संजय गुप्ता/योगेश राठौर, INDORE. अयोध्यापुरी कॉलोनी के करीब 400 पीड़ितों को स्कीम मुक्ति को लेकर इंदौर विकास प्राधिकरण (आईडीए) ने अनापत्ति (एनओसी) देकर बड़ी राहत दी थी। सभी को लगा कि अब कोई अड़चन नहीं और हमारी कॉलोनी वैध हो जाएगी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का वादा पूरा होगा, लेकिन अब किसी और कि नहीं बल्कि, भूमाफिया द्वारा ही कॉलोनी को वैध करने को लेकर आपत्ति लगा दी गई है। यह आपत्ति लगी है भूमाफिया दीपक मद्दा की कंपनी सिम्पलेक्स के द्वारा, जिसमें सुरेंद्र संघवी के बेटे प्रतीक संघवी और मुकेश खत्री भी डायरेक्टर है और सभी के खिलाफ जिला प्रशासन ने ही भूमाफिया अभियान में चार सौ बीसी का केस दर्ज कराया था।
क्या आपत्ति लगाई गई है भूमाफिया द्वारा
नगर निगम की कॉलोनी सेल में सिम्पलेक्स इन्वेस्टमेंट एंड मेगा फायनेंस प्रा.लि. द्वारा प्रमुख सचिव नगरीय प्रशासन विभाग और नगर निगम को अयोध्यापुरी कॉलोनी के नियमितिकरण प्रक्रिया को लेकर आपत्ति लगाई गई है। कंपनी की ओर से प्रतिनिधि शशिकांत माणे ने आपत्ति लगाई है और इसमें कहा गया है कि देवी अहिल्या श्रमिक सहकारी संस्था की ओर से संस्था की चार एकड़ जमीन संस्था ने 24 फरवरी 2007 को सिम्पलेक्स के नाम रजिस्ट्री कराई थी। नियमितिकरण की प्रक्रिया में यह जमीन भी ली गई है, यह हमारी भूमि है इसलिए इस पर अयोध्यापुरी के आवेदन पर हमें आपत्ति है।
अब नगर निगम ने क्या किया
नगर निगम ने इस आपत्ति के आधार पर जिला प्रशासन और सहकारिता विभाग को पत्र जारी कर दिया है। कॉलोनी सेल के अपर आयुक्त मनोज पाठक द्वारा यह पत्र जारी कर वस्तुस्थिति के साथ पूरी जमीन की जानकारी, उनका अभिमत सभी कुछ मांगा गया है। अब जब तक यह सभी जानकारी नहीं आ जाती है, नगर निगम द्वारा कॉलोनी के नियमितीकरण को मंजूर नहीं किया जाएगा।
इसके पहले साल 2008 में भी लगी थी आपत्ति
इसके पहले भी नगर निगम ने साल 2008 में क़ॉलोनी को नियमितीकरण की प्रक्रिया की थी, इस दौरान भी कंपनी ने आपत्ति लगाई थी जिसे निगम दरकिनार कर चुका है। लेकिन बाद में उस समय अन्य कारणों से यह प्रक्रिया रूक गई थी। अब इन आपत्तियों को नगर निगम इंटरटेन करते हुए विभागों से जवाब मांग रहा है।
जब दोहरी रजिस्ट्री पर खुद प्रशासन ने ही कराई है एफआईआर
कॉलोनी के पीड़ित और जानकारों का कहना है कि इस आपत्ति को इंटरटेन किया ही नहीं जाना चाहिए। इसकी बड़ी वजह है कि फरवरी 2021 में भूमाफिया अभियान के दौरान खुद जिला प्रशासन मान चुका है कि यहां फर्जी तरीके से दोहरी रजिस्ट्री कराई गई है, इस पर थाने में कंपनी के डायरेक्टरों के खिलाफ एफआईआर कराई। सहकारिता विभाग सालों पहले विविध रिपोर्ट में, प्रशासन की रिपोर्ट में यहां तक कि मप्र विधानसभा में एक सवाल के जवाब में लिखकर दे चुका है कि संस्था ने यह जमीन की बिक्री बिना सहकारिता विभाग के मंजूरी की है और यह दोहरी रजिस्ट्री प्लाटधारकों के प्लाट जिनकी रजिस्ट्री पहले हो चुकी है, उस पर की गई है। फिर निगम इनकी आपत्तियों को क्यों इतना इंटरटेन कर रहा है।
150 करोड़ से ज्यादा की है जमीन, मात्र 1.80 करोड़ में खरीदी थी
आज जिस जगह यह जमीन है, वहां दस हजार रुपए प्रति वर्गफीट और इससे ज्यादा का भाव है, यानी चार एकड़ जमीन की कीमत कम से कम 150 करोड़ से ज्यादा की है। जबकि यह जमीन का सौदा साल 2007 में मात्र चार करोड़ में किया गया था, इसमें भी भुगतान मात्र 1.80 करोड़ रुपए का किया गया और दो करोड़ 20 लाख तो संस्था को कभी मिले ही नहीं। यानि भूमाफिया ने कौड़ियों के भाव यह जमीन हथिया ली थी।
बॉबी छाबड़ा के ड्राइवर ने जमीन बेची
इस जमीन के खेल में एक और भूमाफिया पर्दे के पीछे रहे हैं, उनका नाम है बॉबी छाबड़ा। इनके ड्राइवर रणवीर सिंह सूदन थे जो देवी अहिल्या संस्था के अध्यक्ष बन गए थे, इन्होंने ही यह जमीन सिम्पलेक्स को बेच डाली, इसकी जो राशि आई वह भी बॉबी के दखल वाले ट्रांसपोर्ट बैंक की शाखा में ही जमा हुई और वही से निकाली गई। जिसका संस्था के पास कोई हिसाब नहीं है।
संस्था की करीब छह एकड़ जमीन दूसरों के नाम
देवी अहिल्या संस्था की अयोध्यापुरी करीब 15.77 एकड़ में है। साल दो हजार से इसके नियमितीकरण के प्रयास चल रहे हैं और नगर निगम ने ही इसके विकास काम के लिए संस्था को मंजूरी दी थी, जिसके बाद यहां विकास काम हुए। लेकिन साल 2002 में और फिर साल 2008 में नियमितीकरण की प्रक्रिया किसी ना किसी वजह से अट गई। इसी दौरान बॉबी छाबड़ा का दखल इसमें हुआ और उनके ड्राइवर रणवीर सिंह सूदन संस्था अध्यक्ष बने, जिसने जमीन दूसरों को बेचकर दोहरी रजिस्ट्री शुरू कर दी। सिम्पलेक्स के पास संस्था की चार एकड़ है तो वहीं डेढ़ एकड़ जमीन केएस सिटी के पास है। इसके अलावा भी 23-23 हजार वर्गफीट के टुकड़े दूसरों के नाम पर बिक गए हैं। इसके साथ ही एक एकड़ जमीन करीब पड़ोस में शांकुतल संस्था के परिसर में दबी है। जिसे कब्जा से मुक्त कराना है। यह जमीन मिले तो संस्था के बचे हुए प्लाटधारकों को भी प्लाट मिलने का रास्ता साफ हो जाए।