BHOPAL. द सूत्र ने आपको पिछले 2 दिनों में बताया कि भोपाल के आकृति बिल्डर्स ने कैसे धोखाधड़ी की। पीड़ित लोगों ने कैसे इस धोखाधड़ी के खिलाफ कानून का रास्ता अख्तियार किया। देश के एक बड़े मीडिया समूह डीबी कॉर्प लिमिटेड यानी दैनिक भास्कर की इस पूरे मामले में कैसे और क्यों एंट्री हुई और आकृति बिल्डर के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने वाले एक्वासिटी कंज्यूमर सोसाइटी के मेंबर्स ने आकृति बिल्डर्स और डीबी कॉर्प की मिलीभगत के आरोप क्यों और किस वजह से लगाए। इस मामले में रेरा ने भी डीबी कॉर्प के खिलाफ दिल्ली के NCLAT में अपील क्यों दायर की और ये भी दिखाया कि इन सब आरोपों पर दैनिक भास्कर की तरफ से क्या जवाब आया। अब इस आखिरी कड़ी में हम आपको बताएंगे कि इस मामले में नियुक्त आईआरपी यानी Insolvency Resolution Professional अनिल गोयल पर दिल्ली हाईकोर्ट ने 10 हजार रुपए की पेनाल्टी क्यों लगाई और दिल्ली NCLAT में अनिल गोयल के खिलाफ अवमानना याचिका क्यों दायर की गई। इसके साथ ही बताएंगे कि कैसे आकृति बिल्डर्स का कर्ताधर्ता हेमंत सोनी भोपाल में ठाठ से रह रहा है।
पहले ईश्वरलाल कलंत्री, 6 दिन बाद अनिल गोयल हुए आईआरपी नियुक्त
NCLT इंदौर बेंच ने जब 5 अगस्त 2022 को आकृति बिल्डर को दिवालिया घोषित किया तो एजी-8 वेंचर्स की तरफ से प्रोसेस पूरी करने के लिए ट्रिब्यूनल ने आईआरपी यानी Insolvency Resolution Professional ईश्वरलाल कलंत्री को नियुक्त किया। आदेश जारी होने के दूसरे दिन ही आईआरपी को नियुक्त किया था और इससे संबंधित विज्ञापन अखबारों में छपा था जिसमें साफतौर पर ईश्वरलाल कलंत्री का नाम दर्ज है। लेकिन इस आदेश के 1 हफ्ते बाद आईआरपी बदल गए और अनिल गोयल की नियुक्ति हो गई। दैनिक भास्कर में ही 13 अगस्त 2022 को बकायदा इसका विज्ञापन प्रकाशित हुआ। जिसमें अनिल गोयल का नाम दर्ज है। आखिरकार आईआरपी क्यों बदला ये सवाल है। दरअसल, इस मामले में याचिकाकर्ता दैनिक भास्कर यानी डीबी कॉर्प लिमिटेड था। इस तरह के मामले में याचिकाकर्ता को अपनी तरफ से याचिका के साथ ही आईआरपी का नाम भी सजेस्ट करना होता है, लेकिन दैनिक भास्कर की तरफ से सुनवाई के वक्त ऐसा नहीं किया गया था, इसलिए कोर्ट ने अपनी तरफ से आईआरपी ईश्वरलाल कलंत्री को नियुक्त कर दिया, लेकिन सूत्र बताते हैं कि बैकडोर से ये नाम सबमिट किया गया, जिसके कारण ईश्वरलाल कलंत्री की जगह अनिल गोयल को आईआरपी नियुक्त किया गया। हालांकि बाद में ये तथ्य सामने आया कि क्लरीकल मिस्टेक के कारण अनिल गोयल की जगह ईश्वरलाल कलंत्री का नाम चला गया था। द सूत्र स्पष्ट कर देना चाहता है कि यहां हम कोई सवाल खड़ा नहीं कर रहे, बल्कि सिर्फ जो पूरी घटना घटी सिर्फ उसे बता रहे हैं।
आईआरपी होता क्या है?
आईआरपी यानी Insolvency Resolution Professional। ये करते क्या हैं वो भी आपको समझाते हैं। दरअसल, यदि कोई कंपनी दिवालिया या बैंकरप्ट हो जाती है, तो उसमें फंसे पैसे को निकालने में इस तरह की एजेंसियों को ही कोर्ट नियुक्त करता है। इनकी नियुक्ति के बाद संबंधित कंपनी का पूरा बोर्ड खत्म हो जाता है और आईआरपी ही आने वाली सारी प्रोसेस कंपनी की ओर से करता है। NCLT इंदौर के आदेश के बाद एजी-8 वेंचर्स लिमिटेड का पूरा कंट्रोल अनिल गोयल के हाथों में है।
NCLAT से स्टे मिलने के बाद भी क्लेम प्रोसेस कर रहे थे अनिल गोयल
22 सितंबर 2022 को रेरा और एक्वासिटी कंज्यूमर सोसायटी के मेंबर्स की तरफ से NCLT इंदौर के फैसले के खिलाफ NCLAT दिल्ली में अपील दायर की गई। 30 सितंबर 2022 को NCLAT ने दिवालिया की प्रोसेस पर स्टे लगा दिया। एक्वासिटी कंज्यूमर सोसायटी के मेंबर भानू यादव ने कहा कि इस स्टे के बाद कानूनी रूप से अब आईआरपी को किसी तरह की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ानी थी, लेकिन आईआरपी अनिल गोयल ने क्लेम की प्रोसेस जारी रखी। इसके खिलाफ रेरा और एक्वासिटी कंज्यूमर सोसायटी ने नवंबर-दिसंबर 2022 में NCLAT दिल्ली में अनिल गोयल के खिलाफ अवमानना अपील दायर की।
रेरा ने लगाई आईआरपी अनिल गोयल पर पेनाल्टी
इसी पूरे मामले के बीच रेरा ने 10 अक्टूबर 2022 को एक पत्र लिखकर आईआरपी अनिल गोयल से आकृति बिल्डर्स की कुछ प्रॉपर्टी की जानकारी मांगी, क्योंकि रेरा को अंदेशा था कि कुछ प्रॉपर्टी बेनामी है, लेकिन जब आईआरपी अनिल गोयल ने सहयोग नहीं किया तो रेरा ने 1 लाख रुपए प्रतिदिन की पेनाल्टी लगा दी और इसी फैसले के खिलाफ अनिल गोयल ने दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की। एक्वासिटी वेलफेयर सोसायटी के मेंबर भानू यादव ने बताया कि NCLAT दिल्ली में अवमानना याचिका के बाद अनिल गोयल ने हाईकोर्ट में जो याचिका लगाई थी उसे वापस लेने के लिए आवेदन किया। जिसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिका वापस लेने का आवेदन तो स्वीकार कर लिया पर इस पूरे मामले को लेकर अनिल गोयल पर 10 हजार रुपए की पेनाल्टी भी लगा दी। अनिल गोयल के खिलाफ NCLAT दिल्ली में जो अवमानना की अपील विचाराधीन है और इस पर अगली सुनवाई अप्रैल में ही होगी।
पूरे मामले में हुए 2 बड़े संयोग
अब द सूत्र की तफ्तीश में 2 बड़े संयोग भी नजर आए हैं। ये केवल संयोग हैं और हम इस पर कोई सवाल नहीं खड़े कर रहे हैं, ना ही कोई आरोप लगा रहे हैं, मगर ये अजीब संयोग हुए हैं और इसलिए इनका जिक्र हम यहां कर रहे हैं।
संयोग 1- लेनदारों की सूची में आईआरपी अनिल गोयल का नाम
द सूत्र जब लेनदारों की सूची का अध्ययन कर रहा था तब नजर पड़ी 711 नंबर के लेनदार पर, इस नंबर के आगे नाम लिखा था अनिल गोयल। आकृति हाईलैंड में अनिल गोयल के नाम से प्रॉपर्टी थी जिसका क्लेम 18 लाख 49 हजार रुपए के करीब था और जो ईमेल आईडी इस नंबर के आगे लिखा था वो आईआरपी अनिल गोयल का था। जब इस मामले में तफ्तीश की तो पता चला कि आईआरपी अनिल गोयल ने खुद कोर्ट के सामने ये तथ्य लेकर गए थे कि टेक्निकल मिस्टेक की वजह उनका नाम इस सूची में शामिल हो गया। ये था पहला संयोग। अनिल गोयल की कोर्ट में दी सफाई के बाद स्थिति साफ है। द सूत्र पहले ही साफ कर चुका है संयोग बताने का मकसद किसी पर आरोप लगाना नहीं इसलिए हम कोई आरोप नहीं लगा रहे।
संयोग 2- एक नाम कौशलेंद्र और कैरेक्टर 3
ये दूसरा संयोग है। दरअसल दैनिक भास्कर ने NCLT इंदौर बेंच में जब आकृति के खिलाफ याचिका लगाई तब सुनवाई के कोरम में टेक्निकल मेंबर के रूप में कौशलेंद्र सिंह को शामिल किया ये कौशलेंद्र नाम के पहले कैरेक्टर हैं। दैनिक जागरण में 30 जनवरी 2014 को 2 बिल्डरों पर इनकम टैक्स के छापे की खबर छपी थी। हैडिंग थी राजधानी के 2 बिल्डर्स के यहां इनकम टैक्स की छापामार कार्रवाई। इसी खबर में लास्ट की 2 लाइन से पहले लिखा है कि 10 महीने पहले सर्वे की कार्रवाई इन दोनों बिल्डर्स के यहां की गई थी और जुलाई 2008 से जून 2013 तक मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ के इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के महत्वपूर्ण पदों पर थे कौशलेंद्र सिंह। ये कौशलेंद्र दूसरे कैरेक्टर हैं। अब तीसरा कैरेक्टर भी कौशलेंद्र ही है। आकृति एक्वासिटी में बुकिंग करवाने वालों के जब नाम खंगाले गए तो इसमें 44वें नंबर पर पीओ 117 के आगे जो नाम लिखा है वो है मिस्टर कौशलेंद्र, इनके नाम से यहां 3 प्रॉपर्टी है। नाम तो लिखा है मगर ना तो मोबाइल नंबर है और ना ही एड्रेस, ना ही बुकिंग अमाउंट लिखा गया है। इसलिए कहा जा रहा है कि ये बेनामी संपत्ति है। एक ही नाम कौशलेंद्र और 3 अलग-अलग कैरेक्टर और नाम के सिवाए तीनों का आपस में कोई संबंध है या नहीं, ये हम नहीं कह सकते। हम कोई आरोप भी नहीं लगा रहे बस बता रहे हैं कि ये संयोग निकलकर सामने आया है।
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अब भी ठाठ से रह रहा हेमंत सोनी
अब आपको बताते हैं कि आकृति बिल्डर के हेमंत सोनी जिस पर हजारों लोगों के साथ धोखाधड़ी का आरोप है वो आखिरकार कहां है। द सूत्र ने हेमंत सोनी के मोबाइल नंबर 9826472455 पर फोन लगाया तो मोबाइल फोन आउट ऑफ सर्विस था। यही नंबर सभी पीड़ित लोगों के पास था। द सूत्र ने कुछ लोगों से संपर्क किया तो पता चला कि आकृति रिट्रीट के ही एक ऑलीशान बंगले में हेमंत सोनी ने अपना ठिकाना बनाया हुआ है। गेट से जैसे ही अंदर दाखिल होते हैं तो सामने नजर आती है सिक्योरिटी गार्ड की एक चौकी। इस चौकी के दायीं तरफ जब जाते हैं तो एक गेट नजर आता है और गेट से स्वीमिंग पूल भी नजर आता है। गेट पर लिखा है कुत्तों से सवाधान। इस गेट के भीतर जब नजर दौड़ाई तो गाड़ियां नजर आई और एक नया निर्माण होता भी नजर आया। जिस समय द सूत्र संवाददाता राहुल शर्मा ने हेमंत सोनी से मुलाकात की तब वो बार-बार तबीयत खराब होने का हवाला देते रहे। बहरहाल, हेमंत सोनी से मुलाकात कर ऐसा लगा नहीं कि उनकी लाइफ स्टाइल में कोई बदलाव आया हो। वो आज भी उसी ठाठ से रह रहा है जो दिवालिया होने की प्रक्रिया से पहले था।
द सूत्र के सवाल और हेमंत सोनी के जवाब
सवाल- डीबी कॉर्प के साथ मिलीभगत के आरोप लग रहे हैं?
जवाब- इससे पहले 2 और ऑर्डर हुए थे NCLT के, उसको मैंने अपनी क्षमता के अनुसार उनको सेटेसाइट करवाया और न्यूट्रालाइज करवाया। ऐसा हो नहीं सकता भास्कर एक बड़ी कंपनी है।
सवाल- 2010 में जीएसटी कहां आया था?
जवाब- एक्चुअली क्या होता है कि दोबारा प्रोड्यूस करने के लिए पुराने बिल दिए जाते हैं तो उनका ईआरपी सिस्टम होता है। उसमें जीएसटी आता है, लेकिन जीरो लिखा आता है। रेरा ने जबरदस्ती गलत किया हुआ है और रेरा 4 महीने से रिप्लाई नहीं दे पा रहा है जबकि उसने आरोप लगाया है और 4 महीने से रिप्लाई क्यों नहीं दे रहा है। हमारी और डीबी कॉर्प की तरफ से रिप्लाई जमा हो गया। अगर ऐसा कुछ बात होती तो तुरंत रिप्लाई करना था। 2010 के जो ओरिजनल बिल मेरे पास थे वो सब हमने लगाए हैं। 2010-11 सबके बिल लगे हैं। रेरा ने हमको और कस्टमर को प्रताड़ित किया है, आपको कुछ करना है तो रेरा मेन कलप्रिट है।
सवाल- आप जहां रह रहे हैं वो आपका घर है, लेकिन बहन के नाम पर दिखाया?
जवाब- 2015 से ये बहन के नाम पर है। मेरा घर तो मैंने बेच दिया। 2015 में ही सिस्टर ने पूरा पेमेंट कर दिया था।
सवाल- महेंद्र सोनी आपके रिलेटिव है, काम भी करते थे?
जवाब- बाद में बात करेंगे, अपन अलग से मिलेंगे.. जो भी आरोप हैं बिल्कुल गलत हैं।
अब तक जितने ऑर्डर आए कंज्यूमर के पक्ष में ही आए
द सूत्र ने परत दर परत पड़ताल कर इस पूरे मामले के तथ्य आपके सामने रखे। कोर्ट की तरफ से अब तक जितने भी आदेश आए हैं वो कंज्यूमर सोसाइटी के पक्ष में ही आए है। इस पूरे मामले में अभी और भी तथ्य हैं। कोर्ट में मामला चल रहा है और जैसे-जैसे और भी तथ्य प्रकाश में आएंगे वो हम जरूर बताएंगे, क्योंकि द सूत्र निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता पर भरोसा करता है।