मध्य प्रदेश की नर्मदा परिक्रमा दुनिया की सांस्कृतिक विरासत में शामिल हो सकती है, राज्य सरकार ने केंद्र को भेजा प्रस्ताव

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Atul Tiwari
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मध्य प्रदेश की नर्मदा परिक्रमा दुनिया की सांस्कृतिक विरासत में शामिल हो सकती है, राज्य सरकार ने केंद्र को भेजा प्रस्ताव

BHOPAL. देश-प्रदेश के लाखों लोगों की आस्था से जुड़ी नर्मदा परिक्रमा यूनेस्को की सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल हो सकती है। मध्य प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति विभाग ने यूनेस्को की इन्टेंजिबल लिस्ट के लिए इसका नाम केंद्र सरकार को भेजा है। वहां से मुहर लगी तो नर्मदा परिक्रमा यूनेस्को की सूची में शामिल हो जाएगी। नर्मदा परिक्रमा का धार्मिक-आध्यात्मिक महत्व बताया गया है। करीब 2600 किमी की पूरी यात्रा नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक से शुरू होकर गुजरात के भरुच से होकर अमरकंटक पर ही खत्म होती है। 3-4 महीने में पैदल परिक्रमा पूरी होती है।



वहीं, रंगपंचमी पर इंदौर में निकाली जाने वाली ‘गेर’ भी यूनेस्को इंटेन्जिबल लिस्ट का हिस्सा बनने की दौड़ में है। 74 साल पुरानी गेर की परंपरा को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए प्रशासन कई सालों से प्रयास कर रहा है। पुराने दस्तावेज के साथ इस साल के फोटो और वीडियो भी भेजे गए हैं।



यूनेस्को सूची में शामिल कराने के लिए इनका प्रपोजल भी भेजा



मैहर के 106 साल पुराने बैंड, फसलों से जुड़े पारम्परिक जनजातीय गीत और गोंड पेंटिंग के प्रस्ताव भी यूनेस्को लिस्ट में शामिल करने के लिए भेजे गए हैं। मैहर बैंड की स्थापना राजा बृजनाथ सिंह के आदेश पर 1917 में हुई थी। इसमें शामिल अनाथ बच्चों को उस्ताद अलाउद्दीन खां रोज चार घंटे बैंड सिखाते थे। 1955 में यहां संगीत का एक कॉलेज खोलकर बैंड को उससे जोड़ दिया गया।



क्या है यूनेस्को में नाम भेजने की प्रोसेस?



सभी राज्य अपने प्रस्ताव बनाकर केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय की संगीत नाटक अकादमी को भेजते हैं। अकादमी द्वारा बनाई गई एक्सपर्ट कमेटी इनमें से एक प्रस्ताव पर मुहर लगाती है। 2021 में दुर्गा पूजा और 2022 में गरबा को चुना गया था। मप्र से बुंदेलखंड की रामलीला, राई नृत्य और ढीमर गीतों के प्रस्ताव जा चुके हैं।



क्यों खास है इंदौर की गेर?



गेर का आयोजन 74 साल से आयोजन हो रहा है। इस साल गेर में 6 लाख लोग जुटे थे, जिसमें करीब 30 हजार किलो गुलाल उड़ाया गया। 10 हजार किलो फूल भी बरसाए गए थे। गेर का दावा इसलिए मजबूत है क्योंकि 7 दशक पुरानी परंपरा में 5 लाख से ज्यादा लोग शामिल होते हैं। इसे देखने के लिए देश-विदेश से लोग पहुंचते हैं।


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