देव श्रीमाली,GWALIOR. आज यानी 21 जनवरी को मौनी अमावस्या है। देश भर के शनि मंदिरों पर श्रद्धालुओं का तांता लगा है लेकिन सबसे ज्यादा भीड़ ग्वालियर के पास मुरैना जिले में स्थित ऐंती पर्वत पर होती है। यहां हर शनिश्चरी अमावस्या को न केवल देश बल्कि दुनिया भर से लाखों लोग यहां शनि देव की पूजा कर उनके प्रकोप बचने के लिए प्रार्थना करते है। नक्षत्र और ग्रह दोष शमन के लिहाज से इस मंदिर का खास महत्व है। ये देश में ऐसा इकलौता मंदिर है जहां शनि महाराज तपस्या की मुद्रा में है और इसीलिए वे अपने भक्तों को मंगल आशीर्वाद देते हैं।
त्रेतायुगीन है शनि पर्वत
शास्त्रों में मान्यता है कि ये पर्वत त्रेतायुगीन है लेकिन इस पर शनि महाराज की प्रतिमा की स्थापना उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट महाराज विक्रमादित्य ने करवाई थी। बाद में सिंधिया शासकों ने यहां मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। वर्तमान में भारत सरकार यहां करोड़ों रुपये खर्च करके भव्य बना रहे हैं।
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रावण की मुक्ति से छूटकर यही आये थे शनिदेव
ऐंती पर्वत पर बने इस मंदिर को लेकर पौराणिक धर्मग्रंथों में बहुत ही महत्वपूर्ण कथा है। पुराणों में उल्लेख के अनुसार राम और रावण की सेनाओं में निर्णायक युद्ध चल रहा था। पुराणों में उल्लेख है शिवभक्त ने शनि समेत सभी 9 ग्रहों को बंदी बना लिया था और ग्रह चक्र ही रोक दिया था। बंदी ग्रहों में शनिदेव भी थे उसकी मौत होना संभव नहीं था। इस तथ्य से भगवान श्रीराम को अवगत कराया गया। इसके बाद शनिदेव की मुक्ति की योजना बनाई गई और श्रीराम की आज्ञा लेकर हनुमान जी लंका गए और लंका दहन करके शनिदेव समेत सभी ग्रहों को रावण के चंगुल से मुक्ति दिलाई।
लंबी कैद से कृशकाय और शक्ति से कमजोर हो गए थे शनिदेव
कथा है कि रावण के यहां लंबी कैद और यातनापूर्ण जिंदगी के कारण शनिदेव काफी कमजोर हो गए थे और इससे उनकी प्रभाव शक्ति भी कम हो गई थी। इस तथ्य का अहसास पाकर हनुमान जी शनिदेव को लंका से लेकर आये और बियाबान में स्थित इस सुरक्षित ऐंती पर्वत पर विश्राम करने के लिए छोड़ गए। मान्यता है कि यहीं शनिदेव ने तपस्या करके फिर से अपनी खोई हुई शक्ति वापिस पाईं । मुरैना जिले में स्थित यह वहीं त्रेता युगीन पर्वत है और यहां विक्रमादित्य की स्थापित प्रतिमा में भी शनि महाराज आंखे बंद करके तपस्या में लीन नजर आते हैं।
यहां शनि पूजा का है खास महत्व
जिनके ग्रहचक्र में शनि की साढ़ेसाती चल रही होती है उनके लिए यहां पहुंचकर शनि भगवान पर तेल चढ़ाकर पूजा अर्चना करने से साढ़ेसाती के विपरीत फल भोगने में कमी आती है। यहां सामान्यतया पूजा अर्चना करने वालों की भी मनोकामना पूरी होती है।
जहां शनिदेव गिरे वह गड्ढा अभी भी मौजूद है
शनि पर्वत पर जहां शनि महाराज का यह प्रागैतिहासिक मंदिर है वहां आज भी एक गहरा गड्ढा है। मान्यता है कि जब हनुमान जी ने शनि देव को हवा से नीचे फेंका तो वे पत्थर के इस पहाड़ पर जिस स्थान पर गिरे वहां गहरा गड्ढा पड़ गया। यह वही गड्ढा है। हालांकि पुरातत्वविदों ने शोध में पाया कि यह गड्ढा उल्कापिंड गिरने से हुआ है।
यहां चढ़ता है हजारों टंकी तेल
शनि का अभिषेक सरसों के तेल से किया जाता है इसलिए हर शनिश्चरी अमावस्या पर यहां हजारों ड्रम तेल चढ़ाया जाता है। हर शनिवार भी यहां बड़ी संख्या में लोग पहुंचते है और तेल से अभिषेक कर पूजा अर्चना करते हैं। यहां जो लोग शनि उतरने के बाद आते है वे अपना मुंडन भी कराते है और जूते चप्पल छोड़कर भी जाते हैं। यही वजह है कि हर शनि अमावस्या पर यहां लाखों जोड़ी जूते, कपड़े और टनों के वजन में बाल इकट्ठे होते हैं।
शनिचरा मंदिर पर ऐसे पहुंच सकते हैं
शनि पर्वत पर श्रद्धालु हवाई जहाज, बस या ट्रेन से पहुंच सकते हैं। तीनो ही मार्गो से पहले ग्वालियर पहुंचा जा सकता है। ग्वालियर से शनिचरा की दूरी मात्र 29 किलोमीटर है।
रेलवे स्टेशन ग्वालियर
ग्वालियर रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी 26 किलोमीटर है और वहां टैक्सी या भिंड जाने वाली ट्रेन में बैठकर पहुंचा जा सकता है लेकिन इस ट्रैक पर सीमित ट्रेनों का ही परिचालन होता है।
बस स्टैंड ग्वालियर
ग्वालियर से शनिचरा मंदिर की दूरी मात्र 26 किलोमीटर है। यहां से भी श्रद्धालु बस या टैक्सी से बानमोर के रास्ते शनिचरा बहुत ही कम समय में पहुंच सकते हैं।
ग्वालियर एयरपोर्ट
शनिचरा के सबसे पास में राजमाता विजयाराजे सिंधिया एयरपोर्ट ग्वालियर (Gwalior airport) है। इसकी दूरी शनिचरा मंदिर से मात्र 20 किलोमीटर है। यहां से टैक्सी से मंदिर पहुंचा जा सकता है।