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BHOPAL. मध्यप्रदेश सरकार की कैबिनेट ने हाल ही में जीरो परसेंट ब्याज का लाभ लेने के लिए कर्ज जमा करने की तारीख बढ़ा दी। कृषि मंत्री कमल पटेल ने कहा कि शिवराज सरकार किसानों की सरकार है और इसलिए निर्णय लिया गया कि जीरो प्रतिशत ब्याज का लाभ लेने के लिए किसान अब 30 अप्रैल की जगह 20 मई तक कर्ज की राशि जमा कर सकेंगे। हालांकि, सरकार द्वारा कर्ज की राशि जमा करने के लिए 20 दिनों की जो वृद्धि की गई, उसके बाद भी बड़ी संख्या में किसान डिफाल्टर ही होंगे और ये किसी और की गलती के कारण नहीं, बल्कि सरकार की लेटलतीफी के कारण ये स्थिति बनेगी। वजह है गेहूं खरीदी के बाद किसानों को फसल का समय पर भुगतान नहीं होना। जाहिर सी बात है जब किसान को उसकी फसल का दाम नहीं मिलेगा तो वह कर्ज की राशि को चुकाएगा कैसे? मध्यप्रदेश में हो रही सरकारी गेहूं खरीदी में लाखों किसान ऐसे हैं जिनका पेमेंट 20-25 दिनों से अटका हुआ है।
पहले समझें, जीरो प्रतिशत ब्याज की स्कीम क्या है?
कोऑपरेटिव बैंक के माध्यम से सरकार किसानों को जीरो परसेंट ब्याज पर लोन देती है। इस निर्धारित समय पर जमा करना होता है। यदि किसान समय से कर्ज की राशि को जमा कर दे तो उस पर कोई ब्याज नहीं लगता है। यदि किसान निर्धारित समय सीमा से 1 दिन बाद भी कर्ज की राशि को जमा करता है तो उसे अतिरिक्त ब्याज की रकम चुकानी होती है। यह किसान को 3 लाख तक का लोन होने पर 7% और 3 लाख से अधिक का लोन होने पर 12% ब्याज देना होता है। इस बार लोन की राशि जमा करने की तारीख थी 30 अप्रैल थी, जिसे बढ़ाकर अब 20 मई कर दिया गया है।
बेटी की शादी के लिए लेना पड़ रहा कर्ज
रायसेन जिले के चारगांव के किसान सूरज सिंह की बेटी की 15 मई को शादी है। शादी में सिर्फ 4 दिन बचे हैं और सूरज के पास पैसे नहीं है। सूरज ने 10-12 दिन पहले अपना गेहूं सरकारी खरीदी केंद्र पर बेंचा था, सोचा कि पैसे मिल जाएंगे तो बेटी की शादी धूमधाम से करेंगे पर ऐसा हुआ नहीं। सूरज सिंह बताते हैं कि बिल बनाकर दे दिया है, लेकिन बैंक के पास अब तक पैसा नहीं आया है। शादी की तारीख नजदीक आ गई है, इसलिए वह अब ब्याज से पैसा लेकर व्यवस्था करेंगे।
20 दिनों से पैसे के लिए चक्कर लगा रहे किसान
रायसेन जिले के उमरिया के किसान देवेंद्र पटेल को 20-22 दिनों से भुगतान नहीं हुआ है। रतलाम के ईश्वरलाल पाटीदार ने 20 अप्रैल को 44 क्विंटल गेहूं बेचा था, उन्हें लीज पर जमीन लेने के लिए पैसा देना है, यदि वह समय पर पैसा नहीं दे पाएंगे तो एक साल तक खेती नहीं कर पाएंगे। पैसे के लिए चक्कर लगा-लगाकर थक गए हैं। ऐसी ही दिक्कत सीहोर के विनेश चौहान और मदनलाल धनगर के साथ भी है।
2.19 लाख किसानों के अटके 2790 करोड़
गेहूं बेचने के बाद भी भुगतान के लिए परेशान होने की ये कहानी सिर्फ रायसेन के देवेंद्र पटेल, सूरज सिंह, रतलाम के ईश्वरलाल पाटीदार, सीहोर के विनेश चौहान और मदनलाल धनगर की ही नहीं है बल्कि लाखों किसान ऐसे हैं जिनका लंबे समय से भुगतान अटका है। अब तक प्रदेश में 7 लाख 34 हजार किसान 66.94 लाख मैट्रिक टन गेहूं बेच चुके है। जिनमें से सिर्फ 5 लाख 15 हजार किसानों को भुगतान की पुष्टी हुई है। 1 लाख 20 हजार किसानों के भुगतान का प्रोसेस कर दिया है, पर अब तक किसानों को पेमेंट नहीं मिला है। मतलब 2.19 किसानों के 2790 करोड़ अटके हुए हैं। कुल मिलाकर 30% किसानों को गेहूं का भुगतान नहीं हुआ, इनमें से 16% किसानों का पैसा बैंक की प्रोसेस में अटका हुआ है। यदि यही हालात रहे तो 20 मई के बाद लाखों किसान सरकार की लेटलतीफी के कारण डिफाल्टर हो जाएंगे।
किसानों को ऐसे होगा नुकसान
किसानों को होने वाले नुकसान को आप ऐसा समझें- कोई बंशीलाल किसान है, जो बैंक से 3 लाख रूपए कर्ज लेता है। पहले उसे ये राशि 30 अप्रैल तक जमा करना थी, लेकिन वह अब इसे 20 मई तक जमा कर सकता है। बंशीलाल ने सरकार को अपना गेहूं बेचा, यदि बंशीलाल 20 मई तक भुगतान करता है तो उसे सिर्फ कर्ज की राशि यानी 3 लाख रूपए ही देने होंगे, लेकिन उसे समय पर भुगतान नहीं हुआ, तो ऐसे में बंशीलाल 20 मई तक पैसे जमा नहीं कर पाएगा। अब मान लीजिए बंशीलाल को 22 मई को गेहूं का भुगतान हो गया और उसने बैंक में जाकर कर्ज की राशि चुकाई तो अब उसे 3 लाख रूपए की जगह 7 प्रतिशत ब्याज की दर से 1 लाख 21 हजार रूपए चुकाना होंगे। मतलब 21 हजार रूपए का अतिरिक्त ब्याज देना होगा, जबकि इसमें गलती बंशीलाल की है ही नहीं। क्योंकि उसने सरकार को गेहूं बेचा था और समय पर भुगतान करने की सरकार की जिम्मेदारी थी जो कि सरकार ने नहीं निभाई। यदि बंशीलाल ने 3 लाख से अधिक का कर्ज लिया होता तो समय सीमा निकल जाने के बाद उसे 12 प्रतिशत ब्याज के हिसाब से पैसा चुकान पड़ता।
पिछले साल आधार अपडेशन के कारण अटका था भुगतान
साल 2022 में पहली बार PFMS यानी पब्लिक फाइनेंशियल मैनेजमेंट सिस्टम पोर्टल के माध्यम से किसानों को आधार आधारित बैंक खाते में उपज का पैसा ट्रांसफर किया जा रहा था। NIC यानी नेशनल इंफॉर्मेटिक्स सिस्टम और PFMS के बीच समन्वय कर नई व्यवस्था लागू करने में समय लग गया, जिसके कारण भुगतान में देरी हो गई। समय पर पैसा नहीं मिलने के कारण कई किसान निर्धारित सीमा में कर्ज की राशि जमा नहीं कर पाए थे, जिससे कारण उन्हें अतिरिक्त राशि जमा करनी पड़ी थी।
अब बात नियम कायदे की
किसान जागृति संगठन के संस्थापक इरफान जाफरी ने कहा कि सरकार लाइसेंसधारियों के माध्यम से जो खरीदी करती है वह मंडी अधिनियम के तहत होती है। मध्यप्रदेश कृषि उपज मंडी अधिनियम 1972 की धारा 37 की उपधारा 2 में भी स्पष्ट उल्लेख है कि प्रांगण/उपमंडी प्रांगण/क्रय केन्द्रों पर क्रय की गई अधिसूचित कृषि उपजों का भुगतान विक्रेता को उसी दिन मंडी प्रांगण में करना अनिवार्य है, नहीं तो क्रेता द्वारा विक्रेता को 5 दिन तक एक प्रतिशत प्रतिदिन की दर से अतिरिक्त भुगतान दण्ड स्वरुप देना होगा और 5 दिनों तक भी भुगतान न करने पर 6वें दिन से क्रेता व्यापारी की अनुज्ञप्ति स्वमेव निरस्त समझी जाएगी। इरफान जाफरी का कहना है कि सरकार को कायदे से देरी से भुगतान करने के एवज में किसानों को ब्याज देना चाहिए, जबकि उल्टा यहां किसान को ही डिफाल्टर होने की नौबत आ रही है।
किसान संगठन का आरोप- ये तो सरकारी लूट है
किसान जागृति संगठन के संस्थापक इरफान जाफरी इसे सरकारी लूट बताते हैं। इरफान जाफरी ने कहा कि आपने कर्ज चुकाने की डेट तो बढ़ा दी पर पैसा दिया नहीं। किसान का पैसा सरकार के पास है, सरकार पैसा दे नहीं रही और उल्टा किसान से कर्ज जमा करने के लिए कह रही है। किसान कैसे कर्ज चुकाए। यह तो सीधे तौर पर सरकारी लूट हो गई कि आप किसान का पैसा समय पर दोगे नहीं और कर्ज जमा करने की बात करोगे। किसान लेट हुआ तो उसे ब्याज भी देना होगा।