हरीश दिवेकर, BHOPAL. प्रदेश में राजनीतिक माहौल गरमाए उससे पहले ठंड अपनी दस्तक दे चुकी है। राममंदिर और अनुच्छेद 370 के बाद अब देश में एक देश, एक विधान लाने के लिए कॉमन सिविल कोड जल्द ही लोगों के बीच चर्चा का अहम विषय होगा, इसे 2024 के लिए गेम चेंजर भी माना जा रहा है। प्रदेश की बात करें तो राजनेताओं से लेकर ब्यूरोक्रेटस के बीच दो अहम सवाल घूम रहे हैं, पहला प्रदेश का अलगा मुख्य सचिव कौन होगा, दूसरा गुजरात चुनाव के परिणाम के बाद प्रदेश में क्या होने वाला है उसी का जवाब तलाशने में जुटे हैं। खबरें तो और भी हैं। मंत्रालय और राजनीतिक गलियारों के बीच क्या हो रही है उठापटक ये जानने के लिए अब आप सीधे नीचे उतर आइए।
सिंधिया के बुखार, जटिया के बयान से उड़ी नींद
प्रदेश बीजेपी हर माह कोर कमेटी की बैठक करके आलाकमान को यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि यहां सबकुछ ठीक ठाक है। सारे बड़े फैसले सामूहिक रुप से लिए जाते हैं, लेकिन इस बार मामला उलटा पड़ गया। बैठक शुरु होते ही सिंधिया के नाराज होकर बैठक छोड़कर जाने की खबर वायरल हुई तो बीजेपी नेताओं ने सफाई दी कि उन्हें वाकई बुखार था, एक पदाधिकारी ने तो ये तक कह दिया कि उनकी बैचेनी दूर करने के लिए मैंने उन्हें कॉफी भी पिलाई। मामला जैसे तैसे शांत होता कि शाम होते-होते तक जटिया वंशवाद पर बयान दे बैठे। इसके बाद नेताओं को पूरे मामले को कवर करने के लिए फिर मैदान में आना पड़ा। रात होते होते तक बीजेपी के वरिष्ठ पदाधिकारी एक दूसरे से बोलते दिखे कि मीडिया ने आज का दिन बिगाड़ दिया।
दिसंबर निकला, संकट टला
प्रदेश में हर 6 माह बाद बदलाव की चर्चा जोर पकड़ती है। ये बयार चलाने वाले दिलजले एक बार फिर सक्रिय हो गए हैं, ये कहते फिर रहे हैं कि गुजरात के रिजल्ट के बाद एमपी में शीर्ष नेतृत्व के लिए दिसंबर का महीना भारी होगा, इसमें बदलाव होना तय है, तर्क—कुतर्क होने पर ये बचाव में ये भी कहते हैं कि यदि दिसंबर निकल जाएगा तो संकट भी टल जाएगा। चौथी बार शिवराज के कुर्सी संभालने के बाद से ये चर्चाएं रह रहकर होती रहती हैं। सबसे पहले उपचुनाव के दौरान, दूसरी बार उत्तरप्रदेश-पंजाब सहित पांच राज्यों के दौरान, फिर प्रदेश के नगरीय निकाय चुनाव के दौरान और अब गुजरात चुनाव के बाद सत्ता-संगठन में बड़े बदलाव की चर्चा ने जोर पकड़ा है। दरअसल बीजेपी के नंबर-1 और नंबर-2 के चौकाने वाले फैसलों को देखते हुए ये चर्चाएं गाहे-बगाहे जोर पकड़ लेती हैं। उधर, डेढ़ साल से मंत्रिमंडल विस्तार का इंतजार कर रहे दावेदार भी दिसंबर से काफी उम्मीद लगाए बैठे हैं, बहरहाल अब देखना होगा कि 2022 जाने से पहले किसे क्या दे जाता है और किससे क्या ले जाता है।
किसानों के गुस्से से मामा हुए बैचेन
प्रदेश में खाद की किल्लत और लंबी लंबी कतारों की खबरों ने मामा बैचेन हैं। मामा की बैचेनी इससे पता चलती है कि हाल ही में सभी कलेक्टरों की मीटिंग में मामा ने चार-चार बार कहा कि आप लोगों को समझ में नहीं आ रहा जनता गाली दे रही है। कुछ भी कीजिए, खाद के लिए लाइनें नहीं लगना चाहिए। मामा के फरमान के बाद कई कलेक्टर एक दूसरे को फोन लगाकर कह रहे हैं, कि खाद की कमी पूरी हो तो लाइनें लगना रुकें। बहरहाल नौकरी बजाना है तो कलेक्टरों ने रास्ता निकाल लिया खाद समय पर मिले या न मिले। किसानों को टेंट में बैठाकर लाइनें खत्म करने का प्रयास कर रहे हैं। मामा की फटकार और कलेक्टर के प्रयासों से क्या किसानों का गुस्सा कम होगा, ये तो आने वाला समय ही बता पाएगा।
साहब को माइक से रखा दूर
विवादित भाषण देकर सरकार को मुसीबत में डालने वाले अपर मुख्य सचिव को इस बार मंच पर माइक से दूर रखा गया। साहब घर से भाषण की पूरी तैयारी करके आए थे, लेकिन ऐन वक्त पर साहब को बोला गया कि स्वागत भाषण आप नहीं आपके कमिश्नर देंगे। शुरु में साहब थोड़े अनमनाए भी, लेकिन जब पता चला कि सीएम का आदेश है तो अपना मुंह लेकर बैठ गए। दरअसल पिछली बार साहब ने महिलाओं के स्तनपान को लेकर बोला था, जिससे सरकार की किरकिरी हुई थी, विपक्ष के साथ सत्तापक्ष के विधायकों ने भी साहब के इस बयान पर आपत्ति जताई थी। इसके पहले एक अन्य कार्यक्रम में साहब ने स्वागत भाषण देते हुए लाड़ली लक्ष्मी—2 की घोषणा तक कर दी थी, तब आयुक्त ने दौड़कर बीच में रोका कि ये घोषणा सीएम करेगे। माइक देखकर मचलने वाले साहब फिर कोई गलती न कर बैठें इसलिए सीएम आने के पहले ही उन्हें माईक पर न जाने की समझाइश दे दी गई।
मंत्रियों पर हावी अफसरशाही
कहने को मंत्री बड़ा होता है, लेकिन हकीकत इसके उलट नजर आती है। इन दिनों अफसरशाही बड़ी नजर आ रही है। मंत्रियों की फाइलों को अटकाना, समय पर काम न होना। ये रोना रोते हुए आपको हर दूसरा मंत्री मिल जाएगा, लेकिन अब अफसर इतने मनमाने हो गए कि छुटटी पर जाने से पहले अपने विभागीय मंत्री को बताना भी जरुरी नहीं समझते। ऐसा ही एक वाक्या सिंधिया खेमे के मंत्री के साथ हुआ। उनके प्रमुख सचिव 15 दिन के अर्जित अवकाश पर चले गए और मंत्री को इसकी भनक भी नहीं लगी। इतना ही नहीं उनका प्रभार दूसरे अफसर को मिल गया इसकी जानकारी भी मंत्री को नहीं लगी। एक मामले में जब मंत्री ने अफसर से बात करना चाहा तो पता चला साहब छुटटी पर हैं और उनके विभाग का काम दूसरे अफसर देख रहे हैं। ये सुनकर मंत्री के मुंह से इतना ही निकला...आखिर ये हो क्या रहा है, मेरे विभाग के अफसर की जानकारी मुझे नहीं मिल रही।
सूर्य अस्त, साहब मस्त
मालवा में एक जिले की कप्तानी संभाल रहे साहब के चर्चे अब पुलिस मुख्यालय से लेकर मंत्रालय तक में हो रहे हैं। साहब सूर्य अस्त होने पर शराब और शबाब में डूब जाते हैं। साहब शौकीन मिजाज और दिलदार हैं, साहब के शौक में खलल न पड़े इसका ख्याल एडिशनल एसपी रखते हैं, इनाम के तौर पर साहब ने जिला उनके हवाले कर रखा है। हम आपको बता दें कि साहब निमाड़ एक जिले में भी कप्तान रहे हैं, वहां साहब के कलेक्टर साहिबा से दोस्ती के चर्चे आम थे। मैडम के साथ खुलेआम घूमना खाना-पीना चर्चा का विषय बना था। पीएचक्यू में चर्चा है कि साहब की राजनीतिक पकड़ मजबूत है, इसलिए शौकीन मिजाज साहब बिना किसी डर के कप्तानी का भरपूर आनंद ले रहे हैं।
सिस्टम डाल-डाल तो साहब पांत पांत
सरकार भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए सिस्टम को पारदर्शी बनाने में लगी है। यही वजह है कि हर विभाग की सेवाएं ऑनलाइन की जा रही हैं। लेकिन एक महकमे के साहब हैं कि ऑनलाइन सिस्टम में भी सेंध लगाने में कामयाब हो गए। मामला जमीनों से जुड़ा है, जैसे ही जिला कार्यालय ऑनलाइन में जानकारी डालते हैं वैसे ही साहब और उनके अधीनस्थ बड़े प्रोजेक्ट को स्केन करने में लग जाते हैं। फिर मुख्यालय से जिले को फोन पर खड़काया जाता है कि फलां की शिकायत आ रही है, इसे अभी मत करिए। बस फिर क्या है जिले वाले सामने वाले को संदेशा भेज देते हैं, आपका मामला मुख्यालय से अटक रहा है। मरता क्या न करता अपने धंधे को बचाने के लिए दौड़ता भागता राजधानी एक्सप्रेस पकड़कर साहब के शरण में आ जाता है। साहब बिना कोई कलम चलाए बिना नियम तोड़े अपनी दुकान चला रहे हैं, इसे कहते हैं सिस्टम डाल डाल तो साहब पांत पांत।