मोदी की फ्लैगशिप स्कीम में बड़ी लापरवाही, पानी की टंकियों की स्टेजिंग हो रहीं बेंड, 120 करोड़ की 4000 टंकियों के गिरने का खतरा!

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Ruchi Verma
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मोदी की फ्लैगशिप स्कीम में बड़ी लापरवाही,  पानी की टंकियों की स्टेजिंग हो रहीं बेंड, 120 करोड़ की 4000 टंकियों के गिरने का खतरा!

BHOPAL: लगता है मध्य प्रदेश के प्रशासनिक और विभागीय अधिकारी बेख़ौफ़ हो चुके हैं। यहाँ तक कि इन अफसरों और अधिकारियों ने CM शिवराज सिंह चौहान की भी सुनना बंद कर दिया है। तभी तो उनकी दी सख्त हिदायतों और अल्टीमेटम का भी उनपर कोई असर नहीं है। अब आप सोच रहे होंगे हम आखिर ऐसा क्यों बोल रहे है? लेकिन जब प्रदेश का मुखिया बार-बार सरकार की जनकल्याण से जुड़ी महत्वाकांक्षी योजनाओं में लापरवाही को लेकर जिम्मेदार अधिकारियों की क्लास ले, उन्हें  फटकारे, निर्देशित करे और इसके बाद भी ये अफसर इन योजनाओं के क्रियान्वयन में कोताही बरतें...तो ये सवाल तो खड़ा होगा ही! दरअसल, हम बात कर रहे हैं केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी जल जीवन मिशन योजना की...जिसके संचालन में लगातार गड़बड़ी की शिकायतें सामने आ रही है। करोड़ों की इस योजना में अधिकारियों की बेपरवाहियों का ताजा मामला उस वक़्त सामने आया जब 'जल जीवन मिशन' के तहत MP के गाँवों में लगाईं जा रहीं पानी की टंकियों को सपोर्ट करने के लिए बनाए जा रहे स्टील स्ट्रक्चर में गुड़वत्तापूर्वक कार्य न होने की शिकायत मिली। जिससे सपोर्टिंग स्ट्रक्चर - जिसे स्टेजिंग कहते हैं - के साथ ही इन टंकियों के गिरने के भी चान्सेस हैं। बड़ी बात ये है कि ऐसी करीब 4000 टंकियां प्रदेश में लगनी हैं जिसमें छोटा-मोटा अमाउंट नहीं बल्कि पूरे 120 करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं। जल जीवन मिशन योजना पीएम मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट है और शिवराज भी कोशिशों में जुटे है कि एमपी में जलजीवन मिशन योजना 2024 से पहले पूरी हो जाए.. लेकिन सरकार का इस तरफ ध्यान नहीं है कि टारगेट पूरा करने के चक्कर में अफसर कितनी बड़ी लापरवाही कर रहे हैं।



PHE डिपार्टमेंट के अधिकारियों की लापरवाही का क्या है ये पूरा मामला, जानने के लिए पढ़िए ये ग्राउंड रिपोर्ट....



पहले जानिए मध्य प्रदेश में जल जीवन मिशन के बारे में




  • केंद्र की मोदी सरकार ने साल 2024 तक प्रत्येक गांव के हर व्यक्ति तक स्वच्छ जल पहुंचाने का लक्ष्य तय किया है। जिसके लिए जल जीवन मिशन योजना की शुरुआत की गई है।


  • इस योजना के माध्यम से MP की 71 लाख से अधिक ग्रामीण आबादी की पेयजल जरूरतें पूरी होंगी। स्कीम की योजना, डिजाइन, अनुमोदन, कार्यान्वयन, संचालन और रखरखाव में PHE विभाग का महत्वपूर्ण रोल हैं।

  • 2021-22 की जानकारी अनुसार, MP में जल-जीवन मिशन की लागत 11 हजार करोड़ तय हुई हैं। और वर्ष 2019 से 25 जनवरी 2022 तक मध्य प्रदेश में इस योजना के तहत करीब 4,742.11 करोड़ रुपए की राशि खर्च की जा चुकी है।

  • अब चूँकि ये योजना काफी विस्तृत है....इसलिए इसे जगह की आबादी के हिसाब से अन्य छोटी योजनाओं में बातें गया है। इसी के तहत 100 से 250 की आबादी वाले गाँवों में वाटर सोर्स के लिए ट्यूबवेल का इस्तेमाल किया जाता है...जिसमें पावर पंप स्थापित किया जाता है। इसके बाद इसके बाद 500 से 700 मीटर तक कि पाइप लाइन बिछाई जाती है। जिसके बाद 5 मीटर के आयरन की स्टेजिंग की जाती है...यानी लोहे/स्टील का एक स्ट्रक्चर बनाया जाता है। इस पर 5000 लीटर की क्षमता वाली 2 टंकियाँ रखी जाती हैं, जिससे नल के कनेक्शन में पानी सप्लाई होता है।

  • प्राप्त जानकारी के अनुसार, एक टंकी को लगाने की लागत है करीब 5 लाख और दो टंकियां लगाने की लागत करीब 10 लाख रुपए।



  • पूरा मामला क्या है....



    दरअसल, 100 से 250 की आबादी वाले गाँवों में टंकियां रखने के लिए स्टील/आयरन का स्टैज बनाया जाता है, जिसे तकनीकी भाषा में 'स्टेजिंग' कहते हैं। इस स्टेजिंग की डिजाइन जल जीवन मिशन के अधिकारियों ने भोपाल के मौलाना आजाद नेशनल इंस्टीट्यूट यानी मैनिट से अप्रूव करवाया है। पर अब इस डिजाइन को लेकर ही सवाल उठ गए हैं.....क्योंकि, योजना को क्रियान्वित करने वाले अधिकारियों ने टंकियों की स्टेजिंग की एक ही डिजाइन को पूरे प्रदेश के जिलों में लागू कर दिया है...जबकि मैनिट के एक्सपर्ट्स के मुताबिक हर जिले के लिए स्टैज का डिजाइन अलग अलग होना चाहिए। मैनिट के एक्सपर्ट्स ने भी जो डिज़ाइन अप्रूव की थीं, वो कुछ स्पेसिफिक जगहों के लिए ही थी की डिज़ाइन अप्रूव की थी। अब आशंका ये भी है कि यदि डिजाइन पर ध्यान नहीं दिया गया तो जो टंकिया लग चुकी है या लगाई जा रही है.. उन टंकियों का स्टैज कभी भी धराशायी हो सकता है।



    रतलाम के दो गाँवों में टंकियों की स्टेजिंग बेंड



    यही नहीं, रतलाम के दो गाँवों से ये शिकायत आ भी चुकी हैं, जहाँ पानी की टंकियाँ ऐसे ही स्टील के स्टेज पर रखी गई थी.. और ये दोनों स्टेज टंकी रखने के बाद झुक गए। रतलाम के दो गांवों से पानी की टंकियां के स्टेज के झुकने की शिकायतों के बाद उज्जैन संभाग के ईई ने उज्जैन के इंजीनियरिंग कॉलेज से तकनीकी सलाह ली। द सूत्र के पास उपलब्ध उज्जैन इंजीनियरिंग कॉलेज के दस्तावेजों में साफ़ कहा गया है कि ये स्टैज इसलिए झुका क्योंकि टंकी स्थापित करने की जगह को ध्यान में रखते हुए डिजाइन में गड़बड़ है, जिसमें सुधार की जरुरत है।



    प्राप्त शिकायतों के बारे में द सूत्र ने जब उज्जैन के ही PHE डिपार्टमेंट के मैकेनिकल डिवीज़न के EE धन्ना लाल कनेल से बात की तो उन्होंने कहा: "टंकी रखने के लिए स्टेजिंग के स्ट्रक्चर में फाल्ट हो सकता है....सेंट्रल बीम सही नहीं थी, जिसकी वजह से रतलाम के दो गाँवों में आयरन स्ट्रक्चर बेंड हो गया....ऐसा स्टेजिंग स्ट्रक्चर की डिज़ाइन की गड़बड़ी या फिर उसमें इस्तेमाल सामान की गुड़वत्ता की कमी की वजह से हुआ है।"



    राज्य लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने भोपाल, इंदौर, उज्जैन, ग्वालियर, जबलपुर, और रीवा के PHE विभाग को जारी किये लेटर



    टंकियों की स्टेजिंग की डिज़ाइन में गड़बड़ी की ये बात मध्य प्रदेश लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के प्रभारी चीफ इंजीनियर अशोक बघेल के द्वारा जारी लेटर से और भी ज्यादा पुख्ता हो जाती हैं। जो उन्होंने भोपाल, इंदौर, उज्जैन, ग्वालियर, जबलपुर, और रीवा के लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के मैकेनिकल खंड को 16 मार्च, 2022 को लिखा था।इस पत्र में बघेल ने उपरोक्त सभी जगहों के PHE विभाग के एक्सेक्यूटिव इंजीनियर्स को कुछ निर्देश जारी किये। जिसमें जल-जीवन मिशन के तहत, 100-250 तक की जनसंख्या वाले ग्रामों में पानी की टंकियों को रखने के लिए बनाये जा रहे स्टील स्ट्रक्चर को लेकर मिली शिकायतों के बारे में बात की गई है। शिकायतें यही थीं कि 5000 लीटर की दो टंकियों को रखने के लिए जो आयरन स्ट्रक्चर बनाया जा रहा है उसका एक हिस्सा (लोह का एंगल) झुक रहा है। पत्र में अशोक बघेल ने भोपाल, इंदौर, उज्जैन, ग्वालियर, जबलपुर, और रीवा के PHE विभाग को साफतौर पर कहा हैं कि जहाँ-जहाँ ये टंकियां लग रहीं हैं...वहाँ स्टेजिंग में डिज़ाइन का ध्यान रखा जाए और जरुरी सुधार किए जाएँ।



    एक ही डिज़ाइन को सभी जगह यूस करके स्टेजिंग नहीं की जा सकती: डॉ. नीरज तिवारी, एक्सपर्ट, मैनिट



    द सूत्र ने मामले में बात की खुद मैनिट के एक्सपर्ट डॉ. नीरज तिवारी से, जिनसे लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने टंकियों की स्टेजिंग की डिज़ाइन को क्रॉसचेक/प्रूफचेक करवाया था। डॉ. नीरज तिवारी से द सूत्र ने सवाल किया कि आखिर स्टेजिंग की डिज़ाइनिंग की इतनी डिटेल्ड प्रोसेस के बावजूद ये स्ट्रक्चर इतना जल्दी कैसे बेंड हो रहे हैं? तो जो जवाब मिला वो PHE अधिकारियों के गैर-जिम्मेदाराना रवैये को साफ़ दिखाता है। एक्सपर्ट डॉ. तिवारी ने बताया:



    "जल जीवन मिशन का डिज़ाइनर मिशन के लिए डिज़ाइन करता है...और वो डिज़ाइन जिम्मेदार विभाग MACT को प्रूफचेक करने के लिए भेजता है। हम उसको प्रूफचेक करते हैं और बताते हैं कि स्पेसिफिक लोकेशन के लिए ये डिज़ाइन ठीक है। 99% हमारे द्वारा प्रूफचेक कि गई डिज़ाइन सही रहती है। लेकिन अगर इसके बाद भी स्ट्रक्चर टिल्ट या बेंड करता है तो उसमें कुछ फाल्ट होता है...तो डिज़ाइनर उस डिज़ाइन को करेक्ट करता है। इसके बाद फिर करेक्टेड डिज़ाइन हमारे पास आती है...फिर उसको हम फाइनल चेक करते हैं और बताते है कि हाँ अब स्टेजिंग की ये डिज़ाइन सेफ है.....



    "महत्वपूर्ण पॉइंट ये है कि हम जो डिज़ाइन प्रूफचेक करते हैं वो एक निर्धारित की गई स्पेसिफिक लोकेशन के लिए सही होती है। उसको कहीं और टंकी स्थापित करने के लिए यूस नहीं कर सकते। उदाहरण के तौर पर अगर हमने वो डिज़ाइन टीकमगढ़ के किसी गाँव के लिए पास की है.....तो उसी गाँव में उस डिज़ाइन पर आधारित स्टील का स्ट्रक्चर खड़ा किया जा सकता है, कहीं और नहीं। ऐसा न करने की तीन मुख्य कारण हैं:




    • सभी जगह की सॉइल की बियरिंग कैपेसिटी अलग होती है। कहीं हार्ड स्ट्रेटा होता है, कहीं कोपरा मिल जाता है। तो उसके हिसाब से ही टैंक्स रखने के लिए बनाए जाने वाले स्टील/आयरन स्ट्रक्चर की फाउंडेशन-डेप्थ तय होती है और उसी के हिसाब से स्ट्रक्चर के डाइमेंशन्स तय होते हैं....


  • हर जगह का विंड प्रेशर अलग-अलग होता है। जैसे देवास में विंड प्रेशर ज्यादा है तो वहीँ बाकी जगहों में ये कम होता है। अगर स्टेजिंग ठीक नहीं हुई तो कभी भी एक तेज हवा के झोंके में ही स्टेजिंग धराशायी हो सकती है....

  • अर्थक्वेक जोन अलग होता है। MP इतना बड़ा राज्य है, जिसमें जबलपुर जोन 4 में आता है, भोपाल जोन 2 में आता है। यानी जबलपुर में स्ट्रक्चर की डिज़ाइनिंग के वक़्त अर्थक्वेक प्रोबेबिलिटी डोमिनेटिंग फैक्टर होगा। इस तरह से जगह के हिसाब से डिज़ाइन के पूरे पैरामीटर्स ही बदल जाते हैं। इसलिए आप सेम डिज़ाइन यूस नहीं कर सकते....



  • "लेकिन इसके बावजूद अगर स्टेजिंग की एक ही डिज़ाइन को सभी जगह टंकी स्थापित करने के लिए यूस करेंगे....और उसके बाद यदि स्टेजिंग बेंड होती है, तो न ही डिज़ाइनर की गलती है और न ही प्रूफचेक करने वाले की.....एक साइट स्पेसिफिक के लिए प्रूफचेक की गई डिज़ाइन को किसी और जगह यूस नहीं किया जाना चाहिए था...डिज़ाइन साइट स्पेसिफिक ही होना चाहिए।



    "लेकिन क्योंकि जल जीवन मिशन बहुत ही ज्यादा बड़े लेवल का मिशन है, और शायद एक-एक गाँव के लिए स्टेजिंग की अलग डिज़ाइन बनाना मुश्किल हो सकता है। इसलिए काम आसान करने के लिए पूरे राज्य को 4 ज़ोन्स में बाँटा जा सकता है। तो ज़ोन्स के हिसाब से डिज़ाइन करवा लें...पर पूरे राज्य के लिए एक ही डिज़ाइन पर बेस्ड स्ट्रक्चर बनाना ठीक नहीं है। ऐसा करना बेहद संशयात्मक होगा।"



    PHE डिपार्टमेंट ने किया MACT एक्सपर्ट की बातों को दरकिनार



    एक्सपर्ट की बातों से साफ़ है कि PHE डिपार्टमेंट ने उनकी इन सारी नसीहतों को दरकिनार करते हुए प्रदेशभर में 4000 टंकियों को रखने के लिए सभी जगहों पर एक ही डिज़ाइन को आधार बनाकर स्टेजिंग कर दी। जबकि मैनिट ने जो डिजाइन अप्रूव किया था वो केवल एक ही जगह के लिए था। यानी गुड़वत्ता और डिज़ाइन दोनों से ही साफतौर पर समझौता किया गया। और इसी के वजह से रतलाम और अन्य जगहों से स्टील-स्ट्रक्टचर के बेंड होने की शिकायतें आईं हैं।



    अब इस पूरे मामले में जब द सूत्र ने लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के अधिकारियों से पूछा कि ऐसा क्यों किया.. तो वो मानने को तैयार ही नहीं कि कुछ गड़बड़ी है। विभाग के चीफ इंजीनियर संजय कुमार अंधवान ने कहा:



    "वैसे तो ऐसी त्रुटि की गुंजाइश नहीं है क्योंकि सभी जगह की मिट्टी की भार झेलने कि क्षमता इतनी तो होती है कि वो हमारे निर्धारित स्टील/आयरन स्टेजिंग का भार झेल सके.....फिर भी यदि ऐसी कोई शिकायत है, तो हम उसे दिखवाएंगे।"



    साफतौर पर PHE अधिकारियों की बातें एक्सपर्ट्स की बातों से मेल नहीं खाती। यानी गड़बड़ और लापरवाही तो की ही गई है। और इस लापरवाही की कीमत छोटी-मोटी नहीं, 4000 टंकियों को स्थापित करने में लगने वाले 120 करोड़ रुपए हो सकती है। लेकिन अधिकारियों और अफसरों को क्या फर्क पड़ता है....उन्हें तो बस टारगेट पूरा करना है.. बाद में टंकियां गिरे तो गिरे.. पैसा बर्बाद तो जनता का ही होगा। 


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