब तक ये बंटे-बंटे थे पर अब एक साथ आकर बड़े दलों का बड़ा जख्म देने की तैयारी में है। ये तो आपने भी सुना होगा बंद मुट्ठी लाख की खुल गई तो खाक की। राष्ट्रीय दल जिन छोटे संगठनों को खाक बराबर समझते रहे वो मुट्ठी बनकर लाखों वोट समेटने की रणनीति पर तेजी से काम कर रहे हैं। इसका क्या असर होगा इसका आंकलन ही उनकी नींद उड़ाने के लिए काफी है। 



    बीजेपी एससी- एसटी को बड़ी सौगात देने की तैयारी में जुटी 



    मध्य प्रदेश में राजनीतिक दलों के सर्वे के मुताबिक 14.98 प्रतिशत अनुसूचित जाति वर्ग की आबादी है, जबकि मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 35 सीट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है। सबसे ज्यादा अनुसूचित जाति वर्ग की आबादी तराना विधानसभा में है। यहां 30.33 प्रतिशत एससी वर्ग की आबादी है, जबकि आष्टा में 29.61, घट्टिया में 30.12, नरियावली में 25.52, बीना में 23.25 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जाति वर्ग की है। बाबा साहेब की जयंती पर बड़ा कार्यक्रम कर और एक बड़ी घोषणा कर इन सभी को बीजेपी बड़ी सौगात देने की तैयारी में जुटी हुई है।



    घाटा सिर्फ कांग्रेस को ही नहीं बीजेपी को होने की भी आशंका है



    बीजेपी सौगात तो देगी पर उनका असर कितना होगा इसका आंकलन खुद पार्टी के लिए मुश्किल है। क्योंकि उसकी कोशिशों पर पानी फेरने के लिए छोटे दलों की प्लानिंग अलग ही चल रही है। महू में बीजेपी का ही बड़ा आयोजन नहीं है एक और आयोजन की तैयारी है आजाद समाज पार्टी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और समाजवादी पार्टी एक मंच पर दिखाई देंगी। इस कार्यक्रम के मंच पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव, राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर रावण एक मंच पर होंगे। ये चेहरे जब एक साथ नजर आएंगे तब किसका वोट बैंक इनके खाते में जाएगा इसका आंकलन करना भी जरूरी होगा। क्योंकि, घाटा सिर्फ कांग्रेस को ही नहीं बीजेपी को होने की आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता।



    बीजेपी ये खूब जानती है कि हर वर्ग में अपने अपने मुद्दों को लेकर नाराजगी पसरी हुई है। उसी नाराजगी को कुरेद-कुरेद कर छोटे दल अपनी पैठ गहरी कर रहे हैं।



    इन सभाओं ने बढ़ाया पारा 




    • 8 से 11 जनवरी 2023 तक करणी सेना ने विशाल धरना प्रदर्शन किया। पहले दिन ही 2 लाख से अधिक सवर्ण इस आंदोलन में शामिल हुए थे।


  • 12 फरवरी को राजधानी भोपाल में भीम आर्मी का शक्ति प्रदर्शन हुआ। जिसे दलितों का शक्ति प्रदर्शन बताया गया। इसमें करीब एक लाख लोगों के शामिल होने का दावा किया गया। 

  • आम आदमी पार्टी ने 14 मार्च को भोपाल में सभा की। भीड़ भले ही कम जुटी, लेकिन आम आदमी पार्टी नई ऊर्जा के साथ एक्टिव हो गई।

  • जयस भी अपने गढ़ में लगातार बड़ी सभाएं कर रही है।

  • ओबीसी महासभा भी तेजी से सक्रिय है।



  • एंटीइंकंबेंसी से बीजेपी के लिए चैन की सांस लेना मुश्किल हो रहा है



    बीजेपी जिन जख्मों को भरने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है। उन्हीं जख्मों पर ये दल फिर चोट देने की तैयारी में है। कुछ समय पहले तक ये इत्मिनान था कि छोटे दल कांग्रेस के वोट काटेंगे, लेकिन जमीनी स्तर पर एंटीइंकंबेंसी का फैक्टर भी मजबूत है। इसलिए चैन की सांस लेना बीजेपी के लिए भी मुश्किल हो रहा है। अब कोशिश है कि किसी भी हाल में वर्ग विशेष की ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल की जा सके। जिसकी कामयाबी का आधार बाबा साहेब का नाम ही नजर आ रहा है।



    पिछले चुनाव से माई के लाल के जख्म को भी भरना है



    प्रदेश की सत्ता में 19वां साल गुजार रही बीजेपी की हालात टाइट है। जो पार्टी प्रदेश की रग-रग से वाकिफ होना चाहिए वो फिलहाल नए-नए दांव चलने में व्यस्त है। इस उम्मीद पर कि एक फेल हो जाए तो कम से कम दूसरा कारगर साबित हो। पिछले चुनाव से माई के लाल के जख्म को भी भरना है, खासतौर से ग्वालियर चंबल में और बाकी सीटों पर आरक्षित वर्गों का प्यार भी हासिल करना है। जिसके बीच में दीवार अब सिर्फ कांग्रेस की नहीं, बल्कि नए दलों की एकता की भी है। माइक्रो लेवल की प्लानिंग करने वाली बीजेपी क्या माइक्रो लेवल की पकड़ रखने वाले इन दलों से पार पा पाएगी। ये बड़ा सवाल है।


    Politics of Madhya Pradesh मध्यप्रदेश की राजनीति fear of small parties in Madhya Pradesh doubt on victory on the basis of Shivraj-VD? BJP in the shelter of Babasaheb मध्यप्रदेश में छोटे दलों का खौफ शिवराज-वीडी के भरोसे जीत पर संशय? बाबा साहेब की शरण में बीजेपी