इंदौर में बोले पद्म भूषण डॉ. बीके राव, क्लाइमेट चेंज के कारण हेल्थ केयर को बनना होगा एनवायरमेंट फ्रेंडली

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Rahul Garhwal
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इंदौर में बोले पद्म भूषण डॉ. बीके राव, क्लाइमेट चेंज के कारण हेल्थ केयर को बनना होगा एनवायरमेंट फ्रेंडली

योगेश राठौर, INDORE. आज-कल आपको मर्करी का थर्मामीटर नहीं मिलेगा क्योंकि वो पर्यावरण की दृष्टि से सही नहीं है। मर्करी का थर्मामीटर जब टूटता है तो लोग मर्करी को नाले में बहा देते हैं। वहां से वो नदियों में चला जाता है और नदियों से मछली के पेट में और मछली से वापस मनुष्य के शरीर में पहुंच जाता है। मर्करी बहुत ज्यादा टॉक्सिक होता है इसलिए सरकार ने हेल्थ केयर में से मर्करी को गायब कर दिया, मर्करी का अभी भी इस्तेमाल होता है पर इंडस्ट्रीज में हेल्थ केयर में नहीं। ये कहना है सर गंगा राम हाॉस्पिटल दिल्ली के इंसेटिव केयर यूनिट के चेयरमैन और पद्म भूषण से सम्मानित डॉ. बीके रॉव का। इंडियन सोसाइटी ऑफ क्रिटिकल केयर मेडिसिन (आइएससीसीएम) की 29वीं वार्षिक सम्मेलन क्रिटिकेयर-2023 में शामिल होने के लिए इंदौर आए हुए थे।



'बीमारी के पीछे के कारण को ठीकर करना चाहते हैं'



बीके राव ने कहा कि पहले हम पेशेंट्स को बीमारी से ठीक करने के बारे में सोचते थे पर हम ये सोच बदल गई है। अब उसकी बीमारी के पीछे के कारण को ठीक करना चाहते हैं। जब इस बारे में सोचते हैं तो भारत ही नहीं दुनियाभर में बीमारियों के बढ़ते प्रकोप का कारण क्लाइमेट चेंज को माना जा रहा है।



हेल्थ केयर को एनवायरमेंट फ्रेंडली बनाने की जरूरत



भारत ने पैरिस एग्रीमेंट में 2015 पर सिग्नेचर किया है। क्लाइमेट चेंज पूरी दुनिया की प्राथमिकता है। ये भारत सरकार का भी टॉप एजेंडा है कि क्लाइमेट चेंज को कंट्रोल किया जाए और उससे होने वाले साइड इफेक्ट्स और मुश्किलों सामना करने के लिए पहले से तैयार रहना जरूरी है। इसके लिए सारे मेडिकल प्रेक्टिनर्स में अवेयरनेस होनी चाहिए कि क्लाइमेट चेंज से क्या असर होगा, हेल्थ केयर में क्या परिवर्तन होंगे और हेल्थ केयर खुद कितना ज्यादा एनवायरमेंट फ्रेंडली बन सकता है। शुक्रवार को सम्मेलन का औपचारिक शुभारंभ हुआ।



पहली बार मेडिकल कॉन्फ्रेंस में क्लाइमेंट चेंज पर चर्चा



ऑर्गनाइजिंग चेयरमैन और आइएससीसीएम के अध्यक्ष डॉ. राजेश मिश्रा ने कहा कि इस कॉन्फ्रेंस के जरिए हेल्थ केयर के वर्कर को एन्वार्यमेंट फ्रेंडली टेक्निक्स और क्लाइमेट चेंज के बारे में बताया जा रहा है। ये भारत में पहली बार है कि किसी मेडिकल कॉन्फ्रेंस में क्लाइमेट चेंज जैसे विषय पर बात हो रही है। सरकार चाहती है कि हेल्थ केयर प्रोफेशनल के अंदर क्लाइमेट चेंज के प्रति अवेयरनेस हो और इनके जरिए वो पूरी सोसाइटी में पहुंचे। ऐसी बहुत सारी वस्तुएं हैं हेल्थ केयर में जिनका विकल्प या उपयोग करने के तरीके के बारे में सोचने की जरूरत है। जैसे डिस्पोजल आइटम के उपयोग और रिसाइकल के बारे सोचने की जरूरत है।



हॉस्पिटल और होटल में ज्यादा होती है ऊर्जा की खपत



ऑर्गनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ. राजेश पांडे ने कहा कि ऊर्जा खपत के बारे में हॉस्पिटल और होटल्स काफी आगे होते हैं। इन दोनों स्थानों पर 24 घंटे भरपूर मात्रा में बिजली का इस्तेमाल किया जाता है। अगर होटल और हॉस्पिटल का एनर्जी कंजम्पशन कम करना है तो उनकी डिजाइनिंग ठीक प्रकार से करने की जरूरत है। इंडियन सोसाइटी ऑफ क्रिटिकल केयर मेडिसिन (आइएससीसीएम) देशभर के सारे आईसीयू के लिए गाइडलाइंस बनाएंगे कि कैसे सेफ और सस्टेनेबल क्रिटकिल केयर प्रैक्टिस करनी है। इसके साथ ही इसको लेकर विभिन्न प्रकार के रिसर्च भी शुरू किए जाएंगे जिनके परिणाम को सभी के साथ शेयर किया जाएगा।



"डेथ विथ डिग्निटी" को लेकर गाइडलाइन तैयार



कॉन्फ्रेंस में आए सीनियर डॉ आरके मणि कहते हैं कि ऐसे मामलों में जहां मरीज को कोई ऐसी बीमारी है जिससे उसे बचा पाना संभव नहीं है तब उन्हें मशीनों के बीच रखना किसी भी तरह से उचित नहीं है। इस मामले में अब पूरी दुनिया में काम किया जा रहा है। अंतिम दिनों में मरीज को मरीज की तरह नहीं बल्कि एक इंसान की तरह ट्रीट करना जरूरी होता है। इसलिए "डेथ विथ डिग्निटी" को लेकर गाइडलाइन तैयार की गई है। पहली बार 14 स्टेप्स की ये गाइडलाइन एक एक्सपर्ट कमेटी ने 2005 में बनाई थी जिसे 2012 में रिवाइस किया गया। ऐसे मरीज जिन्हें बचाना संभव नहीं है, हम उन्हें वेंटिलेटर और डायलिसिस जैसी मशीनों की बजाय अपनों के बीच सुकून से अपनी अंतिम नींद लेने का मौका देना चाहते हैं। इस दौरान उनकी तकलीफें कम करने के लिए सिर्फ आवश्यक दवाइयां और मेडिकल हेल्प ही दी जाती है। ये इच्छा मृत्यु नहीं बल्कि प्राकृतिक रूप से मरीज को शांति से मौत के आगोश में समाने की अनुमति देना है, जो उसका हक है। इसे अब कानूनी मान्यता मिल चुकी है।



डेट विथ डिग्निटी को नाटक से समझाया



को-आर्गेनाइजिंग चेयरमैन डॉ. संजय धानुका ने बताया कि कॉन्फ्रेंस से डेथ विथ डिग्निटी से जुड़ा नाटक पेश किया गया। नाटक में बुजुर्ग मरीज लंबे समय से भर्ती है। घर में सिर्फ एक बेटी है जिसका अपना खुद का परिवार है। अपने परिवार के साथ हॉस्पिटल में बदहवास स्थिति में पिताजी को रोज देखने जाना, ऊपर से हॉस्पिटल का बढ़ता खर्च। इस डेथ ऑफ लाइफ स्टेट में परिवार का पूरा संतुलन बिगाड़ दिया है। ऐसे में एक डॉक्टर का फर्ज क्या है, इसे नाट्य रूप में कलाकारों और रियल डॉक्टर ने दिखाया। इस नाटक में डॉक्टर ने मरीज की बेटी को सलाह दी कि वो अपने पिताजी को घर पर शिफ्ट कर लें। उन्हें सारी मेडिकेशन देने, खाना खिलाने से लेकर हर जरूरी चीज की ट्रेनिंग दी जाएगी। इसके साथ ही हॉस्पिटल स्टाफ उनके लगातार संपर्क में रहेगा। ऐसा करने से परिजन को मेंटल स्पोर्ट के साथ फाइनेंशियल सपोर्ट भी दे सकते हैं।



ह्यूमन टच और कम्युनिकेशन अब कोर्स में शामिल



एब्स्ट्रेक्ट कमेटी के को-चेयरमैन डॉ. आनंद सांघी ने बताया इस कार्यशाला में सिंगापुर से आईं डॉ. मोनिका गुलाटी के साथ 7 एक्सपर्ट की टीम ने मरीज के परिजन और डॉक्टर के बीच के बातों का आंकलन किया और इस बातचीत की कमियों के बारे में बताया। किस तरफ से मरीज के आखिरी समय को शांतिपूर्ण और आसान बनाया जा सकता है, इसके बारे में भी बताया गया। स्किल वर्कशॉप में एक्सपर्ट ने मरीज के परिजन से विनम्रता से बात करने के साथ ही तकनीकी कम और भावनात्मक रूप से ज्यादा समझने की बात पर जोर दिया। डॉ. मोनिका ने बताया ह्यूमन टच और कम्युनिकेशन विषय को पिछले 5 सालों में एमबीबीएस पाठ्यक्रम में भी सम्मिलित किया गया है।



सही तरीके से जानकारी देना जरूरी



जॉइंट ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ. विवेक जोशी ने बताया कि घर के सदस्य आईसीयू में भर्ती मरीज की किसी स्थिति को लेकर गुस्सा करें तो डॉक्टर को समझना होगा की वो अभी घबराहट में है और ये एक्शन घबराहट से निकल रहा है, इसे समझदारी से बातचीत के आधार पर सुलझाना होगा। परिजन का गुस्सा इस बात को भी दर्शाता है कि उन्हें उनके मरीज को सही स्थिति की जानकारी बिल्कुल भी नहीं है या फिर उन्हें जानकारी सही तरीके से नहीं दी जा रही है।



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मरीज को देखने के बाद ही संतुष्टि



सिंगापुर से आईं डॉ. मोनिका गुलाटी ने कहा कि भारत में हॉस्पिटल में आईसीयू में मरीज से मिलने के समय पाबंदी भी परिजन में गुस्सा बढ़ाती है। मरीज को जब तक देखेंगे नहीं तब तक सही स्थिति को जान नहीं पाएंगे। इसलिए विजिटिंग टाइम को थोड़ा लचीला करने की जरूरत है।



2 डॉक्टर के ईगो का बुरा असर मरीज पर ना आए



वर्कशॉप में मरीज के 2 डॉक्टर के विचार नहीं मिलने की बात को भी एक मुद्दा बताया गया। ऐसी स्थिति में साइंस को ऊपर रखना है और ईगो को पीछे। इलाज के दौरान जो साइंस बता रहा है उसे आधार बनाना है।


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