BHOPAL. मध्य प्रदेश में इस साल आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं। सत्ताधारी बीजेपी, कांग्रेस समेत कई दल चुनावी बयार को गरमाने में लगे हैं। अब इसी कड़ी ब्राह्मण समाज भी दमखम दिखाने की कोशिश में है। 4 जून को भोपाल में ब्राह्मण समाज का महाकुंभ ओंकार हो रहा है। ब्राह्मण महाकुंभ को लेकर संस्था के प्रवक्ता चंद्रशेखर तिवारी ने कहा कि इसमें 5 लाख ब्राह्मणों के आने का लक्ष्य रखा है। इसमें हमारी 11 सूत्रीय मांगें हैं। ये आयोजन गैर-राजनीतिक है। ये ना तो किसी राजनीतिक पार्टी के समर्थन और ना ही किसी के विरोध में है।
ब्राह्मण समाज की मांगें
- ब्राह्मण आयोग का गठन होना चाहिए। इसका आदेश जारी हो और इसका अध्यक्ष गैर-राजनीतिक व्यक्ति को बनाया जाए।
बीजेपी के एजेंडे में आदिवासी अव्वल
अभी तक देखें तो बीजेपी का फोकस आदिवासियों पर है। वजह है जय युवा आदिवासी संगठन यानी जयस का सक्रिय होना। सितंबर 2021 में अमित शाह जबलपुर आए थे और गोंड शहीद शंकर शाह-रघुनाथ शाह के कार्यक्रम में शामिल हुए थे। इसके बाद 15 नवंबर 2021 (बिरसा मुंडा जयंती के दिन) को प्रधानमंत्री नरेंद्र ने भोपाल के हबीबगंज स्टेशन को रानी कमलापति के नाम से लोकार्पित किया। जानकारों का कहना है कि संघ के केंद्र में घूमंतू, अर्धघूमंतू, घुमक्कड़ (आदिवासी) जातियां हैं। संघ की फिलॉसफी है कि हम सब एकरक्त (हिंदू और आदिवासी) हैं। मध्य प्रदेश में 82 विधानसभा सीटें एससी-एसटी (दलित-आदिवासी) के लिए आरक्षित हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो जिस भी पार्टी ने इस खेमे को जीत लिया, वो सत्ता पा लेता है।
कभी मप्र की राजनीति ब्राह्मणों से चलती थी, आज सरकार में सिर्फ दो मंत्री
मध्य प्रदेश की राजनीति में एक समय ब्राह्मणों का वर्चस्व हुआ करता था। नवंबर 1956 में मध्य प्रदेश राज्य के गठन के बाद 1990 तक 5 ब्राह्मण मुख्यमंत्रियों ने करीब 20 साल तक शासन किया। राज्य के पहले मुख्यमंत्री कांग्रेस के पं. रविशंकर शुक्ल थे, जबकि कांग्रेस के ही श्यामाचरण शुक्ल (रविशंकर के बेटे) 1990 में ब्राह्मण समाज से आने वाले प्रदेश के आखिरी मुख्यमंत्री थे। इस बीच में कांग्रेस के डॉ. कैलाश नाथ काटजू और द्वारका प्रसाद मिश्र मुख्यमंत्री रहे। 1977 में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनी, कैलाश चंद्र जोशी मुख्यमंत्री बने।
1957 से 1967 तक कांग्रेस के आधे से ज्यादा विधायक उच्च जाति के होते थे और उनमें से भी 25% से ज्यादा ब्राह्मण थे। 1967 में 33% विधायक ब्राह्मण समाज से थे। कहा जाता है कि श्यामा चरण शुक्ल जब 1969 में पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तो उनके 40 मंत्रियों में से 23 ब्राह्मण थे। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, 2000 में छत्तीसगढ़ के मध्यप्रदेश से अलग राज्य बन जाने के कारण मोतीलाल वोरा और शुक्ल बंधु (श्यामाचरण और विद्याचरण) छत्तीसगढ़ चले गए, जिसके कारण मध्यप्रदेश में ब्राह्मण नेताओं के दबदबे में कमी आ गई। 1980 में अर्जुन सिंह जब मुख्यमंत्री बने तो उस समय 320 सीटों की विधानसभा (अविभाजित मध्य प्रदेश) में 50 ब्राह्मण विधायक थे।
अर्जुन सिंह ने सुरेश पचौरी को जरूर आगे बढ़ाया लेकिन वो हमेशा राज्य सभा के रास्ते केंद्र की राजनीति करते रहे। सांसद और मंत्री तो बन गए लेकिन पचौरी कभी भी अपने आप को प्रदेश की राजनीति में स्थापित नहीं कर सके। आज 30 सदस्यीय शिवराज कैबिनेट में केवल दो ब्राह्मण मंत्री (नरोत्तम मिश्रा और गोपाल भार्गव) हैं। बीजेपी के प्रदेश प्रमुख वीडी शर्मा भी ब्राह्मण खेमे से आते हैं।