JABALPUR. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम मामले में व्यवस्था दी है कि आरक्षित वर्ग के मेरिटोरियस उम्मीदवारों का प्रत्येक चरण में अनारक्षित वर्ग में चयन नहीं होगा। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि अंतिम चरण के समय मैरिट के आधार पर आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों का चयन हो सकता है। अदालत ने कहा कि आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 4(4) और परीक्षा नियम 2015 का प्रवर्तन परीक्षा की अंतिम चयन सूची बनाते समय लागू किया जाएगा। इस मत के साथ जस्टिस शील नागू और जस्टिस वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने पीएससी परीक्षा 2019 और 2021 के परीक्षा परिणामों को चुनौती देने वाली 3 याचिकाएं निरस्त कर दीं।
यह था मामला
बता दें कि पीएससी ने 2019 और 2021 के परिणाम 10 अक्टूबर को घोषित किए थे। आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों ने इन परिणामों को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। अदालत ने पूर्व में दूसरी बेंच द्वारा पारित आदेश को भी अनुचित करार दिया। याचिकाकर्ताओं की ओर से मध्यप्रदेश राज्य लोक सेवा परीक्षा नियम 2015 और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए तर्क दिया कि परीक्षा के प्रत्येक चरण में अनारक्षित सीटों में मैरिट के आधार पर सभी वर्गों का चयन किया जाना चाहिए। यह दलील दी गई कि सुप्रीम कोर्ट के सैकड़ों फैसलों में यह स्पष्ट किया गया है कि हाईकोर्ट को नियम बनाने की शक्ति नहीं है, लेकिन सरकार द्वारा बनाए नियमों का पालन कराने की जिम्मेदारी है।
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कोर्ट ने यह कहा
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अनारक्षित 50 फीसदी सीटों पर आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार का सिलेक्शन नहीं हो सकता। कोर्ट ने कहा कि शासन और पीएससी ने दो भागों में परिणाम जारी किए हैं।
आगे क्या होगा
जब तक ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर अंतिम फैसला नहीं आ जाता, तब तक कुछ उम्मीदवारों को इंतजार करना होगा। उधर, याचिकाकर्ताओं के वकील अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर का कहना है कि खंडपीठ ने अप्रैल 2022 में हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को पलट दिया है। फैसला मध्यप्रदेश भर्ती नियम 2015 की धारा 4(4) के विपरीत है और संविधान के भी विपरीत दिया गया है। फैसले को जल्द सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी।