डीएसपी के तबादले से खुली स्कॉलरशिप घोटाले की परतें; SC-ST के छात्र जो कॉलेज में पढ़ें ही नहीं उनकी भी राशि निकाली 

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Jitendra Shrivastava
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डीएसपी के तबादले से खुली स्कॉलरशिप घोटाले की परतें; SC-ST के छात्र जो कॉलेज में पढ़ें ही नहीं उनकी भी राशि निकाली 

GWALIOR. ग्वालियर में साइंस कॉलेज के चर्चित स्कॉलरशिप घोटाले के बाद आदिम जाति कल्याण विभाग में इसी तरह का बड़ा और व्यापक घोटाला हुआ है। इस मामले का खुलासा पुलिस के एक डीएसपी के ट्रांसफर से हुआ है। इस मामले में जांच अधिकारी (आईओ) रहे डीएसपी ने अपना तबादला होने पर अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक ग्वालियर जोन को पत्र लिखकर बताया है कि उनका तबादला शिक्षा माफिया के दबाव में किया गया है। चूंकि वे इस मामले की जड़ तक जाने का प्रयास कर रहे थे इसीलिए जांच को दबाने के लिए घोटाले में शामिल माफिया ने सरकार में अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर उन्हें पद से हटवाने में सफल हो गए हैं। इस घोटाले में कई प्रायवेट कालेज संचालकों ने उन छात्र-छात्राओं के नाम से स्कॉलरशिप निकलवा ली,जो उन कॉलेज में कभी पढ़े ही नहीं। निजी कॉलेज संचालक, स्कॉलरशिप जारी करने वाले अधिकारियों-कर्मचारियों और बैंक मैनेजर की मिलीभगत से किए इस घोटाले में दूसरे कॉलेज के छात्रों की स्कॉलरशिप भी निकलवाकर करीब 01 करोड़ रुपए अपने खाते में ट्रांसफर करवा लिया।



एफआईआर दर्ज होते ही अकाउंट में आ गई राशि 



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ग्वालियर में अनुसूचित जाति कल्याण शाखा (अजाक) में पदस्थ रहे डीएसपी मुनीश राजौरिया ने मध्यप्रदेश पुलिस के बड़े अफसरों को पत्र लिखकर कहा है कि रेंज आईजी कार्यालय में उनका तबादला शिक्षा माफिया के दबाव में किया गया है। ये पत्र उन्होने करीब 04 महीने लिखा था जो मीडिया में हाल ही में सामने आया है।  जिन-जिन कॉलेज माफिया के बैंक अकाउंट में स्कॉलरशिप की राशि पहुंची है, उन्होंने ही इस पूरी जांच को दबाने के लिए उन्हें अजाक डीएसपी के पद से हटवाया है। इस घोटाले को दबाने की कोशिश का अंदाजा भी इस बात से लगाया जा सकता है कि छात्रा की शिकायत पर एफआईआर दर्ज होते ही उसके अकाउंट में चालान के जरिए स्कॉलरशिप की राशि तत्काल जमा करा दी गई। इस पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं कि जब उसकी स्कॉलरशिप राशि किसी और अकाउंट में जा चुकी थी, तो अफसरों ने किस नियम से उसके अकाउंट में रुपए भेजे? हालांकि ग्वालियर जोन के एडीजी डी.श्रीनिवास वर्मा ने मीडिया से चर्चा डीएसपी मुनीश राजौरिया की ओर से कोई पत्र मिलने की बात से इनकार किया है। उनका कहना है कि डीएसपी रैंक के अधिकारी का तबादला सरकार के स्तर पर होता है।  



ऐसे हुआ घोटाले का खुलासा 



दरअसल 2017 में  मुरैना की कुसुम जाटव नाम की लड़की ने ग्वालियर के अजाक थाने में शिकायत दर्ज कराई कि उसे अनुसूचित जाति कल्याण विभाग की योजना के तहत 27 हजार रुपए की स्कॉलरशिप मिलनी थी। विधिवत आवेदन करने के बाद भी स्कॉलरशिप न मिलने पर जब उसने जय माता दी  कॉलेज और इंटरनेट से जानकारी जुटाई तो पता चला कि उसकी स्कॉलरशिप किसी और खाते में जा चुकी है। उसे बताया गया कि आप तो प्रखर कॉलेज ऑफ नर्सिंग से स्कॉलरशिप निकलवा चुकी हैं। कम्प्यूटर में दिख रहा है कि समग्र आईडी 128225456 से कुसुम पुत्री कृष्णा जाटव ने ग्वालियर में कर्नाटक बैंक लिमिटेड ब्रांच से अकाउंट नंबर 2672500100524400 पर स्कॉलरशिप प्राप्त कर ली है। ये सुनकर कुसुम अवाक रह गईं। इसके बाद कुसुम ग्वालियर के तत्कालीन आईजी अनिल कुमार के पास पहुंची। आईजी के आदेश पर अजाक थाने में 420 के तहत रिपोर्ट दर्ज कराई। मामला दर्ज होते ही उसके खाते में चालान के जरिए स्कॉलरशिप के 27 हजार 70 रुपए पहुंच गए। इसके साथ ही ग्वालियर के आदिम जाति कल्याण विभाग के सहायक आयुक्त के पत्र के आधार पर मामले की जांच बंद कर दी गई।



जांच बंद होने पर फिर एसपी के यहां शिकायत



अपने बैंक खाते में स्कॉलरशिप पहुंचने के बाद भी कुसुम संतुष्ट नहीं हुईं क्योंकि वे जानना चाहती थी कि आखिर उसकी राशि किसी और के खाते में कैसे जा सकती है। आखिर गड़बड़ कहां हुई थी? इस मामले की आगे जांच के लिए उन्होंने एसपी ग्वालियर कार्यालय में  शिकायत दर्ज कराई। शिकायत में कुसुम ने लिखा कि जिस समग्र आईडी और बैंक अकाउंट के जरिए मेरे पैसे निकाले गए हैं, वो उनके थे ही नहीं। उनमें बस कुसुम और उनके पिता का नाम सही था। स्कॉलरशिप में फ्रॉड की जानकारी लगते ही कुसुम ने इंटरनेट पर उस फर्जी समग्र आईडी के बारे में पता लगाया तो पता चला कि समग्र आईडी 128225456 की परिवार आईडी 26913429 में परिवार के मुखिया के रूप में किसी  इमरती बाई सहरिया का नाम दर्ज है। आईडी में कुसुम जाटव के नाम की जगह कुसुम सहरिया लिखा हुआ है।



जांच में पता चला 44 स्टूडेंट्स के नाम पर फर्जी बैंक अकाउंट 



एसपी के निर्देश पर 27 अप्रैल 2017 को अजाक के तत्कालीन डीएसपी राकेश कुमार गुप्ता ने एफआईआर दर्ज की। जांच का जिम्मा सब इंस्पेक्टर लालाराम को सौंप दिया गया। मामले की गहराई से जांच की गई। पता चला कि प्रखर स्कूल ऑफ नर्सिंग के प्रपोजल के बेस पर कुसुम जाटव के नाम की स्कॉलरशिप निकली है। प्रखर स्कूल ऑफ नर्सिंग के प्रिंसिपल के लेटर में कुसुम का दूसरा खाता नंबर और आईएफएससी कोड दिया गया था। ये धोखाधड़ी सिर्फ कुसुम के साथ ही नहीं हुई दूसरे 44 छात्रों के साथ भी हई थी। इस तरह के 44 बैंक अकाउंट फर्जी थे। इन सभी अकाउंट में 27-27 हजार रुपए के हिसाब से पैसा ट्रांसफर किया गया था। असली स्टूडेंट्स के खाते में पैसे गए ही नहीं थे। ये घपला 11 लाख 88 हजार रुपए का था।



बैंक खाते में न फोटो सही मिले न हस्ताक्षर 



सभी फेक अकाउंट्स इसी बैंक आफ इंडिया की सिटी सेंटर शाखा में खोले गए थे। पुलिस ने सभी अकाउंट्स की डिटेल निकलवाई। असली छात्रों से पूछताछ की, तब पता चला कि खाते के नाम वाले स्टूडेंट्स के फोटो सही नहीं लगे हैं, उनके हस्ताक्षर भी नहीं हैं। सभी अकाउंट फर्जी हैं। पुलिस ने बिना देरी किए बैंक मैनेजर राधेश्याम गुप्ता समेत बैंक कर्मचारी अशोक कुमार, नेहा अगीचा, रचना चौधरी और निखिल को धोखाधड़ी के मामले में आरोपी बना लिया।



घोटाले के मास्टरमाइंड और उसके कम्प्यूटर ऑपरेटर को पकड़ा



आरोपी बैंक कर्मियों से पूछताछ कि आधार पर पुलिस आदिम जाति कल्याण विभाग के सहायक आयुक्त के दफ्तर पहुंची। यहां स्कॉलरशिप प्रभारी ओमप्रकाश शर्मा से पूछताछ की। पता चला कि ओमप्रकाश के कम्प्यूटर ऑपरेटर रवि महौर के पास स्कॉलरशिप जारी करने की जिम्मेदारी थी। पुलिस ने इन दोनों को भी मामले में आरोपी बना लिया। इसके साथ ही संबंधित निजी कॉलेजों के प्रस्ताव के आधार पर मंजूरी और राशि जारी करने का ऑर्डर जारी करने वाले सहायक आयुक्त अमरनाथ सिंह को भी आरोपी बनाया गया। 



शुरुआती जांच में एक करोड़ का घोटाला सामने आया 



पुलिस ने संबंधित सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर घोटाले के सबूत जुटामें में लग गई। शुरुआती जांच में ही पुलिस को करीब 01 करोड़ रुपए के घोटाले की जानकारी लगी। पुलिस के आरोप पत्र के आधार पर कोर्ट ने आदिम जाति कल्याण विभाग के तत्कालीन सहायक आयुक्त को 25 लाख रुपए जमा करने के बाद रिहाई का आदेश दे दिया। इसी तरह कोर्ट ने जमानत पर रिहाई के लिए बैंक ऑफ इंडिया, सिटी सेंटर के बैंक मैनेजर को 15 लाख रुपए, बैंक कर्मी अशोक कुमार, नेहा अगीचा, रचना चौधरी और निखिल को 15-15 लाख रुपए रिकवरी के रूप में जमा करने पर रिहाई करने के आदेश दिए। स्कॉलरशिप प्रभारी ओमप्रकाश को 5 लाख रुपए, कम्प्यूटर ऑपरेटर रवि माहौर को 01 लाख रुपए जमा कर रिहाई के आदेश दिए। सभी ने आदिम जाति कल्याण विभाग के नाम पर राशि जमा की।



जांच का दायरा बढ़ने पर केस EOW में ट्रांसफर करा दिया



डीएसपी मुनीश राजोरिया ने अपनी चिट्ठी में लिखा है कि जब घोटाले की जांच गहराई से शुरू की गई तो माफिया ने दबाव बना कर पूरे मामले को आर्तिक अपराध शाखा(EOW) के पास ट्रांसफर करवा दिया। इसके चलते कई दिनों तक जांच रुकी रही। कुछ दिनों बाद मैंने फिर जांच शुरू कर दी। अखिलेश गौतम समेत कुछ और आरोपियों की गिरफ्तारियां हुईं। कॉलेज समितियों के खाते में कई ट्रांजेक्शन मिले। डीएसपी ने आगे लिखा कि हमें ये ट्रांजेक्शन संदिग्ध लगे। हम ये जांच साल 2022 में कर रहे थे। 9 नवंबर 2022 को हमने पिछड़ा वर्ग एवं अल्प संख्यक विभाग के सहायक आयुक्त से 209 छात्रों की जानकारी और रिकॉर्ड्स उपलब्ध कराने को कहा।



माफिया ने जांच अधिकारी का ट्रांसफर करा दिया



अपनी चिट्ठी में डीएसपी राजोरिया ने आगे लिखा है कि जैसे ही इस बात की जानकारी आईटीएस कॉलेज के संचालक विवेक भदौरिया को लगी। उसने अपने राजनीतिक  प्रभाव का इस्तेमाल करके पूरी जांच रुकवा दी। मामले की डायरी पुलिस अधीक्षक ग्वालियर के पास भेजी गई लेकिन माफिया ने अपने प्रभाव से उनका ट्रांसफर नवंबर 2022 में  पुलिस महानिरीक्षक कार्यालय ग्वालियर में करा दिया गया। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि वे घोटाले और इससे जुड़े तारों को पूरी तरह से समझ चुके थे। इससे  इस घोटाले की व्यापकता का खुलासा होता और कई रसूखदार लोग बेनकाब होते।



12 साल पहले भी हुआ था स्कॉलरशिप घोटाला



बता दें कि ग्वालियर में इससे पहले भी 2010-12 के दौरान मॉडल साइंस कॉलेज द्वारा 06 निजी कालेज को अवैधानिक रूप से करीब 44.50 लाख रुपए की स्कॉलरशिप राशि का भुगतान किए जाने का घोटाला सुर्खियों में आ चुका है। इस घोटाले में कॉलेज के तत्काली प्रिंसिपल की भूमिका पर सवाल उठे थे। उन्होंने निजी कालेजों के बीबीए,बीएससी एवं एमएससी के छात्रों को निर्धारित फीस से ज्यादा राशि का भुगतान कर कालेज संचालकों को फायदा पहुंचाया था। इस मामले की जांच भी ईओडब्यू को सौपी गई थी। 


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