JABALPUR. मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने एक महिला को उसके दूसरे पति द्वारा हर माह मेंटेनेंस देने के आदेश को खारिज कर दिया है। पहले यह आदेश सिंगरौली की एक फैमिली कोर्ट द्वारा दिया गया था। हाई कोर्ट ने यह पाया कि महिला ने अपने पहले पति को तलाक नहीं दिया था और ना ही उसने दूसरे व्यक्ति से कानूनी रूप से शादी की थी। जस्टिस राजेंद्र कुमार वर्मा की बेंच ने सिंगरौली की क्रिमिनल रिवीजन पिटीशन को निरस्त कर दिया। हाईकोर्ट में दूसरे पति के खिलाफ महिला ने क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की धारा 125 के तहत अपील दायर की थी। उसने पति से 10 हजार रुपए महीने मेंटेनेंस की मांग की थी।
हाई कोर्ट ने क्या कहा
हाई कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कहा कि महिला की शादी साल 2006-07 में एक अन्य पुरुष के साथ हुई थी। लेकिन किसी विवाद के कारण महिला उससे अलग हो गई, लेकिन दोनों के बीच कानूनी रूप से तलाक नहीं हुआ था।
मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 125 पर कहा कि इसे सामाजिक न्याय के लिए प्रयुक्त किया गया है। इसका प्रयोग महिलाओं और बच्चों को गरीबी और अन्याय से बचाने के लिए किया जाता है। इसे रिश्ते से अलग हुई पत्नी को रहने, खाने और कपड़ों की सुविधा देने के लिए प्रयोग किया जाता है।
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पहले पति से तलाक का सबूत नहीं दे सकी महिला
हालांकि केस की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि महिला केस में यह सबूत नहीं दे सकी कि उसका पहले पति से तलाक हो चुका था। हालांकि उसने घरेलू हिंसा के केस में सिंगरौली की जेएमएफसी कोर्ट में सुलह का पत्र जरूर पेश किया था। यह समझौता उसके पहले पति के साथ हुआ था। इसके साथ ही महिला ने दावा किया था कि उसका तलाक जाति की प्रथा के अनुरूप हुआ था।
तलाक का समझौता कानूनन वैध नहीं
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि तलाक की डिक्री सिर्फ अदालत द्वारा दी जा सकती है। दोनों में जिस समझौते के तहत तलाक हुआ है वो कानूनन वैध नहीं है। कोर्ट ने कहा कि दूसरी शादी के समय महिला का पहले पति से तलाक नहीं हुआ था इसलिए वह कानून दूसरे व्यक्ति की पत्नी नहीं मानी जा सकती। इसी कारण वह दूसरे पति से मेंटेनेंस का दावा नहीं कर सकती।
दुर्भाग्यपूर्ण, कानूनी की कमियों का लोग फायदा उठाते हैं
केस को खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि महिला डॉमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट की धारा 22 के तहत अलग से सूट फाइल कर सकती है। कोर्ट ने टिप्पणी की कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि समाज में गरीब महिलाओं का इस तरह शोषण होता है और कानूनी की कमियों का लोग फायदा उठाते हैं। क्रिमिनल प्रोसीजर कोड धारा 125 का उद्देश्य उस समय खत्म हो जाता है जब उससे पाड़ितों को न्याय नहीं मिल पाता।