मप्र में मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना विवाद, स्कीम तो बना दी, पर क्लीयर गाइडलाइंस की कमी के चलते सामने आ रहे डिंडौरी जैसे मामले

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Ruchi Verma
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मप्र में मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना विवाद, स्कीम तो बना दी, पर क्लीयर गाइडलाइंस की कमी के चलते सामने आ रहे डिंडौरी जैसे मामले

BHOPAL: मध्य प्रदेश के डिंडौरी में मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना के तहत महिलाओं के प्रेग्नेंसी टेस्ट का मामला बेहद गर्माया हुआ है। इसपर राजनीति भी जोरशोर से चल रही है। पर आपको जानकर ये हैरानी होगी कि मप्र में सरकारी सामूहिक विवाह के आयोजन के दौरान प्रेग्नेंसी टेस्ट का ये कोई पहला मामला नहीं है। पिछले 15 सालों में प्रेग्नेंसी टेस्ट कॉन्ट्रोवर्सी कई बार हुई है। अब सवाल ये उठता है कि ऐसा क्या कारण है कि मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना में एक ही तरह की कंट्रोवर्सी बार-बार क्यों हो रही है? और आखिरकार सरकार इस मामले को एक बार ठोस कदम उठाकर सुलझाती क्यों नहीं है? द सूत्र ने इस पूरे मामले में पड़ताल की और एक्सपर्ट्स से जाना कि आखिरकार गड़बड़ी कहां हो रही है। तो ये खुलासा हुआ कि योजना के नियम ही साफ नहीं है, इसलिए हर जिले के कलेक्टर अपने तरीके से इस योजना को हांकते हैं और इन्हें रोकने वाला कोई नहीं। पूरा मामला समझने के लिए पढ़िए ये रिपोर्ट..





केस 1: जगह- मध्य प्रदेश का बैतूल जिला/ साल- 8 जून 2013





मामला बैतूल जिले के चिचोली ब्लॉक के हरदू गांव में मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत सामूहिक विवाह के दौरान कुछ दुल्हनों के गर्भवती होने के शक के बाद, 400 भावी दुल्हनों का प्रेगनेंसी टेस्ट का सनसनीखेज मामला सामने आया। जिसमें से कम-से-कम 9 दुल्हनों के गर्भवती पाए जाने के बाद उनका रजिस्ट्रेशन रद्द कर उनकी शादी रोक दी गई। साथ ही उन्हें दिए गए दहेज के सभी सामान वापस ले लिए गए। इस शादी में करीब 400 जोड़े मौजूद थे, जिनमें ज्यादातर आदिवासी थे।





एक्शन जब ये सब हुआ, उस समय की स्थानीय विधायक गीता उइके (भाजपा), विजय शाह और अन्य सरकारी अधिकारी भी उपस्थित थे। मामले को लेकर महिलाओं और समाज में जब नाराजगी बढ़ी तो गीता उइके ने कहा कि वह उन नियमों को पता करेंगी, जिनके तहत सामूहिक विवाह में आई महिलाओं का परीक्षण किया गया और इसके बाद इस मामले को जिला कलेक्टर के समक्ष उठाएंगी। हालांकि, कलेक्टर ने किसी भी तरह के वर्जिनिटी या प्रेगनेंसी टेस्ट से इंकार करते हुए कहा कि कुछ जोड़े अनुचित तरीकों से योजना का लाभ लेने की कोशिश कर रहे थे, और बस इसलिए उन्हें रोका गया। इसके बाद तत्कालीन कलेक्टर राजेश प्रसाद मिश्र ने मामले की जांच के आदेश दिए और कहा कि कहा कि रिपोर्ट के आधार पर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।





केस  2: जगह- डिंडोरी जिला/ साल- 12 जून 2013





मामला बैतूल जिले में आदिवासी लड़कियों के गर्भावस्था परीक्षण की रिपोर्ट आने के कुछ दिनों बाद ही दक्षिण-पूर्व डिंडोरी जिले के बजक गांव से 40 और आदिवासी लड़कियों के प्रेगनेंसी टेस्ट का मामला सामने आया। यहाँ पर भी ये सब मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के ही तहत 13 जून 2013 होने वाले सामूहिक विवाह समारोह से एक दिन पहले यानी 12 जून, 2013 हुआ। जब 40 आदिवासी लड़कियों का यूरिन सैंपल एकत्र करके प्रेगनेंसी टेस्ट किया गया, ऐसे आरोप लगे। अधिकारियों ने इन लड़कियों के आवेदनों को भी खारिज कर दिया। इस मामले में तत्कालीन मेडिकल अधिकारी डॉ. रूपम मित्रा ने माना कि शादी समारोह से पहले 40 लड़कियों के यूरिन सैंपल लिए गए थे. 40 लड़कियों में से करीब 5 लड़कियां प्रेग्नेंसी टेस्ट में पॉजिटिव पाई गईं। साथ ही उन्होंने दावा किया कि उन्हें बजक जनपद पंचायत के अधिकारियों द्वारा मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत शादी के लिए उनकी लड़कियों की पात्रता को सत्यापित करने के लिए चिकित्सा जांच करने का निर्देश दिया गया था। और इसीलिए उनका प्रेगनेंसी टेस्ट किया गया। 





एक्शन मामले में जबलपुर के तत्कालीन संभागीय आयुक्त (राजस्व) दीपक खांडेकर ने कहा कि घटना की जांच के आदेश दे दिए गए हैं और डॉक्टर के बयान दर्ज कर आगे की कार्रवाई होगी





केस  3: जगह- शहडोल / साल- 2009





इसी तरह साल 2009 में भी शहडोल जिला प्रशासन पर भी मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के ही तहत होने वाले सामूहिक विवाह समारोह से पहले 152 भावी दुल्हनों का वर्जिनिटी और प्रेगनेंसी टेस्ट कराने के आरोप लगे। इन युवतियों में से 14 के गर्भवती पाई गई थी।





केस 4: स्थान- डिंडोरी जिला/ साल- 22 अप्रैल, 2023





मामला 2013 के 10 साल बाद डिंडोरी जिले में ही एक बार फिर से मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत युवतियों के स्वास्थ्य परीक्षण के नाम पर प्रेग्नेंसी टेस्ट कराने का मामला सामने आया है। आरोप हैं कि बजाग और करंजिया जनपदके गडसराय क्षेत्र में  मुख्यमंत्री कन्यादान योजना में रेजिस्ट्रेड 219 लड़कियों में से 4-5 का प्रेगनेंसी टेस्ट पॉजिटिव आने के बाद उनको डिस्क्वालिफाई कर दिया गया और उनकी शादी नहीं हुई। 





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इस मामले ने मध्य प्रदेश में एक बड़ा राजनीतिक विवाद उत्पन्न कर दिया है। प्रेग्नेंसी टेस्ट पर कांग्रेस विधायक ओमकार सिंह मरकाम ने कहा कि यह पूरी तरह से निजता का हनन है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ट्वीट कर कहा, "मैं मुख्यमंत्री से जानना चाहता हूं कि क्या यह खबर सच है? अगर यह खबर सच है तो किसके आदेश पर मध्य प्रदेश की बेटियों का यह घोर अपमान किया गया?" क्या मुख्यमंत्री की नजर में गरीब और आदिवासी समाज की बेटियों की कोई इज्जत नहीं है?" 





वहीँ डिंडोरी के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. रमेश मरावी ने कहा, "आमतौर पर आयु सत्यापन, सिकल सेल एनीमिया और शारीरिक फिटनेस का पता लगाने के लिए टेस्ट किए जाते हैं। उच्च अधिकारियों के कहने पर कुछ लड़कियों का प्रेग्नेंसी टेस्ट किया गया, जिनके मामले संदिग्ध थे।" उन्होंने यह भी कहा, "हम केवल टेस्ट करते हैं और निष्कर्षों की रिपोर्ट करते हैं। लड़कियों को सामूहिक विवाह योजना से बाहर करने का निर्णय स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के आधार पर सामाजिक न्याय विभाग द्वारा लिया जाता है।"





वहीं प्रशासन का बचाव करते हुए डिंडोरी के कलेक्टर विकास मिश्रा ने बताया कि गाड़ासरई में शनिवार को होने वाले सामूहिक विवाह में शामिल होने वाले 219 जोड़ों के लिए मेडिकल परीक्षण के द्वारा आनुवांशिक बीमारी ‘सिकलसेल’ की जांच कराए जाने के निर्देश दिए गए थे। उन्होंने कहा कि सिकलसेल बीमारी की जांच के दौरान चिकित्सकों ने चार युवतियों का गर्भावस्था परीक्षण किया है क्योंकि इन युवतियों ने माहवारी नहीं आने की बात बताई थी। मिश्रा ने बताया कि इसको लेकर प्रशासन स्तर से कोई निर्देश नहीं थे। यह चिकित्सकों पर निर्भर है कि वे सिकलसेल की बीमारी का पता करने के लिए क्या प्रक्रिया और जांच करवाते हैं। 





एक्शन सामाजिक न्याय विभाग ने कलेक्टर से रिपोर्ट मांगी है और उसके आधार पर ही आगे की कार्यवाही की बात कही है।





प्रेग्नेंट महिला मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना से अपात्र कैसे





ऊपर बताए मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना में प्रेगनेंसी टेस्ट के वो कुछ विवादित मामले है जिन्होंने तूल पकड़ा था। इन सभी मामलों को लेकर विधानसभा में भी सरकार से जवाब-तलब हुआ। इसमें से एक मामला 15 साल पुराना है और दो 5 साल साल पुराने। यानी मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना में तथाकथित रूप से प्रेगनेंसी टेस्ट करवाने ये विवाद नया नहीं है। मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना की शुरूआत 2006 में हुई थी, यानी योजना को भी 17 साल हो चुके हैं। पर सरकार इन  17 सालों में भी इस कंट्रोवर्सी को दूर नहीं कर पाई है। उपरोक्त सभी मामलों में सवाल उठे कि आखिरकार यदि कोई महिला प्रेग्नेंट है तो वो मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना से अपात्र कैसे हो सकती है? और क्या प्रेग्नेंट महिला की शादी नहीं हो सकती? क्या सरकार के नियम में लिखा है कन्या विवाह योजना में कुआंरी लड़कियां ही शादी के लिए पात्र है, जबकि योजना में नए नियमों के तहत विधवा महिलाओं को भी पात्र माना गया है?





बता दें, कि इस योजना में शामिल पात्र लोगों को 55 हजार रु. की आर्थिक सहायता मिलती है। पहले राशि की जगह दहेज का सामान मिलता था, पर योजना में बीते दिनों उपहार सामग्री देने में भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद सरकार ने फैसला किया कि अब दुल्हन के बैंक अकाउंट में नकद राशि दी जाएगी, ताकि वह जरूरत के हिसाब से उपहार खरीद सकें। 28 मार्च 2023 को सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण विभाग के प्रमुख सचिव प्रतीक हजेला ने आदेश दिए कि मुख्यमंत्री कन्या विवाह/ निकाह योजना में विवाह करने वाले प्रत्येक कन्या या विधवा (कल्याणी) को 55 हजार रुपए स्वीकृत किए जाएंगे। इसमें 49 हजार रुपए दुल्हन के बैंक अकाउंट में दिए जाएंगे। बाकी 6 हजार रुपए विवाह समारोह का आयोजन करने वाली संस्था या निकाय को दिए जाएंगे। अब अगर कन्या विवाह योजना की गाइडलाइन देखें तो इसमें पात्रता पाने की कुछ शर्तें जो लिखी हैं, वो इस प्रकार हैं...





कन्या विवाह योजना की गाइडलाइन और डॉक्यूमेंट्स







  • दूल्हा-दुल्हन के माता-पिता मध्यप्रदेश के मूल निवासी हो



  • दूल्हा-दुल्हन शादी की उम्र के लायक हो गए हो (21 एवं 18 वर्ष क्रमशः)


  • ऐसी महिलाएं पात्र है जिनका कानूनी रूप से तलाक हो गया हो


  • किसी भी फाइनेंनशियल बैकग्राउंड का व्यक्ति पात्र है


  • सामूहिक विवाह समारोह में शादी होने पर ही योजना का लाभ मिलेगा






  • और योजना में रजिस्टर्ड होने के लिए जो डॉक्यूमेंट्स मांगे जाते हैं वो कुछ इस तरह हैं....







    • आवासीय प्रमाण पत्र की फोटो कॉपी



  • पहचान पत्र


  • आय प्रमाण पत्र की कॉपी


  • मैरिज सर्टिफिकेट( तलाकशुदा)


  • आधार कार्ड नंबर


  • बेटी का आयु प्रमाण पत्र


  • परिवार के लोगों का बीपीएल कार्ड


  • दूल्हा और दुल्हन की तस्वीर


  • मोबाइल नंबर


  • बैंक पासबुक






  • अब योजना के इन सभी नियमों को जानने के बाद कुछ सवाल उठते हैं कि जब पात्रता की शर्तों में न तो ये लिखा है कि महिला कुंआरी होना चाहिए और न ही ये लिखा है कि महिलाओं के कुंआरेपन का पता करने के लिए कोई टेस्ट किया जाएगा। यहाँ तक कि रजिस्ट्रेशन के लिए जो डॉक्यूमेंट्स मांगे जाते हैं उसमें भी किसी तरह का मेडिकल सर्टिफिकेट भी नहीं मांगा जाता। तो फिर सरकारी सामूहिक विवाहों में प्रशासन पर प्रेग्नेंसी टेस्ट करवाने के आरोप क्यों लगते रहते हैं?





    योजना की कमियाँ और हल





    इस मामले में द सूत्र ने बात की मप्र सरकार के प्रमुख सचिव स्तर के रिटायर्ड अधिकारी से। नाम न बताने की शर्त पर  उनका कहना है कि प्रशासन ऐसे फैसले दो कारणों से लेता है। पहला, योजना में फर्जीवाड़ा रोकना क्योंकि प्रशासन की कोशिश होती है कि कन्या विवाह योजना की राशि ऐसे जोड़ों को न मिले जो पहले से शादीशुदा है। दूसरा, इस योजना की गाइडलाइन में ऐसी परिस्थितियों के लिए लिखित तौर पर कुछ नहीं है, यानी मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना के नियम इस मामले में साफ नहीं हैं। यानी सरकार ने योजना तो बना दी, लेकिन बारीक नियमों पर ध्यान नहीं दिया।  प्रमुख सचिव स्तर के रिटायर्ड अधिकारी ने योजना की कमियाँ बताई और कमियों को दूर करने के सुझाव भी दिए।  योजना की खामियां जानिये...







    1. योजना का लाभ अपात्र को न मिल जाए, इसे रोकने के लिए क्लियर गाइडलाइन न होना



  • अधिकारी सोचते हैं अपात्र को लाभ मिलेगा तो जिम्मेदार वो ही माने जाएंगे


  • इस स्थिति से बचने के लिए हर जिले का कलेक्टर अपात्रों का पता लगाने अपने मापदंड तैयार करता है


  • जैसे उम्र का पता लगाने के लिए मेडिकल टेस्ट या महिला के शादीशुदा होने का पता लगाने के लिए प्रेग्नेंसी टेस्ट


  • अब कोई व्यवस्थित गाइडलाइन तो है नहीं, इसलिए प्रेगनेंसी टेस्ट्स करवाने के जिम्मेदार और दोषी अधिकारियों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती






  • योजना में इन खामियों को दूर कैसे किया जा सकता है, इसके सुझाव भी एक्सपर्ट ने दिए जैसे....







    1. रजिस्टर्ड हितग्राही शादीशुदा है या नहीं, इसका पता लगाने के लिए मैरिज रजिस्ट्रेशन को बढ़ावा दिया जाए



  • मैरिज रजिस्ट्रेशन के आधार पर डेटाबेस तैयार किया जाए


  • साथ ही योजना में ऐसी परिस्थितियों की बारे में गाइडलाइन बेहद साफ होना चाहिए


  • अगर किसी भी तरह के मेडिकल टेस्ट जरूरी हैं, तो गाइडलाइन में शामिल हो


  • और कोई अधिकारी गाइडलाइन के खिलाफ जाकर फैसला लेता है तो उसके खिलाफ ठोस कार्रवाई हो






  • द सूत्र ने इस मामले में सामाजिक न्याय विभाग के कमिश्नर ई रमेश कुमार से भी बात की और उनसे पूछा कि आज तक योजना में ऐसी कोई क्लीयर गाइडलाइन क्यों नहीं बनाई गई है? तो उन्होंने कुछ भी कहने से साफ इंकार कर दिया। साफ है कि सरकार की योजना गरीबों को फायदा पहुंचाने की है लेकिन क्लीयर गाइडलाइन के अभाव में इस योजना के तहत गरीब आदिवासियों को मदद के नाम पर केवल मजाक ही हो रहा है और इस मजाक को होता हुआ सभी लोग देख रहे हैं। कोई कर कुछ नहीं रहा। 



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