आपके काम की खबर: ज्यादा पेंशन का विकल्प चुनना चाहिए या नहीं, जानिए हायर पेंशन का विकल्प किनके लिए बेहतर और किनके लिए नहीं?

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Sunil Shukla
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आपके काम की खबर: ज्यादा पेंशन का विकल्प चुनना चाहिए या नहीं, जानिए हायर पेंशन का विकल्प किनके लिए बेहतर और किनके लिए नहीं?

BHOPAL. कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) ने अपने योग्य सदस्यों को हायर पेंशन का विकल्प चुनने की समय सीमा बढ़ाकर 26 जून 2023 कर दी है। यदि आप रिटायरमेंट के बाद कर्मचारी पेंशन योजना यानी EPS-1995 (Employees Penssion Scheme 1995) के तहत ज्यादा पेंशन चाहते हैं तो इसके लिए EPFO की वेबसाइट https://www.epfindia.gov.in या https://unifiedportal-mem.epfindia.gov.in/memberinterface/ पर 26 जून तक ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। लेकिन विकल्प चुनने की जानकारी और प्रक्रिया स्पष्ट न होने से EPFO के कई सदस्य तय नहीं कर पा रहे हैं कि वे ज्यादा पेंशन के लिए आवेदन करें या अधिकतम 15 हजार रुपए पेंशन योग्य सैलरी वाली व्यवस्था में ही बने रहें। आइए समझने की कोशिश करते हैं कि ऐसे कर्मचारी जिनकी सैलरी से ईपीएफ और ईपीएस की राशि कटती है उन्हें ज्यादा पेंशन का विकल्प चुनना चाहिए या नहीं।



क्या है EPS की मौजूदा व्यवस्था



EPS-1995 की वर्तमान व्यवस्था के अनुसार आपके मूल वेतन और महंगाई भत्ते (DA) का 12 फीसदी EPF में जमा होता है। यदि आपको DA नहीं मिलता तो मूल वेतन का 12 फीसदी ईपीएफ में जाता है। इतनी ही राशि यानी 12 फीसदी आपका नियोक्ता (employer) भी आपके अकाउंट में जमा कराता है, लेकिन नियोक्ता के योगदान का एक हिस्सा EPS में चला जाता है। ये हिस्सा बेसिक सैलरी का 8.33 फीसदी या अधिकतम 1250 रुपए होता है। यानी नियोक्ता हर महीने अधिकतम 15 हजार रुपए वेतन (पेंशन योग्य वेतन की सीमा) का 8.33 फीसदी ही आपके EPS अकाउंट में जमा करा सकता है, भले ही आपका वेतन इससे कितना भी ज्यादा क्यों न हो।



पेंशन योग्य सैलरी (pensionable salary) की सीमा



केंद्र सरकार द्वारा 22 अगस्त 2014 में किए गए बदलाव के बाद 1 सितंबर 2014 से पेंशन योग्य वेतन की सीमा 15 हजार रुपए तय की गई। यानी इस हिसाब से आपके ईपीएस अकाउंट में हर महीने जमा होने वाली राशि 1 हजार 250 रुपए तय की गई। इससे पहले यानी 8 अक्टूबर 2001 से 31 अगस्त 2014 तक ये सीमा 6 हजार 500 रुपए यानी ईपीएस में जमा होने वाली मासिक राशि 541 रुपए और 16 नवंबर 1995 से 7 अक्टूबर 2001 के बीच 5 हजार रुपए यानी ईपीएस में जमा होने वाली मासिक राशि 417 रुपए थी।



आखिर कहां फंसा पेंच?



16 मार्च 1996 से पहले ये बात स्पष्ट थी कि EPS में योगदान और पेंशन की गणना अधिकतम पेंशन योग्य सैलरी के हिसाब से होगी। लेकिन 16 मार्च 1996 से EPFO सदस्यों को पेंशन योग्य वेतन के अतिरिक्त वास्तविक सैलरी (actual salary) पर EPS में योगदान और पेंशन पाने का विकल्प भी दिया गया। इसके लिए EPS-1995 में पैराग्राफ 11(3) जोड़ा गया, जिसके तहत कर्मचारी नियोक्ता की सहमति से वास्तविक वेतन पर EPS में अंशदान कर सकते हैं, भले ही वे पेंशन योग्य वेतन की निर्धारित सीमा से अधिक हो, लेकिन 1 सितंबर 2014 से लागू संशोधन में इस पैराग्राफ को हटा दिया गया। हालांकि इस संशोधन में भी उन EPFO सदस्यों को वास्तविक वेतन के हिसाब से अंशदान का विकल्प चुनने के लिए 6 महीने के अंदर आवेदन करने का मौका दिया गया था, जो उस समय EPS में अंशदान कर रहे थे। कुछ खास स्थितियों में इसे 6 महीने के लिए और बढ़ाया गया, लेकिन जानकारी और नियमों में स्पष्टता नहीं होने से ज्यादातर पात्र EPFO सदस्य इस विकल्प को नहीं ले पाए।



EPFO हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा



केंद्र सरकार ने 2014 के संशोधन में ये निर्देश भी दिया कि यदि आप वास्तविक सैलरी के हिसाब से EPS में योगदान करते हैं तो 15 हजार रुपए पेंशन योग्य वेतन की सीमा के ऊपर EPS में जो भी योगदान होगा उस पर EPFO सदस्य को EPS में 1.16 फीसदी की दर से अतिरिक्त योगदान करना होगा। केंद्र के इस फैसले के खिलाफ केरल, दिल्ली और राजस्थान हाईकोर्ट में कई मुकदमे लगे। इन अदालतों ने कर्मचारियों के पक्ष में फैसला दिया, लेकिन ईपीएफओ इसके विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया।



सुप्रीम कोर्ट ने 2014 के संशोधन को अवैध बताया



सुप्रीम कोर्ट ने अपने 4 नवंबर 2022 के निर्णय में EPFO को निर्देश दिया कि वो अपने सदस्यों को ज्यादा पेंशन यानी वास्तविक वेतन के हिसाब से EPS में योगदान का विकल्प चुनने के लिए एक और अवसर दे। साथ ही कोर्ट ने सितंबर 2014 के उस संशोधन को अवैध करार दिया, जिसके अनुसार EPFO के सदस्यों को 15 हजार रुपए के पेंशन योग्य वेतन के 8.33 फीसदी से ज्यादा अंशदान पेंशन योजना में करने पर 1.16 फीसदी का अतिरिक्त योगदान करना होगा। लेकिन इसके लिए कोर्ट ने EPFO को 6 महीने की मोहलत दी है ताकि इस अवधि में EPFO वैकल्पिक व्यवस्था कर सके। सुप्रीम कोर्ट के इसी दिशा-निर्देश के अनुरूप EPFO ने अपने सदस्यों को हायर पेंशन का विकल्प चुनने के लिए एक और मौका दिया है। EPFO के पात्र सदस्य अपने नियोक्ता के साथ मिलकर 26 जून 2023 तक इसके लिए आवेदन कर सकते हैं।



हायर पेंशन के लिए कौन-कौन कर सकते हैं आवेदन?



सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश के मुताबिक जो कर्मचारी 1 सितंबर 2014 से पहले EPS के सदस्य थे और उसके बाद भी EPS के सदस्य रहे हैं, वे हायर पेंशन के लिए आवेदन कर सकते हैं। इसी तरह जो सदस्य 1 सितंबर 2014 से पहले 6 हजार 500 रुपए और 5 हजार रुपए से ज्यादा के पेंशन योग्य वेतन पर EPS में योगदान कर रहे थे, वे भी ज्यादा पेंशन के लिए आवेदन करने के योग्य हैं। ऐसे सदस्य भी ज्यादा पेंशन के लिए आवेदन कर सकते हैं, जो 1 सितंबर 2014 से पहले रिटायर हो गए थे। लेकिन जिन्होंने पैरा 11(3) के तहत वास्तविक वेतन के आधार पर पेंशन के चुनाव के लिए जॉइंट ऑप्शन का इस्तेमाल किया था, लेकिन इसे EPFO ने ठुकरा दिया था।



ऐसे लोग नहीं कर सकते आवेदन



हायर पेंशन के लिए ऐसे लोग आवेदन नहीं कर सकते जो 1 सितंबर 2014 से पहले रिटायर हो गए और जिन्होंने वास्तविक सैलरी के आधार पर पेंशन के चुनाव के लिए जॉइंट ऑप्शन का इस्तेमाल नहीं किया था। ईपीएफओ के ऐसे सभी पेंशनर ज्यादा पेंशन के लिए आवेदन नहीं कर सकते हैं। इनके अलावा 1 सितंबर 2014 के बाद EPS के सदस्य बनने वाले भी ज्यादा पेंशन के लिए आवेदन नहीं कर सकते हैं।



ऐसे करें EPS में अपने अंशदान और पेंशन का कैलकुलेशन



यदि आप अपनी वास्तविक सैलरी के हिसाब से ईपीएस में ज्यादा योगदान का विकल्प का चुनते  हैं तो आपके मूल वेतन का 8.33 हिस्सा EPS में जमा होगा न कि 15 हजार रुपए के पेंशन योग्य वेतन की सीमा के मुताबिक अधिकतम 1250 रुपए। ज्यादा पेंशन का विकल्प चुनने के बाद बाद कर्मचारी को 58 साल की उम्र के बाद मिलने वाली पेंशन का कैलकुलेशन भी बदल जाएगा। नए नियम के अनुसार अब उनके अंतिम 60 महीनों के औसत मूल वेतन के आधार पर पेंशन का निर्धारण किया जाएगा, न कि अधिकतम 15 हजार रुपए के पेंशन योग्य वेतन के आधार पर।



अपनी पेंशन कैसे कैलकुलेट करें-



ईपीएस में पेंशन राशि, सदस्य के पेंशन योग्य वेतन और पेंशन योग्य सेवा यानी कुल कितने साल नौकरी की है, इस पर निर्भर करती है। सदस्य की मासिक पेंशन राशि का कैलकुलेशन नीचे दिए गए फॉर्मूला के अनुसार किया जाता है-



कर्मचारी का पेंशन योग्य वेतन X पेंशन योग्य सेवा/70 = मासिक पेंशन राशि



रिटायरमेंट के बाद कितनी पेंशन मिलेगी, खुद करें कैलकुलेट?



इसे कैलकुलेट करने के लिए एक फॉर्मूला है... पेंशन योग्‍य वेतन x नौकरी के साल/70..मान लीजिए आपकी बेसिक सैलरी + डीए 20 हजार रुपए है और आपने 30 साल तक नौकरी की तो इस हिसाब से पेंशन मासिक 8 हजार 571 रुपए होगी। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने इसके फॉर्मूले में बदलाव करते हुए नौकरी के अंतिम 60 महीने यानी पिछले 5 साल के औसत वेतन को पेंशन योग्‍य सैलरी करार दिया है। इस हिसाब से नौकरी के आखिरी 60 महीने का औसत वेतन (बेसिक + DA) 25 हजार रुपये है तो फिर इस राशि में नौकरी के कुल साल (30 वर्ष) को गुणा करना है,और फिर उसमें 70 से भाग किया जाएगा। इस तरह से हर महीने 10 हजार 714 रुपए पेंशन बनेगी। यदि किसी कर्मचारी की बेसिक सैलरी + डीए 50 हजार रुपए है तो फिर इस फॉर्मूले से पेंशन 21 हजार 428 रुपए हर महीने मिलेगी। ये 15 हजार रुपए बेसिक वाले से फॉर्मूले से 15 हजार रुपए ज्‍यादा है। 15 हजार बेसिक फॉर्मूले से हर महीने 6 हजार 428 रुपए पेंशन बनती है।



इस तरह से होगा पेंशन का कैलकुलेशन



मान लीजिए किसी कर्मचारी की बेसिक सैलरी 50 हजार रुपए है। पुरानी व्यवस्था के हिसाब से कर्मचारी पेंशन योग्य बेसिक सैलरी यानी 15 हजार रुपए  का 12 फीसदी यानी 1800 रुपए EPF में जाएंगे। इसमें नियोक्ता भी इतना ही अंशदान करेगा लेकिन उसमें से 1249 रुपए  EPS में और 551 रुपए EPF में जमा होंगे।



अब यदि नई व्यवस्था यानी वास्तविक वेतन के आधार पर अंशदान जमा कराया जाए तो 50 हजार रुपए के मूल वेतन पर कर्मचारी के हिस्से का योगदान 12 फीसदी यानी 6 हजार रुपए ईपीएफ में जमा होगें। नियोक्ता का योगदान भी 6 हजार रुपए होगा, लेकिन अब वास्तविक मूल वेतन यानी 50 हजार रुपए का 8.33 फीसदी अर्थात 4165 रुपए पेंशन फंड (EPS) में जमा होंगे जबकि EPF में सिर्फ 1 हजार 835 रुपए जमा होंगे।



जानें 50 हजार सैलरी पर कितनी पेंशन मिलेगी?



अब ये भी समझ लीजिए कि पेंशन कितनी मिलेगी। यदि ईपीएफओ के सदस्य के रूप में आपके EPS फंड में 10 साल तक अंशदान जमा होता है तो आपको 58 साल की उम्र के बाद पेंशन मिलेगी। ईपीएफओ के नियमों में 50 साल की उम्र के बाद भी 4 फीसदी सालाना कटौती के साथ पेंशन लेने का प्रावधान है। ज्यादा पेंशन यानी वास्तविक वेतन के आधार पर पेंशन का विकल्प चुनने के बाद कर्मचारी के आखिरी 60 महीनों के औसत मूल वेतन में नौकरी के कुल साल से गुणा कर दिया जाएगा। इस तरह मिली संख्या को 70 से भाग करने पर मिला आंकड़ा ही कर्मचारी की पेंशन होगी।



उदाहरण के तौर पर यदि आपकी सर्विस के आखिरी 60 महीनों में औसत मूल वेतन 50 हजार रुपए है तो 35 साल तक EPS में अंशदान करने पर आपको हर महीने 25 हजार रुपए पेंशन मिलेगी। यदि आप पुरानी व्यवस्था में ही रहते हैं तो आपको अधिकतम 7 हजार 500 रुपए महीना पेंशन मिलेगी क्योंकि मौजूदा नियमों के मुताबिक पेंशन योग्य वेतन की अधिकतम सीमा 15 हजार रुपए है। अभी पेंशन की मौजूदा गणना की व्यवस्था में अंतिम 60 महीने के औसत मूल वेतन को आधार बनाया जाता है। 15 हजार रुपए पेंशन योग्य वेतन में अधिकतम अंशदान की सीमा होने के कारण 35 साल नौकरी करने वाले व्यक्ति को 7 हजार 500 रुपए महीने की पेंशन ही मिलेगी।



नई व्यवस्था में ध्यान रखें ये बेहद महत्वपूर्ण बात



यदि अब आप नई व्यवस्था के तहत ज्यादा पेंशन का विकल्प चुनते हैं तो एक बेहद महत्वपूर्ण बात ध्यान रखनी होगी। आपने जिस साल से EPS में अंशदान शुरू किया है, उस समय से पेंशन योग्य वेतन की सीमा से अधिक राशि आपके EPF खाते से EPS खाते में ट्रांसफर होगी। यदि आपके EPF खाते में पर्याप्त रकम नहीं है तो आपको अलग से EPS में राशि जमा करानी होगी।



अब आप क्या करें?



अंशदान और पेंशन के कैलकुलेशन स्पष्ट होता है कि यदि आप वास्तविक सैलरी के हिसाब से EPS में योगदान करते हैं तो आपको रिटायरमेंट के बाद ज्यादा पेंशन मिलेगी। लेकिन आपको ज्यादा पेंशन का विकल्प चुनने से पहले कई दूसरी जरूरी बातों का भी ध्यान रखना होगा।



बेसिक सैलरी जितनी ज्यादा, पेंशन भी उतनी ज्यादा



यदि आप हायर पेंशन का विकल्प चुनते हैं तो मौजूदा फॉर्मूले के हिसाब से अंतिम 60 महीनों यानी 5 साल का आपका मूल वेतन जितना ज्यादा होगा, आपकी पेंशन भी उतनी ही ज्यादा बनेगी, लेकिन पेंशन की राशि इस बात पर भी निर्भर करेगी कि आपने EPS में कितनी अवधि (पेंशन योग्य सेवा) के लिए अंशदान किया है। ध्यान देने वाली बात ये भी है कि पेंशन की गणना में पेंशन योग्य सेवा की अवधि अधिकतम 35 वर्ष ही मानी जाएगी, भले ही आपने इससे ज्यादा अवधि के लिए EPS में योगदान किया हो। ध्यान रहे कि आपने नौकरी के अंतिम 5 साल से पहले EPS में ज्यादा योगदान किया मगर किसी कारणवश आपके अंतिम 5 सालों में औसत मूल वेतन कम रहता है या आपकी नौकरी छूट जाती है तो आपकी पेंशन कम बनेगी।



ईपीएस की राशि पर नहीं मिलता ब्याज



आपके EPS खाते में जो राशि जमा होती है, वो 58 साल की उम्र तक जुड़ती है और 58 साल पूरे होने के बाद आपकी मंथली पेंशन के रूप में मिलनी शुरू होती है। यानी कुल 10 वर्ष तक योगदान के बाद आप EPS में जमा धनराशि को न तो रिटायरमेंट के बाद और न पहले निकाल सकते। जबकि EPF में जमा धनराशि को आप रिटायरमेंट से पहले भी जरूरत पड़ने पर निकाल सकते हैं। यदि आप ईपीएस में ज्यादा अंशदान करेंगे, आपके EPF खाते में उतनी ही कम राशि जाएगी। EPF की राशि पर सरकार ब्याज भी देती है। मौजूदा वित्त वर्ष के लिए सरकार EPF पर 8.15 फीसदी ब्याज दे रही है। EPS क्योंकि एक पेंशन स्कीम है इसलिए इस पर कोई ब्याज नहीं मिलता।



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रिटायर होने के बाद EPF की राशि ब्याज सहित जो आपको मिलती है उस पर आपको कोई टैक्स नहीं देना होता है, लेकिन EPS से मिलने वाली पेंशन पर आपको सैलरी की तरह टैक्स चुकाना होगा। यदि आपने कई संस्थानों में काम किया है और EPF का पैसा निकाल लिया है तो भी अंशदान की अवधि कम होगी। इस स्थिति में आपके पेंशन के कैलकुलेशन पर असर पड़ेगा। यदि आपने कुल 10 साल तक EPS में योगदान नहीं किया है तो आप इसमें जमा धनराशि निकाल सकते हैं। लेकिन ईपीएफओ के जानकार बताते हैं कि चूंकि EPS एक पेंशन स्कीम है इसलिए इस पर ब्याज और रिटायरमेंट से पहले विड्रॉल की बात करना बेमानी है। यदि आपकी नौकरी की अवधि लंबी है, साथ ही रिटायरमेंट के आखिरी 5 सालों में आपकी सैलरी ज्यादा रहती है तो आपको रिटायरमेंट के बाद EPS से जो पेंशन मिलेगी, वो मार्केट में उपलब्ध अन्य पेंशन स्कीम से बेहतर हो सकती है, बशर्ते सरकार योगदान और पेंशन के कैलकुलेशन के मौजूदा फॉर्मूले में भविष्य में कोई बदलाव न करे। इस पेंशन स्कीम के पक्ष में एक बात ये भी जाती है इस स्कीम में डिफॉल्ट का कोई खतरा नहीं है क्योंकि ये एक सरकारी स्कीम है।


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