साइंस नहीं संघ की 'डिग्री' से नियुक्ति, 40Cr का बजट आधा हुआ, MPCST का A टू Z

author-image
Aashish Vishwakarma
एडिट
New Update
साइंस नहीं संघ की 'डिग्री' से नियुक्ति, 40Cr का बजट आधा हुआ, MPCST का A टू Z

रूचि वर्मा. भोपाल। भ्रष्टाचार कला है या विज्ञान, आपको ये समझना है तो मेपकास्ट यानी मप्र विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद इसका सबसे बढ़िया उदाहरण है। मेपकास्ट है तो विज्ञान की संस्था और विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए इसका गठन किया गया था। लेकिन अब भ्रष्टाचार, अनियमितता और गड़बड़ियों की कला में ये माहिर हो चुकी है। नेशनल साइंस डे पर मेपकास्ट की गड़बड़ियों पर द सूत्र ने स्पेशल रिपोर्ट.....





मैपकास्ट के रीजनल एक्सटेंशन सेंटर हो रहे खंडहर: मेपकास्ट का जबलपुर का रीजनल एक्सटेंशन सेंटर यानी क्षेत्रीय विस्तार केंद्र खंडहर हो चुका है। इसे देखकर नहीं लगेगा कि विज्ञान को ये बढ़ावा दे भी सकते हैं। विस्तार केंद्र की खिड़कियां टूटी हुई है, पलस्तर उखड़ा हुआ है, कमरे धूल भरे हुए हैं। मेपकास्ट ने करीब 18 साल पहले चार जगह इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर और रीवा में ये केंद्र बनाए थे जिसका मकसद था रिसर्च को बढ़ावा देना। सेंटर की खराब हालत का जिम्मेदार मेपकास्ट ही है जिसने इन सेंटर्स को अपने हाल पर छोड़कर रखा है। यहां ना तो बजट है, ना ही स्टाफ और ना ही खुद की बिल्डिंग। बावजूद इसके कर्मचारी और अधिकारियों की सैलरी पर खर्च भारी भरकम हो रहा है। द सूत्र की टीम को रानी दुर्गावती विवि के पीछे एक भवन में स्थित इस दफ्तर खोजने में तीन दिन लग गए क्योंकि किसी को पता नहीं था कि ऐसा कोई दफ्तर जबलपुर में मौजूद है। यहां वैज्ञानिक निपुन सिलावट और प्यून रामाधार विश्वकर्मा मात्र दो कर्मचारी है और उनकी सैलरी कलेक्टर रेट पर दी जाती है। खंडहर हो चुका जबलपुर का रीजनल एक्सटेंशन सेंटर तो मेपकास्ट की गड़बड़ियों की बानगी भर है। 





क्या है मैपकास्ट और क्या है इसके काम: मेपकास्ट को मुख्यालय जो भोपाल में स्थित है एक तरह से सफेद हाथी है क्योंकि हर साल करोड़ों का खर्च होता है और उपलब्धि वैसी नहीं जैसी कल्पना की गई थी। मेपकास्ट की स्थापना 42 साल पहले 1981 में हुई थी। ये सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की एक ऑटोनॉमस बॉडी है जिसका मकसद था-







  • प्रदेश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के कामों को बढ़ावा देना



  • राज्य सरकार को तकनीकी सलाह देना


  • साइंस का प्रचार प्रसार करना






  • मेपकास्ट में कुल 218 पद स्वीकृत है। 2020 की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक संस्थान में 158 कर्मचारी है बाकी पद रिक्त है। मेपकास्ट की जनरल बॉडी है जिसमें 65 सदस्य होते हैं जिसमें सरकार के कई विभागों के अधिकारी और मंत्री सदस्य होते हैं और मुख्यमंत्री अध्यक्ष। एग्जीक्यूटिव कमेटी दूसरी अहम बॉडी है जिसके 13 सदस्य है इसमें कुलपति, शिक्षाविद, वैज्ञानिक, विभागों के प्रमुख सचिव सदस्य के रूप में शामिल हैं। मेपकास्ट के डायरेक्टर जनरल सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार भी है। मेपकास्ट के तहत 5 सेक्शन काम करते हैं। 







    • रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर 



  • रूरल टेक्नोलॉजी एप्लीकेशन सेंटर 


  • क्लाइमेट चेंज रिसर्च सेंटर 


  • स्पेस साइंस स्टडी सेंटर


  • एडवांस रिसर्च एन्ड इंस्ट्रूमेंटेशन फैसिलिटी






  • संस्थान के बजट में साल दर साल गिरावट: मेपकास्ट के बजट की बात की जाए तो 2018-19 के वित्तीय वर्ष में मेपकास्ट को करीब 48 करोड़ रु. का बजट मिला था और खर्च हुआ करीब 45 करोड़ रु.। इसमें सैलेरी और प्रशासनिक खर्च ही करीब साढ़े तीन करोड़ रु. है। बाकी मेपकास्ट का दावा है कि साढ़े पांच करोड़ अनुसंधान पर खर्च किए। विज्ञान को लोकप्रिय बनाने में करीब साढ़े तीन करोड़ रु. खर्च किया गया। वैसे ही 2020-21 के बजट की बात की जाए तो करीब 19 करोड़ रु. मिला और 31 दिसंबर 2020 तक करीब 11 करोड़ रु. खर्च हुआ। मेपकास्ट के अधिकारियों के मुताबिक बजट सरकार ने कम कर दिया है जिससे परेशानी आ रही है। इस बारे में द सूत्र ने MPCST के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ राजेश सक्सेना से बात की को उन्होंने भी विभाग के लिए अपेक्षित बजट के अभाव को एक बड़ी कमी बताया। उन्होंने कहा, 'बजट दिनों दिन कम होता जा रहा है। पहले 40 करोड़ के आसपास का बजट मिलता था वही अब वो मुश्किल से 20-22 करोड़ रह गया है। इसका असर अन्य चीजों के साथ साथ पड़ता है, लैब्स एवं उसके इंस्ट्रूमेंट्स पर एवं उनके रखरखाव पर। जिसकी वजह से रिसर्च की क्वालिटी पर भी असर पड़ता है। अच्छी रिसर्च के ऊपर पैसा खर्च होता ही है।' 





    नियुक्तियों में राजनीतिक हस्तक्षेप, सीधी भर्ती से योग्य व्यक्ति पद से होते हैं वंचित: मेपकास्ट की इस हालत के लिए सीधे सीधे सरकार ही जिम्मेदार है क्योंकि राजनीतिक दलों ने इसे अपना हित साधने का केंद्र बना लिया है। द सूत्र ने जब यहां के कर्मचारियों से बात की तो सभी ने ऑफ द रिकॉर्ड कहा कि आरएसएस की मर्जी के बगैर यहां डायरेक्टर की नियुक्ति नहीं होती। मेपकास्ट के डीजी के चयन के लिए सरकार की एक समिति होती है। समिति के जरिए डीजी की पोस्ट के लिए देशभर से एक्सपर्ट को बुलाया जाता है। एक्सपर्ट पैनल इंटरव्यू लेकर डीजी का चयन करता है। लेकिन पिछले डेढ़ दशक से यहां डीजी मनोनीत हो रहे हैं। 





    2008 में प्रोफेसर प्रमोद वर्मा को मेपकास्ट का डीजी बनाया गया था, वर्मा आठ साल रहे। तमाम तरह की गड़बड़ियों और अनियमितताओं के बाद 2016 में उनका इस्तीफा लिया गया। इसके बाद रिटायर्ड IFS सीके पाटिल को चार्ज दिया। पाटिल के बाद DG डॉ. नवीनचंद्रा को भी बगैर चयन प्रक्रिया के मनोनीत कर दिया गया। इसके विरोध में संस्थान के वैज्ञानिकों ने धरना दिया था और तब ये हटाए गए। इसके बाद मेपकास्ट की डीजी बनीं डॉ अरुणा सक्सेना। इसके बाद मेपकास्ट के ही चीफ साइंटिस्ट डॉ राजेश शर्मा को डीजी बनाया गया। चूंकि ये जूनियर थे इसलिए इनका भी विरोध किया गया। फिलहाल डॉ. अनिल कोठरी डीजी है। जो आरएसएस के आनुषांगिक संगठन विज्ञान भारती से जुड़े बताए जाते हैं। आरजीपीवी से मेपकास्ट आए कोठारी तो खुद का वेतन बढ़ाने को लेकर विवादों में फंस चुके हैं। वित्त विभाग इस पर आपत्ति भी ले चुका है। नियम है कि प्रतिनियुक्ति वालों को कुलपति के समान वेतन नहीं दिया जा सकता। बावजूद इसके उन्होंने अपना वेतन तीन लाख कर लिया। यहां से रिटायर हो चुके कर्मचारियों की माने तो जो भी यहां डीजी आता है वो खुद का एजेंडा आगे बढ़ाता है। यानी कोई रोडमैप ही नहीं है।





    द सूत्र ने इस बारे में बात की MPCST के रिटायर्ड सेक्शन अफसर कृष्ण बाल सिंह से। उन्होंने उपरोक्त मसले की पुष्टि करते हुए कहा, "असल में संस्थान की सफलता डग की कार्यप्रणाली पर डिपेंड करती है। उसके ऊपर सब कुछ डिपेंड करता है। यहां का DG वाईस-चांसलर के स्तर का होना चाहिए जो होता है नहीं। और जो महानिदेशक आते भी हैं तो वो अपने-अपने हिसाब से संस्थान को चलाते हैं। हर कोई एक नई स्कीम ले आता है और पुरानी स्कीम बंद कर देतें है, रोडमैप पर कोई नहीं चलता। यही कारण है की MPCST वह हासिल नहीं कर पाई है जो उसे करना चाहिए था। 





    पुराने प्रतिभाशाली साइंटिस्ट हो रहे रिटायर, नए साइंटिस्ट्स की नियुक्तियां ही नहीं: वहीं, डॉ. सक्सेना का यह भी कहना है कि, 'MPCST के वैज्ञानिक की अगर बात करे तो पुराने साइंटिस्ट अब धीरे धीरे रिटायर होते जा रहे हैं। और सरकार द्वारा काफी समय से नई नियुक्तियां ना होने के कारण प्रतिभाशाली नए साइंटिस्ट्स का एक गैप बनता जा रहा है। जिसकी वजह से प्रोजेक्ट्स प्रभावित होते हैं। पहले जब रेगुलर नियुक्तियां होती रहती थी तो नए जूनियर साइंटिस्ट्स सीनियर्स से काम सीखकर आगे बढ़ते थे और अंततः उनके रिटायर होने पर खाली जगह को भरना आसान होता था। सरकार को प्रदेश के युवा वैज्ञानिकों के लिए वेकेन्सी क्रिएट करके उनकी नियुक्तियां करनी चाहिए।' यानी मेपकास्ट सरकार का ऐसा बच्चा है जिसे खेलने के लिए कुछ खिलौने मिल जाते हैं लेकिन पूरा पोषण नहीं मिलता। 



    विज्ञान MPCST MP एमपीसीएसटी corruption RSS नेशनल साइंस डे रिसर्च national science day Science ground report