SIDHI: शहर में आबाद थे पंचायत चुनाव लड़ने गए तो समर्थन जुटाने में हो रही समस्या 

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Brijesh Pathak
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SIDHI:  शहर में आबाद थे पंचायत चुनाव लड़ने गए तो समर्थन जुटाने में हो रही समस्या 

SIDHI. त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में ऐसे उम्मीदवारों को समस्या हो रही जो शहर में लम्बे समय से शिफ्ट हो गए थे और जब पंचायत चुनाव आया तो ग्राम, जनपद, जिला पंचायत वार्ड से चुनाव लड़ने पहुंच गए। लम्बे समय से बाहर रहने वालो को जनता ज्यादा तवज्जो नहीं दे रही। प्रत्याशी मतदाताओं को लुभाने हर कोशिश कर रहे पर चुनाव जीतना टेढ़ी खीर दिख रहा है। चुनाव प्रचार जोरो पर है। जिला पंचायत अध्यक्ष पद अनारक्षित महिला होने के कारण सामान्य वार्ड में ज्यादा उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे है।  वार्ड 14 की बात करें तो यहां 10 उम्मीदवार है। इनमें से अधिकांश शहर में रहते हैं और गांव की मतदाता सूची  में नाम है। पुश्तैनी निवासी गांव के ही है पर गांव आना -जाना कम ही रहता है। इसलिए युवा मतदाता ऐसे लोगों को कम जानते हैं। दूसरी तरफ जो गांव में रहते हुए चुनाव लड़ रहे उन्हें उतनी दिक्कत नहीं हो रही। यह अलग बात है की इसके बाद भी जनता भी पत्ते नहीं खोल रही। जनपद के वार्ड बदलने वालो के साथ भी कमोबेश यही हो रहा है। 





तीन सगे भाई आमने-सामने 





सिहावल जनपद के हिनौती ग्राम पंचायत को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित किया गया है। यहां तीन सगे भाई चुनाव मैदान में आमने -सामने हैं। बड़ा भाई कुइसा प्रजापति,छोटा घूरे प्रजापति, और उससे छोटा मतलबी प्रजापति है। तीनो में नहीं पटती। चुनाव आया तो मतलबी को सबने प्रत्याशी बनने कहा और वह राजी हो गया। बाद में जब दोनों बड़े भाइयों को भनक लगी तो वे भी मैदान में कूद पड़े। हम किससे कम हैं की बात कर अब प्रचार कर रहे हैं। सिहावल के ही भाजपा नेता शिवबहादुर सिंह की पत्नी, भाई, बहू, भतीजा कोई जनपद वार्ड का तो कोई जिला पंचायत का चुनाव लड़ रहा है। जनपद पंचायत अध्यक्ष का पद अनारक्षित है इसलिए सदस्य संख्या बढ़ाने शुरू से ही कोशिश हो रही है। 





कार्यकर्ता में खर्च ज्यादा, ऑडियो से प्रचार 





अब वह जमाना गया जब चुनाव प्रचार में कार्यकर्ता गला फाड़ नारेबाजी करते देखे जाते थे। प्रचार में भले ही वाहन दौड़ाये जा रहे हों पर गाड़ी में चालक के अलावा दूसरे नहीं दिखते।  चुनाव प्रचार में भी महंगाई का सीधा असर दिखने लगा है इसलिए प्रचार वाहनों में आडियो बजाए जा रहे हैं। पूर्व से रिकॉर्ड कराकर सुबह से शाम तक वही जनता को सुनाए जा रहे। दरअसल दूसरे खर्चे भी इतना ज्यादा हो गए हैं की अन्य खर्चो की कटौती होने लगी है। प्रचारक, मतदाता बिना कुछ करे खर्च बढ़ा रहे हैं। 





सोशल मीडिया में ज्यादा फोकस 





पंचायत चुनाव हो या नगरीय निकाय के चुनाव सभी के प्रचार का जोर सोशल मीडिया पर ज्यादा है। यहां खर्च बहुत ही कम है। जनता से मिलने से लेकर अपील, पर्चा, बुलेटिन, पोस्टर, पम्पलेट सभी कुछ इसी प्लेटफार्म में मिल जायेंगे। हर हाथ में मोबाइल तो भला छपाई पर कौन खर्च करे। बाकी हो हल्ला के लिए ऑडियो प्ले करता वाहन तो चक्कर लगा ही रहा है। यही वजह है की गांव में अब न तो बड़े -बड़े कटआउट दिख रहे और न ही होर्डिंग। इक्का -दुक्का दिख जाय तो बड़ी भाग्य। चुनाव का पूरा दारोमदार नकदी, सुरा और जरूरत की चीजों के वितरण पर आ गया है।



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