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संजय गुप्ता, INDORE. मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग (पीएससी) की परीक्षा पास करके डिप्टी कलेक्टर, डीएसपी बनने का सपना देख रहे युवा बेरोजगारों का इंतजार चार साल से खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। पीएससी के एक रिजल्ट में फेल उम्मी किसी मुद्दे को लेकर हाईकोर्ट जा रहे हैं तो दूसरे रिजल्ट से प्रभावित उम्मीदवार नई याचिका लगा रहे हैं। किसी भी मामले में उम्मीदवार जहां सहमत नहीं हैं, वहीं एमपी शासन से लेकर पीएससी चार साल से कोई ऐसा तरीका नहीं ढूंढ पा रहे हैं जिससे योग्य उम्मीदवारों के लिए भर्ती का रास्ता खुल सके।
दो याचिकाएं एक जबलपुर और दूसरी इंदौर में लगी
पुराने रिजल्ट को रद्द कर पीएससी ने अक्टूबर में नए 87-13 फीसदी के फार्मूले से मप्र राज्य सेवा परीक्षा 2019 के प्री रिजल्ट घोषित किए, इसमें मेन्स पास कर चुके और इंटरव्यू तक पहुंच चुके उम्मीदवारों का भी रिजल्ट रद्द कर फिर नया रिजल्ट घोषित किया और फिर से लिखित परीक्षा लेने की घोषणा की। अब इस मुद्दे में एक याचिका जबलपुर में लग चुकी है, इसमें अपील की गई है कि हम एक बार लिखित परीक्षा पास कर चुके हैं तो फिर हमारी दोबारा नहीं हो, वहीं दूसरी याचिका इंदौर में लग चुकी है, जिसमें कुछ उम्मीदवारों ने 87-13 के फार्मूले को ही चुनौती दे दी है और इसे असंवैधानिक बताते हुए रद्द करने की मांग की है।
पहले कभी नहीं हुई दो बार लिखित परीक्षा
साल 2012 की राज्य सेवा परीक्षा में भी प्री के अंकों को लेकर विवाद हुआ था। तब हाईकोर्ट में केस गया और बाद में पीएससी ने प्री में अलग से क्वालीफाइड किए गए उम्मीदवारों को लेकर अतिरिक्त लिखित परीक्षा ली थी। लेकिन एक ही परीक्षा नोटिफिकेशन की दो-दो बार लिखित परीक्षा, पीएससी ने कभी नहीं ली है। ऐसा खुद अक्टूबर 2021 को उम्मीदवारों के साथ चर्चा में खुद पीएससी के अधिकारियों ने भी माना। और कहा था कि दोबारा परीक्षा का तो सवाल ही नहीं होता।
फेल हो चुके उम्मीदवारों को दूसरा मौका क्यों
जबलपुर हाईकोर्ट पहुंचे उम्मीदवारोंके दो तर्क हैं। पहला कि हम परीक्षा पास कर चुके हैं तो फिर से परीक्षा क्यों दें। आप चाहें तो अन्य उम्मीदवारोंकी अतिरिक्त परीक्षा ले लें। दूसरा कि जो उम्मीदवार पहले लिखित परीक्षा में फेल हो चुके हैं, उन्हें एक और मौका क्यों मिल रहा है। इस तरह तो वह दो बार लिखित परीक्षा देकर आगे बढ़ सकते हैं। यह मेरिट के सिद्धांत का उल्लंघन है।
अब संशोधित रिजल्ट पर सवाल क्यों
शासन द्वारा तय नए फार्मूले 87-13 को लेकर उम्मीदवार यह सवाल कर रहे हैं कि प्रोवीजनल रिजल्ट में अनरिजवर्ड कैटेगरी को पूरी तरह से जनरल कैटेगरी बना दिया गया है। इसमें कटऑफ मार्क्स लाने वाले एसटी और एससी कैटेगरी के उम्मीदवारोंको तो जगह ही नहीं दी गई है।
कोर्ट और शासन की नीति में अंतर
सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि लिखित परीक्षा रद्द करने का सीधा आदेश किसी फैसले में आया ही नहीं। साल 2019 की राज्य सेवा परीक्षा में रोस्टर सिस्टम को लेकर लगी 542 नंबर याचिका में शासन ने रोस्टर नियमों को दरकिनार किया था। लेकिन पीएससी प्रवक्ता डॉ. रविंद्र पंचभाई का कहना है कि इसी आदेश में ही हाईकोर्ट ने माना था कि अभी उम्मीदवार का चयन अंतिम नहीं हुआ तो वह प्रभावित नहीं होता है। इसलिए हमने परीक्षा रद्द कर फिर से लेने का फैसला लिया। वहीं हाईकोर्ट ने भी अंतरिम आदेश में ओबीसी आरक्षण 14 फीसदी को ही फिलहाल रखने के लिए कहा था, लेकिन शासन ने अपने स्तर पर नया फार्मूला तैयार कर पीएससी को निर्देश जारी कर दिए और मूल व प्रोवीजनल रिजल्ट बनाकर संशोधित रिजल्ट जारी कर दिया।
पीएससी परीक्षाओं पर खर्च हुए 60 करोड़ से ज्यादा
अभी तक हुई परीक्षाओं पर पीएससी 60 करोड़ से ज्यादा खर्च कर चुका है लेकिन भर्ती एक भी पद पर नहीं हुई है।
तीनों परीक्षाओं में यह चल रहा इश्यू
- राज्य सेवा परीक्षा 2019 का फिर से प्री का रिजल्ट जारी किया गाय है और जनवरी में दोबारा लिखित परीक्षा कराने की घोषणा की गई है। जबकि इसकी एक बार लिखित परीक्षा दस हजार से ज्यादा उम्मीदवार मार्च 2021 में दे चुके हैं और इसमें भी 1918 इंटरव्यू के लिए क्वालीफाइ हो चुके थे। लेकिन पहले रोस्टर नियम और फिर ओबीसी आरक्षण के चलते नया रिजल्ट अक्टूबर 2022 में जारी हुआ और अब जनवरी 2023 में लिखित परीक्षा होगी।