JABALPUR/GWALIOR. दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण का विवाद किसी से छुपा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट तक इस मसले पर फटकार लगा चुका है। मध्यप्रदेश के जबलपुर में रबी हो या खरीफ सीजन फसल की कटाई के बाद किसान बड़े रकबे में पराली जलाते हैं। इसके कारण यहां पार्टिकुलेट मैटर की वेल्यू हाई बनी रहती है। नेशनल एरोनोटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के फायर इंफोर्मेशन फॉर रिसोर्स मैनेजमेंट सिस्टम (FIRMS) से लिया गया मैप इस बात की पुष्टि करता है कि जबलपुर के आसपास पराली जलाने की घटना बड़ी संख्या में होती है।
पराली जलाने से खासा बढ़ जाता है प्रदूषण, किसानों के पास कोई विकल्प नहीं
जबलपुर से 11 किमी दूर उरना गांव के पास एक किसान पराली जलाते हुए मिला। पराली जलाने से वहां PM2.5 की वेल्यू 107 µg/m³ और PM10 की वेल्यू 115 µg/m³ मिली। जबकि उस स्थान से कुछ किमी दूर उरना गांव में ही पराली जलने से PM2.5 की वेल्यू 101 µg/m³ और PM10 की वेल्यू 126 µg/m³ तक मिली, जो इस बात की पुष्टि करती है पराली जलाने से आसपास के क्षेत्र में प्रदूषण बढ़ रहा है। यहां के किसान बेबाकी से खुद इस बात को स्वीकार करते हैं कि छोटे किसान के पास ऐसे कोई संसाधन नहीं, जिससे पराली को जलाने के अलावा कोई विकल्प हो। समय पर खेत तैयार नहीं होंगे तो आने वाली फसल प्रभावित होगी। वे इसके लिए सरकार की नीतियों को जिम्मेदार मानते हैं।
आप ये खबर भी पढ़ सकते हैं...
जागरूकता के अभाव में बढ़ रहीं पराली जलाने की घटनाएं
PM2.5 और PM10 की वेल्यू जबलपुर मुख्य स्टेशन पर सुबह 8 बजे 114 और 133 और मदनमहल चौराहे पर शाम 4 बजे 146 और 811 µg/m³ रही। वहीं स्कूल आफ एक्सीलेंस इन पल्मोनरी मेडिसन के डारेक्टर डॉ. जीतेंद्र भार्गव बताते हैं कि जागरूकता के अभाव से पराली जलाने की घटनाएं बढ़ रही हैं। जिससे जबलपुर में बीते दो सालों में लगातार दमा और अस्थमा रोगियों की संख्या बढ़ रही है। आगे आने वाले समय में यह और बड़ी समस्या बनेगी।
मध्य प्रदेश का सबसे प्रदूषित शहर ग्वालियर
2019 में जहां मध्यप्रदेश भारत का छठवां सबसे प्रदूषित राज्य था। वहीं सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) की हाल ही में जारी रिपोर्ट के अनुसार 2022 में मध्यप्रदेश भारत का चौथा सबसे प्रदूषित राज्य बन चुका है। ये हालात तो तब है जब हम सरकारी आंकड़ों की मानें। पर्यावरणविद डॉ. सुभाष सी पांडे के अनुसार, एक बड़े शहर के लिए दो या तीन रियल टाइम मॉनीटर पर्याप्त नहीं कहे जा सकते। इनसे लाखों की जनसंख्या वाले शहरों में प्रदूषण की स्थिति की सटीक जानकारी नहीं मिल सकती।
जो मॉनीटर हैं, उनमें भी CPCB या MPPCB वास्तविक डेटा छिपाती है। कारण कई हो सकते हैं, अपनी छवि बचाने और जिम्मेदारी से बचने के लिए भी ऐसा किया जा सकता है। जब तक बीमारी की गंभीरता का पता नहीं चलेगा, तब तक उसका इलाज कैसे संभव होगा। हालांकि मध्यप्रदेश के पर्यावरण मंत्री हरदीप सिंह डंग ने जल्द ही बड़े शहरों में रियल टाइम मॉनीटर की संख्या बढ़ाने की बात कही है।
इस तरह किया विश्लेषण
जमीनी हकीकत पता करने हमने चुना मध्यप्रदेश का सबसे प्रदूषित शहर ग्वालियर। ग्वालियर में मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (MPPCB) द्वारा संचालित रीयल टाइम मॉनीटर और हमारे द्वारा निकाले गए PM2.5 और PM10 की वेल्यू में कई 100 गुना का अंतर मिला। इस अंतर को लेकर पीसीबी के जिम्मेदार अधिकारी कुछ भी बोलने से कतराते हैं, लेकिन जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर के प्रोफेसर डॉ. भुवनेश्वर सिंह तोमर इसके पीछे दो प्रमुख कारण बताते हैं। पहला मॉनीटर—मॉनीटर में अंतर होना और दूसरा पॉल्यूशन को मॉनिटर करने वाली एजेंसियों द्वारा अपनी छवि बचाने के लिए वैल्यू को कम करके बताना। वहीं, सुभाष पांडे का कहना है जिस पोर्टेबल मॉनीटर से पूरा एनॉलिसिस किया है, दिल्ली के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने इसे मान्यता दी है, इसलिए इसके डेटा पर बहुत ज्यादा शंका नहीं की जा सकती।
निजी संस्था पर्याप्त डेटा नहीं करती सार्वजनिक
प्रदेश में 5 रीयल टाइम मॉनिटर निजी संस्था द्वारा संचालित है। इनमें से एक है ग्वालियर के फूलबाग में लगा है। इस मॉनिटर का संचालन मोंडेलेज इंडिया फूड्स द्वारा किया जाता है। इस मॉनिटर से पार्टिकुलेट मैटर की रीडिंग तब ही सार्वजनिक होती है, जब यह परमीसिबल लिमिट से कम हो, मतलब हवा साफ और स्वच्छ है। सालभर में इस मॉनिटर से बमुश्किल 23% ही रीडिंग मिल पाती है जो बेहद कम है। यहां के रियल टाइम मॉनिटर में PM2.5 और PM10 की वैल्यू 0 मिली। वहीं उसी वक्त हमारे मॉनीटर में PM2.5 की वेल्यू 497 और PM10 की वेल्यू 515 µg/m³ रही।
अलग-अलग जरूरतें तो अलग-अलग निदान, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा- एक्सपर्ट
सीनियर साइंटिस्ट डॉ. सुभाष सी पांडे ने कहा कि यहां सस्टेनेबल डेवलपमेंट नहीं हो पा रहा है। अलग—अलग जगहों की अलग—अलग नीड है, उस हिसाब से अलग—अलग प्रॉब्लम हो रही है। एमओईएफ की गाइडलाइन 2010 की हैं तो उसमें बिल्कुल साफ लिखा है कि यदि निर्माण कार्य किए जाते हैं तो ये सावधानी ली जाएगी, मसलन यदि कहीं कोई निर्माण कार्य किया जाता है तो ये जरूरी है कि 15 फीट से अधिक उंचाई की चादरों के बीच में किया जाए और यदि उपर भी धूल उड़ती है तो उसकों ढंकने के लिए नेट की व्यवस्था की जाए। वायु में प्रदूषण कम करने का सबसे ज्यादा प्रभावी जो तरीका होता है आक्सीजन की मात्रा को बढ़ाना...आक्सीजन की मात्रा केवल एक तरीके से बढ़ सकती है कि आप अधिक से अधिक संख्या में पेड़ लगाएं। सरकार को और मॉनीटरिंग एजेंसी को चाहिए कि बहुत सख्ती से इंवायरमेंटल लॉस को लागू करें, ताकि पब्लिक तक इन नियमों का लाभ पहुंच सके।
(This story was produced with support from Internews’ Earth Journalism Network.)