जबलपुर में इंस्टिट्यूट का सपना अधूरा,अभी सामान्य अस्पताल के रूप में शुरू हुआ स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट

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Rajeev Upadhyay
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जबलपुर में इंस्टिट्यूट का सपना अधूरा,अभी सामान्य अस्पताल के रूप में शुरू हुआ स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट

Jabalpur. मध्य प्रदेश के इकलौते सबसे बड़े, आधुनिक स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट को जबलपुर में शुरू करने का अपना अभी तक अधूरा ही है। वो इसलिए क्योंकि इसकी बिल्डिंग तो जैसे तैसे तैयार हो गई। हालांकि यह 2018 में बन जानी थी। लेकिन यह अभी पूर्ण हुई है और 2 नवंबर 2022 से इसकी ओपीडी शुरू कर दी और मरीजों को भर्ती करना शुरू कर दिया। वो भी इसलिए क्योंकि द सूत्र लगातार इसे शुरू करने खबर दिखा रहा है। हालांकि पीआईयू की ओर से इसे मेडिकल के सुपुर्द नहीं किया गया। केवल औपचारिकता के तौर पर इसे शुरू कर दिया गया। स्टेट लेवल के इंस्टिट्यूट जैसी अभी इसमें कोई बात नहीं है। यहां न आधुनिक लीनियर एक्सीलेरेटर मशीन इंस्टाल हुई है, न उपकरण हैं, न स्टाफ है, न ऑपरेशन थियेटर शुरू किए गए हैं। ऑपरेशन अभी मेडिकल की पुरानी बिल्डिंग में ही हो रहे हैं।



इंस्टीट्यूट केवल नाम का




फिलहाल तो स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट केवल नाम का है। जो काम डॉक्टर मेडिकल अस्पताल के पुराने भवन में करते थे।वो काम यहां कर रहे हैं।यानी कि ओपीडी में मरीजों की जांच कर रहे हैं,भर्ती कर रहे हैं, कीमो थैरेपी दे रहे हैं।वो भी चुनिंदा डॉक्टर्स। जबकि स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट को केवल अस्पताल बनकर नहीं रहता यहां एकेडमिक प्रोसेस भी चलती है। वे आधुनिक मशीनें जो प्रदेश के किसी अन्य सरकारी अस्पतालों में नहीं होती, वे मशीनें यहां इंस्टाल होती हैं।जैसे कि लीनियर एक्सीलेरेटर मशीन।यहां दो लीनियर एक्सीलेरेटर मशीन लगनी थीं लेकिन अभी तक नहीं लगी और भविष्य में कब तक लगेगी यह भी अधिकारियों को जानकारी नहीं है। यह डायरेक्टर की पोस्ट होनी चाहिए लेकिन केवल अधीक्षक की उच्च पोस्ट है वो भी डीन के अंडर में है। नया स्टाफ भी भर्ती नहीं किया गया।केवल इसे अस्पताल के रूप में शुरू कर दिया गया, इंस्टिट्यूट जैसा कुछ नहीं है।




मरीजों की सिंकाई नहीं




कैंसर के मरीज इलाज के लिए तड़प रहे हैं।उनको कोबाल्ट मशीन से सिंकाईं दी जाती है। मेडिकल के उजम्बा कैंसर अस्पताल केवल एक कोबाल्ट मशीन है। इससे मरीजों की सिंकाई नहीं हो पा रही है,उन्हें जनवरी फरवरी की तारीख दी जा रही है।  यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि यहां आधुनिक लीनियर एक्सीलेरेटर मशीन स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट में नहीं लग सकी।




ब्रेकी थैरेपी मशीन नहीं कर काम




मेडिकल अस्पताल स्थित उजम्मबा कैंसर अस्पताल में ब्रेकी थैरेपी मशीन लगी है।लेकिन इसका उपयोग नहीं हो रहा। यह मशीन शरीर के अंदरूनी अंग जैसे, पेंक्रियाज,अक्षय, लिवर में कैंसर होने पर रेडियेशन देने काम आती है।इससे सर्विक्स कैंसर में भी रेडियेशन दिया जाता है। लेकिन रेडियेशन देने के लिए एक पार्ट इसमें लगना है वो ही नहीं खरीदा गया।जिससे इस तरह के कैंसर से पीड़ित मरीजों को नागपुर,मुंबई जाकर सिंकाई करनी पड़ रही है। जबकि इसे 2018-19 में पूर्ण हो जाना था। चार वर्ष अतिरिक्त समय हो गया। समय से पूरा हो जाता तो लीनियर एक्सीलेरेटर मशीन आ जाने से मरीजों को रेडियेशन से सिंकाई समय पर संभव हो पाती।



फरवरी तक इंतजार सिंकाई के लिए




 मेडिकल अस्पताल परिसर में चल रहे उज्जम्बा कैंसर अस्पताल में कैंसर के मरीजों को सिंकाई कराने जनवरी, फरवरी2023 तक इंतजार करना पड़ेगा। मरीजों का कहना है कि वे कैसे इतने लम्बे समय तक सिंकाई कराने इंतजार करें। प्राईवेट अस्पतालों में सिंकाई कराने लाखों रुपए खर्च होते हैं। गरीब मरीज इतना खर्च कैसे उठा पाएगा।




रेडियेशन में लाखों का खर्च




कैंसर विशेषज्ञ व प्रोफेसर डॉ श्यामजी रावत का कहना है कि निजी अस्पतालों में लीनियर एक्सीलेरेटर से रेडियेशन थैरेपी का  एवरेज खर्च एक मरीज को एक से दो लाख रुपए तक पड़ता है। यह रेडियेशन की तकनीक पर डिपेंड करता है कि उसे किस तकनीक से रेडियेशन थैरेपी दी जा रही है। 



चार तरह की रेडियेशन थैरेपी देने की तकनीक होती हैं




- थ्री डी सी आर टी 




- आई एम आर टी




- आई सी आर टी




- रेपिड आर्क 




आयुष्मान कार्ड में एक लाख रुपए तक अप्रूव है। मध्य प्रदेश में अभी किसी मेडिकल अस्पताल में लीनियर एक्सीलेरेटर मशीन की सुविधा नहीं है। जब मशीन लगाई जाएगी उसके बाद सरकार फीस निर्धारित करेगी।



स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट के निर्माण की फैक्ट फाइल




कैंसर का इलाज करने केंद्र व राज्य सरकार के सहयोग से जबलपुर के मेडिकल अस्पताल परिसर में स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट शुरू होना है। इसका निर्माण वर्ष 2015 -16 से शुरू किया गया। 135 करोड़ का फंड इसके लिए स्वीकृत हुआ है।जिसमें 70 करोड़ की राशि सिविल वर्क के लिए राज्य सरकार को देना था और शेष राशि से मशीन व उपकरण खरीदे जाने हैं, जोकि केंद्र सरकार को देना है।  इसमें केंद्र सरकार ने 60 प्रतिशत व 40 प्रतिशत राज्य सरकार ने राशि दी है। इस प्रोजेक्ट  को वर्ष 2018-19 में पूरा हो जाना था। लेकिन काम धीमी गति से चला।

सिविल वर्क करने वाली संस्था पीआईयू ने सिविल वर्क का एस्टीमेट बढ़ाया। जिससे बजट पास होने में समय लगा।एक बार कांग्रेस की अल्प समय रही सरकार ने वर्ष 2018-19 में 15 करोड़ का फंड स्वीकृत किया।इसके बाद बीजेपी सरकार ने 10 करोड़ की राशि का बजट में प्रावधान किया। जब तक बजट नहीं आया,काम रुका रहा।

कोरोनाकाल में काम रुका रहा।

फायर प्रूफ फाल्स सीलिंग पीआईयु को लगाने थे लेकिन नहीं लगाए,जब तत्कालीन डीन डॉ नवनीत सक्सेना ने इंस्पेक्शन करके इस ओर ध्यान दिलाया तो इसे लगाया गया,जिसमें अतिरिक्त समय लगा। जबकि यह काम पहले ही होना था।

शासकीय इंजीनियरिंग कॉलेज के सिविल विभाग के इंजीनियरों ने इसके निर्माण कार्य का इंस्पेक्शन किया।जिसमें निर्माण कार्य में कई कमियां पाई गईं। इनको दूर किया गया।

2नवंबर 2022 से स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट के भवन में ओपीडी शुरू की गई,मरीजों को भर्ती किया जा रहा है।भवन मेडिकल के सुपुर्द नहीं हुआ है।



अभी ये भी होना है




स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट को शुरू तो कर दिया गया है।लेकिन प्रॉपर इंस्टिट्यूट लेवल का बनाने के लिए अभी बहुत काम बाकी है। छात्रों के लिए  सुपर स्पेशियल्टी कोर्स डीएनबी कोर्स की अनुमति लेनी होगी। मरीजों के बेहतर उपचार के लिए लीनियर एक्सीलेरेटर मशीन जल्द इंस्टॉल करना होगी। ऑपरेशन थियेटर में उपकरण की व्यवस्था करनी होगी। ऐसे विशेषज्ञ डॉक्टर्स जो प्राईवेट प्रेक्टिस न करें,यहां मरीजों को पूरा समय दें,इनकी भर्ती करनी होगी।



ये हैं हालात




मेडिकल परिसर में उजम्बा कैंसर अस्पताल है,जोकि सरकारी है और मेडिकल कॉलेज का ही एक भाग है।यहां पूरे महाकोशल और विंध्य से कैंसर का इलाज कराने मरीज आते हैं। इसका कारण यह है कि सागर, शहडोल, छिंदवाड़ा में मेडिकल कॉलेज एवम अस्पताल में कैंसर के उपचार की सुविधा नहीं है। वहीं रीवा का मेडिकल अस्पताल केवल एक कैंसर विशेषज्ञ के भरोसे चल रहा है इसलिए वहां से भी केस जबलपुर रेफर किए जा रहे हैं। जबलपुर के कैंसर अस्पताल में रोज करीब 150 से 200 मरीज कैंसर का इलाज कराने आते हैं। इनमें से 100 से अधिक मरीजों को रोज रेडियेशन दिया जाता है और 50 से 60 मरीजों की कीमोथेरेपी चलती है। यहां हर वर्ष 2500 नए मरीज आते हैं।



ये है रेडियेशन देने की व्यवस्था




मेडिकल में वर्ष 2021 तक दो कोबाल्ट मशीनें थीं जिनसे मरीजों को रेडियेशन से  सिंकाई की जाती थी। लेकिन एक कोबाल्ट में फाल्ट आने के बाद वह बंद है यहां केवल एक कोबाल्ट मशीन से सिंकाई की जा रही है। एक ही मशीन से रेडियेशन देने के कारण यहां सिंकाई के लिए मरीजों की प्रतीक्षा सूची लंबी हो रही है। अब मरीजों को जनवरी, फरवरी 2023 की तारीख दी जा रही है। निजी अस्पतालों में लीनियर एक्सीलेरेटर मशीन से सिंकाई करवाने में पूरी थैरेपी में लाखों रुपए खर्च हो जाते हैं।



क्यों जरूरत लीनियर एक्सीलेरेटर मशीन की




लीनियर एक्सीलेरेटर आधुनिक मशीन है। यह मशीन प्रदेश के किसी सरकारी अस्पताल में नहीं है। जबकि प्रदेश में 13 सरकारी मेडिकल अस्पताल हैं। इनमें से केवल जबलपुर,भोपाल, इंदौर,ग्वालियर,रीवा इन चार अस्पतालों में कैंसर का इलाज होता है। यहां भी लीनियर एक्सीलेरेटर मशीन नहीं है। कैंसर विशेषज्ञ प्रोफेसर डॉ श्यामजी रावत का कहना है कि लीनियर एक्सीलेरेटर से रेडियेशन देते समय मरीज की नार्मल कोशिकाओं पर असर नहीं पड़ता जबकि कोबाल्ट मशीन से मरीज की नार्मल कोशिकाओं पर भी असर पड़ता है और वे क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। इसलिए लीनियर एक्सीलेरेटर मशीन उपयोगी है।




प्रोसेस कब पूरी होगी पता नही




मेडिकल अस्पताल के कैंसर विभाग की अधीक्षक डॉ लक्ष्मी सिंगोतिया का कहना है कि लीनियर एक्सीलेरेटर मशीन वा ओटी के उपकरण की खरीदी भोपाल के लेवल से होनी है।यह कब तक पूरी होगी पता नहीं है। ब्रेकी थैरेपी मशीन का ट्रांसफर ट्यूब खराब है।इससे सर्वाइकल कैंसर से पीड़ितों को रेडियेशन नहीं दिया जा रहा।यह ट्यूब जर्मनी से आता है।कब तक आएगा पता नहीं।


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