BHOPAL: मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में एक महीने यानि 27 दिनों के अंतराल पर दो चीतों की मौत ने चीता प्रोजेक्ट को तगड़ा झटका दिया है। इन मौतों ने चीता प्रोजेक्ट जैसी महत्वाकांक्षी परियोजना की सफलता पर तो सवाल खड़े किये ही हैं, साथ ही वन विभाग के अफसर भी सवाल-जवाब के घेरे में आ गए हैं। 6 वर्षीय अफ़्रीकी चीते उदय की रविवार को हुई मौत से पहले बीते 27 मार्च को एक नामीबियाई मादा चीता साशा की भी मौत डीहाईड्रेशन और किडनी की समस्या से हो चुकी है। हालाँकि, मुख्य वन संरक्षक जेएस चौहान के मुताबिक़ चीता उदय की मौत के सही कारणों का पता तो पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही चल पाएगा। द सूत्र ने बात की मध्य प्रदेश के PCCF जे एस चौहान से और चीता प्रोजेक्ट के वेटरनरी-वाइल्डलाइफ स्पेशलिस्ट एड्रिअन टोडरिफ से और जाना क्या हैं शाशा और उदय की मौत के बाद चीता प्रोजेक्ट के हालात और पता किये प्रोजेक्ट के संदेह में आने के कारण। द सूत्र ने की पूरे मामले की पड़ताल में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं कि करोड़ों रुपए के चीता प्रोजेक्ट को अब फण्ड की कमी आ पड़ी हैं। क्या हैं पूरा मामला, पढ़िए द सूत्र की इस रिपोर्ट में.....
शाशा और उदय की मौत के बाद चीतों की संख्या घटकर हुई 22
नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से कूनो नेशनल पार्क में 20 चीते लाए गए थे। 29 मार्च को आशा चीता ने 4 शावकों को जन्म दिया। फिर चीतों का कुनबा बढ़कर 23 हो गया था।हालाँकि, पहले शाशा और अब उदय की मौत के बाद चीतों की संख्या घटकर 22 बची है। शाशा नामीबिया से कुनो लाए गए 8 चीतों में से एक थी। तो वहीँ उदय दक्षिण अफ्रीका से कूनो नेशनल पार्क लाए गए 12 चीतों में से एक था। उदय की की मौत से सबसे पहला और बड़ा सवाल ये कड़ा हुआ हैं कि जब चीतों पर लगातार निगरानी रखी जा रही है, तो आखिर ऐसा क्या हुआ कि जो चीता उदय शनिवार को बिलकुल स्वस्थ था, उसकी अचानक मौत हो गई? बता दें कि उदय शनिवार को बिलकुल स्वस्थ था, लेकिन रविवार सुबह सुस्त मिला। उसका इलाज शुरू किया गया, लेकिन शाम चार बजे उसकी मौत हो गई।
उदय की मौत से हमारे लिए भी धक्के और आर्श्चर्य के रूप में सामने आई हैं, तस्वीर डिटेल्ड पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद ही साफ़ होगी: जे एस चौहान, PCCF, MP
उदय की अचानक मौत और चीता प्रोजेक्ट पर उठे संशय पर मध्य प्रदेश के PCCF जे एस चौहान ने द सूत्र को बताया, "ऐसा नहीं हैं कि चीता प्रोजेक्ट फेल हो रहा हैं। शाशा की मौत किडनी डैमेज की वजह से हुई थी, जो बीमारी उसको कुनो लाने से पहले से ही थी। हालाँकि उदय की मौत से हमारे लिए भी धक्के और आर्श्चर्य के रूप में सामने आई हैं कि एक दिन पहले उसकी बीमारी का पता चलता हैं और दुसरे दिन उसकी मौत हो जाती हैं। हम भी इंतज़ार कर रहे हैं इस बात की आखिर उसकी मौत किस कारण से हुई। डिटेल्ड पोस्टमार्टम रिपोस्ट आने के बाद ही ये बताया जा सकेगा कि चीते उदय की मौत क्यों हुई। "
इस सवाल कि जब वन विभाग के अधिकारियों की टीम 24 घण्टे इन चीतों की निगरानी का दावा करती हैं, तो वो उदय की ख़राब स्थिति का पता पहले क्यों नहीं लगा पाई और क्या चीतों की निगरानी में और उनके मेडिकल रूटीन में लापरवाही हुई हैं?, पर जे एस चौहान का कहना हैं कि, "चीतों की सेहत पर ध्यान रखने के लिए हमारे पास प्रोटोकॉल के तहत डिजीज-रिस्क एनालिसिस और चीता एक्शन प्लान हैं, जिसके मुताबिक़ हम कार्य करते हैं। ऐसा कहीं भी प्रेस्क्राइब नहीं हैं कि चीतों का हर सफ्ताह मेडिकल चेकअप हो, ये मुश्किल हैं। वाइल्ड एनिमल का ब्लड चेकअप और मेडिकल टेस्ट सिर्फ जरुरत पड़ने पर ही लिया जाता हैं। हमारे लिए उनकी दिन की एक फोटो/विसुअल जरुरी हैं, जिससे हमें चीतों की रोज की एक्टिविटी और हेल्थ कंडीशंस का पता चलते रहे। चीतों के पीछे हमारी टीम 24 घंटे रहती हैं। तभी तो हम ओबान को वापस ला पाए।"
1 चीते की निगरानी के लिए 9 कर्मचारियों की जरुरत
जे एस चौहान तो ये दावा कर रहें हैं कि उनकी टीम 24 घण्टे चीतों पर निगरानी रख रही हैं, पर एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ''हमें एक चीते पर चौबीसों घंटे नजर रखने के लिए नौ कर्मचारियों की जरूरत है। और हमारे पास पर्याप्त लोग नहीं हैं।''
बेहतर मॉनिटरिंग की जरुरत: एड्रिअन टोडरिफ, प्रोजेक्ट के वेटरनरी-वाइल्डलाइफ स्पेशलिस्ट
द सूत्र से बातचीत में एक्सपर्ट्स के कयास हैं कि टॉक्सिसिटी की वजह से उदय की मौत हुई हो सकती हैं। द सूत्र ने जब प्रोजेक्ट के वेटरनरी-वाइल्डलाइफ स्पेशलिस्ट एड्रिअन टोडरिफ से बात की तो उन्होंने बताया कि अभी तो यही लग रहा हैं कि चीते उदय की मौत हृदय एवं फेफड़ों के काम बंद करने के कारण हुई। ऐसा बोटुलिज़्म क्लोस्ट्रीडियम विषैलेपन की वजह से होता है। बोटुलिज़्म क्लोस्ट्रीडियम बोटुलिनम जीवाणु द्वारा उत्पादित विषाक्त पदार्थों के कारण होने वाला एक दुर्लभ जहर है। बहुत संभावना हैं कि उदय ने जो पानी पिया उसमें ये जहरीला जीवाणु हो। ये संभावना कि इस तरह का ख़तरा तो फिर बाकी चीतों के लिए भी बना हुआ हैं...इसपर एड्रिअन टोडरिफ ने इंकार नहीं किया। यानी तस्वीर साफ़ हैं कि अगर बेहतर मॉनिटरिंग हो तो शायद उदय की तरह आगे किसी मौत को बचाया जा सकेगा।
बाड़े में लम्बे वक़्त रहने से चीते स्ट्रेस में होने का अंदेशा, चीतों को अब खुले में छोड़ना जरुरी
चीतों की मॉनिटरिंग से मामला आता हैं, चीतों को अन्य नेशनल पार्क्स में शिफ्ट करने का -आखिर बेहतर मॉनिटरिंग तभी होगी जब इन चीतों को छोटे-छोटे समूहों में अलग-अलग नेशनल पार्क्स में रखा जाए, न कि सिर्फ कुनो में। क्योंकि सभी चीतों के अकेले कुनो नेशनल पार्क में रहने से कुनो क्षेत्र में भी दबाव बढ़ रहा हैं। यहीं नहीं बाड़े में लम्बे समय तक रहने की वजह से चीतो में बढ़ता स्ट्रेस भी उनकी मौतों के पीछे जिम्मेदार कारण हो सकता है। इसीलिए एक्सपर्ट्स ने सभी चीतों को एक ही जगह यानी कुनो नेशनल पार्क में ही रखने पर संदेह व्यक्त किया है। अब जिस चीते को जाना ही अपनी रफ़्तार के लिए जाता है, उसे महीनों तक बाड़े में रहना पड़े तो, स्ट्रेस होना जायज है। एड्रिअन टोडरिफ ने भी द सूत्र से बातचीत में चेतावनी दी हैं कि, "7-8 महीने हो चुके हैं और ये जरुरी है कि चीतों को अब खुले में छोड़ दिया जाए। और ऐसा करने के लिए कुनो पर्याप्त नहीं हैं।" हालाँकि, जे एस चौहान इस बात से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते, "स्ट्रेस को मैं उदय के मौत का कारण नहीं मानता, क्योंकि अगर स्ट्रेस से उदय की मौत हुई होती तो बाकी चीतों में भी दिखता। साथ ही स्ट्रेस के सिम्पटम्स 1-2 हफ्ते पहले से दिखने चाहिए थे, लेकिन उदय के मौत अचानक ही हो गई।"
चीता एक्शन प्लान के तहत कुछ चीतों को नौरादेही अभयारण्य और गांधीसागर अभयारण्य में शिफ्ट करना था
वैसे चीता परियोजना के अनुसार तो 748 वर्ग किमी कुनो पार्क अपने क्षेत्र में 21 चीतों को समायोजित कर सकता है। शिकार घनत्व के आधार पर प्रति 100 वर्ग किमी में लगभग तीन चीतों रह सकते हैं। लेकिन हाल के शोध बताते हैं कि ऐसा नहीं हैं। प्रति 100 वर्ग किमी में 1 चीता ही रह सकता हैं। ओबान का बार-बार सीमा से बाहर जाना इसका उदाहरण हैं - ओबान बार-बार कुनो नेशनल पार्क क्षेत्र की सीमा भागकर कभी गांवों में, तो कभी उत्तर प्रदेश की सीमा में घुस रहा है। इस उलझन से बाहर निकलने का एक ही तरीका यह है कि कुछ चीतों को अन्य नेशनल पार्क में स्थानांतरित कर दिया जाए, जिन्हें चीता परियोजना के लिए चुना गया था।
दरअसल, चीता परियोजना के लिए मध्य प्रदेश में कूनो राष्ट्रीय उद्यान, नौरादेही और फिर गांधीसागर अभयारण्य पसंद किए गए थे। इसका कारण था कि ये वहीं क्षेत्र हैं कि इन क्षेत्रों में सौ साल पहले तक चीते देखे गए हैं। कुनो में तो चीते आ गए, लेकिन इसके बाद कुछ चीतों को सागर जिले में स्थित नौरादेही अभयारण्य और मंदसौर जिले के गांधीसागर अभयारण्य में शिफ्ट करना था। इसके लिए इन दोनों जगहों को भी चीतों के अतिरिक्त रहवास के रुप में तैयार किया जाना था। नौरादेही अभयारण्य का दायरा बढ़ाकर टाइगर रिजर्व बनाया जाना था क्योंकि नए चीते देने के लिए दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया के विशेषज्ञों ने संरक्षित क्षेत्र का दायरा बढ़ाने की शर्त रखी है। इसलिए राज्य सरकार ने नरसिंहपुर जिले के रानी दुर्गावती अभयारण्य को मिलाकर नौरादेही अभयारण्य के संरक्षित क्षेत्र का दायरा 1224 वर्ग किमी करने की तैयारी बताई थी। अब इसके लिए राज्य वन्य प्राणी बोर्ड इसकी मंजूरी भी मिल चुकी है।
प्रशासनिक प्रक्रियाओं में देरी से चीतों को रिलीज़ नहीं कर पा रहे, अल्टेरनेटिव साइट्स रेडी करने के लिए रिसोर्सेस और फंड्स की कमी
लेकिन जे एस चौहान से बातचीत के दौरान ये चौकाने वाला तथ्य सामने आया कि गांधी सागर अभयारण्य या नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य जैसे स्थलों को वैकल्पिक स्थलों के रूप में विकसित करने में 1 से 3 साल लग जाएंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि मध्य प्रदेश के वन विभाग के पास फण्ड की कमी हैं। जे एस चौहान के अनुसार, "हम खुद नहीं चाहते कि चीतों को और ज्यादा समय बाड़े में रखा जाए। हम चाहते हैं कि उनको खुले में छोड़ दिया जाए। पर प्रशासनिक प्रक्रियाओं में देरी की वजह से चीतो को रिलीज़ नहीं किया जा पा रहा हैं। चीता एक्शन प्लान के अनुसार हमें अल्टरनेटिव साइट्स के बहुत बड़े एरिया को फेंस करने की जरुरत है। हम अभी गांधीसागर में फेंसिंग करने और प्रे-सप्पलीमेंट के लिए तैयारी कर रहे हैं। अगर गांधीसागर में छोटी जगह को ही फेंस करने में 20-25 करोड़ लग जा रहे हैं तो 200-250 किलोमीटर क्षेत्र को फेंस करने में काफी ज्यादा पैसा लगेगा। ऐसे ही अगर नौरादेही की बात करें तो उसमें एक बहुत बड़े एरिया को फेंस करने की जरुरत है, जिसमे काफी रिसोर्सेस और फण्ड लगेगा। ये रिसोर्सेस और फंड्स आज कि स्थिति में हमारे पास नहीं है। इसलिए हमने भारत सरकार को इसके लिए रिक्वेस्ट किया है.... उनसे कूनो नेशनल पार्क में मौजूद चीतों के लिए एक "वैकल्पिक" साइट तैयार करने के बारे में कहा है....जिससे कुनो पर बढ़ते दबाव को कम किया जा सके।"
100 से भी ज्यादा का है करोड़ का है चीता प्रोजेक्ट
आपको बता दें कि चीता एक्शन प्लान, जनवरी 2022 के अनुसार चीतों के पार्क में छोड़े जाने के बाद प्रोजेक्ट के पहले 5 साल की लागत 91.65 करोड़ रुपये होने का अनुमान है। वहीं अगर प्रोजेक्ट पर हुए अब तक के खर्च की बात की जाए तो प्राप्त जानकारी के अनुसार पिछले 25 सालों में इस प्रोजेक्ट पर 40 करोड़ रुपए के करीब खर्च हो चुकें हैं और आगे भी 60 करोड़ खर्च होने की संभावना है। ये खर्चा पिछले साल जून-जुलाई तक का है...कुनो में चीते आने के बाद ये खर्चा और भी बढ़ा है...और असली खर्च हर साल बदल सकता है। (पर अगर अन्य रिपोर्ट्स के हिसाब से देखें तो शेर और चीतों की इस योजना पर पिछले 25 सालों में यानी कि वर्ष 1996 से अब तक लगभग 87 करोड़ की राशि खर्च हो चुकी है जिसमें 24 विस्थापित गांवों का रिहैबिलिटेशन खर्च - 76.50 करोड़ रुपए और चीतों को लाने की तैयारी का खर्च - 10.50 करोड़ रुपए शामिल है। लोकसभा में एक सवाल के जवाब में, पर्यावरण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने कहा कि 2021-22 और 2025-26 के बीच चीता परिचय परियोजना के लिए प्रोजेक्ट टाइगर से 38.70 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। यानी इतना खर्च करने के बाद अब अगर प्रोजेक्ट में पैसो की अड़चन आ रही है और उससे चीता प्रोजेक्ट की सेहत पर असर पड़ रहा है...तो ये बेहद निराशाजनक है।
चीता प्रोजेक्ट के लिए जिम्मेदार अधिकारी पर कई कार्यभार
हालाँकि, एक बड़ा सवाल ये भी उठा है कि कूनो नेशनल पार्क में चीता प्रोजेक्ट के लिए जिम्मेदार उत्तम शर्मा पर काम का बहुत अधिक बोझ है जिसकी वजह से वह पर चीतों की ठीक से देखरेख नहीं हो पा रही है। बता दें कि उत्तम शर्मा चीता प्रोजेक्ट के इंचार्ज होने के साथ ही माधव नेशनल पार्क के फील्ड डायरेक्टर भी है और ग्वालियर रीजन के CCF भी हैं हैं। इस बात पर जे एस चौहान का तर्क है, "सर्विस पीरियड में कई अधिकारीयों को एडिशनल चार्ज मिलते रहते हैं। इससे अधिकारीयों की क्षमता प्रभावित नहीं होती हैं...इसलिए इसपर सवाल नहीं उठने चाहिए।" हालाँकि, कूनो नेशनल पार्क में दो चीतों की मौत के बाद एक चर्चा तेजी से चल रही है कि सरकार कूनो नेशनल पार्क के फील्ड डायरेक्टर उत्तम शर्मा को वहां से हटा सकती है।
पोलिटिकल इंटरफेरेंस की वजह से ये प्रोजेक्ट सफर कर रहा: एक्सपर्ट
एड्रिअन टोडरिफ के अनुसार कहीं न कहीं पोलिटिकल इंटरफेरेंस की वजह से ये प्रोजेक्ट सफर कर रहा है। इसका असर सिर्फ इस चीता ट्रांसलोकेशन प्रोजेक्ट पर ही नहीं बल्कि दुनिया के बाकी ऐसे प्रोजेक्ट्स पर भी पड़ेगा। बड़ा सवाल है कि क्या प्रोजेक्ट में इतना आगे बढ़ने के बाद पोलिटिकल इंटरफेरेंस और फंड्स की कमी से इतने भारत के महत्वकांक्षी और बहुप्रचारित चीता परियोजना की सफलता को खतरे में डालना उचित है? वो भी तब जब इस चीता प्रोजेक्ट पर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी है।