Barwani. बड़वानी में एक शख्स 17 साल पहले लापता हुआ था। घरवालों ने पंडितों से पूछताछ की और उसकी आत्मा की शांति के लिए फूस का पुतला बनाया और दाह संस्कार कर दिया। 9 साल से पितृपक्ष में प्रतिवर्ष उसका श्राद्ध भी होने लगा था। 3 दिन पहले की बात है वो लापता शख्स, जिसे घरवाले मृत मान चुके थे, घर की देहरी पर आकर खड़ा हो गया। घरवालों की तो हंसी भी रुंध सी गई और रोना चाहा तो खुशी ने आंसुओं को थाम दिया। मगर रोते-रोते हंसी सी आ गई थी, उनका प्रेम जो लौट आया था।
यह कहानी है बड़वानी के सेंधवा ब्लॉक मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर धनोरा के नवाड फलिया निवासी प्रेमसिंह पिता लच्छिया की। वो बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति का है। घरवालों के साथ खेती किसानी करता था। 2001 से मानसिक रूप से बीमार रहने लगा। 2006 तक उसकी मानसिक स्थिति बहुत खराब हो चुकी थी। इसी साल धनतेरस के दिन वो अचानक घर से कहीं चला गया था। भटकता हुआ प्रेम सिंह न जाने कैसे मुंबई पहुंच गया, जहां मुंबई के एक एनजीओ ने उसका इलाज किया और अब वापस गांव छोड़ दिया।
हाथ में गुदवाया हुआ नाम और बजरंगबली से पहचाना
प्रेम सिंह की कहानी काफी हद तक फिल्मी भी लगती है, जैसे कुंभ के मेले में बिछड़े हुए शख्स की पहचान शरीर के निशान या टैटू से होती है, ठीक वहीं हालात प्रेमसिंह के साथ में घटित हुए। प्रेमसिंह के छोटे भाई दिलीप ने बताया कि उसकी राह देखते-देखते 2014 में मां का भी निधन हो गया। ऐसे में हमने मां के साथ भाई की भी अंतिम क्रिया कर गमी कार्यक्रम कर दिया। इसके 9 साल बाद 24 फरवरी को एक फोन आया। फोन पर एक व्यक्ति कहता है कि आपका भाई प्रेमसिंह हमारे साथ है। हम उसे घर लेकर आ रहे हैं। हमें यकीन नहीं हुआ। फिर सरपंच और अन्य लोगों ने हमें सूचना दी। उसके बाद हम धनोरा बस स्टैंड पहुंचे। प्रेमसिंह के हाथ पर लिखा नाम और हनुमान जी का टैटू देखकर हमने उसे पहचान लिया। हमने अपने भाई को 17 साल बाद देखा। उसे देख हमारी आंखों से आंसू आ गए।
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22 साल पहले हो गया था विक्षिप्त
प्रेमसिंह के पिता लच्छिया ने बताया कि पहले पूरा परिवार धनोरी पंचायत में रहता था। प्रेमसिंह नवाड फलिया में खेत में घर बनाकर रहने लगा। वो खेत में काम करता था। 2001 से मानसिक रूप से थोड़ा बीमार रहने लगा। वो पत्थरों की पूजा करता और बड़े-बड़े बाल व दाढ़ी रख साधु जैसा रहने लगा था। कभी कोई इसका नाम लेता तो पत्थर मार देता था। यहां-वहां भटकने के बाद घर के पास ही बनी एक झोपड़ी में शाम को वापस आ जाता था।
2006 में धनतेरस के दिन प्रेमसिंह अचानक घर से कहीं चला गया। तब उसकी उम्र 30 साल थी। परिवार ने सोचा यहीं कहीं होगा और वापस आ जाएगा, लेकिन महीनों बाद भी लौटकर नहीं आया तो परिजनों की चिंता बढ़ गई। इसके बाद उसे तलाशना शुरू किया, धार्मिक प्रवृत्ति होने से परिजन ने कई तीर्थ स्थानों पर जाकर उसकी तलाश की। महाराष्ट्र मजदूरी करने गए परिचितों से भी पूछताछ की, लेकिन उसका कहीं पता नहीं चला। करीब 2 साल तक उसकी खोजबीन करने के बाद भी जब उसकी जानकारी नहीं मिली, तो उसे मृत मान लिया।
इलाज के बाद प्रेमसिंह पूरी तरह स्वस्थ
महाराष्ट्र के डॉ. तुषार गुले ने बताया कि युवक को जनवरी 2021 में रत्नागिरी के मेंटल हॉस्पिटल में भर्ती किया गया था। 2 साल तक उसका इलाज चला। उसके बाद जनवरी 2023 में हमारी संस्था के सुपुर्द किया। हम यहां पर लगातार इसकी काउंसलिंग करते रहे। तब जाकर उसने अपना नाम और पता बताया। उसके बाद इसे सही सलामत परिवार से मिलाने में कामयाब रहे। वो मानसिक रोगी था, जिसका इलाज करने पर अब वो पूरी तरह स्वस्थ हो चुका है।
24 फरवरी शुक्रवार को डॉ. तुषार गुले उसे लेकर पहले सेंधवा फिर धनोरा पहुंचे। बस में लोगों से पूछताछ के दौरान डॉ. तुषार को पता चला कि इसका वास्तविक घर धनोरा में है। इसके बाद वहां के सरपंच से संपर्क कर परिजन को धनोरा बस स्टैंड पर बुलाया और उसकी पहचान कराई और परिजन को सौंप दिया।