करैरा में बीजेपी और कांग्रेस में ही टक्कर, ‘हाथी’ की भूमिका अहम, बड़ा सवाल- बीजेपी से किसे टिकट मिलेगा?

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Atul Tiwari
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करैरा में बीजेपी और कांग्रेस में ही टक्कर, ‘हाथी’ की भूमिका अहम, बड़ा सवाल- बीजेपी से किसे टिकट मिलेगा?

KARERA. मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले द सूत्र एक मुहिम चला रहा है। मूड ऑफ एमपी-सीजी (mood of mp cg) के तहत हमने जाना कि विधानसभा में मौजूदा हालात क्या हैं, जनता क्या सोचती है। अगले विधानसभा चुनाव में क्षेत्र का गणित क्या रहेगा। इसी कड़ी में हमारी टीम शिवपुरी की करैरा विधानसभा सीट पर पहुंची....



करैरा को जानिए



करैरा, शिवपुरी जिले का दूसरा सबसे बड़ा कस्बा है। राजे रजवाड़े और रियासतों वाला कस्बा।  1350 ई. में राजा कर्ण परमार ने इसे बसाया था और उनका बनाया किला आज भी इतिहास की कई दास्तां समेटे हुए है। करैरा पर परमारों से लेकर खिलजी वंश तक ने राज किया। राजनीतिक तौर पर देखे तो यहां राज सिंधियाओं का ही रहा है यानी करैरा की सियासत भी 'महल' से तय होती है। 



करैरा का सियासी मिजाज



1967 में राजामाता विजयाराजे सिंधिया यहां से विधानसभा का चुनाव लड़ी थीं। तब वो यहां से करीब 36 हजार से ज्यादा वोटों से जीती थीं। उसके बाद यहां से कभी जनसंघ तो कभी कांग्रेस जीत दर्ज करती आई। करैरा में 1962 से अब तक 13 चुनाव हो चुके हैं। 6 बार कांग्रेस और 3 बार बीजेपी और 1 बार बसपा ने चुनाव जीता। 2003 में यहां बीजेपी और कांग्रेस दोनों को ही मुंह की खाना पड़ी और जनता ने हाथी पर मुहर लगाकर बसपा के लाखन सिंह बघेल को विधायक बनाया। वर्तमान में यहां जंग तो बीजेपी और कांग्रेस के बीच रहती है, लेकिन जीत और हार में बसपा  महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।



करैरा का सियासी समीकरण



करैरा विधानसभा सीट भी दलबदल सीट है और यहां भी 2020 में उपचुनाव हो चुका है। 2018 के चुनाव में यहां से कांग्रेस के जसवंत जाटव ने चुनाव जीता था। जसवंत, ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बीजेपी में आ गए। बीजेपी ने टिकट दिया, लेकिन उपचुनाव में ग्वालियर चंबल की जिन सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की है, उसमें करैरा भी है और प्रागीलाल जाटव ने जसवंत जाटव को पटखनी दे दी। यानी दलबदल के बाद विधायक बनने का जसवंत जाटव का सपना टूट गया। दलबदल वाली सीटों पर एक सवाल अक्सर पूछा जाता है कि 2023 में टिकट किसे मिलेगा। सिंधिया बीजेपी या असल बीजेपी को, मगर यहां ऐसा कोई सवाल नहीं है, क्योंकि जसवंत जाटव हार चुके हैं। अब यहां प्रीतम लोधी ने भी अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। 



करैरा जातिगत समीकरण



करैरा सीट पर महल का दखल है या नहीं, ये मुद्दा विवादों भरा है, लेकिन यहां जातिगत आधार पर राजनीति की दशा और दिशा तय होती है, इस बात में कोई दो राय नहीं है। यहां विधायक का चेहरा जातिगत समीकरण को ध्यान में रखकर तय किया जाता है। यहां कुल मतदाता 2 लाख 41 हजार 445 हैं, जिसमें महिला वोटर्स की संख्या 1 लाख 11 हजार 218 है। वहीं, पुरुष मतदाता 1 लाख 30 हजार 226 हैं। जातिगत आधार पर देखें तो जाटव और खटीक समाज जाति के करीब 50 हजार वोटर्स हैं। वहीं, यादव, लोधी, कुशवाह, पाल(बघेल) और गुर्जर रावत के 30 हजार वोटर्स हैं। ब्राह्मण समाज के 10 हजार तो वहीं ठाकुर समाज के भी 10 हजार वोटर्स हैं।



करैरा के मुद्दे



इस विधानसभा सीट पर मुद्दों की भरमार है। लोगों का कहना है कि करैरा के विकास की तरफ किसी का ध्यान ही नहीं गया। मूलभूत सुविधाओं के अभाव में यहां कि जनता का सब्र अब जवाब देता जा रहा है। किसानों को सिंचाई के लिए पानी और बिजली नहीं मिल रही तो वहीं युवाओं को रोजगार का इंतजार है। आने-जाने वाले लोगों को बस स्टैंड की दरकार है तो इलाके की जनता शासकीय सुविधाओं का लाभ नहीं मिलने और अधिकारियों की लालफीताशाही रवैए से तंग है। 



सियासी मूड



द सूत्र ने जब इलाके के हारे हुए उम्मीदवार, प्रबुद्धजनों, वरिष्ठ पत्रकारों से चर्चा की तो उसमें भी कुछ सवाल निकल कर आए। पहला सवाल- आपने कौन कौन सी योजनाओं का लाभ इलाके की जनता को दिलवाया? दूसरा सवाल- आपके इलाके के कितने लोगों को पेंशन सुविधा मिलती है? तीसरा सवाल- इलाके में सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार रोकने के लिए क्या कदम उठाए? चौथा सवाल- खराब सड़कों के लिए कितनी राशि स्वीकृत की?



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