मामा के राज में भांजियां शिक्षा से मोहताज, 15 से 16 साल की 17% लड़कियां स्कूल ड्रॉपआउट, देश में सबसे ज्यादा!

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Ruchi Verma
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मामा के राज में भांजियां शिक्षा से मोहताज, 15 से 16 साल की 17% लड़कियां स्कूल ड्रॉपआउट, देश में सबसे ज्यादा!

BHOPAL: आज का दिन और जनवरी का ये हफ्ता काफी ख़ास है। इस लिहाज से कि आज यानी 24 जनवरी को 'राष्ट्रीय बालिका दिवस' के साथ ही 'अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस' भी है। और दो ही दिन बाद, 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस भी मनाया जाएगा। तीनों ही दिन सरकारी तंत्र द्वारा कई आयोजन होते हैं। इनमें लड़कियों के लिए 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, सेव द गर्ल चाइल्ड' जैसी योजनाओं को लेकर घोषणाओं का एक दौर चलता है। भाषणों में लड़कियों की सेहत, पोषण, पढ़ाई-लिखाई और अधिकारों को बढ़ावा देने की बातें होती हैं। बालिकाओं के लिए रियायती या मुफ्त शिक्षा, कॉलेज तथा विश्वविद्यालयों में आरक्षण और उनकी सहायता करने के बातों पर जोर दिया जाता है। लेकिन 24 जनवरी से  26 जनवरी के बीच होने वाले आयोजनों के बीच एक बड़े सवाल का जवाब हमेशा छूट जाता है। सवाल ये कि  क्या हम आजादी के इतने सालों बाद भी मध्य प्रदेश की बालिकाओं की शिक्षा को लेकर वो मकाम हासिल कर पाएं हैं जिनके हम दावें करते हैं? द सूत्र ने कोशिश की इसी सवाल का जवाब जानने की। जो जवाब सामने आए वो साफ़ बताते है कि मध्य प्रदेश में बालिकाओं की शिक्षा को लेकर स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं है। आज भी MP में 15 से 16 साल की 17% लड़कियाँ स्कूल नहीं जाती हैं। ये प्रतिशत देश के सभी राज्यों से ज्यादा है। ऐसा क्यों हैं, ये समझने के लिए पढ़िए ये स्पेशल ग्राउंड रिपोर्ट...



अन्य राज्यों में लड़कियों की शिक्षा-स्थिति हो रही बेहतर, पर MP में स्तर और गिर रहे: असर रिपोर्ट, 2022




  • पिछले हफ्ते एक गैर सरकारी संस्था प्रथम ने ‘असर यानी एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट-2022’ जारी की। असर सर्वे रिपोर्ट को पिछले 17 वर्षों से देश के ग्रामीण इलाकों के बच्चों की शैक्षणिक योग्यता और वहां के सरकारी स्कूलों के हालात मापने का एक प्रमाणिक औजार माना जाता है।


  • रिपोर्ट में मध्य प्रदेश के 50 समेत देशभर के 616 जिलों के सरकारी स्कूलों में सर्वे किया गया। रिपोर्ट के अनुसार, देश में स्कूल न जाने वाली लड़कियों का अनुपात 2022 में अब तक के सबसे निचले स्तर यानि 2% पर आ गया है।

  • पर रिपोर्ट में चिंता का जो कारण बना हुआ है वह है मध्य प्रदेश! जहाँ आज भी 15 से 16 आयु वर्ग की 17 फीसदी लड़कियाँ अभी भी स्कूल के बाहर हैं। और ये देश में सबसे ज्यादा है।



  • अब ऐसा क्यों है? द सूत्र ने ये जानने के लिए गंजबासोदा, शाजापुर, राजपुर और जबलपुर के कन्या विद्यालयों का दौरा किया। तो जो कारण सामने आये बड़े-बड़े दावे करने वाली सरकार के लिए शर्मनाक हैं। और वो कुछ ऐसे हैं कि:




    • 45% स्कूलों में गर्ल्स टॉयलेट नहीं हैं।


  • 38.7% स्कूलों में बॉउंड्री वाल नहीं है... और कई जगह CCTV कैमरा भी नहीं है...यानि स्कूलों में सिक्योरिटी की साफ़ कमी हैं।

  • 65.2% विद्यालयों में पुस्तकालयों की किताबें नहीं है।

  • 96% स्कूलों में बच्चों-बच्चियों के लिए कम्प्यूटर्स/कंप्यूटर लैब्स नहीं है।साइंस लैब्स की तो बात ही क्या करें।

  • 30.7% स्कूलों में पीने का पानी भी उपलब्ध नहीं है। ये CM राइस, उत्कृस्ट विद्यालय और डिजिटल शिक्षा उपलब्ध कराने के दावे करती MP सरकार की शिक्षा व्यवस्था की जमीनी हक़ीक़त है!



  • 45% स्कूलों में लड़कियों के लिए टॉयलेट्स न होना उनके ड्रापआउट होने का बड़ा कारण



    असर, 2022 रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 45 फीसदी सरकारी विद्यालयों में लड़कियों के लिए शौचालय की समस्या है। इसके कारण कई बार अभिभावक लड़कियों को स्कूल जाने से रोक देते हैं, जिससे लड़कियों की पढ़ाई बीच में ही रुक जाती है। और वे संविधान द्वारा दिए गए शिक्षा के मौलिक अधिकार से वंचित रह जाती हैं। यह स्थिति तब बनी हुई है, जबकि आज देश में शिक्षा का अधिकार कानून लागू हो चुका है। अब विदिशा जिले के अंतर्गत आने वाली तहसील गंजबासौदा में स्थित शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की ही बात करें, तो जब द सूत्र की टीम वहाँ पहुँची, तो पूरे स्कूल के ही हाल अच्छे नहीं थे। स्कूल का शौचालय टूटा फूटा पड़ा हुआ था। वहीँ जबलपुर के शासकीय महारानी लक्ष्मीबाई माध्यमिक कन्या शाला में गर्ल्स टॉयलेट है तो सही, लेकिन वो इतना गन्दा पड़ा हुआ है कि बच्चियों को उसे उपयोग करने में मुश्किल होती है। वहीँ बड़वानी के पास राजपुर में स्थित शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की तो पूरी बिल्डिंग ही जर्जर पड़ी हुई है। यहाँ जब बच्चियों से बात की गई तो कमरे पर ना आते हुए उन्होंने बताया कि वे शौचालय जाने के लिए लंच ब्रेक या छुट्टी तक का इंतज़ार करती है। जिससे घर जाया जा सके। यही नहीं, बच्चियों की एक बड़ी शिकायत है कि उन्हें स्कूलों में सुरक्षित महसूस नहीं होता। कभी भी उनका सामन चोरी हो जाता है। छात्राओं ने अपने स्कूलों में CCTV कमरे की मांग भी की।



    हम जानते हैं कि स्कूलों में टॉयलेट्स की कमी है, जुलाई-2023 तक समस्या दूर होगी: धनराजू एस, आयुक्त, राज्य शिक्षा केंद्र



    चौकाने वाली बात ये है कि खुद राज्य शिक्षा केंद्र के आयुक्त धनराजू एस भी इस दिक्कत से वाक़िफ़ है। स्कूलों में शौचालयों की कमी और सुरक्षा व्यवस्था पर उनका कहना है: "हम जानते हैं कि स्कूलों में शौचालयों की दिक्कत है। ऐसा सिर्फ ASER के रिपोर्ट ही नहीं, हमारी खुद कि विभागीय रिपोर्ट भी यही कहती है। दरअसल, कोरोना महामारी के बाद से हमारे ज्यादातर स्कूलों में बाउंड्री वाल्स नहीं है। इसकी वजह से कई बार असामाजिक तत्व स्कूलों में घुसकर वहां के शौचालयों के पाइपलाइन सिस्टम और हैंडवाश सिस्टम में तोड़फोड़ कर देते हैं। कई बार दरवाज़े भी टूटे होते हैं। तो ये दिक्कत तो है ही। पर हम इस दिशा में काम करने के कोशिश कर रहे हैं। हम मानते हैं कि लड़कियों के लिए स्कूल में एक फंक्शनल शौचालय होना जरुरी है। हमारी कोशिश रहेगी कि जुलाई 2023 तक सभी स्कूलों में फंक्शनल टॉयलेट्स होंगे।"



    कम्प्यूटर शिक्षा बस नाम की, न कम्प्यूटर्स है और न ही सीखने के लिए टीचर्स




    • गंजबासौदा: इसी तरह इन सभी जगहों के विद्यालयों में छात्राओं की शिकायत है कि उनके स्कूल में कम्प्यूटर की शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है। न ही कप्यूटर हैं और न ही पढ़ाने के लिए कम्प्यूटर टीचर हैं। गंजबासौदा स्थित शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की छात्रा हिमांशी रघुवंशी का कहना है कि अगर किसी छात्र को कम्प्यूटर सीखना हो तो उसे बाहर से कोचिंग लेनी पड़ती है।


  • जबलपुर: वहीँ जबलपुर के शासकीय महारानी लक्ष्मीबाई माध्यमिक कन्या शाला का हाल ये है कि वह कम्प्यूटर लैब तो है...लेकिन किसी काम का नहीं। क्यूँकि वो ज्यादातर बंद ही पड़ा रहता है। द सूत्र की टीम स्कूल के कम्प्यूटर लैब  का ताला खोलकर देखा तो लैब खाली  पड़ा हुआ था। ऐसा लग रहा था जैसे काफी वक़्त से उसका उपयोग न हुआ हो।

  • शाजापुर: यहीं हाल शाजापुर के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय स्कूल में भी था। यहाँ भी कंप्यूटर लैब पर ताला जड़ा हुआ मिला और शिक्षक भी बस ऐसे ही  बैठे हुए दिखाई दिए।कम्प्यूटर शिक्षा के बारे में जब जबलपुर के शासकीय महारानी लक्ष्मीबाई माध्यमिक कन्या शाला की प्रिंसिपल प्रभा मिश्रा से बात की गई, तो उन्होंने पेरेंट्स द्वारा बच्चियों को स्कूल न भेजने की बात कहते हुए इसका पूरा जिम्मा बच्चियों के पालको पर ही डाल दिया।



  • कोरोना महामारी के दौरान डिजिटल एजुकेशन अफ़्फोर्ड न कर पाने की वजह से कई लड़कियाँ हुई ड्रापआउट



    महिला बाल विकास से जुड़ी बच्चों की एक संस्था, बाल भवन की मोहिनी मोघे का MP में लड़कियों स्कूलों से ड्रापआउट होने को लेकर  कुछ और ही कहना है। उनका कहना है कि कोरोना महामारी के दौरान बच्चों की पढ़ाई डिजिटल के माध्यम से कराई जाने लगी। जो बच्चे मोबाइल या लैपटॉप का खर्च वहां कर सकते थे, वो तो आगे पढ़ते रहे...लेकिन गरीब बच्चे पढ़ाई से दूर हो गए। और यही बच्चे और बड़ी संख्या में बच्चियाँ स्कूल से ड्रॉपआउट हुईं। अब यहाँ सवाल ये उठता है कि CM राइस, उत्कृस्ट विद्यालय,डिजिटल एजुकेशन और स्मार्ट क्लासेज के दावे करने वाली करती सरकार लगभग 96 फीसदी स्कूलों में बच्चों-बच्चियों के लिए कंप्यूटर क्यों उपलब्ध नहीं करवा पा रही है?



    किताबों और लाइब्रेरी की कमी




    • वहीँ किताबों की कमी और लाइब्रेरी को लेकर भी बच्चों की बड़ी समस्याएँ बनी हुई है। शाजापुर के एमएलबी विद्यालय में लाइब्रेरी, कंप्यूटर कक्ष और लैब...तीनों ही मौजूद नहीं थे। छात्राओं से जब बात की तो उन्होंने बताया कि लाइब्रेरी के लिए उन्हें पुराने स्कूल की बिल्डिंग में जाना पड़ता है।


  • वही ज्योति नगर स्थित शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय स्कूल में भी लाइब्रेरी मौजूद नहीं है। इससे छात्र-छात्राओं को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।



  • वैसे आपको बता दें कि 1966 में 24 जनवरी को ही, इंदिरा गांधी ने पहली बार प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला था। इसीलिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी ने 24 जनवरी को महिला सशक्तीकरण के दिन के रूप में चुना था। और 2008 से 24 जनवरी को ही राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने की शुरुआत महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने की थी। बहरहाल, लड़कियों के लिए शिक्षा-सम्बन्धी दिक्कतों के बारे में और उनके स्कूल न आने को लेकर द सूत्र ने राज्य शिक्षा केंद्र के आयुक्त धनराजू एस, विदिशा जिला शिक्षा अधिकारी अतुल कुमार मोदगिल से और शिक्षा मंत्री इन्दर सिंह परमार से बात की। जानिए तीनों का क्या कहना है:



    डिजिटल डिवाइड का प्रॉब्लम पूरे राज्य में है: धनराजू एस, आयुक्त, राज्य शिक्षा केंद्र



    "डिजिटल डिवाइड का प्रॉब्लम पूरे राज्य में है...और MP में थोड़ा ज्यादा है। पर हम इसपर काम कर रहे हैं। हमने 2500 ICT कम्प्यूटर लैब्स प्रोक्योर करने के तैयारी की है। और 600 स्मार्ट क्लासेस भी जोड़ रहे हैं। आने वाले दिनों में स्थिति बेहतर होगी। ऐसा नहीं है कि लाइब्रेरी नहीं है...लाइब्ररी में पुस्तकें भी है...पर चैलेंज ये है कि उन्हें बच्चों को पढ़ाया जा सके।"



    8वीं से 9वीं में स्टूडेंट्स के ट्रांजीशन में कमी: अतुल कुमार मोदगिल, पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी, विदिशा



    "जिलों में विदिशा जिले के ख़राब परफॉरमेंस का मुख्य कारण है 8वीं से 9वीं में स्टूडेंट्स के ट्रांजीशन में कमी। 8वीं  के जितने भी बच्चें पास होते हैं वो 9वीं में एडमिशन नहीं ले पा रहे हैं। और इसी के कारण विदिशा का शिक्षा के क्षेत्र में ग्राफ नीचे गया है। पिछले 2 साल तो COVID-19 के कारण 8वीं से 9वीं में स्टूडेंट्स का ट्रांजीशन टारगेट पूरा नहीं हो पाया। COVID-19 के वजह से 8वीं के कुछ बच्चों के परिवार पलायन कर गए जिनका विभाग को पता नहीं चल पाया। वहीँ लटेरी क्षेत्र में  8वीं  की बच्चियाँ 9वीं में इसलिए एडमिशन नहीं ले पाती है क्यूंकि 9वीं के लिए हाई स्कूल उनके गाँव से दूर पड़ता है...और रास्ते में बीच में जंगल पड़ता है।जिसकी वजह से उनके माँ-बाप सुरक्षा कारणों से उन्हें नहीं भेजते। इसके लिए प्रशासन ने कनवेयन्स के सुविधा भी इन्हें दी पर कुछ ख़ास फायदा नहीं हुआ।



    स्कूलों में टॉयलेट्स के लिए फण्ड जारी, गुड़वत्तापूर्ण शिक्षा की लिए सरकार प्रतिबद्ध: शिक्षा मंत्री इन्दर सिंह परमार



    "हमने जिन-जिन स्कूलों में टॉयलेट्स नहीं हैं, उसके लिए फण्ड जारी किये हैं। आने वाले 2-3 महीनों में ये समस्या सुलझ जाएगी। हम गुड़वत्तापूर्ण शिक्षा की लिए प्रतिबद्ध हैं, इसीलिए हमने 5वीं और 8वीं क्लास में बोर्ड्स की परीक्षा शुरू की है।"



    यहाँ आपको बता दें कि शाजापुर राज्य शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार का ग्रह जिला है। उसके बावजूद यहाँ भी शिक्षा का स्तर है निम्न ही है। अब बड़ा सवाल यह है कि सरकार, WCD और शिक्षा विभाग बच्चियों को बचाने की,पढ़ाने की और उन्हें आगे बढ़ने की बड़ी-बड़ी बातें तो कर रहे हैं। पर क्या वो  उन्हें वो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक दे पा रहे हैं, जिसकी  वो हक़दार हैं? राज्य की शिक्षा व्यवस्था और लड़कियों-महिलाओं के कल्याण के लिए जिम्मेदार विभागों पर ये सवाल हम नहीं ASER, 2022 के पोल खोलती रिपोर्ट और राज्य के स्कूलों की जमीनी हालात उठा रहे हैं। 



    (इनपुट: ओ पी नेमा, जबलपुर/ अविनाश, गंजबासौदा/ सय्यद आफताब, शाजापुर)


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