BHOPAL. शिवराज हटेंगे या रहेंगे- सियासी गलियारों में गूंजते इस सवाल का जवाब अब तक मिला नहीं और अब ये सवाल एक नए कलेवर शिवराज हटेंगे सिंधिया आएंगे के साथ फिर गूंज रहा है। कुछ नेताओं ने तो ये भी मान लिया है कि मुनिश्री की भविष्यवाणी के सच होने का समय आ गया है। हालांकि, इस भविष्यवाणी को सच कर दिखाना बीजेपी के लिए भी इतना आसान नहीं है।
एक बार फिर अटकलों का बाजार गर्म है
बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा का कार्यकाल खत्म होने के साथ शिव और विष्णु दोनों को बदल दिया जाएगा। गुजरात में सीएम फेस क्या बदला गया ये सवाल भी एमपी की सत्ता में हर वक्त मुंह बायें खड़ा रहता है। अब एक बार फिर अटकलों का बाजार गर्म है। गर्म ही नहीं इस बार एक कदम आगे भी बढ़ चुका है। शिवराज की जगह सिंधिया के सीएम बनने की खबरें जोर पकड़ रही हैं। वैसे तो कुछ दिन पहले ही सिंधिया ये कह चुके हैं कि उनका परिवार सिर्फ जनता की सेवा करना चाहता है। उसके बावजूद एक कांग्रेस विधायक का शगूफा एमपी की राजनीति में खलबली मचा रहा है। अब गलियारे फिर एक बार ये सवाल कर रहे हैं कि क्या सिंधिया की ताजपोशी तय है।
प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा पर भी सवाल रहेंगे या हटेंगे
कहते हैं धुआं वहीं से उठता है जहां आग होती है। बीजेपी में तो इस धुएं का रंग हर बार गाढ़ा हो रहा है। पर, आग है कि नजर ही नहीं आती। जब से ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में शामिल हुए हैं तब से हर बार ये खबरें जोर पकड़ लेती हैं कि अब सिंधिया की ताजपोशी तय है। बावजूद इसके कि सिंधिया की शर्तों को मानते हुए उनके समर्थकों को बीजेपी ने मंत्रिमंडल में जगह दे दी है और सिंधिया भी पीएम के कैबिनेट में शामिल हैं, ये खबरें थमने का नाम नहीं ले रहीं। एक बार फिर ये खबरें जोरों पर हैं वो भी तब जब प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा का कार्यकाल खत्म होने को है। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की तरह वीडी शर्मा का कार्यकाल आगे बढ़ेगा या वीडी और शिवराज एक साथ प्रदेश की सत्ता से बेदखल हो जाएंगे। ये सवाल मध्यप्रदेश में आम हो चुके हैं।
कांग्रेस विधायक के बयान से मची हलचल
अब कांग्रेस विधायक सज्जन सिंह वर्मा ने एक बार फिर बीजेपी में सुलग रही इस आग को हवा देने की कोशिश की है। वैसे तो फैसला बीजेपी का है और बीजेपी को ही करना है, लेकिन कांग्रेस विधायक ने तो मानो ऐलान ही कर दिया है कि बीजेपी शिवराज को हटाएगी और सिंधिया को लाएगी। दावा ये भी है कि एक हारे हुए चेहरे को बीजेपी फिर मौका नहीं देगी। वैसे तो सज्जन सिंह वर्मा विवादित बयान देकर अक्सर सुर्खियां बटोरते हैं। कई बार तो अपनी पार्टी के नेताओं को भी नहीं बख्शते, लेकिन इस बार शिवराज सिंह चौहान पर उनका हमला नई सियासी हलचल जरूर पैदा कर गया है।
सिंधिया ने समझौता कर लिया, लेकिन समर्थकों का इंतजार खत्म नहीं हुआ
ज्योतिरादित्य सिंधिया सूबे की कमान थाम ले, ये ख्वाहिश तो उनके समर्थकों की भी रही। पद न मिलने पर कांग्रेस से बगावत करने वाले सिंधिया बीजेपी में जाकर बिलकुल शांत है, हो सकता है ये शांति केंद्र में मिले मंत्री पद की वजह से हो। नई पार्टी में नए हालात से सिंधिया ने समझौता भी कर लिया हो, लेकिन उनके समर्थक और चाहने वालों का इंतजार कभी खत्म नहीं हुआ। पर, ये पद सिंधिया के हवाले करना बीजेपी के लिए भी इतना आसान नहीं है। एक अनुमान तो ये भी है कि सिंधिया को सीएम फेस प्रोजेक्ट किया तो बीजेपी के भीतर ही खाई इतनी गहरी हो जाएगी कि आने वाले चुनाव में जीतना भी मुश्किल होगा।
सिंधिया को सीएम फेस प्रोजेक्ट करना भी बीजेपी के लिए आसान नहीं
ज्योतिरादित्य सिंधिया, बीजेपी का वो चेहरा है जो कभी कांग्रेस की जीत के पोस्टर बॉय थे। जिसे जीत का सबसे ज्यादा क्रेडिट मिला, उसकी झोली खाली ही रही। ये दर्द सिंधिया सह न सके और दल बदल लिया। सिंधिया को बीजेपी में आए तीन साल पूरे होने को हैं, ये कहा जा सकता है कि उन्हें जो जो भी वादे कर पार्टी में शामिल किया गया, बीजेपी उनमें से अधिकांश को पूरा कर चुकी है। उसके बावजूद गाहे बगाहे उनके सीएम बनने की अटकलें जोर पकड़ लेती हैं। वैसे तो बीजेपी ये क्लीयर कर चुकी है कि शिवराज सिंह चौहान ही अगले चुनाव में बीजेपी का चेहरा होंगे। उसके बावजूद बदलाव की खबरों पर लगाम नहीं कस सकी है। सिंधिया को चुनाव से पहले सीएम पद सौंपना या उन्हें सीएम प्रोजेक्ट करना क्या बीजेपी के लिए इतना आसान है।
सिंधिया को सीएम बनाने का फैसला करने से पहले तराजू के दोनों पलड़ों को अच्छे से तौलना होगा। हो सकता है ये फैसला बीजेपी के लिए फायदे से ज्यादा नुकसान का सौदा साबित हो।
सिंधिया के सीएम बनने से फायदे
- बीजेपी को एक प्रॉमिसिंग चेहरा मिलेगा।
सिंधिया को सत्ता सौंपकर बीजेपी जितना फायदा उठा सकती है उतने ही घाटे में भी जा सकती है। क्योंकि-
सिंधिया को सीएम बनाने से नुकसान
- पार्टी के पुराने नेताओं में नाराजगी।
पुराने कार्यकर्ता की नाराजगी 'मेरा बूथ सबसे मजबूत' को कमजोर कर सकती है
सिंधिया के साथ पार्टी में आए कार्यकर्ताओं की वजह से पुराने कार्यकर्ता पहले से ही नाराज हैं। सिंधिया के पावर में आते ही पुराने कार्यकर्ताओं में और सन्नाटा पसर सकता है। फिलहाल बीजेपी को मेरा बूथ सबसे मजबूत के नारे को बुलंद करना है। पुराने कार्यकर्ता की नाराजगी से उस नारे के कमजोर पड़ने के आसार बढ़ सकते हैं।
इधर... नरेंद्र सिंह तोमर और सिंधिया के बीच की खाई भी गहराती जा रही है
बमुश्किल सात दिन पहले सिंधिया ने खुद सीएम बनने की अटकलों को खारिज कर दिया और सीएम शिवराज के कामों की तारीफ भी की। तारीफ करना अलग बात है। दोनों के बीच की तनातनी भी किसी से छिपी नहीं है। ग्वालियर चंबल के दूसरे कद्दावर नेता नरेंद्र सिंह तोमर और सिंधिया के बीच की खाई भी गहराती जा रही है, जबकि तोमर और शिवराज की ट्यूनिंग काफी अच्छी रही है। तोमर और सिंधिया समर्थकों के बीच कलह भी दिखाई देती ही रही है। सिंधिया समर्थकों के कैबिनेट में दबदबे से दूसरे अंचलों के नेताओं में भी नाराजगी है। ऐसे में सिर्फ ग्वालियर चंबल को साधने के चक्कर में बीजेपी सिंधिया को कोई बड़ा मौका देगी। इस सवाल का जवाब पार्टी को बहुत सोच समझकर खोजना है।