MP में सिंगल विंडो सिस्टम फेल, उद्यमियों का आरोप सरकार के पास विज़न और रोडमैप की कमी

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Ruchi Verma
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MP में सिंगल विंडो सिस्टम फेल, उद्यमियों का आरोप
सरकार के पास विज़न और रोडमैप की कमी

BHOPAL: "इन्वेस्ट मध्य प्रदेश - ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट" का बहुप्रतीक्षित 7वां एडिशन 11 जनवरी 2023 यानी आज से राज्य की वाणिज्यिक राजधानी इंदौर में शुरू हो चुका है।  इन्वेस्टर्स समिट में हर बार जिक्र होता है सिंगल विंडो सिस्टम का। और हर बार की तरह इस बार भी सम्मिट में जिक्र हुआ। तो द सूत्र ने बात की कुछ इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स से और जाना क्या है सिंगल विंडो सिस्टम और साथ ही जायज़ा लिया कि आखिर मध्य प्रदेश में सिंगल विंडो सिस्टम के जमीनी स्थिति क्या है। क्या उद्योगपतियों को पुराने झंझटों से निजात मिल पा रही है? जानने के लिए पढ़िए ये रिपोर्ट...





क्यों शुरू किया गया था सिंगल विंडो सिस्टम





उद्यमियों को नये उद्योग लगाने में ज्यादा परेशानी झेलनी ना पड़े, निवेश प्रस्तावों को सुविधाजनक बनाने और लालफीताशाही को कम करने के लिए कुछ साल पहले 2014 में 'सिंगल विंडो सिस्टम' प्रणाली की घोषणा की थी। मंशा थी कि इसके जरिए किसी भी निवेशक को अनुमतियों के लिए अलग-अलग विभागों में और अलग-अलग मंत्रालयों में एप्रूवल्स के लिए आवेदन करने की आवश्यकता नहीं होगी। वह एक ही प्लेटफार्म पर अप्लाई करने के बाद अलग-अलग मंत्रालयों और विभागों के अप्रूवल एक निश्चित समयसीमा में ले सकता है।





पर सरकार के उद्योगपतियों को सहूलियत देने के बड़े-बड़े दावों के बावजूद, सिंगल विंडो सिस्टम प्रभावी तरीके से काम नहीं कर पा रहा है, उल्टा उद्योगपति और निवेशकों आज भी बस विभागों में चक्कर ही लगाते रह जा रहें हैं। हालत यह है कि छोटे इन्वेस्टर सिंगल विंडो सिस्टम के रहते हुए भी...लम्बी कागज़ी कार्यवाही से और सरकार के उदासीन रवैये से परेशान होकर किसी एक्सपर्ट के पास जाकर अपना काम करवाना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। उद्योग जगत के एक्सपर्ट्स का कहना है कि सिंगल विंडो सिस्टम का खुदका फॉर्मेट ही इतना लंबा है...तो वो अपने उद्देश्य में कैसे सफल होगा। सिंगल विंडो सिस्टम को कारगर बनाने के लिए सरकार को एक विज़न की सख्त जरुरत है। ऐसा नहीं है सिंगल विंडो सिस्टम पहली बार फेल हुआ हो...इसके पहले साल 2014 में शिवराज सरकार ने सिंगल विंडो सिस्टम की कवायद की थी...पर इंडस्ट्री-फ्रेंडली न होने की वजह से, नौकरशाही के उदासीन रवैये के चलते और, विभिन्न सरकारी विभागों के  विरोध के चलते ये कारगर नहीं हो पाया। इसके बाद कमलनाथ सरकार ने भी इस पर कार्य करने की बात की थी पर कुछ खास प्रगति हुई नहीं। उद्योगपतियों का कहना है कि एक बार किसी ने सिंगल विंडो के जरिए अप्लाई कर भी दिया तो उसे मंजूरी मिलने में महीनों लग जाते हैं।





सिंगल विंडो सिस्टम सिर्फ नाम का, सरकार के पास सफल एक्सेक्यूशन का विज़न नहीं: विपिन कुमार जैन, अध्यक्ष, मध्य प्रदेश लघु उद्योग संघ





"सिंगल विंडो सिस्टम सिर्फ नाम का है...बाकी फॉर्मलिटीज अभी भी सारी वहीँ हैं। सिंगल विंडो प्रणाली को लाया तो इस उद्देश्य से गया था कि उद्यमी या इन्वेस्टर को हर डिपार्टमेंट में जाने की आवश्यकता न पड़े ...उसकी सारे काम और प्रोसेस एक ही जगह पर हो जाए।शुरुआत में तो उम्मीद थी कि सभी काम अब तेज़ गति से हो पाएंगे पर ऐसा हुआ नहीं।परेशानी ये है कि सिंगल विंडो सिस्टम का फॉर्मेट ही इतना लंबा है। 30-30 पेज का रीडिंग मटेरिल है...तो वो अपने उद्देश्य में कैसे सफल होगा। सरकार के पास सिंगल विंडो सिस्टम के सफल एक्सेक्यूशन का विज़न ही नहीं है। सिंगल विंडो सिस्टम को इम्प्लीमेंट कैसे किया जाए...उसका रोडमैप क्या हो....वही अभी तक डिफाइन नहीं हो पाया है...तो कैसे वो काम करेगा? सरकार को प्रिऑरिटीज़ डिसाइड करते हुए सिंगल विंडो सिस्टम का रोडमैप बनाना पड़ेगा। मेरे पास अक्सर परेशान उद्यमी और इन्वेस्टर्स शिकायतें लेकर आते है। छोटा इन्वेस्टर तो सिंगल विंडो सिस्टम के रहते हुए भी इतनी लम्बी कागज़ी कार्यवाही से परेशान होकर यह कहता है कि इससे अच्छा तो में किसी एक्सपर्ट के पास जाकर अपना काम करवा लूँ...क्यूँकि सिंगल विंडो सीटें से मेरा काम नहीं हो पा रहा।"





सिंगल विंडो सिस्टम पर अभी काम करने के जरुरत, एस्टेब्लिश होने में टाइम लगेगा: योगेश खाकरे, अधिकारी, बी-नेस्ट, भोपाल





कोई भी नया प्लेटफार्म जब लांच होता है, तो उसको एस्टेब्लिश होने में टाइम लगता है। ऐसे प्लेटफॉर्म्स की सक्सेस इस पार पर निर्भर करती है कि उसका इकोसिस्टम कैसे बनेगा। क्यूँकि सिर्फ प्लेटफार्म बना देने से आपको सारी सर्विस नहीं मिलती है। ये देखना पड़ेगा कि क्या उस प्लेटफार्म से जुडी सर्विसेज अलाइंड है या नहीं...क्या वो एक इंटरफ़ेस के जरिये काम कर पा रहीं हैं। हालाँकि ये सभी टीथिंग इश्यूस हैं और सरकार उसपर काम कर रहीं है। और आने वाले समय में ये सीमलेस होकर काम करेगा ऐसी उम्मीद है।





MP का सिंगल विंडो सिस्टम स्ट्रांग नहीं, अवेयरनेस बढ़ने कि जरुरत: शुभम शर्मा, वीरा स्टार्टअप के फाउंडर





"मध्य प्रदेश में सिंगल विंडो सिस्टम अभी नया है...इसलिए कुछ फैसिलिटीज की उसमें कमी है...इन्वेस्टर्स के नजरिये से देखें तो सिंगल विंडो सिस्टम अभी इतना स्ट्रांग नहीं है...हालाँकि, जैसे जैसे अवेयरनेस बढ़ेगी...सिंगल विंडो सिस्टम भी स्ट्रांग होता जाएगा"





अब ऐसा नहीं है कि उद्योगपतियों की तरफ से सरकार को कोई सुझाव नहीं दिए जाते.. सुझाव दिए गए लेकिन सरकार ने इन सुझावों पर आज तक अमल ही नहीं किया।दरअसल, सिंगल विंडो सिस्टम होना चाहिए इन्वेसटर्स फ्रैंडली मगर मप्र की सिंगल विंडो सिस्टम हैं ब्यूरोक्रेट फ्रैंडली है.. जिसका इसे लाभ मिलना चाहिए उसे नहीं मिल रहा। जबकि दूसरे स्टेट में ऐसा नहीं है..इज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस की रैंकिंग में टॉप में रहने वाले  राज्य जैसे आंध्र प्रदेश और गुजरात के सिंगल विंडो सिस्टम काफी सफल हैं। और मध्य प्रदेश का सिंगल विंडो सिस्टम को इनकी स्थिति में पहुंचने के लिए तो काफी समय लगेगा...ऐसा खुद सरकार में बैठे नुमाइंदे भी मानते हैं...जिनका कहना है कि सिंगल विंडो सिस्टम में जो कमियां है, उन्हें दूर करने में अभी समय लगेगा। मगर कितना समय...सवाल यही है। इतनी सारी इन्वेस्टर्स समिट के बाद भी यदि सरकार का सिस्टम इन्वेसटर्स फ्रैंडली नहीं है तो फिर इतना पैसा खर्च करने पर कहीं न कहीं सवाल खड़े होते है।





18 सालों में 3.74 लाख करोड़ रुपये का इंडस्ट्रियल निवेश, फिर भी राज्य के MSMEs पस्त, वर्किंग कैपिटल और निवेश पूंजी की कमी सबसे बड़ी समस्या





2019 में कराए गए कमलनाथ सरकार के मैग्निफिसिएंट MP को छोड़ दिया जाए तो शिवराज सरकार के कार्यकाल की ये 6ठवीं गोलबल इन्वेस्टर्स समिट है। इसके बारे में सरकार ने दावा किया है कि सम्मिट के शुरू होने से पहले ही एचसीजी, रमणीक पावर एंड एलाइंस बालाघाट, बुरहानपुर टैक्सटाइल्स लिमिटेड, बीबा फैशन प्राइवेट लिमिटेड जैसी करीब लगभग 6 कंपनियों ने मध्यप्रदेश में 9617 करोड़ रुपए के निवेश करने का प्रस्ताव रख दिया है। यही नहीं सरकार ने दावा किया है कि पिछले 18 सालों में कुल निवेश देखा जाए तो वो करीब 3.74 लाख करोड़ रुपये का है और इसने करीब 5.25 लाख लोगों के लिए नौकरियां भी पैदा की हैं।





MP में 2004 से 2022 तक 3.74 लाख करोड़ का निवेश: जानिये कैसे...







  • 2004 से 2022 तक: राज्य में 2.22 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया गया है और 2.91 लाख लोगों को रोजगार दिया गया है...ये निवेश राज्य के लिए किये गए अलग-अलग निवेश सम्मेलनों के दौरान किए गए निवेश के अलावा था। वहीँ अगर इन्वेस्टर्स समिट के जरिये हासिल हुआ निवेश कुछ इस तरह रहा....



  • 2007: 102 MOU साइन हुए - 1.20 लाख करोड़ का निवेश प्रस्तावित हुआ-17,311 करोड़ का निवेश जमीन पर आ पाया - 49,750 लोगों को रोजगार मिला 


  • 2010: 109 MOU साइन हुए - 2.35 लाख करोड़ का निवेश प्रस्तावित हुआ-26,879 करोड़ का निवेश जमीन पर आ पाया - 25,000 लोगों को रोजगार मिला 


  • 2012: 425 MOU साइन हुए - 3.50 लाख करोड़ का निवेश प्रस्तावित हुआ-26,054 करोड़ का निवेश जमीन पर आ पाया - 31,530 लोगों को रोजगार मिला


  • 2014: 3160 MOU साइन हुए - 4.35 लाख करोड़ का निवेश प्रस्तावित हुआ-49,272 करोड़ का निवेश जमीन पर आ पाया - 38,750 लोगों को रोजगार मिला 


  • 2016: 2635 MOU साइन हुए - 5.63 लाख करोड़ का निवेश प्रस्तावित हुआ-32,597 करोड़ का निवेश जमीन पर आ पाया - 92,700 लोगों को रोजगार मिला


  • 2019: इस साल कमलनाथ सरकार ने ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट की जगह मैग्निफिसेंट MP आयोजित किया। इस दौरान निवेश के लिए एमओयू नहीं हुए थे, बल्कि निवेशकों से प्रस्ताव लिए गए थे। इसमें 92 प्रस्ताव सरकार को हासिल हुए, जिसमें राज्य में 74 हजार करोड़ के निवेश का उल्लेख किया गया था।


  • BHOPAL MPIDC के अनुसार 2003-2022 के 19 सालों के दौरान भोपाल में 20340 करोड़ का इन्वेस्टमेंट हुआ और 50 हज़ार लोगों को नौकरियाँ मिली।






  • अच्छी बात है कि राज्य में बड़ी इंडस्ट्रीज आ रहीं हैं.... निवेश आ रहा है....आखिर राज्य के औद्योगिक विकास में बड़े उद्योग अहम भूमिका अदा करते हैं। लेकिन फिर भी इस भारी-भरकम निवेश का फायदा यहाँ छोटे उद्योग यानी MSMEs को भी होना चाहिए था... लेकिन असल तस्वीर इसके बिलकुल ही उलट है....लगभग 2 दशकों के 3.74 लाख करोड़ के कुल निवेश और साल 2022-23 में 654 करोड़ के सरकारी निवेश  के बावजूद मध्य प्रदेश के MSMEs की हालत आज भी खस्ता ही है। MP के सागर के डॉ हरि सिंह गौर विश्वविद्यालय के वाणिज्य विभाग की एक स्टडी के अनुसार मध्य प्रदेश में MSME के सामने वर्किंग कैपिटल और निवेश पूंजी की कमी ही सबसे बड़ी यानी नंबर वन समस्या है। यह सब तब है जब MP की करीब 2 लाख 50 हज़ार MSMEs राज्य की GDP में 42% और एक्सपोर्ट में 45% का योगदान देती हैं। वहीँ प्रदेश के 14 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार का जरिया भी MSME ही हैं यानि कि राज्य के रोजगार के कुल अवसरों का 48 प्रतिशत। स्टडी में साफ़ आरोप लगाया गया है कि अगर राज्य सरकार ने MSMEs के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे को शुरू से ही विकसित किया होता तो आज राज्य निश्चित रूप से देश का औद्योगिक केंद्र बन चुका होता। पर राज्य में MSMEs की ग्रोथ के लिए  फाइनैंशल, श्रम, तकनीक से जुडी सेवाएं और सुविधाएं उपलब्ध नहीं करवाई जा सकीं.... जो राज्य में MSME पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने के लिए जरुरी है। यही कारण है की आज राज्य में MSMEs अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। आपको बता दें की ये स्टडी  मध्य प्रदेश के औद्योगिक रूप से मुख्य चार जिलों - भोपाल, इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर - में MSME की समस्याएँ पता गाने के लिए की गई थी। स्टडी में चारों जिलों के कुल 165 उद्योंगों से बातचीत की गई। इसमें 92 सूक्ष्म उद्योग (55.80%), 57 लघु उद्योग (34.60%) और 16 मध्यम उद्योग (9.60%) हैं। कुल उद्योगों में से 43 (26.06%) उद्यम भोपाल के हैं, 54 (32.73) उद्यम इंदौर से हैं, 35 (21.21%) ग्वालियर से हैं और 33 (20%) जबलपुर के हैं।





    स्टडी के अनुसार राज्य में MSMEs की दिक्कतें







    • वर्किंग कैपिटल और निवेश पूंजी की कमी: सर्वे किये गए 165 उद्योगों में से 124 उद्यमों का मानना है कि व्यवसाय करते वक़्त उन्हें वर्किंग कैपिटल और निवेश पूंजी की कमी का सामना सबसे ज्यादा करना पड़ता है। उद्योगों का कहना है कि MSMEs की वित्तीय समस्या को निबटाने के लिए सरकारी प्रयास और प्रदान की जाने वाली वित्तीय सहायता पर्याप्त नहीं है। फंडिंग एक उद्यम के विकास के लिए हर स्टेप पर सबसे ज्यादा जरुरी चीज़ होती है। अगर फण्ड की व्यवस्था समय पर नहीं होती, तो उद्यम के अन्य सभी कार्य सीधे प्रभावित होते हैं। और इसकी कमी से कई बार उद्यम अवसर पाने से चूक जातें हैं। आपको बता दें कि ऐसा तब है जब मध्य प्रदेश सरकार का दवा है कि उसने MSME सेक्टर को ऊपर उठाने के लिए साल 2022-23 में 654 करोड़ के सरकारी निवेश किया है।



  • मजबूत बुनियादी ढांचे की कमी: वहीँ दूसरी सबसे बड़ी समस्या जो छोटे उद्यमों को झेलनी पड़ती है वो है उन्हें चलाने के लिए बुनियादी ढांचागत सुविधाओं की कमी।106 उद्यमों का कहना है कि राज्य में MSMEs और व्यापार के विकास के लिए जरुरी मजबूत बुनियादी बुनियादी ढाँचा और सुविधाएं पर्याप्त नहीं हैं।


  • तकनीकी और IT सेवाओं का अभाव: बड़े उद्यम के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए और औद्योगिक उत्पादन प्रक्रियाओं को तेज करने के लिए आईटी सेवाएं बहुत आवश्यक हैं। पर 75 उद्योगों का कहना है कि राज्य में उद्योगों के लिए तकनीक के बड़ी-बड़ी बातें तो होती रहतीं हैं पर आज भी तकनीकी उन्नयन और IT सेवाओं का अभाव है।


  • सरकार के कड़े नियम: 81 MSME उद्योगों के लिए सरकार के कड़े नियम और विनियम परेशानियों का कारण बने हुए हैं।


  • स्किल्ड लेबर की अनुपलब्धता: स्किल्ड लेबर की अनुपलब्धता भी राज्य में मसमस के विकास के रास्ते में एक बड़ा रोड़ा है और 71 उद्यम इस बात को मानते हैं।


  • अनियमित पानी, बिजली आपूर्ति और मशीनरी ब्रेकडाउन: 62 उद्यम मालिकों ने बताया कि फैक्ट्रीज में अनियमित पानी सप्लाई, बिजली आपूर्ति में रुकावट और मशीनरी में ब्रेकडाउन से उन्हें कइयों बार उत्पादन में रुकावट का सामना करना पड़ता है।


  • मार्केटिंग के अवसरों का अभाव: इन सभी कमियों के साथ-साथ 47 उद्योग ये शिकायत भी करते हैं कि उनके लिए मार्केटिंग के अवसरों और सहायता का अभाव है






  • स्टडी में - मुद्रा लोन्स जैसी फाइनेंसिंग स्कीम्स; प्रदेश में क्लस्टर डेवलपमेंट और इंडस्ट्रियल एरिया डेवलपमेंट; मेक इन इंडिया स्कीम; स्किल इंडिया और एन्त्रेप्रेंयूर्शिप स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम्स और स्कीम्स - की मदद से प्रदेश के MSMEs की हालत सुधारने के लिए कुछ सुझाव भी दिए गए हैं। बैंकों की एक रिपोर्ट की अनुसार जहाँ वित्तीय वर्ष 2020-21 में 17822 करोड़ रुपए के 32.49 लाख मुद्रा लोन बांटें गए है, वहीँ वित्तीय वर्ष 2021-22 में 18218 करोड़ के 32.31 लाख मुद्रा लोन वितरित किये गए है। जबकि वित्तीय वर्ष 2022-23 में 17 मई, 2022 तक करीब 1263 करोड़ रुपए के 1.49 लाख मुद्रा लोन्स दिए जा चुकें हैं। यहाँ सवाल यह हैं कि इतने लोन बाटें गए हैं तो लोगो को फायदा क्यों नहीं हुआ? पर द सूत्र ने जब पड़ताल की तो पाया कि इन सभी स्कीम्स के बावजूद राज्य में MSMEs की हालत ख़राब है।





    MP में इंडस्ट्रियल क्लस्टर्स के प्रोजेक्ट काम पूरा न होने से टाले गए: प्रदेश में MSME सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार द्वारा क्लस्टर को बढ़ावा देने के बाद भी बैंकिंग प्रोसेस और अन्य रुकावटों के चलते सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योग लगने में दिक्कत हो रही है। ऐसे में समय पर क्लस्टर डेवलप नहीं होने से आने वाले एक साल में जिस तेजी से एमएसएमई उद्योग और रोजगार बढ़ाने का टारगेट तय किया गया था वह पूरा नहीं हो पाएगा। क्लस्टर डेवलप न होने पाने के चलते अगस्त में होने वाले आधा दर्जन से अधिक जिलों में क्लस्टर भूमिपूजन कार्यक्रम अब अगस्त में नहीं होगा। इसे सितम्बर तक के लिए टाल दिया गया है। प्रदेश में एमएसएमई मंत्री के क्षेत्र नीमच में स्पेशल क्लस्टर डेवलप किए जाने के साथ इंदौर में फर्नीचर समेत तीन नए क्लस्टर डेवलप किए जाने हैं। इसके साथ ही बुरहानपुर में पावरलूम, सीहोर में खिलौना, जबलपुर में मिष्ठान और खिलौना, मुरैना में फर्नीचर, बैतूल में फर्नीचर और गुड़, छतरपुर में फर्नीचर क्लस्टर डेवलप करने की तैयारी एमएसएमई विभाग द्वारा की जा रही है। इसके लिए भूमि चयन की कार्यवाही होने के बाद वहां अन्य डेवलपमेंट नहीं किए जा सके हैं। विभाग की कोशिश थी कि इसी माह सीएम शिवराज सिंह चौहान के हाथों इन क्लस्टर का भूमिपूजन कराया जाए लेकिन अधोसंरचना के काम नहीं होने से अब यह कार्यक्रम सितम्बर तक के लिए टाल दिया गया है और जिलों में अधिकारियों से कहा गया है कि क्लस्टर के पेंडिंग कामों को पूरा कर शासन को रिपोर्ट भेजेंं। इसके साथ ही खंडवा में निजी भूमि पर मल्टी प्रोडक्ट क्लस्टर डेवलप किए जाने की कार्यवाही हो रही है। अफसरों के मुताबिक क्लस्टर के जरिये सरकार दस एकड़ या आसपास के क्षेत्रफल वाले छोटे औद्योगिक क्षेत्र विकसित कर छोटे व लघु उद्यमियों को बढ़ावा देना चाहती है लेकिन जहां इसको लेकर काम हुआ है वहां उद्योग लगाने वालों को बैंकों से लोन न मिल पाने की बदौलत दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इससे जहां एमएसएमई उद्योगों की संख्या में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो पा रही है वहीं इनके जरिये होने वाले रोजगार सृजन का काम भी अटक रहा है।





    स्किल योजनाएं मध्य प्रदेश में फेल: करीब एक करोड़ बेरोजगारों वाले मध्य प्रदेश में युवाओं को स्किल्ड बनाने के लिए केंद्र व राज्य शासन करोड़ो की राशि खर्च कर प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) और मुख्यमंत्री कौशल संवर्धन योजना जैसी अनेक कौशल योजनाएं चला रहा हैं। ये योजनाएं शुरू तो होती हैं, लेकिन उन पर प्रशासन द्वारा ध्यान नहीं दिए जाने से योजनाओं को पलीता लग जाता है और इन योजनाओं का लाभ जरुरतमंद लोगों तक तो पहुंच ही पाता। 





    इन्वेस्टर्स समिट के सिर्फ 9% MOU ही सफल, देश में हुए विदेशी निवेश में MP की बस 0.33% की ही हिस्सेदारी





    एक और नोट करने वाली बात ये है कि प्राप्त आंकड़ों के अनुसार विभिन्न इन्वेस्टर्स समिट में करीब 17.03 लाख करोड़ का निवेश प्रस्तावित तो हुआ पर केवल 1,52,113 करोड़ के प्रस्ताव पर ही जमीन पर काम शुरू हो पाया...वहीँ अगर पिछले तीन सालों के देश में हुए कुल विदेशी निवेश का आंकड़ा देखें तो भी मध्य प्रदेश छठवें स्थान पर आता है...जिसका देश में हुए विदेशी निवेश में बस 0.33% की ही हिस्सेदारी है।





    पिछले 3 सालों में (OCT 2019 से SEPT 2022) राज्यों में हुए विदेशी निवेश







    • महाराष्ट्र: 3.51 लाख करोड़ - देश में हुए विदेशी निवेश का 27.9% 



  • कर्नाटक: 2.93 लाख करोड़ - देश में हुए विदेशी निवेश का 23%


  • गुजरात: 2.28 लाख करोड़ - देश में हुए विदेशी निवेश का 18%


  • दिल्ली: 1.65 लाख करोड़ - देश में हुए विदेशी निवेश का 13%


  • तमिलनाडु: 59 हज़ार करोड़ - देश में हुए विदेशी निवेश का 4.6%


  • मध्य प्रदेश: 3.8 हज़ार करोड़ - देश में हुए विदेशी निवेश का 0.33%






  • MOU साइन होना अलग बात, जमीनी स्तर पर काम होना अलग बात: विपिन जैन, मध्य प्रदेश लघु उद्योग संघ 



    मध्य प्रदेश लघु उद्योग संघ के अध्यक्ष विपिन कुमार जैन कहते है, "MOU साइन होना एक अलग बात है.....जमीनी स्तर पर उसपर काम होना एक अलग बात है....20% से ज्यादा MOU रियलिटी में कारगर नहीं हो पाए हैं...कहने को बोला जा सकता है कि हमारे यहाँ 20,000 करोड़ का इन्वेस्टमेंट हुआ...पर महत्व वाली बात ये जाना है कि  देश के बाकी राज्यों में कितना इन्वेस्टमेंट हुआ...हमारा राज्य देश में क्या स्थिति रखता है"



     



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