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देव श्रीमाली, GWALIOR. मध्यप्रदेश सरकार और खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह सरकार यह दावा करते रहते हैं कि वह कर्मचारियों और उनके परिवारों के बड़े हितैषी है। उनके हर दुख-दर्द में सदैव साथ खड़े रहते है। लेकिन मध्यप्रदेश विद्युत मंडल टूटकर विद्युत वितरण और ट्रांसमिशन कंपनियों में तब्दील होने से पहले मंडल में काम करने वाले कर्मचारियों के परिजन को तो कम से कम ऐसा नहीं लगता। मुख्यमंत्री ने हाल ही में अनुकंपा नियुक्तियों को लेकर नई नीति बनाने का दावा किया है, जिसमें मां जिसे चाहे उसे तत्काल अनुकम्पा नियुक्ति मिल जाएगी, लेकिन सच ये है कि बिजली महकमे में जान जोखिम में डालकर काम करते हुए अगर कोई कर्मचारी जान गंवा देता है तो उसके आश्रित को भी नौकरी नहीं मिल पाती। आश्रित दफ्तर,अफसर और मंत्रियों के चक्कर लगा लगाकर अधेड़ हो जाता है, लेकिन उसे अनुकम्पा नियुक्ति नहीं मिलती। हालत ये कि विद्युत मंडल (2000 से 2011) के समय के साढ़े पांच हजार से ज्यादा परिवार एक दो दशकों से अनुकम्पा नियुक्ति की आस लगाए बैठे है लेकिन नौकरी है कि मिल ही नहीं पा रही है।
पीड़ितों की कहानी अंशुल की जुबानी
अंशुल श्रीवास, मध्यप्रदेश के ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर के ग्वालियर स्थित बंगले पर पहुंचे थे। अंशुल के पिता मध्य प्रदेश विद्युत मंडल में कार्यरत थे। लेकिन जब परिवार की जिम्मेदारी उठाने का समय आया तो सेवा के दौरान ही उनका असमय निधन हो गया। तब अंशुल किशोरवय में थे और विभाग के लोगों की मदद से उन्होंने 2012 में अपने पिता के रिक्त स्थान पर अनुकम्पा नियुक्ति के लिए आवेदन दिया। इस बात को 11 साल बीत चुके है। अनुकम्पा नियुक्ति की आस में वे और कोई काम भी नहीं कर सके। वे अफसरों,दफ्तरों और मंत्री तक के यहां चक्कर लगा लगाकर थक चुके है, लेकिन अब तक उन्हें नौकरी नहीं सिर्फ आश्वासन मिले है।
ऐसे साढ़े चार हजार लोग जो सालों से घूम रहे हैं
अंशुल श्रीवास अकेले ऐसे पीड़ित युवा नहीं है, जो विद्युत मंडल में कार्यरत अपने दिवंगत पिताओं के स्थान पर अनुकम्पा नियुक्तियां पाने के लिए सालों से चक्कर लगा रहे हो बल्कि इनकी संख्या साढ़े पांच हजार से भी कही ज्यादा (5600)है। इनके मुखिया ने सेवा के दौरान अपनी जान गंवाई और उनके परिजन उनके स्थान पर अनुकम्पा नियुक्ति के लिए सालों से एड़ियां रगड़ते हुए भुखमरी की कगार पर पहुंच गए है।
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क्या है समस्या
विद्युत विभाग में 2000 से 2012 के बीच विद्युत मंडल के दिवंगत कर्मचारियो के परिजनों के 5600 अनुकम्पा नियुक्ति केस विचाराधीन थे। उसके बाद विद्युत मंडल कंपनियों में तब्दील हो गया। यह केस अधर में लटक गए। हालांकि उस समय सरकार ने घोषणा की थी कि इन सबको नौकरी दी जाएगी, लेकिन आज तक नौकरी मिलना तो दूर इसके लिए कोई दिशा निर्देश तक तैयार नहीं हो सके। नतीजतन वे अफसरों से मिलते है तो वे कहते है कि हम कंपनी है, मंडल नहीं आप मंत्रालय में जाओ और मंत्रालय कंपनी के पास जाने की बात कहकर टरका देता है।
ऊर्जामंत्री बने तो जगी थी उम्मीद
अंशुल ने बताया कि जब ग्वालियर के प्रद्युम्न सिंह तोमर ऊर्जामंत्री बने तो उन्हें लगा था कि अब उन्हें जल्द नौकरी मिल जाएगी और उनके परिवार की समस्याओं का अंत हो जाएगा क्योंकि जब वे विपक्ष में थे तो विद्युत से जुड़ी समस्याओं के लिए ही सबसे ज्यादा सक्रिय रहते थे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अंशुल का कहना है कि मेरा और मेरे जैसे मंडल के 2000 से 2012 के बीच के करीब 5600 ऐसे सामान्य मृत्यु में आश्रित अनुकम्पा प्रकरण विचाराधीन है और हम कई बार मंत्री से भी मिलकर आग्रह कर चुके हैं कि हमे नियुक्ति दी जाए। वे हमें लगातार आश्वासन दे रहे है। उन्होंने बताया है कि प्रस्ताव केबिनेट में भेजा है, लेकिन वह कब स्वीकृत होगा? और हमें कब नौकरी मिलेगी ? वह ये नहीं बता पाए।
क्या कहते हैं ऊर्जा मंत्री?
ऊर्जामंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर का कहना है कि विद्युत विभाग में अनुकम्पा नियुक्ति का मामला है। बीच में आश्रित अनुकम्पा नियुक्तियां बंद हो गईं थी। फिर अनेक नियम बदले गए। कुछ ड्यूटी पर थे उनको लेते थे, जो ड्यूटी पर दिवंगत नहीं हुए उनको नहीं लेते थे। अभी वर्तमान में अनुकम्पा नियुक्ति चल रही है लेकिन जो पुराने केस है, जिन्हें नियुक्ति नहीं मिली है। उसके लिए हम मामला केबिनेट में ले जाएंगे और केबिनेट के माध्यम से हम इसका निराकरण करने की कोशिश करेंगे।