बीजेपी का अभेद किला है बमोरी विधानसभा सीट, एससी बहुल सीट पर सवर्ण उम्मीदवार ही जीतते रहे

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Vivek Sharma
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बीजेपी का अभेद किला है बमोरी विधानसभा सीट, एससी बहुल सीट पर सवर्ण उम्मीदवार ही जीतते रहे

GUNA. गुना की विधानसभा सीट बमोरी जहां आपको सहरिया आदिवासी और उनके बनाए गए मानचित्र मिलेंगे। आदिवासी बहुल क्षेत्र होने की वजह से विकास के मामले में ये शहर थोड़ा पीछे जरूर है लेकिन यहां आकर आपको आधुनिकता से दूर सुकून का एहसास होगा हालांकि कुछ जगह ऐसी भी हैं। जहां टेक्नॉलोजी ने पैर पसार लिए लेकिन यहां के आदिवासी बाजार और आदिवासियों द्वारा बनाई गई चीजों से आप खुद को दूर नहीं रख सकते।



सियासी मिजाज




  • 2008 में बिछी थी बमोरी विधानसभा सीट की बिसात


  • आमने-सामने थे बीजेपी के कन्हैय्यालाल अग्रवाल और कांग्रेस से महेंद्र सिंह सिसौदिया।

  • कन्हैय्यालाल को 2008 पहली और आखिरी जीत मिली।

  • 2013 और 2018 के चुनाव में महेंद्र सिंह ने जी तोड़ मेहनत कर सीट पर कब्जा जमाया, लेकिन ये सिलसिला यहीं नहीं रुका।

  • 2020 मे महेंद्र सिंह ने भाजपा में शामिल होने के बाद बमोरी को उपचुनाव के दौर से भी गुजरना पड़ा।

  •  फिर एक बार जनता ने महेंद्र सिंह का साथ देकर उन्हें विधायक तो बनाया ही, साथ ही शिवराज सरकार में उन्हें मंत्री पद भी मिल गया।



  • जातिगत समीकरण



    अब आप इस विधानसभा सीट पर जातिवाद को ही चुनावी रिजल्ट समझ लीजिए। जातियों का संतुलन यहां चुनाव जिताता भी है और हराता भी है। 70 फीसदी अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग के मतदाता यहां हैं जिनका हमेशा से प्रतिनिधित्व किया है सवर्ण नेताओं ने। आंकड़ों की मानें तो यहां आदिवासी सहरिया और किरार धाकड़ वर्ग एक साथ जिस खेमे में चले जाते उसी की जीत निश्चित हो जाती है। प्रभावशाली नेताओं की नजर हमेशा से इस सीट पर रही हो भी क्यों ना यह एक अनारक्षित विधानसभा सीट जो है।



    मुद्दे



    बमोरी आदिवासी इलाका होने के चलते पिछड़ा तो है ही यहां मूलभूत सुविधाएं भी अधर में है। यही जानने के लिए द सूत्र की टीम ने कुछ आदिवासियों से मिलकर बात की जिसके बाद ये पता चला कि लोगों को विधायक का नाम भी नहीं पता  फिर तो उनकी मांगे पूरी होने की उम्मीद दूर-दूर तक नजर नहीं आती। 



    द सूत्र ने गहन पड़ताल की



    तमाम मुद्दों को टटोलने के लिए द सूत्र ने विधानसभा क्षेत्र की गहन पड़ताल की। लोगों का मिजाज जानने के लिए हमने विधानसभा चुनाव में हारे प्रत्याशी, प्रबुद्ध पत्रकारों, इलाके के बुद्धिजीवियों और आम लोगों से चर्चा कर, मुद्दे जाने। इलाके में सहरिया आदिवासी की जनसंख्या अधिक हैं, इनके हित में क्या और कितने कार्य किए, ग्रामीण इलाकों में भयंकर जलसंकट की स्थिती बनी हुई हैं, कितना समाधान हुआ? जिले की चारों विधानसभा सीटों में बमोरी सबसे पिछड़ी हुई, विकास के  कार्य कितने हुए? क्षेत्र की बदहाल सड़कों के लिए विधायक निधि से कितनी राशि खर्च की? इन सवालों के जवाब में विधायक और मंत्री सिसोदिया ने इलाके में करवाए कामों का ब्योरा दिया। उन्होंने कहा कि 'कांग्रेस के पास कोई मुद्दा नहीं है। एमपी में फिर से बीजेपी की सरकार बनेगी क्योंकि 'कांग्रेस के पास जमीनी स्तर पर कार्यकर्ता नहीं है। बमोरी में करोड़ों की लगात से कई सड़कें और सहरिया आदिवासियों के लिए  कई मकान बनाए गए।



    राजनीतिक समीकरण



     क्षेत्रीय समस्याएं होने के बावजूद बमोरी को बीजेपी का अभेद किला कहा जाता हैं। कद्दावर नेता महेंद्र सिंह सिसोदिया से यह सीट छीनना इतना आसान भी नहीं। अब यहां के विधायक भले ही मंत्री हों मगर क्षेत्रीय समस्याएं जस की तस बनी हुई जो 2023 के चुनाव में बन सकती हैं। 



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