जबलपुर में महाकौशल का पहला सीएनजी बायोगैस प्लांट बन रहा, परियट, गौर और नर्मदा नदी में गोबर जाना होगा बंद

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Rajeev Upadhyay
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जबलपुर में महाकौशल का पहला सीएनजी बायोगैस प्लांट बन रहा, परियट, गौर और नर्मदा नदी में गोबर जाना होगा बंद

Jabalpur. जबलपुर में शहर से डेयरियां अभी तक बाहर नहीं हुईं, वहां से निकलने वाले गोबर से परियट और गौर नदी प्रदूषित हो चुकी है।  इन नदियों के पास स्थित सांची दुग्ध संघ के परिसर में बायोगैस सीएनजी प्लांट का निर्माण किया जा रहा है। जिसमें गोबर का उपयोग किया जाएगा। इससे परियट नदी में गोबर जाना बंद हो जायेगा। इससे नदी की सफाई की उम्मीद है। यह प्लांट 21 करोड़ रुपए की लागत से बन रहा है।



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तेजी से हो रहा निर्माण कार्य




जबलपुर के सांची दुग्ध संघ के परिसर में गोबर के निष्पादन और बायोगैस बनाने स्थापित किए जा रहे प्लांट का काम तेज गति से चल रहा है। इसके पूरे होने की डेडलाइन 30 जून तक की है लेकिन तेज गति से चल रहे कार्य को देखते हुए 30 मई से ही इसके शुरू होने की संभावना जताई जा रही है। 




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  • सांची दुग्ध संघ में प्लांट के प्रबंधक आनंद चौकसे ने बताया कि प्लांट के जरिए रोजाना 150 मीट्रिक टन गोबर ग्रामीणों से खरीदा जाएगा, जिससे बायोगैस समेत जैविक खाद बनाई जाएगी। इस प्लांट के बन जाने से रोजाना 150 मीट्रिक टन गोबर परियट नदी और उसके जरिए नर्मदा में जाना में बंद हो जाएगा। जो कि पर्यावरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण तो है ही साथ ही जैविक कृषि को बढ़ावा देने में सहयोगी साबित होगा। 



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    बता दें कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत इस प्रोजेक्ट का काम स्मार्ट सिटी लिमिटेड को मिला था। परियट नदी के समीप होने के चलते सांची दुग्ध संघ को इसमें नोडल एजेंसी नियुक्त किया गया था। प्लांट चालू होने के बाद इसके रखरखाव के काम के लिए कंपनी को नियुक्त किया जाना है। स्मार्ट सिटी जबलपुर के प्रशासनिक अधिकारी रवि राव का कहना है कि यह प्रोजेक्ट स्मार्ट सिटी जबलपुर और सांची दुग्ध संघ का सम्मिलित प्रोजेक्ट है। गोबर के निष्पादन से परियट नदी साफ होगी। अभी यह प्लांट प्रायोगिक तौर पर शुरू किया जाएगा, अच्छे परिणाम आने पर ऐसे और भी प्लांट बनाने की योजना है। 



    आवाज उठाने वाले नाखुश



    हालांकि जबलपुर में परियट और गौर नदियों में फैले प्रदूषण के चलते आवाज उठाने वाले इस कोशिश से नाखुश हैं। इस मामले के याचिकाकर्ता डॉ पीजी नाजपांडे ने बताया कि हमने साल 1998 में यह याचिका हाईकोर्ट और फिर एनजीटी में दायर की थी। अदालतें टिप्पणी कर चुकी हैं कि इंसान नदियों का निर्माण नहीं कर सकता, इसलिए उन्हें सहेजना जरूरी है, लेकिन प्रदेश सरकार इस ओर गंभीर नहीं है। करीब 2 साल पहले शहर से डेयरियों को खमरिया गांव में शिफ्ट करने की योजना बनी लेकिन आज तक एक भी डेयरी शिफ्ट नहीं हो पाई है। सरकार जनता ही नहीं एनजीटी को भी धोखा दे रही है। 


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