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भोपाल. मेरा बजट मेरा ऑडिट की कड़ी में आज हम बात करेंगे ग्रामीण इलाकों में बने स्टेडियम की। ग्रामीण अंचलों में खेलों को बढ़ावा देने के लिए सूबे में 100 से अधिक ग्रामीण स्टेडियम में 50 करोड़ से अधिक की राशि फूंकी गई। इसके बावजूद अब ये स्टेडियम खंडहर में तब्दील होते जा रहे हैं। कारण...इन स्टेडियम का कोई माई-बाप ही नहीं है। मतलब इन स्टेडियम का रखरखाव, साफ-सफाई की व्यवस्था की जिम्मेवारी कोई भी एजेंसी या तो ले नहीं रही है, या स्वीकार नहीं कर रही है कि यह उसका काम है। नतीजा जिन स्टेडियम से ग्रामीण अंचलों के खिलाड़ियों की प्रतिभा निखरनी थी, उनमें गंदगी का अंबार लगा हुआ है। जिस ट्रैक पर युवाओं को दौड़ना था, वे अब नदारद है। मैदान पर झाड़ियां उग आई है। करोड़ों की लागत से बने इन स्टेडियमों में आज तक कोई खेल नहीं हुआ।
यह थी योजना और उसका उद्देश्य: केंद्र सरकार ने 2008-09 में पंचायत युवा क्रीड़ा एवं खेल अभियान (पायका) शुरू की थी, जिसका नाम 2014 में बदलकर राजीव गांधी खेल अभियान (RGKA) कर दिया गया। योजना का उद्देश्य ग्रामीण युवाओं की खेल में रुचि बढ़ाने के साथ ही देश व प्रदेश स्तर पर ग्रामीण प्रतिभाओं को निखारना था। मध्यप्रदेश में केंद्र सरकार ने 2014-15 में इस योजना में प्रदेश के हर ब्लॉक में स्टेडियम का काम शुरू किया। खेल विभाग ने ब्लॉक स्तर पर स्टेडियम के लिए पांच से सात एकड़ जमीन भी आवंटित कराई। योजना में एक खेल मैदान के विकास के लिए 80 लाख का बजट था। प्रदेश के ज्यादातर विकासखंड में स्टेडियम का निर्माण कार्य भी शुरू हुआ। कुछ पूरे भी हुए, लेकिन कुछ खेल मैदान बनकर तैयार होते, उससे पहले ही योजना बंद हो गई, जिससे उनका निर्माण पूरा ही नहीं हो सका।
द सूत्र की पड़ताल में सच आया सामने: भोपाल- स्टेडियम में मवेशियों के कंकाल, पत्थर पर पैर फिसलने से लगती है चोट: ग्रामीण अंचलों में बने स्टेडियम की बदहाल स्थिति का पता लगाने द सूत्र ने पूरे मामले की पड़ताल की। शुरूआत राजधानी भोपाल से 60 किमी दूर बैरसिया अंतर्गत बर्री छीरखेड़ा पंचायत में बने स्टेडियम से की। इस स्टेडियम का शिलान्यास 3 दिसंबर 2015 को स्थानीय जनप्रतिनिधियों द्वारा किया गया। 80 लाख रुपए की लागत से ये स्टेडियम तैयार हुआ। लेकिन इसका कभी मेंटेनेंस ही नहीं हुआ। स्टेडियम में 2 कमरे हैं, दोनो में ही गंदगी का अंबार है। मैदान में पत्थर पड़े हुए हैं, झाड़ियां उग आई है। यहीं नहीं यहां जगह-जगह मवेशियों के कंकाल तक पड़े हुए हैं। आर्मी और पुलिस भर्ती की तैयारी कर रहे गांव के अभिषेक गुर्जर का कहना है कि स्टेडियम के मैदान में पत्थर पड़े हुए हैं। जिन पर दौड़ने पर कई बार पैर फिसल जाता है और चोट भी लगती है। वहीं ग्रामीण खिलाड़ी सागर जाट बताते हैं कि वह 4 साल से इस स्टेडियम में आ रहे हैं। जब से स्टेडियम बना है, कभी किसी ने साफ-सफाई नहीं की। सिर्फ बाउंड्रीबाल बनाकर छोड़ दी, जिससे खेलने में दिक्कत होती है।
सागर- 5 साल में सिर्फ एक बार खेल प्रतियोगिता का हुआ आयोजन: सागर जिले की बंडा विधानसभा अंतर्गत चौका भेड़ा गांव में निर्मित स्टेडियम का निर्माण 2017 में हुआ था। यहां सिर्फ एक बार ही खेल प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। उसके बाद आज दिनांक तक यहां किसी भी खेल प्रतियोगिता का ना तो आयोजन हुआ और ना ही खिलाड़ियों को खेलों को प्रोत्साहित करने यहां किसी प्रकार की खेल गतिविधियां संचालित की जाती हैं। यही हाल जिले की अन्य विधानसभा अंतर्गत निर्मित लगभग अधिकांश स्टेडियमों का है। तस्वीरें स्टेडियम की वास्तविकता बयां करने के लिए काफी है। इन स्टेडियम का निर्माण 80 लाख खर्च कर किया गया था। खिलाड़ी रंजीत लोधी और रजनीश सहलोद का कहना है कि स्टेडियमों का निर्माण हुआ लेकिन यहां सुविधा नहीं है। पंचायत चौका के रोजगार सहायक राजीव जैन का कहना है कि स्टेडियम की बदहाली को लेकर पत्र लिखा था, लेकिन आरईएस ने चौकीदार राख्ने को यह कहकर मना कर दिया कि अभी ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। ग्रामीण यांत्रिकी विभाग के कार्यपालन यंत्री का कहना है कि हमारा दायित्व स्टेडियम निर्माण का था उसे हमने पूर्ण कर दिया। स्टेडियम के रखरखाव के लिए शासन की तरफ से अन्य कोई फंड नहीं दिया गया है। जिले में 17 स्टेडियमों का निर्माण किया गया है।
भिंड- स्टेडियम के अंदर आवारा मवेशियों को किया बंद, दबंगों का भी कब्जा: भिण्ड जिले में पांच स्टेडियम बनने थे। आरईएस के कार्यपालन यंत्री आलोक तिवारी ने बताया कि गोहद में सिसोनिया, लहार में पचोखरा में स्टेडियम बनकर तैयार हो चुके हैं और भिंड के खरिका में स्टेडियम बना था वह अधूरा है जिसे पूरा करने के लिए शासन से और भी बजट की डिमांड की गई है। अटेर तथा मेहगांव में जमीन का आवंटन न होने से वहां स्टेडियम नहीं बनाए गए। द सूत्र की टीम जब मौके पर पहुंची तो पाया कि ग्राम पंचायत पचोखरा के इस स्टेडियम के अंदर अक्सर दबंगों का कब्जा रहता है। सारे गेट टूट चुके हैं। पानी की टंकी या तो टूटी है या चोरी हो गई है। वहीं गोहद विधानसभा के सिसोनिया के स्टेडियम में स्थानीय लोगों ने आवारा मवेशियों को बांधकर रखा है। पूरा स्टेडियम जगह-जगह से क्षतिग्रस्त है और मैदान पूरी तरह से उखड़ा हुआ है।
जिम्मेदारों का गैर जिम्मेदाराना रवैया: भोपाल के बर्री छीरखेड़ा पंचायत के सचिव तख्तसिंह दांगी और सहायक सचिव घनश्याम कुशवाह से बात की तो उन्होंने बताया कि अभी स्टेडियम हमें हैंडओवर नहीं हुआ है, इसलिए पंचायत स्टेडियम की इस हालत के लिए जिम्मेदार नहीं है। इसके बाद द सूत्र ने निर्माण एजेंसी आरईएस के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर आरके श्रीवास्तव से संपर्क किया तो उनका कहना था कि जनपद सीईओ को स्टेडियम हैंडओवर किया जा चुका है और हैंडओवर के दस्तावेज उनके पास उपलब्ध हैं उस पर सीईओ के साइन है। वहीं जनपद पंचायत बैरसिया के सीईओ दिलीप जैन ने आरईएस के इस दावे को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि उनके पास ऐसे कोई भी दस्तावेज उपलब्ध नहीं है। वहीं भिंड के मामले में जिला कोच संजय पंकज का कहना है कि अभी तक यह स्टेडियम खेल विभाग को हस्तांतरित ही नहीं हुए है, इसलिए इनकी जिम्मेदारी भी खेल विभाग की नहीं है। निवर्तमान जिला क्रीड़ा अधिकारी जीवन सिंह जादौन ने कहा कि यह योजना मेरे आने से पहले की है इसमें कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं हुआ और अब मेरे पास चार्ज भी नहीं हैं।
टैक्सपेयर का पैसा ऐसे हुआ बर्बाद: सरकार अपने बजट में विकास योजनाएं लाती है। इससे किसी को कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन योजना में करोड़ों का बजट देने से पहले उसकी जमीनी पड़ताल करना जरूरी है। यह जानना जरूरी है कि इसका क्रियान्वयन कैसे होगा, नहीं तो टैक्सपेयर का पैसा ऐसे ही बर्बाद होता रहेगा। स्टेडियम के मामले में ग्रामीणांचलों में स्टेडियम बनाने की निर्माण एजेंसी रूलर इंजीनियरिंग सर्विस (आरईएस) थी। आरईएस ने जब इन स्टेडियम को खेल विभाग के सुपुर्द करना चाहा तो स्टेडियम की सुरक्षा के लिए चौकीदार, कोच के पद स्वीकृत नहीं होने का हवाला देते हुए खेल विभाग ने इन्हें लेने से इंकार कर दिया। इसके बाद आरईएस ने इन्हें पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के सुपुर्द कर दिए। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग अब इनकी देख-रेख नहीं कर पा रहा है। यही कारण है कि ग्रामीण इलाकों में बने ये स्टेडियम खंडहर हो गए हैं या चारागाह और शराबियों का अड्डा बनकर रह गए हैं।
(भोपाल से राहुल शर्मा, सागर से रमन अग्रवाल और भिंड से मनोज जैन की रिपोर्ट।)