कांग्रेस की परंपरागत सीट है गंधवानी, इस बार रेप के आरोप में घिरे उमंग सिंघार को हो सकती है मुश्किल

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Shivasheesh Tiwari
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कांग्रेस की परंपरागत सीट है गंधवानी, इस बार रेप के आरोप में घिरे उमंग सिंघार को हो सकती है मुश्किल

 GANDHWANI. धार जिले की गंधवानी विधानसभा सीट प्रदेश की राजनीति में अहम भूमिका निभाती है। अक्सर राजनीतिक विवादों में रहने वाले उमंग सिंघार यहां से वर्तमान में विधायक हैं। हालांकि उमंग इन दिनों फरार हैं उन पर बलात्कार के आरोप हैं। 2018 में कांग्रेस सरकार में वन मंत्री रहते उमंग सिंघार दिग्विजय सिंह से भी भिड़ गए थे तब प्रदेश और कांग्रेस की राजनीति में पारा चढ़ गया था।





सियासी  मिजाज 





गंधवानी कांग्रेस का गढ़ बनी हुई है। परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई गंधवानी विधानसभा में शुरु से ही उमंग का कब्जा रहा। साल 2008, 2013 और 2018 में कांग्रेस के उमंग यहां से लगातार जीते। प्रदेश की उप मुख्यमंत्री रह चुकीं जमुनादेवी के भतीजे उमंग सिंघार को यहां बीजेपी से कोई खास चुनौती यहां से अब तक नहीं मिली है। 2023 में जहां जयस इस इलाके में अपनी पैठ बना रहा है तो वहीं उमंग की विवादित छवि भी यहां समीकरण बदलने में अहम भूमिका निभा रही है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि 2023 में यहां से कौन जीतेगा।





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सियासी समीकरण 





 कांग्रेस से वर्तमान विधायक उमंग सिंघार ही एकमात्र दावेदार रहे हैं हालांकि अब ये कयास लगाए जाने लगे हैं कि उमंग पर संगीन आरोप लगने के बाद भी पार्टी उन्हें टिकट देगी ? इस सवाल पर राजनीतिक पंडितों का कहना है कि टिकट तो उमंग को मिल जाएगा  लेकिन नतीजा शायद इस बार पलट सकता है। वहीं बीजेपी की तरफ से पिछले चुनावों में कई दावेदार दौड़ में रहे जैसे मालती मोहन पटेल, उनके ससुर लक्ष्मण पटेल कई स्थानीय नेता भी टिकट चाहते थे पर टिकट सरदार सिंह मेढ़ा को मिला। सरदार सिंह वर्तमान में जिला पंचायत अध्यक्ष हैं लेकिन मन में अब भी गंधवानी से विधायक बनने का ख्याल नहीं निकला है अब बीजेपी में गंधवानी सीट पर एक अनार सौ बीमार वाले हालात बने हुए हैं।





जातिगत समीकरण 





 इस विधानसभा सीट पर जातिगत समीकरण साधना दोनों ही दलों के लिए बड़ी चुनौती रहती है। जातिगत समीकरण की बात करें तो इलाके के कुल 2 लाख 14 हजार  832 मतदाताओं में से सबसे ज्यादा मतदाता आदिवासी समाज के हैं उसके बाद अन्य सभी वर्गों के मतदाता भी इस इलाके में है लेकिन उनकी संख्या बहुत कम है यहां उम्मीदवारों की जीत आदिवासी समाज के वोटों पर ही निर्भर करती है





मुद्दे 





आदिवासी बाहुल्य इस इलाके में मुद्दों की कोई कमी नहीं। इस पिछड़े इलाके में वैसे तो कई मुद्दे प्रभावी है लेकिन मूलभूत सुविधाओं के अभाव में यहां के लोग काफी परेशान है। इलाके में रोजगार के अभाव से जन्मी पलायन की एक बड़ी समस्या है। यहां उद्योग न होने से स्थानीय स्तर पर रोजगार नहीं है जिसके कारण मजदूरों को गुजरात जाना पड़ता है। यहां स्वास्थ्य सेवाओं की भी हालत खस्ता है तो वहीं शिक्षा के मामले में कोई बड़ा काम इस इलाके में अब तक नहीं हुआ। इन तमाम मुद्दों को लेकर जब हमने इलाके के जिम्मेदार कांग्रेस-बीजेपी और जयस के नेताओं से बात की तो वे एक-दूसरे पर जमकर आरोप-प्रत्यारोप लगाते नजर आए।





इसके अलावा द सूत्र ने इलाके के प्रबुद्धजनों, वरिष्ठ पत्रकारों और आम जनता से बात की तो कुछ सवाल निकर कर आए।







  •  15 महीने की सरकार मे आपके इलाके के कितने किसानों का कर्ज माफ हुआ ?



  •  सड़कों के लिए मंत्री और विधायक रहते कितनी राशि खर्च की ?


  •  हर घर बिजली देने का वादा था, 4 साल में कितने घरों में बिजली पहुंची ?


  •  15 महीने की सरकार में आपके इलाके के कितने युवाओं का बेरोजगारी भत्ता मिला ?


  •  रोजगार की कमी के चलते पलायन बड़ी समस्या है इसके समाधान के लिए क्या कोशिस की ?


  • स्थानीय कार्यकर्ताओं को एकजुट रखते हुए बीजेपी इस बार किस पर दांव लगाती है।






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