हरीश दिवेकर, BHOPLAL. वरिष्ठ पत्रकार रवींद्र जैन ने पूर्व आईएएस आरएस जुलानिया के आरोपों पर पलटवार किया है। रवींद्र जैन ने कहा कि जुलानिया के आरोप निराधार हैं। न वे कभी उनसे मिले हैं न फोन पर बात की है तो फिर पीत पत्रकारिता कैसे हो गई। रवींद्र जैन से द सूत्र के मैनेजिंग एडीटर हरीश दिवेकर ने खास बातचीत की। इस बातचीत में रवींद्र जैन ने जुलानिया के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए प्रमाण पेश किए।
द सूत्र – रिटायर्ड आईएएस राधेश्याम जुलानिया ने आप पर पीत पत्रकारिता करने का आरोप लगाया है। जुलानिया ने 2019 में दिल्ली में आपके खिलाफ कोर्ट में दो मामले दर्ज कराए हैं।
रवींद्र जैन – क्या मध्यप्रदेश के किसी आईएएस अधिकारी के खिलाफ खबर लिखना पीत पत्रकारिता है। मैं आज तक जुलानिया से मिला नहीं, मेरी उनसे कभी फोन पर बात नहीं हुई, मेरा कभी आमना-सामना नहीं हुआ। मैंने 2019 में एक खबर लिखी थी, जिसके प्रमाण भी मेरे पास है। किसी भी जज के सामने में प्रमाण देने को तैयार हूं। मैंने उस खबर में लिखा था कि राधेश्याम जुलानिया के समय में जो मेंटाना कंपनी जल संसाधन विभाग के काम कर रही थी। उसी कंपनी में जुलानिया की बेटी लावण्या जुलानिया जॉब करती थी। ये मैं नहीं कह रहा हूं। खुद लावण्या जुलानिया ने अपने बायोडाटा में इसका जिक्र किया है।
लिंकडिन बायोडाटा में है उल्लेख
उन्होंने लिंकडिन में अपने बायोडाटा में लिखा हैं कि वें 2015 से 2017 तक ढाई साल तक मेंटाना कंपनी में जॉब करती थी। अब मैं झूठ बोल रहा हूं, या उनकी बेटी झूठ बोल रही है। ये जुलानिया जी को तय करना है। उसको आर्थिक लाभ मिला या नहीं मिला बात ये नहीं है। सवाल ये है कि लावण्या जुलानिया मेंटाना कंपनी में काम कर रही थीं, इसकी सूचना राधेश्याम जुलानिया ने सरकार को दी थी कि नहीं ? क्या उन्होंने सरकार को बताया था कि जो ठेकेदार मेरे विभाग में काम कर रहा है, उसकी कंपनी में मेरी बेटी जॉब कर रही है। इस बात की सूचना देना जरूरी नहीं था क्या ? दूसरा आरोप मैंने जुलानिया पर ये लगाया था कि अगस्त 2016 में उन्हें जल संसाधन विभाग से हटा दिया गया।
द सूत्र - राधेश्याम जुलानिया का कहना हैं कि उनकी बेटी ने कभी मेंटाना कंपनी में काम नहीं किया। लिंकडिन के बायोडाटा की प्रमाणिकता क्या है? जुलानिया का कहना हैं कि बेटी ने काम किया होता तो उसे वेतन मिला होता ?
रवींद्र जैन – मैं कोई जांच एजेंसी नहीं हूं। लावण्या जुलानिया ने जो बायोडाटा लिंकडिन पर अपलोड किया था। उसे मैंने कोर्ट में पेश किया है। अब कोर्ट तय करेगी कि उनकी बेटी सच बोल रही है या मैं ? पत्रकार होने के नाते मैंने तथ्यों के आधार पर खबर लिखी थी। जुलानिया कह रहे हैं कि उनकी बेटी ने कभी मेंटाना कंपनी में जॉब नहीं की, तो फिर वें 2015 से लेकर 2017 तक उनके इन्कम टैक्स रिटर्न की जानकारी कोर्ट को सौंप दें, दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा। लावण्या का बायोडाटा बता रहा हैं कि 2015 से 2017 तक वे हैदराबाद में थी। तो जुलानिया जी बता दें कि इस दौरान उनकी बेटी कहां थी।
द सूत्र- आपका आरोप हैं कि जुलानिया ने अपने खाते में 1 करोड़ रुपए लिए। जबकि जुलानिया का कहना है कि उन्होंने 1995 में एक मकान हाउसिंग बोर्ड से खरीदा था, जिसे कलेक्टर गाइडलाइन के हिसाब से 1 करोड़ 13 लाख रुपए में बेचा था।
रवींद्र जैन- 1 करोड़ रुपए लेने का आरोप शिकायतकर्ता नेमीचंद ने लोकायुक्त में लगाया है। लोकायुक्त ने प्रारंभिक जांच में उसको उचित पाया होगा, तभी जुलानिया के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया है। ये मेरा आरोप नहीं है, सामाजिक कार्यकर्ता नेमीचंद का आरोप है। न्यायालय में भी मैंने 1 करोड़ लेने की बात नहीं कही है। नेमीचंद मेरे परिचित है, जुलानिया मुझे दबाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में यदि सामाजिक कार्यकर्ता उनके खिलाफ तथ्य एकत्रित करके लोकायुक्त जाता है तो जुलानिया को क्या दिक्कत है। एक करोड़ रुपए लेने के तथ्य भी मेरे पास है।
आदित्य त्रिपाठी को 52 लाख रुपए भेजे थे
मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार आने के बाद 15 दिसंबर 2018 को मेंटाना कंपनी ने अपनी सब ठेकेदार कंपनी अर्नी इंफ्रा के आदित्य त्रिपाठी को 52 लाख रुपए भेजे थे। जिसे आदित्य त्रिपाठी ने अर्नी इंफ्रा के खाते में जमा किए। 17 दिसंबर को ये पैसा फिर से आदित्य त्रिपाठी के खाते में आता है। पांच खाते में उस पैसे को घुमाया जाता है। 4 घंटे बाद यही पैसा जुलानिया के खाते में पहुंच जाता है। पूरी मनी ट्रेल को समझने की जरूरत है। पैसा न तो आदित्य त्रिपाठी की बहन अंजली त्रिपाठी का था, जिसे जुलानिया ने प्लॉट बेचा। न ही आदित्य त्रिपाठी या अर्नी इंफ्रा का था।
आदित्य त्रिपाठी अधिकारियों को रिश्वत बांटता था
पैसा मेंटाना कंपनी का था जो जुलानिया के पास पहुंचा। मेंटाना कंपनी जुलानिया के विभाग में काम कर रही थी। जो आदित्य के जरिए अधिकारियों तक रिश्वत पहुंचाती थी। ईडी ने अपने प्रेस नोट में स्पष्ट रूप से बताया था कि आदित्य त्रिपाठी अधिकारियों को रिश्वत बांटने का काम करता था। जुलानिया के अकाउंट में 99 लाख 50 हजार रुपए पहुंचे थे। 49 लाख रुपए 17 दिसंबर को आए थे। 17 दिसंबर को ही ये सारे ट्रांजेक्शन हुए थे। फरवरी 2019 में तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ई टेंडरिंग घोटाले के मामले में ईओडब्ल्यू में एफआईआर दर्ज कराई थी।
सभी ट्रांजेक्शन की जांच लोकायुक्त करेगा
जिसके बाद जब ये लगा कि ईओडब्ल्यू सारे अकाउंट्स की जांच करेगी तो फिर 8 महीने बाद अक्टूबर 2019 में जुलानिया ने आदित्य त्रिपाठी की बहन अंजली त्रिपाठी को एक मकान बेच दिया। यानी पैसे एक साल पहले ले लिए गए थे। अब इन सभी ट्रांजेक्शन की जांच लोकायुक्त करेगा। यदि किसी विभाग का प्रमुख उस विभाग में काम करने वाले ठेकेदार या सब ठेकेदार से कोई फायनेंशियल डील करता है तो क्या उसे इसकी जानकारी सरकार को नहीं देनी चाहिए थी। क्या जुलानिया इतने भोले थे कि उन्हें पता ही नहीं था कि आदित्य त्रिपाठी और अंजली त्रिपाठी कौन है, और 1 करोड़ 13 लाख रुपए की डील भी हो गई।
द सूत्र - लेकिन जुलानिया का तो कहना है कि उन्होंने सरकार से परमीशन ली थी, प्लॉट बेचा था। उनका कहना है कि प्लॉट के बदले रुपए लिए थे, इसमें क्या गलत है ?
रवींद्र जैन- पहले फायनेंशियल डील कर ली गई, उसके बाद जब एफआईआर दर्ज हुई और पोल खुलने लगी तो आनन-फानन में अपना प्लॉट आदित्य की बहन को बेचना दिखा दिया। जुलानिया के संबंध में ईओडब्ल्यू ने जीएडी को तमाम पत्र लिखे हैं लेकिन कोई जवाब नहीं दिया जा रहा। मैं साफ तौर पर ये पूछना चाहता हूं कि जब पैसे का लेनदेन दिसंबर 2018 में हो गया था तो मकान की रजिस्ट्री अक्टूबर 2019 में क्यों की गई। दूसरा पैसा कहां से लिया गया और मकान किसे दिया गया ? जब पैसा मेंटाना से आया था तो प्रॉपर्टी उसे क्यों नहीं दी गई, अंजली को क्यों दी ?
द सूत्र-राधेश्याम जुलानिया पर आपने अवैध निर्माण का आरोप लगाया है। जबकि नगर निगम ने कोर्ट में बताया कि कोई अवैध निर्माण नहीं हुआ है।
रवींद्र जैन– 17 दिसंबर 2018 को जुलानिया के खाते में 49 लाख रुपए आए थे। उसी पैसे से लो डेंसिटी इलाके में 11 हजार स्क्वेयर फीट का प्लॉट खरीदा गया। बरखेडी खुर्द में जुलानिया ने प्लॉट खरीदा है, जहां 0.06 एफएआर निर्माण की परमीशन है। ऐसे में जुलानिया को 4 हजार स्क्वेयर फीट का बंगला बनाने की परमीशन किसने दी। भोपाल कोर्ट में जुलानिया जवाब नहीं दे रहे। महंगे वकीलों के माध्यम से तारीखें बढ़वा लेते है। यदि इसी तरह मामला खिचता रहा तो मैं हाईकोर्ट की शरण लूंगा।
द सूत्र- आपने आरोप लगाया कि उनका बेटा फ्रांस में है और उसे करोड़ रुपए भेजे गए थे।
रवींद्र जैन —मेरी शिकायत में फ्रांस का कोई उल्लेख नहीं है। नेमीचंद ने अपनी शिकायत में लिखा है कि जुलानिया का बेटा विदेश में है। जुलानिया जब ग्रामीण विकास विभाग में एसीएस थे, उस समय आईएएस रमेश थेटे सचिव थे। रमेश थेटे ने हबीबगंज थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि विभाग से एक करोड़ रुपए जुलानिया के बेटे को भेजा जा रहा है। नेमीचंद ने उसी एफआईआर की कॉपी लगाकर लोकायुक्त से मांग की है, इस एक करोड़ रुपए के लेन देन की जांच भी की जानी चाहिए।
द सूत्र : आपने मेंटाना कंपनी को लेकर जुलानिया पर गंभीर आरोप लगाए है। आपका कहना हैं कि जिस कंपनी को ब्लैक लिस्टेड किया गया था, उसे जुलानिया ने बहाल कर दिया। जबकि जुलानिया ने इन आरोपों को खारिज किया है।
रवींद्र जैन : जल संसाधन विभाग ने आरटीआई में जानकारी दी है। अगस्त 2016 में जुलानिया को जल संसाधन विभाग से हटाया गया था। जिसके बाद पंकज अग्रवाल को प्रमुख सचिव बनाया गया था। अग्रवाल ने ही अपने कार्यकाल में अक्टूबर 2017 में हैदराबाद की कंपनी मेंटाना को 3 साल के लिए ब्लैक लिस्टेड किया था। जिसके बाद जुलानिया की एक बार फिर जल संसाधन विभाग में वापसी होती है और फरवरी 2018 में वो तीन साल के लिए ब्लैक लिस्टेड कंपनी मेंटाना को री लिस्टेड कर दिया। जुलानिया प्रमुख सचिव थे इसलिए सवाल तो उनसे ही पूछा जाएगा। पत्रकार होने के नाते मैंने सवाल उठाया था कि मेंटाना कंपनी को उपकृत क्यों किया ? इंदौर के फलौदी कंस्ट्रक्शन से जुलानिया का क्या संबंध है। बताया जा रहा है कि जुलानिया के जल संसाधन विभाग में पदस्थ होने के बाद ये कंपनी बनी थी। इस कंपनी को हजारों करोड़ रुपए के काम दिए गए थे। पूरे विभाग में चर्चा रही कि जुलानिया और इस कंपनी में क्या संबंध है।