Jabalpur. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक आपराधिक प्रकरण में आरोपियों को दोषी करार देने के बावजूद सजा न सुनाने के मामले में छिंदवाड़ की तत्कालीन सेशन जज से स्पष्टीकरण तलब किया है। अदालत ने अपने आदेश में तल्ख टिप्पणी भी की और कहा कि अपर सत्र न्यायाधीश का आचरण बेहत आपत्तिजनक है।
हाईकोर्ट की जस्टिस अंजुली पालो की सिंगलबेंच ने हाईकोर्ट रजिस्ट्री को निर्देश दिए कि उक्त न्यायिक अधिकारी से स्पष्टीकरण तलब कर उनका मामला हाईकोर्ट से संबंधित कमेटी के समक्ष विचारार्थ प्रस्तुत करें। इसके साथ ही अदालत ने याचिकाकर्ता की अपील स्वीकार कर मामले के चारों आरोपियों के विरूद्ध जमानती वारंट जारी कर उन्हें 2 मार्च को अदालत में हाजिर होने के निर्देश दिए हैं।
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बता दें कि अमरवाड़ा निवासी बृजराज कुमारी, बाबूलाल और अन्य ने सेशन कोर्ट के फैसले के विरूद्ध हाईकोर्ट में अपील प्रस्तुत की। अपीलार्थियों की ओर से अधिवक्ता ब्रम्हानंद पांडे ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि आरोपितों रामप्रसाद, कालेश, गोलू उर्फ अरविंद व लताबाई ने अपीलार्थियों पर हमला किया था। ट्रायल कोर्ट ने चारों आरोपियों को 1-1 साल की कैद और जुर्माने की सजा सुनाई थी। बाद में ट्रायल कोर्ट के फैसले को चारों आरोपियों ने सेशन कोर्ट में चुनौती दी।
खास बात यह रही कि अपर सत्र न्यायाधीश निशा विश्वकर्मा ने आरोपियों का दोषी तो करार दिया लेकिन कारावास की सजा नहीं सुनाई बल्कि इसके स्थान पर जुर्माने की राशि बढ़ा दी। हाईकोर्ट में दलील दी गई कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायदृष्टांत के तहत धारा 325 में स्पष्ट प्रावधान है कि यदि पीड़ित को गंभीर चोटें आई हैं तो आरोपियों को जुर्माने के साथ एक निश्चित अवधि की सजा जरूर होनी चाहिए। लेकिन सेशन कोर्ट ने दोषियों को कारावास की सजा न सुनाकर विधिगत भूल की है। अदालत ने तर्क सुनने के बाद अपने आदेश में स्वीकार किया कि यह विधि का प्रस्थापित सिद्धांत है कि अपराध की गंभीरता के अनुपात में आरोपी को सजा मिलनी चाहिए।