RAGHOGARH (GUNA). गुना में बागेश्वर धाम के कथावाचक धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का दरबार था। इसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया भी पहुंचे थे। 10 मई की रात यानी बुधवार को धीरेंद्र दिग्विजय सिंह के बेटे और राघौगढ़ से कांग्रेस विधायक जयवर्धन सिंह के महल में पहुंचे। यहां रास्ते में उनका जोरदार स्वागत किया गया। लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। महल में धीरेंद्र ने कहा- हमारे प्रिय जयवर्धन जी। आपने कहा कि महाराज जी आपको चलना है। लगभग एक साल से तैयारी चल रही थी। आज हमें मौका मिल गया। हमने कहा- देखो भई, आम के आम गुठलियों के दाम। गुना का दरबार, बाद में राघौ सरकार।" असल में धीरेंद्र शास्त्री का गुना का कार्यक्रम पहले से तय था, जबकि राघौगढ़ यानी जयवर्धन के यहां जाने का प्रोग्राम अचानक हुआ। अब इसके कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं।
आखिर अचानक क्यों जयवर्धन के यहां पहुंचे धीरेंद्र शास्त्री?
जानकारी के मुताबिक, जयवर्धन सिंह और धीरेंद्र शास्त्री की पहचान तब से है, जब धीरेंद्र बागेश्वर धाम में शुरुआती दिनों में थे। कहा जाता है कि शुरुआत में धीरेंद्र शास्त्री का सबसे ज्यादा सहयोग कांग्रेस विधायक आलोक चतुर्वेदी ने किया। इसी दौरान जयवर्धन और धीरेंद्र की दो बार मुलाकात हुई। यहीं से दोनों में जान-पहचान हुई। यही वजह रही कि धीरेंद्र शास्त्री उनके न्योते मना नहीं कर सके।
गुना में 6 दिवसीय रामकथा का कार्यक्रम पिछले महीने ही तय हो चुका था। नीरज निगम मित्र मंडल ने इसका आयोजन किया गया था। तय कार्यक्रम के मुताबिक, वृंदावन के कथावाचक पुंडरीक गोस्वामी महाराज ने रामकथा की। अंतिम दिन यानी 10 मई को धीरेंद्र शास्त्री का दिव्य दरबार लगाया गया।
धीरेंद्र शास्त्री का कार्यक्रम बदलवाने के लिए संत-संघ तक ने कोशिश की, लेकिन...
धीरेंद्र शास्त्री को 10 मई के लिए गुना पहुंचना था। इससे पहले 7-9 मई तक उनका कार्यक्रम महाराष्ट्र में था। इसी बीच, 8 मई की शाम खबर आई कि धीरेंद्र शास्त्री राघौगढ़ किले पर रात्रि विश्राम करेंगे। 9 मई की रात खुद जयवर्धन सिंह भोपाल एयरपोर्ट पर उन्हें रिसीव करने जाएंगे। यही से दूसरे दिन दोपहर में गुना जाएंगे।
खबर मिलते ही गुना में कार्यक्रम के आयोजकों की धड़कनें बढ़ गईं। वजह- आयोजन बीजेपी नेता का था। खुद केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी दिव्य दरबार में शामिल होना था। ऐसे में धीरेंद्र शास्त्री का किले पर रुकना बड़ा राजनीतिक मैसेज दे सकता था। सूत्रों का कहना है कि 9 मई की सुबह ही आयोजकों ने ढाई घंटे तक मंथन किया। खबर तो यहां तक आई कि अगर धीरेंद्र शास्त्री पहले किले पर रुकते हैं तो ज्योतिरादित्य सिंधिया का आना भी कैंसिल हो सकता है। पुंडरीक गोस्वामी महाराज ने भी दो बार धीरेंद्र शास्त्री से बात की। कार्यक्रम बदलने का आग्रह किया। ये भी पता चला कि कार्यक्रम बदलवाने के लिए संघ भी एक्टिव हो गया।
लौटते में बना ‘किले’ पर जाने का कार्यक्रम
9 मई की शाम जयवर्धन एक कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे थे। उनसे धीरेंद्र शास्त्री के आने के बारे में पूछा तो टाल गए। हालांकि, तब तक सूचना आ गई थी कि धीरेंद्र शास्त्री का कार्यक्रम बदल गया है। वे अब पहले गुना आएंगे। यहां डॉ. जितेंद्र के घर पर विश्राम करेंगे। फिर दिव्य दरबार में शामिल होने के बाद लौटते समय राघौगढ़ किले जाएंगे। हालांकि, भोपाल से गुना आते वक्त रास्ते में जयवर्धन की धीरेंद्र शास्त्री से रात में मुलाकात हुई। वहां धीरेंद्र शास्त्री ने कहा कि लौटते वक्त किले पर आएंगे। वहीं रात्रि विश्राम होगा। इसके बाद किले पर भी तैयारियां शुरू हो गईं। किले पर पहुंचने पर विधायक लक्ष्मण सिंह और जयवर्धन सिंह ने उनके पैर पूजे। यहां भी काफी देर तक धीरेंद्र शास्त्री ने कथा की और प्रसंगों से लोगों को भाव-विभोर कर दिया।
धीरेंद्र शास्त्री ने कहा- हम इनको (जयवर्धन) बहुत मानते हैं। बड़ा स्नेह करते हैं जयवर्धन जी को। संतों, आचार्यों के प्रति इनका स्वभाव मन को छू जाता है है। पद के मद में हमने अनेक लोगों को हमने मदांधता में देखा है, लेकिन पद के मद को तिरस्कृत करके श्रेष्ठ जनों के चरणों में जो झुकना जानते हैं, वही समाज में पूजनीय होते हैं।