BHOPAL. मध्य प्रदेश में कॉलोनियों की मंजूरी को लेकर दो सीनियर आईएएस अफसर आपस में भिड़ गए। सीनियर प्रमुख सचिव पर जूनियर प्रमुख सचिव हावी होते, उससे पहले ही विभागीय मंत्री सीनियर प्रमुख सचिव के साथ खड़े हो गए। दो महीने चले पत्राचार युद्ध के बाद आखिरकार नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेन्द्र सिंह और प्रमुख सचिव नीरज मंडलोई को पीछे हटना पड़ा। पीएस मंडलोई को जब समझ में आया कि वे डायरेक्टर मुकेश चंद्र गुप्ता के अधिकार पर अतिक्रमण नहीं कर सकते तो उन्होंने डायरेक्टर को निर्देश देकर नए सिरे से आदेश जारी कर दिए। मामला इंदौर के बड़े कॉलोनाइजरों का है। जानकारों के मुताबिक, बड़ी संख्या में इंदौर के कॉलोनाइजर और बिल्डरों को फायदा पहुंचाने के इस मामले में बड़ा लेन-देन होने की चर्चा है। हालांकि, द सूत्र ऐसे किसी आरोप की पुष्टि नहीं करता।
पीएस के आदेश पर टीएंडसीपी डायरेक्टर की आपत्ति
कॉलोनाइजर को ईडब्ल्यूएस-एलआईजी (इकोनॉमिक वीकर सेक्शन के लिए LIG) आवास बनाने की अनिवार्य शर्त से छूट देने के लिए प्रमुख सचिव नीरज मंडलोई ने सीधे इंदौर कार्यालय को आदेश जारी कर दिए। इस आदेश में कहा गया कि टाउन-कंट्री प्लानिंग (T&CP) का जिला कार्यालय अपने स्तर पर बिल्डरों/कॉलोनाइजरों को छूट देकर ईडब्ल्यूएस-एलआईजी आवास बनाने की शर्त से छूट दे सकता है, इसके ऐवज में उनसे आश्रय शुल्क जमा करवाकर कॉलोनी की मंजूरी दे सकता है। प्रमुख सचिव मंडलोई के सीधा जिला कार्यालय को आदेश देने पर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग के डायरेक्टर मुकेश चंद्र गुप्ता ने कड़ी आपत्ति जताई। उन्होंने प्रमुख सचिव के आदेश को अवैधानिक ठहरा दिया। गुप्ता ने टीएंडसीपी के नियमों का हवाला देते हुए प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर कहा कि ये डायरेक्टर का अधिकार है। मुकेश चंद्र गुप्ता भी प्रमुख सचिव स्तर के अफसर हैं, सरकार ने पदोन्नति के बाद भी उन्हें विभाग की जिम्मेदारी ना देते हुए डायरेक्टर के पद पर ही पदस्थ रखा है।
नगरीय प्रशासन एवं आवास विभाग के प्रमुख सचिव नीरज मंडलोई के इस आदेश पर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग डायरेक्टर मुकेश चंद्र गुप्ता ने कड़ी आपत्ति जाहिर करते हुए पत्र लिखा। लैटर में साफ लिखा कि टीएंडसीपी एक्ट में केवल दो अफसरों प्रमुख सचिव और डायरेक्टर को ही अधिकार मिले हैं। प्रमुख सचिव और डायरेक्टर अपने अधिकार अपने अधीनस्थ अफसरों को डेलीगेट कर सकते हैं, लेकिन डायरेक्टर के अधिकार पर प्रमुख सचिव अतिक्रमण नहीं कर सकते। डायरेक्टर गुप्ता ने कहा कि धारा 16 के अनुसार मास्टर प्लान के प्लानिंग एरिया में आने वाली कॉलोनियों को अनुमति देने का अधिकार सिर्फ डायरेक्टर को है, ऐसे में कॉलोनियों को ईडब्ल्यूएस-एलआईजी से छूट देकर मंजूरी देने का सीधा आदेश जिला कार्यालय को देना अनुचित और अवैधानिक है।
डायरेक्टर ने ये भी कहा कि प्रमुख सचिव अपने आदेश पर फिर से विचार कर लें, जिससे भविष्य में इस तरह के मामलों में कोई वैधानिक स्थिति खड़ी ना हो। डायरेक्टर के इस तरह पत्र लिखकर विरोध कराने पर प्रमुख सचिव मंडलोई भी नाराज हो गए। वे इस मामले को नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेन्द्र सिंह की जानकारी में लाए। डेढ़ माह के मंथन के बाद फिर प्रमुख सचिव ने राज्य सरकार के अधिकारों को उपयोग करते हुए यही आदेश नए सिरे से डायरेक्टर को जारी करने के निर्देश दिए। आदेश में कहा गया कि 3 दिन में आदेश जारी करें, लेकिर डायरेक्टर ने 10 दिन बाद आदेश जारी किए।
ऐसे समझें पूरा मामला
इंदौर के प्लानिंग एरिया के बाहर 80 गांवों में कॉलोनाइजर और बिल्डर बड़े-बड़े प्रोजेक्ट ला रहे थे। वे चाहते थे कि उन्हें गरीबों के लिए बनाए जाने वाले ईडब्ल्यूएस और एलआईजी आवास बनाने की अनिवार्य शर्त से छूट मिल जाए। बिल्डरों का कहना था कि उनसे आश्रय शुल्क जमा करके प्रोजेक्ट की मंजूरी दे दी जाए। इंदौर के तत्कालीन कलेक्टर ने बिल्डरों के प्रोजेक्ट की मंजूरी वाले मामले को अतिरिक्त महाधिवक्ता के पास भेजा। अतिरिक्त महाधिवक्ता ने कहा कि ये प्रोजेक्ट पंचायत क्षेत्र में आते हैं, ऐसे में इन्हें ईडब्ल्यूएस और एलआईजी आवास बनाने से छूट नहीं दी जा सकती। उसके बाद से ये मामला अटका हुआ था। इसी बीच ये गांव इंदौर के प्लानिंग एरिया में शामिल हो गए। इसके बाद बिल्डरों ने नए सिरे से धारा 16 में प्रोजेक्ट की मंजूरी के लिए ईडब्ल्यूएस और एलआईजी आवास से छूट के लिए प्रयास किए, लेकिन बात नहीं बनी। सूत्र बताते हैं कि इसके बाद बिल्डरों ने सीधे मंत्री और पीएस से लिंक बैठाई और आदेश करवा लिए। जबकि टीएनसीपी एक्ट की धारा 16 में आदेश जारी करने के अधिकार डायरेक्टर को थे।
क्या है धारा 16?
जब किसी शहर का प्लानिंग एरिया बढ़ जाता है तो उस एरिया में डेवलपमेंट की अनुमति धारा 16 में दी जाती है। धारा 16 का उपयोग सिर्फ तब तक किया जा सकता है, जब तक नया मास्टर प्लान लागू नहीं हो जाता। नया प्लान लागू होने के बाद बढ़े हुए निवेश क्षेत्र में प्लान के अनुसार ही अनुमति दे सकते हैं। धारा 16 में डेवलपमेंट की अनुमति देने के अधिकार एक्ट में डायरेक्टर को दिए गए हैं। ऐसे में सरकार सीधे धारा 16 में डेवलपमेंट की अनुमति नहीं दे सकती।
आश्रय शुल्क का फंडा क्या है?
गरीबों का हिस्सा हर प्रोजेक्ट में रहे, इसके लिए सरकार ने बिल्डरों का एक निश्चित प्रतिशत में ईडब्ल्यूएस और एलआईजी आवास बनाने की अनिवार्य शर्त रखी थी। बिल्डरों के दबाव में आकर तत्कालीन अफसरों ने एक्ट में संशोधन कर ईडब्ल्यूएस और एलआईजी आवास के ऐवज में आश्रय शुल्क जमा करवाने का प्रावधान करवा लिया। दरअसल बिल्डरों को ईडब्ल्यूएस-एलआईजी आवास बनाने से ज्यादा आश्रय शुल्क जमा करवाने में फायदा रहता है। ये राशि इन आवासों के कलेक्टर गाइडलाइन के हिसाब से जमा करना होती है, जबकि बिल्डर अपने प्रोजेक्ट को बाजार मूल्य पर बेचता है। यही वजह है कि बिल्डर/कॉलोनाइजर ईडब्ल्यूएस-एलआईजी आवास बनाने से बचते हैं।
प्रधानमंत्री का सपना, सबका घर हो अपना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना है कि सबका अपना घर हो। इसके लिए प्रधानमंत्री आवास योजना से लेकर अन्य योजना चलाई जा रही हैं। लेकिन सरकार में ऊंचे ओहदे पर बैठे अफसरों को गरीबों से ज्यादा बिल्डरों के मोटी कमाई की चिंता है। यही वजह है कि एक्ट में संशोधन कर गरीबों के आवास की अनिवार्य शर्त हटाकर आश्रय शुल्क जमा कराने का प्रावधान कर दिया। यदि ये प्रावधान नहीं करते तो गरीबों को सस्ते दाम पर घर खरीदने का रास्ता बंद नहीं होता।