मध्य प्रदेश में आदिवासी कार्यक्रम में पिछले साल पहले शाह आए, फिर मोदी; आखिर क्यों आदिवासियों को सत्ता की चाबी मान रही पार्टियां?

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Sunil Shukla
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मध्य प्रदेश में आदिवासी कार्यक्रम में पिछले साल पहले शाह आए, फिर मोदी; आखिर क्यों आदिवासियों को सत्ता की चाबी मान रही पार्टियां?

BHOPAL. मध्य प्रदेश में सत्ता की राजनीति के लिए 15 नवंबर की तारीख कभी इतनी अहम नहीं रही, जितनी पिछले दो साल से हो गई है। 2021 से पहले हम और आप 15 नवंबर को स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की जयंती के दिन के रूप में जानते थे। लेकिन 15 नवंबर 2021 को भोपाल के विशाल जंबूरी मैदान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुख्य आतिथ्य में हुए भव्य आयोजन में इस दिन को नई पहचान और नए मायने दिए गए। इसे देश का पहला जनजातीय गौरव दिवस बताते हुए भारत की आजादी और विकास में आदिवासी समुदाय के ऐतिहासिक योगदान को समर्पित करते हुए हर साल  भव्य तरीके से मनाने का ऐलान किया गया। इस दिन यानी 15 नवंबर को सार्वजनिक छुट्टी का ऐलान करने वाली सरकार इस बार भी जनजातीय गौरव दिवस को जोरशोर से मनाने की तैयारी मे जुटी है। आइए आपको बताते हैं कि आखिर जनजातीय गौरव दिवस के माध्यम से आदिवासी समुदाय को अपना बताने और अपना बनाने की कवायद का असल उद्देश्य क्या है ? 

 

तीन विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ थे आदिवासी, 2018 में स्थिति बदली



प्रदेश की आबादी में करीब 23 फीसदी योगदान रखने वाला आदिवासी यानी जनजातीय समुदाय आर्थिक विकास की रफ्तार में पिछड़ा और उपेक्षित रहा है। ये तबका 2021 में अचानक राजनीति के केंद्र में कैसे आया। इस सवाल का जवाब पाने के लिए आपको वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव के आंकड़ों पर नजर डालनी पड़ेगी। दरअसल 2003 में राज्य की सत्ता में बीजेपी की वापसी में आदिवासी वर्ग का बड़ा योगदान था। तब विधानसभा की 230 सीट में से  41 सीट एसटी यानी जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित थीं। इनमें से 37 सीटें बीजेपी ने जीतीं जबकि कांग्रेस के खाते में महज दो सीट ही आईं थीं। 2008 में परिसीमन की कवायद  के बाद विधानसभा में एसटी के लिए आरक्षित  सीट की संख्या 41 से बढ़कर 47 हो गई।

 

विधानसभा के अगले दो चुनावों यानी 2008 और 2013 में भी आदिवासी तबके का वोट बीजेपी के साथ रहा और वो सत्ता में बनी रही। 2008 के चुनाव में बीजेपी को 47 में से  29 सीट मिलीं। 2013 के  चुनाव में बीजेपी 31 सीट जीतने में कामयाब रही। जबकि कांग्रेस  इन दोनों चुनाव में  17 और 15 सीट ही जीत पाई।  लेकिन 2018 में पांसा  पलट गया और बीजेपी की एसटी सीटें घटकर करीब आधी रह गईं।  वो 16 सीटों  पर सिमट गई जबकि कांग्रेस की सीट बढ़कर दोगुनी यानी 30 हो गईं और वो प्रदेश में अपनी सरकार बनाने में कामयाब हो गई। 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 230 में से  109 मिलीं और कांग्रेस 114 सीट पर जीती। हार-जीत का अंतर इतना कम था कि यदि आदिवासी वोटर बीजेपी से दूर नहीं होता तो प्रदेश में लगातार चौथी बार उसकी सरकार बननी तय थी। 



बीजेपी को पार्टी से दूर होते दिखते एसटी वोटों की चिंता



पिछले विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जनजाति वर्ग की सीटों पर बाजी पलटने से सत्ता बाहर हुई बीजेपी के रणनीतिकारों ने लंबे मंथन के बाद समझ आया कि प्रदेश की सत्ता पर काबिज रहने के लिए एसटी वर्ग की सीटों पर प्रभुत्व बढ़ाना जरूरी है। इसके लिए जनजातीय समुदाय के वोटर को अपने पक्ष में करना होगा क्योंकि प्रदेश में विधानसभा की 230 में से करीब 70 सीट पर आदिवासी वोटर का प्रभाव है। इस वर्ग में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए सुनियोजित रणनीति के तहत ही सबसे पहले गुजरात के आदिवासी नेता मंगुभाई पटेल को मध्य प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया। इसकी वजह यह रही कि राज्य में बीजेपी के पास आदिवासी समुदाय का कोई बड़ा और सर्वमान्य नेता नहीं है। मप्र का राज्यपाल बनने से पहले मंगुभाई पटेल गुजरात सरकार में आदिवासी कल्याण मंत्री रह चुके हैं। बता दें कि प्रदेश के इतिहास में कोई भी राज्यपाल आदिवासियों से जुड़े मामलों और इलाकों में इतना सक्रिय और गतिशील नहीं रहा जितने कि मंगूभाई पटेल हैं।



सितंबर 2021 में शंकर शाह-रघुनाथ शाह के बलिदास दिवस कार्यक्रम में शाह पहुंचे थे

 

प्रदेश में 8 जुलाई 2021 को राज्यपाल के रूप में आदिवासी नेता मंगुभाई पटेल की नियुक्ति के बाद सरकार ने दूसरा बड़ा कदम उठाते हुए 18 सितंबर 2021 को जबलपुर में आजादी की लड़ाई में शहीद हुए आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर बड़ा आयोजन किया। इसमें केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। समारोह संबोधित करते हुए अमित शाह ने आदिवासियों के हित में कई घोषणाएं कीं। इस अवसर पर उन्होंने पिछली कांग्रेस सरकारों पर जनजातीय वर्ग की उपेक्षा करने के आरोप भी लगाए।  

आदिवासियों के प्रभुत्व वाले महाकौशल इलाके में हुए इस बड़े आयोजन में राज्य के आदिवासी बहुल 89 विकासखंडों के करीब 24 लाख परिवारों को घर-घर सरकारी राशन पहुंचाने के लिए ‘राशन आपके द्वार’ योजना की शुरुआत की गई और छिंदवाड़ा विश्वविद्यालय का नाम राजा शंकरशाह के नाम पर रखने की घोषणा की गई। इस अवसर पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लगे हाथ  प्रदेश में आदिवासी समुदाय के लोगों के हित में प्रदेश में में पेसा  एक्स यानी (पंचायत, अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार क़ानून, 1996)  लागू करने का ऐलान कर दिया।



नवंबर 2021 में बिरसा मुंडा जयंती को पहला जनजातीय गौरव दिवस मनाया, खुद पीएम भोपाल आए



आदिवासी मतदाताओं के प्रभाव वाले महाकौशल क्षेत्र में शहीद राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस परआयोजन के बाद बीजेपी सरकार ने 15 नवंबर 2021 बिरसा मुंडा की जयंती पर राजधानी भोपाल में पीएम नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में  जनजातीय समुदाय के नाम पर अभूतपूर्व बड़ा जलसा किया। इस भव्य आयोजन को जनजातीय गौरव दिवस का नाम दिया गया। इस अवसर पर आदिवासियों के हित में कई नई योजनाओं का ऐलान करते हुए पीएम मोदी ने देश की आजादी और विकास में जनजातीय समुदाय के योगदान का जिक्र किया।



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दिसंबर 2021 में टंट्या भील बलिदान दिवस का भव्य आयोजन, सीएम शिवराज ने की शिरकत



भोपाल में 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस मनाने के बाद बीजेपी सरकार ने 4 दिसंबर 2021 को मालवांचल में जननायक टंट्या भील बलिदान दिवस के मौके पर एक बार फिर बड़े जलसे का आयोजन किया। इस मौके पर महू के पातालपानी में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और राज्यपाल मंगूभाई पटेल ने  टंट्या भील की अष्टधातु मूर्ति का अनावरण किया। सीएम ने टंट्या मामा की स्मृति में 4 करोड़ 55 लाख रुए की लागत से पातालपानी में नवतीर्थ स्थल बनाने और  यहां हर साल 4 दिसंबर को  मेला लगाने का ऐलान किया।



क्यों बीजेपी के केंद्र में आए आदिवासी, समझें पूरा गणित



राजनीति के जानकारों का कहना है कि प्रदेश में आदिवासियों का अचानक राजनीति का केंद्र बनने की वजह इनकी करीब 23 फीसदी आबादी है, जो दो करोड़ से अधिक है। यदि मतदाताओं का इतने बड़े वर्ग का 5 फीसदी वोट भी किसी पार्टी के पक्ष में शिफ्ट हुआ तो वो प्रदेश की सत्ता के समीकरणों में बड़ा अंतर डाल सकता है। इसीलिए प्रदेश की राजनीति में जनजातीय समुदाय की पूछपरख बढ़ गई है और बीजेपी के साथ कांग्रेस और जय युवा आदिवासी संगठन यानी जयस इस वर्ग के वोटर को अपने पक्ष में लामबंद करने में हर संभव प्रयास कर रहा है। चूंकि बीजेपी 2018 के चुनाव में मुंह की खा चुकी है, इसलिए अब वो इस वर्ग के वोटर की अहमियत जान गई है और इसे रिझाने के लिए जी-जान से जुटी है।


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