GWALIOR News. पंचायत चुनाव में अनेक ऐसे लोग चुनाव मैदान में हैं जो इसके जरिये राजनीति में डेब्यू कर रहे है वही कुछ ऐसे भी हैं जिनके परिवार का किसी समय न केवल अपने अंचल बल्कि अंचल और प्रदेश की राजनीति में दबदबा था लेकिन अब हासिये पर है । अब वे परिवार पंचायत चुनावों के जरिये फिर राजनीति में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं। चम्बल में जिला पंचायत सदस्य पद की एक ऐसी ही प्रत्याशी है श्रीमती पुष्पलता सिंह।
ससुर रहे मन्त्री
श्रीमती पुष्पलता सिंह की ससुराल जिस घर मे है नब्बे के दशक में उसका न केवल अंचल बल्कि प्रदेश में खासा दबदवा था । उनके ससुर डॉ राजेन्द्र प्रकाश सिंह जनसंघ के जमाने से ही बीजेपी से जुड़े था । दरअसल वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से बचपन से ही जुड़ गए थे और तब एमबीबीएस करके बाहर निकले तो संघ ने उन्हें राजनीति में आने को कहा। वे बीजेपी से जुड़ गये । वे रौन विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी प्रत्याशी बने और जीते । 1990 में जब बीजेपी की सरकार बनी तो तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदर लाल पटवा ने उन्हें केबिनेट मंत्री बनाया । उन्हें डॉक्टर होने के कारण स्वास्थ्य मंत्री भी बनाया। हालांकि राममंदिर ढांचा ढहाए जाने के बाद हुई हिंसा के चलते एमपी की पटवा सरकार भी बर्खास्त कर दी गई । इसके बाद डॉ सिंह कभी चुनाव नही जीत पाए फिर बीमारी के चलते उनका असमायिक निधन भी हो गया। इसके बाद पार्टी ने भी उनके परिवार की कोई सुध नही ली और न ही संगठन या सत्ता में कोई बड़ी जिम्मेदार दी जबकि उनके बेटे डॉ अवधेश प्रताप सिंह बीजेपी में एक अनाम कार्यकर्ता के रूप में काम करते रहे। दरअसल उनकी विधानसभा क्षेत्र का बंटवारा हो गया। रौन विधानसभा क्षेत्र खत्म करके इनको तीन अलग - अलग विधानसभाओं में मिला दिया गया।
अब पंचायत के जरिये जड़ें जमाने की कोशिश
लंबे समय से हासिये पर रहने के बाद यह परिवार बजरिये पंचायत पार्टी का ध्यान अपनी तरफ खींचना चाहता है । अवधेश ने इस बार अपनी पत्नी श्रीमती पुष्पलता को भिण्ड जिला पंचायत सदस्य पद के लिए मैदान में उतारा है । वे वार्ड 17 से प्रत्याशी हैं । वे अपने ससुर के फोटो और काम पर ही वोट मांग रही है। उनके समर्थक मानते है कि यदि वे जीत जातीं है तो वे अध्यक्ष या उपाध्यक्ष बन सकती है और इससे परिवार का खोया सियासी रसूख फिर वापिस आ जायेगा ,ऐसी उम्मीद है।