भोपाल से गहरा नाता रहा है चमत्कारी बाबा नीब करौरी का; डॉ. शंकरदयाल शर्मा से कहा था- दुखी मत हो, एक दिन देश के सबसे बड़े आदमी बनोगे

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Jitendra Shrivastava
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भोपाल से गहरा नाता रहा है चमत्कारी बाबा नीब करौरी का; डॉ. शंकरदयाल शर्मा से कहा था- दुखी मत हो, एक दिन देश के सबसे बड़े आदमी बनोगे

सुनील शुक्ला/अंकुश मौर्य Bhopal. देश-दुनिया में अपनी दैवीय सिद्धियों और चमत्कारों के लिए विख्यात बाबा नीब करौरी का भोपाल से भी गहरा नाता रहा है। जी हां, वही बाबा नीब करौरी (नीम करौली) जिनके बारे में मशहूर किस्सा है कि उन्हें अंग्रेजों के राज में ट्रेन से उतार दिए जाने पर वे नाराज होकर खेत में बैठ गए थे और इसके बाद ट्रेन एक इंच भी आगे नहीं बढ़ पाई थी। इंजन बदलने के बाद भी। यह नजारा देख जब लोगों ने ट्रेन के गार्ड को बाबा की महिमा बताते हुए उनसे माफी मांगने की सलाह दी तब जाकर ट्रेन आगे बढ़ी। नीब करौरी बाबा की प्रसिद्ध का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके भक्तों की फेहरिस्त में दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनी एपल के फाउंडर स्टीव जाब्स और फेसबुक के कोफाउंडर मार्क जकरबर्ग जैसी कई नामी हस्तियां शामिल हैं। ये सभी बाबा की याद में उत्तराखंड के कैंचीधाम में बने आश्रम में हाजिरी लगा चुके हैं। नीब करौरी बाबा 1950 से 1970 के दौरान कई बार भोपाल भी आ चुके हैं। वे यहां नेवरी के मनकामेश्वर मंदिर में रुकते थे, अब यहां उनकी स्मृति में मंदिर बनाया जा रहा है। 



भोपाल में रहते हैं बाबा के पोते धनंजय शर्मा



अपने भक्तों के बीच हनुमान जी का अवतार माने जाने वाले नीब करौरी बाबा का भोपाल से पारिवारिक नाता भी है। उनके बेटे अनेग शर्मा मप्र सरकार के मंत्रालय में कार्यरत थे और ई-4 अरेरा कालोनी में रहते थे। अब यहां उनके पोते डॉ. धनंजय शर्मा रहते हैं। वे पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट से रिटायर हुए हैं। द सूत्र ने उनसे नीब करौरी बाबा की सिद्धियों और चमत्कारी शक्तियों से जुड़े संस्मरणों के बारे में खास चर्चा की। उन्होंने बताया कि नीब करौरी बाबा का जन्म उत्तर प्रदेश में फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर गांव में हुआ था। उनका असली नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। 13 वर्ष की आयु में उनका विवाह हो गया था। 17 वर्ष की आयु में ही उन्हें ईश्वरीय शक्तियों के बारे में बहुत विशेष ज्ञान हो गया था। वे  हनुमान जी के भक्त थे और कठिन तपस्या से उन्हें कई सिद्धियां हासिल की थीं। उनके भक्त बाबा को हनुमान जी का अवतार ही मानते हैं। 



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1962 में हुई थी कैंची धाम की स्थापना



उत्तराखंड में नैनीताल-अल्मोड़ा मार्ग पर बाबा नीब करौरी ने कैंची धाम आश्रम की स्थापना की। जिस जगह कैची धाम आश्रम बना है वहां बाबा नीब करौरी पहली बार 24 मई 1962 को पहुंचे थे। 15 जून 1964 को कैची धाम में बनाए गए हनुमान मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी। तब से हर साल 15 जून को कैंची धाम में प्राण प्रतिष्ठा दिवस मनाया जाता है। इस दिन देश-विदेश से बड़ी संख्या में बाबा के भक्त कैंची धाम पहुंचते हैं। जानीमानी हॉलीवुड अभिनेत्री जूलिया राबर्ट्स, बॉलीवुड अभिनेत्री अनुष्का शर्मा जैसी हस्तियां भी यहां पहुंचने वालों में शामिल हैं।  नैनीताल से लगभग 65 किलोमीटर दूर कैंची धाम को लेकर मान्यता है कि यहां आने वाला व्यक्ति कभी भी खाली हाथ वापस नहीं लौटता। यहां पर की गई मनोकामना पूर्ण होती है। यही कारण है कि देश-विदेश से हजारों लोग यहां हनुमान जी का आशीर्वाद लेने आते हैं।




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नीब करौली बाबा, विराट कोहली और फेसबुक के संस्थापक मार्क जकरबर्ग।




न माथे पर तिलक लगाते और न किसी को पैर छूने देते थे बाबा



मान्यता है कि बाबा नीब करौरी को हनुमान जी की उपासना से अनेक चामत्कारिक सिद्धियां प्राप्त थीं। लोग उन्हें हनुमान जी का अवतार भी मानते हैं। हालांकि, वह आडंबरों से दूर रहते थे। न तो उनके माथे पर तिलक होता था और न ही गले में कंठी माला। एक आम आदमी की तरह जीवन जीने वाले बाबा अपना पैर किसी को नहीं छूने देते थे। यदि कोई छूने की कोशिश करता तो वह उसे श्री हनुमान जी के पैर छूने को कहते थे। बाबा के भक्तों में एक आम आदमी से लेकर अरबपति-खरबपति तक शामिल हैं। बाबा के भक्त और जाने-माने लेखक रिचर्ड अल्बर्ट ने मिरेकल आफ लव नाम से बाबा पर पुस्तक लिखी है। इस पुस्तक में बाबा नीब करौरी के चमत्कारों का विस्तार से वर्णन है। 



भोपाल में नौकरी करते थे बाबा के बेटे अनेग शर्मा 



भोपाल शहर से बाबा नीब करौरी का विशेष नाता रहा है। वे यहां मध्यप्रदेश राज्य की राजधानी बनने से पहले अपने एक भक्त लेफ्टिनेंट कर्नल भगवान सहाय के आमंत्रण पर भोपाल आते रहते थे। बाद में भारत के राष्ट्रपति बनने वाले भोपाल निवासी डॉ.शंकर दयाल शर्मा और बीजेपी के वरिष्ठ नेता कैलाश सारंग भी उनके भक्तों में शामिल हो गए, लेकिन वे भोपाल में किसी के घर पर नहीं बल्कि, नेवरी के मनकामेश्वर मंदिर में रुकते थे। यहां अब बाबा की स्मृति में मंदिर बनाने की तैयारी चल रही है। डॉ. धनंजय बताते हैं कि बाद में नए मध्य प्रदेश के गठन और राजधानी बनने पर उनके पिता यानी बाबा के बेटे अनेग शर्मा भी उत्तर प्रदेश से सरकारी नौकरी करने के लिहाज से भोपाल आ गए। उन्हें मंत्रालय में स्टेनोग्राफर के पद पर नौकरी मिली थी। रिटायरमेंट से पहले 10 साल तक वे गृह विभाग में पदस्थ रहे औऱ डिप्टी सेक्रेटरी के पद से रिटायर हुए। उन्होंने ई-4 अरेरा कॉलोनी में मकान बनवाया था। 1957 में उनके (डॉ. धनंजय) के जन्म के समय भी बाबा भोपाल आए थे। बाबा नीब करौरी 1973 में ब्रह्मलीन हो गए। उनके पुत्र अनेग शर्मा का 2 साल पहले 23 नवंबर 2021 को 95 वर्ष की आयु में निधन हुआ है।



डॉ.शंकरदयाल शर्मा के बारे सच हुई बाबा ये भविष्यवाणी 



बकौल डॉ. धनंजय भोपाल राज्य के मुख्यमंत्री रहे डॉ. शंकरदयाल शर्मा बाबा के भोपाल आने पर उनसे मिलने जरूर आते थे। कांग्रेस के कुछ तत्कालीन नेताओं से पटरी न बैठ पाने की वजह से डॉ. शंकरदयाल शर्मा परेशान रहा करते थे। एक बार वे बाबा जी से मिलने पहुंचे और उन्हें अपने राजनीतिक जीवन में चल रही उथल-पुथल और चुनौतियों के बारे में बताया। तब बाबा जी ने यह कहते हुए सांत्वना दी कि निराश मत हो एक दिन तुम देश के सबसे बड़े आदमी बनोगे। उसके बाद डॉ. शंकरदयाल शर्मा 1992 में भारत के राष्ट्रपति बने। 



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ऐसे पड़ा नाम... बाबा नीब करौरी   



उत्तर प्रदेश में फर्रुखाबाद के पास नीब करौरी नाम की जगह पर एक विस्मयकारी घटना हुई थी। बकौल डॉ. धनंजय बाबा कहीं से गंगा स्नान कर लौट रहे थे। तब अंग्रेजों का राज था, ट्रेन में टीसी ने उन्हें बिना टिकट पकड़ लिया और ट्रेन से उतार दिया। इसके बाद वो एक खेत में जाकर बैठ गए। ट्रेन के ड्रायवर ने ट्रेन आगे बढ़ाने की कोशिश की तो वो आगे नहीं बढ़ी। काफी प्रयास किए गए, इंजन भी बदला गया लेकिन कोई असर नहीं हुआ। तब वहां बाबा जी को पहचानने वाले कुछ लोग पहुंचे। उन्होंने ट्रेन ड्राइवर और गार्ड को समझाया। ट्रेन के पूरे स्टाफ ने मिलकर बाबा जी से माफी मांगी, तब उन्होंने ड्रायवर से कहा- "जा अब ले जा अपनी रेलगाड़ी।" तब जाकर ट्रेन आगे बढ़ सकी। इस घटना के बाद वे बाबा नीब करौरी के नाम से प्रसिद्ध हो गए। आगे चलकर अंग्रेज सरकार ने नीब करौरी में रेलवे स्टेशन भी बनवाया। धीरे-धारे बाबा जी की ख्याति विदेशों तक पहुंच गई।



सौतेली मां से परेशान होकर घर से भागे



बाबा जी की शादी 12-13 साल की उम्र में हो गई थी। शादी के बाद मां का निधन हो गया। पिता जी जमींदार थे। उन्होंने दूसरी शादी कर ली, लेकिन सौतेली मां बाबा को पसंद नहीं करती थी। एक बार पिता बाहर गए थे, तो सौतेली मां ने उन्हें कमरे में बंद कर दिया। वे उसी कमरे में गुड़ फोड़ने वाले सूजे से छत तोड़कर घर से भाग निकले थे। उसके बाद किसी को पता नहीं चला कि बाबा जी आखिर कहां गए। बताया जाता है कि कि नीब करौरी गांव के पास एक गुफा है, जिसमें बाबा जी ने अपने हाथों से हनुमान जी की प्रतिमा बनाई और वहीं उनकी तपस्या की।



पत्नी ने किया तंज तो दिखाया ये चमत्कार



बताते हैं कि बाबा नीब करौरी जब तपस्या करके लौटे तो उनकी पत्नी ने व्यंग्य कर दिया था कि तुम कुछ नहीं जानते, जटाएं बढ़ाने से ही बाबा नहीं बन जाते ? तब बाबा जी ने भी जवाब देते हुए कहा था कि तेरे लिए तो घर का जोगी जोगना, आन गांव का सिद्ध वाली कहावत है। इसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी से सरसों के दाने बुलवाए। बाबा नीब करौरी उन दानों को करीब 1 मिनट तक चबाते रहे। जब उन्होंने मुंह से सरसों निकालकर हथेली में ली तो सरसों के दानों में से दो-दो पत्तियां निकल आईं। बाबा जी की पत्नी उग्र स्वभाव की थीं। अक्सर गुस्सा होती रहती थीं। इस पर बाबा जी कहते थे कि तुम क्या रोओगी मेरे न रहने पर, मेरे लिए तो दुनिया रोएगी। 



एक समय में दो-दो जगह मौजूद हो जाते थे



बाबा नीब करौरी के पौत्र डॉ. धनंजय शर्मा बताते हैं कि उनके पास ऐसी दैवीय शक्ति थी कि वो एक ही समय दो अलग-अलग जगह उपस्थित हो जाते थे। एक बार बाबा जी अपनी बेटी की शादी में आगरा में मौजूद थे। उसी समय वो लखनऊ के डीआईजी ओमकार सिंह के यहां भी शादी समारोह में भी शामिल होते नजर आए।   



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ऐसी सिद्धि कि मरे हुए आदमी को जिंदा कर दिया



डॉ. धनंजय शर्मा ने बताया कि बाबा जी के पास मरे हुए इंसान को भी जिंदा करने की भी सिद्धी थी। उन्होंने बताया कि वे ऐसा दावा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि बाबा जी ने जिस व्यक्ति को जिंदा किया था, उसकी मृत्यु 3-4 साल पहले ही हुई है। उस व्यक्ति ने खुद भी इस बारे में सैंकड़ों लोगों को ये किस्सा सुनाया। हुआ यूं कि उप्र के बरेली के डीआईजी पुलिस  के पांच बेटे थे। पांचवें बेटे का नाम युधिष्ठिर था। युधिष्ठिर पढ़ाई में कमजोर था, लेकिन कार चलाने में एक्सपर्ट था। युधिष्ठिर के पिता ने उसे बाबा जी की सेवा में  सौंप दिया था जिसे लेकर वे नैनीताल चले गए। वहां एक शाम खुले में शौच करते समय युधिष्ठिर को सांप ने काट लिया जिससे उसकी मौत हो गई। देर शाम हुई घटना की जानकारी बाबा जी को सुबह दी गई तो वे बहुत नाराज हुए। उन्होंने तुरंत डॉक्टर को बुलाने का आदेश दिया। डॉक्टर आए तो उन्होंने भी चैकअप के बाद युधिष्ठिर को मृत घोषित कर दिया। इसके बाद बाबा जी अपने कमरे से नीचे उतरे, उन्होंने वहां मौजूद पंडित से कहा कि युधिष्ठिर के लिए चाय बना लाओ। ये सुनकर पंडित घबरा गया, लेकिन बाबा जी के आदेश को नकार नहीं सका। लिहाजा वो चाय बना लाया। युधिष्ठिर के मृत शरीर के बाजू में बैठे बाबाजी ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा कि उठ जाओ, चाय पीलो। यह कहते ही युधिष्ठिर उठकर बैठ गया। ऐसा लगा जैसे वो सो ही रहा था और बाबा की आवाज सुनकर उठ गया। उसके बाद बाबा जी ने वहां मौजूद लोगों को चेताया था कि यदि जिस किसी ने ये बात यानी मृत व्यक्ति को जिंदा करने की घटना बाहर बताई तो वो कोढ़ी बन जाएगा। 



सिर पर पैर लगाकर बना दिया ज्ञानी



लखनऊ में बाबा के आश्रम में बने मंदिर के प्रभारी भवनिया जी का किस्सा सुनाते हुए डॉ. धनंजय शर्मा ने बताया कि कारोबारी जयपुरिया ने वृंदावन का आश्रम बनवाया। किसी कारणवश वहां का पंडित कहीं और चला गया। बाबा ने ठाकुर जाति के भवनिया नाम के व्यक्ति को आश्रम के मंदिर की सेवा करने का आदेश दे दिया। भवनिया कोई श्लोक तो आते नहीं थे। वो तो हनुमान जी को प्रसाद, माला चढ़ा देता था, सफाई कर देता था। 3-4 दिन बाद मंदिर का निर्माण करवाने वाले जयपुरिया वहां पहुंचे और भवनिया से बात करके बहुत नाराज हो गए। जयपुरिया ने बाबाजी से कहा कि आपने किसे मंदिर का प्रभारी बना दिया, उसे तो कुछ आता ही नहीं है, वो ब्राह्मण भी नहीं है। तब बाबा जी ने जयपुरिया और भवनिया को अपने पास बैठा लिया। बाबा जी ने जयपुरिया से पूछा कि तुम भवनिया से क्या सुनना चाहते हो, ये बहुत पढ़ा-लिखा आदमी है। बाबा जी ने ये बात कहते हुए अपना पैर का पंजा भवनिया के माथे पर लगा दिया और जयपुरिया से कहा कि पूछ लो जो भी भवनिया से पूछना चाहते हो। जयपुरिया ने उनसे गीता का एक अध्याय पूछ लिया ,तो भवनिया ने धारा प्रवाह तरीके से बोलना शुरु कर दिया। तब बाबा जी ने जयपुरिया से कहा कि देख लिया आपने भवनिया को गीता-पुराण सब आता है,यह सब देख-सुनकर सेठ जी बाबा के पैरों में गिर गए। 



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