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जितेंद्र सिंह, GWALIOR. कांग्रेस विधायक प्रवीण पाठक की चिट्ठी ने केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए ना सिर्फ धर्मसंकट खड़ा कर दिया है, बल्कि बड़ा राजनीतिक दांव भी खेला है। प्रवीण ने चिट्ठी भले ही नितांत निजी भाव से लिखी है, लेकिन इसके बाहर आते ही मध्य प्रदेश की राजनीति में सरगर्मी बढ़ गई है। कांग्रेस छोड़ने के बाद राजमाता, कमल और संघ का नाम लेकर बीजेपी, कार्यकर्ता और जनता के बीच अपनी जगह बनाने का प्रयास कर रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया जयविलास परिसर में स्थित सरस्वती शिशु मंदिर को ही खाली करवा रहे हैं। कांग्रेस विधायक प्रवीण पाठक ने सिंधिया से स्कूल का पूर्व छात्र होने के नाते राजमाता सिंधिया की स्म़ृतियां, इच्छा और भावनाओं का वास्ता देकर परिसर में विद्यालय यथावत रहने देने का अनुरोध किया है। अब देखना यह है कि सिंधिया क्या राजमाता, कमल (बीजेपी) और संघ का मान रखते हैं या नहीं। बहरहाल, जो भी हो सरस्वती शिशु मंदिर का ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए आगामी विधानसभा में चुनावी मुद्दा बनना तय है।
विद्यालय खाली करवाना यानी चुनावी नुकसान
सरस्वती शिशु मंदिर यानी संघ। सिंधिया भाजपा में आने के बाद यह साबित करने की पुर-जोर कोशिश कर रहे हैं कि उनका संघ और बीजेपी से पुराना नाता है। संघ, बीजेपी और सिंधिया के बीच की खाई अभी पूरी तरह पटी भी नहीं थी कि प्रवीण के पत्र ने दूरी को फिर बढ़ा दिया है। बीजेपी में आने के बाद सिंधिया ने जिस प्रकार तेजी से अपनी संपत्ति को संरक्षित किया, वे पहले से चर्चा का विषय थे, लेकिन प्रवीण के पत्र ने आग में घी का काम किया है। विधायक प्रवीण पाठक का पत्र आगामी विधानसभा में ना सिर्फ कांग्रेस का चुनावी मुद्दा बन सकता है, बल्कि सिंधिया के लिए मुसीबत भी साबित होगा। सरस्वती शिशु मंदिर शहर में ही नहीं, प्रदेश-देश में जाना-माना नाम है। सरस्वती शिशु मंदिर से हजारों लोगों की आस्था भी जुड़ी हुई है।
विद्यालय से राजमाता की जुड़ी स्मृतियां याद दिलाईं
प्रवीण पाठक ने पत्र में लिखा है- आपकी दादी कैलासवासी राजमाता सिंधिया (आजी अम्मा) ने अपने उदार हृदय के साथ सरस्वती शिशु मंदिर को महल में स्थान उपलब्ध करवाया था। निजी रूप से मेरा मानना है कि कैलासवासी राजमाता सिंधिया ने शाही परिवार को लोकोन्मुख बनाने के लिए ही शिक्षा के केंद्र स्थापित किए थे और इस विद्यालय से उनकी कई स्मृतियां जुड़ी हैं। आदरणीय राजमाता ने उनकी आत्मकथा (राजपथ से लोकपथ) में तो लिखा भी है कि वे जय विलास महल में ही अंचल के विद्यार्थियों हेतु विश्वविद्यालय बनाना चाहती थीं। महल में चलने वाले सरस्वती शिशु मंदिर से मेरे जैसे सामान्य परिवारों के हजारों बच्चों ने शिक्षा प्राप्त की है और हजारों बच्चे आज भी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। जाहिर है यह विद्यालय आपके पूर्वजों द्वारा बच्चों के विद्यार्जन हेतु आरंभ किया गया था। आपके द्वारा महल परिसर स्थित इस शिक्षा भवन को खाली कराने से आशंका है कि यह शिक्षा मंदिर बंद न हो जाए जो कि शिक्षार्थियों के लिए गहरा आघात होगा और आपकी दादी के सपनों पर गहरी चोट भी होगी।
आपकी संपत्ति विरासत के आगे ऊंट के मुंह में जीरा
चिट्ठी में आगे ये भी लिखा है, महोदय निस्संदेह जयविलास महल आपकी निजी संपत्ति है और इसके साथ जुड़ी अन्य संपत्तियों के मालिकाना हक से जुड़े सभी स्वत्व व अधिकार आपके एकमेव हैं, पूर्व विद्यार्थी होने एवं इस मातृ संस्था से मेरा जुड़ाव होने के नाते मेरा मानना है कि आपके व्यक्तित्व, विरासत और आपकी वैभव संपन्नता के आगे विशाल महल के एक छोटे से कोने में संचालित यह विद्यालय आपकी विरासत के आगे ऊंट के मुंह में जीरा के समान है।
अगाध प्रेम की भावना से ओतप्रोत होकर लिखा पत्र
कांग्रेस विधायक प्रवीण पाठक ने केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को लिखे पत्र में सबसे पहली लाइन ही यही लिखी है कि मैं आपको यह पत्र नितांत निजी भाव और अपनी मातृसंस्था के प्रति अगाध प्रेम की भावना से ओतप्रोत होकर लिख रहा हूं। मुझे जब से ज्ञात हुआ है कि आपके द्वारा जय विलास परिसर में स्थित कई दशकों पुराने ज्ञान के मंदिर, शिक्षा एवं संस्कारों के उत्कृष्ट केंद्र सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालय को खाली कराया जा रहा है। चूंकि उक्त विद्यालय का पूर्व छात्र होने के नाते मेरी भावनाएं आहम हुई हैं। हमारे विद्यालय सरस्वती शिशु मंदिर ने शिक्षा और संस्कार के नए और ऐतिहासिक कीर्तिमान स्थापित किए हैं। सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालय से मेरी भावना का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मैंने हमारी पार्टी के वरिष्ठ नेता के द्वारा विद्यालय के संबंध में दिए विरोधाभाषी विचारों का भी विरोध किया था।
पत्र का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं
कांग्रेस विधायक प्रवीण पाठक ने बयान में कहा- मैंने कल पत्र लिखा है। आगे की परिस्थति उनको तय करना है। मुझे उम्मीद है वह पूर्वजों के प्रति अपनी दयालुता दिखाएंगे। यह विषय चुनावी विषय नहीं है। मैं उस विद्यालय का पूर्व छात्र हूं इसलिए आत्मिक तौर पर लिखा गया पत्र है इसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है।