राहुल शर्मा, Bhopal. खाद संकट से जूझ रहे किसानों के सामने नई समस्या खड़ी हो गई है। हाल ही में रायसेन में सरकारी गोदाम में पहुंची खाद अमानक पाई गई। जब तक यह रिपोर्ट आई कि किसान बड़ी मात्रा में इस खाद का उपयोग कर चुके थे। एक अनुमान के मुताबिक, इस अमानक खाद के उपयोग से किसानों को 2 करोड़ तक का घाटा हो सकता है। यह प्रदेश में सिर्फ रायसेन जिले की समस्या नहीं है। सूबे के सभी जिलों से रबी सीजन में खाद और कीटनाशक के जो सैंपल लिए गए उनकी रिपोर्ट अटकी हुई है, जबकि किसान बहुत पहले ही इनका उपयोग कर चुके हैं। ऐसे में अब यदि किसी सेंपल के फेल होने की रिपोर्ट आती है यानी वह अमानक पाई जाती है तो किसान के बस में कुछ नहीं रहेगा, बड़ी संख्या में इसका असर उत्पादन पर पड़ सकता है। किसानों की चिंता इसलिए भी स्वाभाविक है, क्योंकि जो खाद अमानक पाई, गई वह सरकारी गोदाम से किसानों को बांटी गई थी।
26 लाख 13 हजार रुपए की बंट गई अमानक खाद
रायसेन में सरकारी गोदाम में रबी सीजन के लिए 150 टन एनपीके खाद पहुंचा था। जब तक सैंपल रिपोर्ट आई, इसमें से 80 टन यानी 26 लाख 13 हजार रुपए का खाद किसानों को बांटा जा चुका था। सामान्यत: 1 एकड़ में 22 क्विंटल तक गेहूं का उत्पादन होता है, लेकिन अमानक खाद की वजह से यह घटकर 16 क्विंटल प्रति एकड़ तक हो जाएगा। जो अमानक खाद किसानों ने खेतों में डाली, उससे 576 टन उत्पादन कम होने का अनुमान है। यदि गेहूं के एक क्विंटल के रेट 2020 रूपए है तो इस लिहाज से किसानों को अमानक खाद के उपयोग करने भर से 2 करोड़ 15 लाख 50 हजार रुपए का घाटा हो जाएगा। प्रदेश में रबी सीजन में एनपीके की खपत 2 लाख 28 हजार मीट्रिक टन रहती है।
जरूरत डीएपी की, दे रहे अन्य खाद
किसानों को इस समय डीएपी की जरूरत है, लेकिन गोदामों से एनपीके, सुपर फॉस्फेट समेत अन्य खाद दी जा रही है। किसानों के पास विकल्प नहीं होने से वह मजबूरन इन खादों को ले रहे हैं। रायसेन के बरेली के गोदाम प्रभारी कमलेश पटेल ने बताया कि उनके यहां भी 50 टन एनपीके अमानक पाया गया है, हालांकि अब तक इस लॉट को किसानों को बांटा नहीं गया है। वहीं, छतरपुर के किसान विवेक तिवारी ने बताया कि वह गोदाम पर डीएपी लेने आया था, लेकिन यहां जो खाद मिल रही है, मजबूरी में वही लेनी पड़ रही है। यह खाद अमोनियम, फॉस्फेट और सल्फेट का मिश्रण है।
हर सीजन में दाव पर फसल
सिस्टम की लेटलतीफी से हर सीजन में किसानों की फसल दाव पर रहती है। पहले तो समय पर पर्याप्त सैंपल नहीं लिए जाते, जितने सैंपल जांच के लिए भेजे जाते हैं तो उनकी रिपोर्ट लंबे समय तक अटकी रहती है। इस बीच में किसान उस खाद या कीटनाशक का उपयोग कर लेता है। इसके बाद जांच रिपोर्ट में अमानक खाद-कीटनाशक पाई भी जाती है तो किसान कुछ नहीं कर सकता, तब तक उसकी फसल या तो बर्बाद हो जाती है या उसका उत्पादन पर गहरा असर पड़ता है।
कृषि मंत्री के गृह जिले में 1 भी सैंपल की रिपोर्ट नहीं, 35 जांच के लिए नहीं भेजे
रबी सीजन के लिए नर्मदापुरम जिले में खाद के 208 सैंपल लेने का टारगेट है, जिसमें से 38 सेंपल लिए गए, जिनमें से जांच रिपोर्ट सिर्फ 13 की ही आई, जो मानक पाई गईं। मतलब 66% सैंपल की कोई रिपोर्ट ही नहीं आई। बैतूल जिले में 176 सैंपल लेने का टारगेट है, जिसमें से 92 सैंपल लिए गए और जांच के लिए 81 भेजे, 7 की रिपोर्ट आई, जिसमें से 1 सैंपल अमानक पाया गया। मतलब जो सेंपल भेजे गए थे, उनमें से ही 92% की रिपोर्ट नहीं आई।
कृषि मंत्री कमल पटेल के गृह जिले की स्थिति तो और भी खराब है। हरदा जिले से 202 सैंपल लेने का टारगेट है, जिसमें से 132 सेंपल ले लिए गए, पर जांच के लिए भेजे सिर्फ 97 और इनमें से भी अब तक एक भी रिपोर्ट नहीं आई। अब जो सेंपल लिए उनमें से 35 को जांच के लिए क्यों नहीं भेजा गया और 97 सैंपल की रिपोर्ट अब तक क्यों नहीं आई, ये तो अधिकारी ही जानें। जबलपुर में सहायक कृषि उपसंचालक अमित पांडे ने बताया कि इस सीजन 262 नमूने लेने थे, जिनमें से सिर्फ 19 सैंपल लेकर जांच के लिए भेजे, इनमें से एक का भी रिजल्ट नहीं आया है।
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नर्मदापुरम जिले के पिपरिया में सौजनी गांव के एक किसान चैनसिंह ने 6 एकड़ की धान की फसल में कीटनाशक का छिड़काव किया था, जिससे उसकी फसल ही सूख गई। यही कहानी भौखेड़ी खुर्द के किसान नर्मदा पटेल की भी है। किसान नर्मदा पटेल ने बताया कि इसकी शिकायत सीएम हेल्पलाइन पर भी की है, पर अब तक कार्रवाई नहीं हुई।
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