2023 के चुनाव में शिवराज का फोकस आधी-आबादी पर! ''एंटीइंकम्बेंसी'' के बीच बीजेपी सरकार का संबल बनेगी लाड़ली बहना

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Ruchi Verma
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2023 के चुनाव में शिवराज का फोकस आधी-आबादी पर! ''एंटीइंकम्बेंसी'' के बीच बीजेपी सरकार का संबल बनेगी लाड़ली बहना

BHOPAL: मध्यप्रदेश में सत्ता में हैट्रिक लगाने वाले मुख्यमंत्री श‍िवराज सिंह चौहान ने 2023 के चुनावी साल में बड़ा और गेमचेंजर दांव खेला है। 2008 को लाड़ली लक्ष्मी योजना लांच करने के 17 साल बाद बीजेपी सरकार का 'हिट' फार्मूला अपनाते हुए श‍िवराज मामा ने अब लाड़ली बहना योजना और संबल टू योजना लॉन्च कर दी है। यानी लाडली लक्ष्मियों के मामा के बाद अब शिवराज लाड़ली बहनों के भैय्या बन गए हैं। योजनानुसार, 8 मार्च, 2023 से रजिस्ट्रेशन शुरू हो जाएंगे और रक्षाबंधन तक लाड़ली बहनों के खातों में पैसे आने शुरू हो सकते हैं। शिवराज को भरोसा है कि मामा के बाद भाई बनकर आधी आबादी का पूरा समर्थन लाड़ली लक्ष्मी की मां यानी लाड़ली बहना देगी। और एन्टीइन्कम्बेंसी से जूझ सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार को बाकी का संबल वे लोग देंगे जो दो जून की रोटी के लिए भी मोहताज हैं, यानि कि संबल टू योजना के हितग्राही। इन सभी बातों के बीच अब सवाल यही हैं कि क्या शिवराज सरकार का राज्य की आधी आबादी के लिए ये नया तोहफा उनको 2023 में जीत दिला पाएगा? देखिये इसी बात की पड़ताल करती हुई ये रिपोर्ट।





शिवराज का हिट फार्मूला, आधी-आबादी का समर्थन यानि सत्ता बरकरार





राज्य की आधी आबादी यानी महिला वोटरों का पूरा समर्थन अगर मिल जाए तो सत्ता बरकरार रहेगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सियासत में इस फार्मूले की सफलता को अच्छे से समझ गए हैं। तभी तो लगभग 17 साल बाद एक बार फिर से उसी फॉर्मूले को नए अंदाज में दोहराने की तैयारी में दिख रहे हैं। 2007 में अपनी पहली पारी में उन्होंने लाड़ली लक्ष्मी योजना शुरू कर बेटियों को आगे बढ़ाने की पहल की थी। उससे उन्हें 2008 और 2013 के विधानसभा चुनावों में रिकॉर्ड सफलता मिली। अब मुख्यमंत्री शिवराज ने 2023 में चुनाव के ऐन पहले, मौके पर चौका मारते हुए लाडली बहना योजना शुरू करने का ऐलान कर दिया है। जिसे अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर शुरू किया जाएगा। लाड़ली बहना योजना शिवराज का ऐसा मास्टर स्ट्रोक हो सकता है जो भाजपा को 51 प्रतिशत वोट शेयर दिलाने में महत्वपूर्ण रूप से कारगर साबित हो सकता है। इस योजना के तहत प्रदेश की हर जाति,धर्म की महिला को एक हजार रुपए महीने दिए जाएंगे। आगे हम शिवराज के इस हिट फॉर्मूले के बारे में और बात करे उसके पहले जान लेते हैं कि आखिर 12 हजार करोड़ रुपए सालाना के भारी भरकम खर्च वाली लाड़ली बहना योजना क्या हैं, और संबल 2 कैसे काम करेगी।





जानिये क्या ख़ास है लाड़ली बहना योजना में







  • घोषणा के हिसाब से लाडली बहना योजना मध्य प्रदेश में राज्य में लड़कियों और महिलाओं के जीवन को सशक्त और आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाने के लिए हैं। सरकार ने अगले 5 साल में इस योजना में 60 हजार करोड़ रुपए तक खर्च करने का ऐलान किया है। यानी 12 हजार करोड़ रुपए सालाना!



  • इस योजना के तहत प्रत्येक लाभार्थी को 1000 रुपये मासिक प्रदान करने की घोषणा की है। यानी राज्य की लाभार्थी महिलाओं को हर साल कुल 12000 रुपये मिलेंगे। और 5 सालों में प्रत्येक बहनों के खाते में ₹60000 की राशि आएगी।यह राशि सीधे पात्र बहनों के खाते में डाली जाएगी।


  • लाडली बहना योजना का लाभ पाने के लिए सबसे पहले महिला को मध्य प्रदेश की निवासी होना आवश्यक है। इसके अलावा वह महिला गरीब या मध्यमवर्गीय परिवार की होना चाहिए। इस योजना का लाभ विवाहित और अविवाहित दोनों बहनों को दिया जाएगा।शिवराज सिंह चौहान ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस योजना में जाति का कोई बंधन नहीं रहेगा। यानि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और सामान्य वर्ग की सभी लाडली बहना इस योजना के लिए पात्र माने जाएंगे।


  • हालाँकि इस बात पर अभी स्पष्टता नहीं हैं कि इनकम टैक्स रिटर्न फ़ाइल करने वाली बहनें पात्रता के दायरे में आएँगी या फिर नहीं।  क्योंकि घोषणा में कहा गया हैं कि योजना का लाभ ऐसी बहनों को मिलेगा जो आयकर दाता नहीं है। WCD के डायरेक्टर रामराव भोंसले से इस बात पर जब द सूत्र ने बात की तो उन्होंने कहा: "क्योंकि योजना का फ्रेमवर्क अभी बनाया जा रहा हैं  और औपचारिक रूप से शर्तें तैयार हो रहीं हैं, इसलिए अभी इसपर कुछ भी कहना जल्दबाज़ी होगी।"


  • योजना को लेकर एक बात और हो रही है और वो ये कि स्टूडेंट्स को इस योजना का लाभ नहीं मिल पाएगा। यदि बहना स्कूल या कॉलेज की विद्यार्थी है तो फिर उन्हें योजना से अलग रखा जाएगा। इसके अलावा युवती या महिला जो शर्तों के दायरे में आएगी, उन्हें योजना का पूरा लाभ मिलेगा।


  • योजना का प्रारूप अभी तैयार होना है। इसके बाद रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू होगी, पर खबरें हैं कि रक्षाबंधन तक लाड़ली बहनों के खातों में पैसे आने शुरू हो सकते हैं।






  • होगा एक करोड़ महिलाओं को फायदा





    दावा है कि इस योजना का लाभ मध्य प्रदेश की 50 फ़ीसदी के करीब महिलाओं को यानि एक करोड़ महिलाओं को मिलेगा, जिसमें सबसे ज्यादा ग्रामीण इलाकों की महिलाएं शामिल रहेगी।





    3 लाख करोड़ रुपये के कर्ज वाली सरकार पर प्रतिमाह 1000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भार





    योजना से मध्य प्रदेश सरकार पर 5 साल में 60 हजार करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ आएगा। प्रतिवर्ष सरकार को 12000 करोड़ रुपए अतिरिक्त लाडली बहना योजना पर खर्च करना पड़ेंगे। इस प्रकार से प्रतिमाह 1000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त खर्च आएगा। ये सब तब है जब मध्य प्रदेश में वर्तमान में राज्य सरकार पर कर्ज का कुल भार तीन लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का हो गया है। और अब सरकार सात फरवरी 2023 को एक बार फिर से बाजार से 3000 करोड़ रुपयों का नया कर्ज उठाने जा रही है। इसके पहले राज्य सरकार ने 25 जनवरी 2023 को बाजार से दो हजार करोड़ रुपयों का कर्ज लिया था। सात फरवरी के कर्ज को मिलाकर राज्य सरकार द्वारा वर्तमान वित्तीय वर्ष में ली गई क़र्ज़ राशि 17 हजार करोड़ रुपये हो जाएगी।





    बीजेपी का महिलाओं पर फोकस करने की वजह





    अब शिवराज सरकार की गेमचेंजर मानी जाने वाली लाड़ली बहना योजना की घोषणा के बाद से ही एक बड़ा सवाल जो उठ खड़ा हुआ है...वो ये कि 17 साल बाद एक बार फिर से मामा को बहन की फिक्र क्यों हो आई? तो आपको बता दें, कि चुनाव जनमत के साथ आंकड़ों का भी खेल है। और यहाँ भी इसके पीछे की 2 इम्पोर्टेन्ट तथ्य हैं और वो ये कि:





    2018 की हार के बाद विधानसभा चुनाव को लेकर सतर्कता





    2018 में बीजेपी चुनाव हार गई और 15 साल के सूखे के बाद कांग्रेस की सरकार बनी। बीजेपी के लिए यह एक बड़ा झटका था। अतिआत्मविश्वास में डूबी बीजेपी को मानो जोर का झटका बहुत जोर से लगा। ऐन केन प्रकारेण बीजेपी ने दोबारा सरकार बना ली लेकिन 2023 का चुनाव उसके लिए और मुश्किल हो गया। यही कारण है कि सरकार ने लाड़ली  बहना को ब्रह्मास्त्र बनाकर अपना निशाना लगा दिया है।





    MP BJP में तथाकथित एंटी इनकम्बेंसी





    दरअसल, इस समय मध्य प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर या कहले एंटी इनकम्बेंसी की सुगबुगाहट है। और एन्टीइन्कम्बेंसी की समस्या से निबटने के लिए बीजेपी गुजरात चुनाव वाली रणनीति पर एमपी में भी काम कर रही है। रणनीति के मद्देनज़र पार्टी दो मोर्चो पर काम कर रही है -  पहला अंदरूनी कलह को दूर करना और दूसरा बड़े वोट बैंक के बीच जुड़ाव बढ़ाने का काम करना। अंदरूनी कलह को दूर करने और जनता से जुड़ने के लिए बीजेपी प्रदेश भर में विकास यात्रा निकाल रही है। और एमपी में आदिवासी और एससीएसटी वोटर्स के बाद  राजनीति का केंद्र महिला वोटर्स हैं...महिला वोटर्स की बढ़ी हुई संख्या के गणित के चलते बीजेपी आधी आबादी का दिल जीतने की कोशिश में लगी हुई है। क्योंकि बीजेपी अच्छे से जानती हैं कि महिला वोटर्स को अगर नहीं साधा तो चुनावी नैया पार नहीं लगने वाली हैं।





    शिवराज का लाड़ली बहना योजना का दांव आंकड़ों की इस तस्वीर को देखने पर साफ़ होता है:







    • फ़िलहाल, प्रदेश में 230 विधानसभा सीटों पर कुल मतदाता पांच करोड़ 39 लाख 87 हजार 876 है। इसमें महिला मतदाताओं की संख्या दो करोड़ 60 लाख 23 हजार 733 है, और पुरुष मतदाताओं की संख्या दो करोड़ 79 लाख 62 हजार 711।



  • साढ़े सात लाख महिला वोटरों का आंकड़ा बढ़ा: अब ख़ास बात ये है कि हाल ही में वोटर लिस्ट अपडेशन हुआ। इसमें 13 लाख 39 हजार नए मतदाता बढ़े। इन बढ़े हुए वोटर्स में महिला वोटर की संख्या पुरुषों से ज्यादा है। वोटर लिस्ट अपडेशन में करीब 75 हजार महिलाओं के नए नाम जुड़े। इसमें भी राज्य के 52 में से 41 जिलो में महिला वोटरों के नाम ज्यादा जुड़े हैं। कुल मिलाकर महिला वोटरों का आंकड़ा 7.07 लाख बढ़ा है।


  • महिला वोटिंग का प्रतिशत भी बढ़ा: प्रदेश में साल 2005 के इलेक्शन के बाद से ही महिला वोटरों का प्रतिशत लगातार बढ़ा है और महिला वोटरों का प्रतिशत बढ़ने से विधानसभा चुनाव के वोटिंग ट्रेंड में भी एक खास बदलाव आया है। 2018 के विधानसभा चुनावों में  तो महिला मतदाताओं ने अहम भूमिका निभाई थी। इसमें 74.03% महिला मतदाताओं ने मतदान किया जो 2013 के चुनावों की तुलना में 3.92% बेहतर था। पांच साल पहले 2013 के विधानसभा चुनाव में महिला मतदाताओं का मतदान 70.11% था।






  • लाड़ली बहना के मास्टरस्ट्रोक के बाद शिवराज 'भैया' संबल टू योजना से साधेंगे 75 लाख का तगड़ा वोटबैंक!





    शिवराज का ये मास्टरस्ट्रोक सिर्फ लाड़ली बहना योजना तक ही नहीं था। लाड़ली बहना योजना के बाद शिवराज भैया ने संबल टू योजना भी लांच कर दी है। यानि लाड़ली बहना के के बाद वोटर्स ग्रुप कि बची-खुची कसर संबल टू योजना से पूरी होगी, जिसके टारगेट वोटर्स वो लोग हैं जो बमुश्किल दो जून की रोटी जुटा पाते हैं। दरअसल, संबल योजना 2018 में शिवराज सिंह ने शुरुआत की थी, लेकिन राज्य में बनी नई कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने इसे रोक दिया था। अब कई बदलावों के बाद इस योजना को फिर से शुरू किया गया है। संबल टू योजना में कमलनाथ सरकार में अपात्र कहकर निकाले गए 75 लाख मजदूर एक मुश्त शामिल किए जाएंगे।



    संबल 2 योजना शिवराज सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक है। दरअसल 2018 विधानसभा चुनाव से पहले शिवराज सरकार ने मुख्यमंत्री जन कल्याण संबल योजना की शुरुआत की थी, लेकिन 2019 में कमलनाथ की सरकार के दौरान सत्यापन कर करीब 75 लाख लोगों को इस योजना से बाहर कर दिया गया था...अब दोबारा शुरू हुई संबल 2.0 योजना में ये बाहर किये गए 75 लाख लोगों को ही दोबारा जोड़ा जाएगा यानि...75 लाख का तगड़ा वोटबैंक!





    संबल-2 योजना क्या है



    मुख्यमंत्री जन कल्याण संबल योजना राज्य के श्रमिक परिवारों की आर्थिक मदद के लिए शुरू की गई थी। इसके तहत श्रमिकों की दुर्घटना में मौत होने पर उनके परिवार को 4 लाख रुपए तक की राशि श्रम विभाग द्वारा दी जाती है। सामान्य मृत्यु व अपंगता की स्थिति में श्रमिक के परिवार को दो लाख रुपए मिलते हैं। आंशिक अपंगता होने पर 1 लाख रुपए की मदद मुख्यमंत्री संबल योजना के तहत दी जाती है। योजना के तहत असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिक परिवारों में जन्में बच्चे को जन्म से लेकर पूरे जीवन काल मदद दी जाती है।





    कौन ले सकता है लाभ





    योजना में असंगठित श्रमिक लाभान्वित होते हैं। असंगठित श्रमिक यानी जो 18 से 60 वर्ष की आयु का हो और जो नौकरी, स्वरोजगार, घरों मे कार्य, या वेतन हेतु अन्य अस्थाई प्रकृति के कार्य कर रहा हो। किसी एजेंसी, ठेकेदार के माध्यम से या प्रयत्क्ष रूप से मजदूरी करने वाले लोग और जिन्हें बीमा, भविष्य निधि, ग्रेच्युटी, पेंशन आदि सामाजिक सुरक्षा प्रावधानों का लाभ नहीं मिल रहा हो। योजना में ठेले वाले, कबाड़ इकट्ठा करने वाले, घरों में काम करने वाले, पत्थर तोड़ने वालों से लेकर अन्य असंगठित श्रमिक भी शामिल रहते हैं।





    कौन पात्र नहीं हैं





    ऐसे व्यक्ति जिनके पास 1 हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि हों या शासकीय सेवा मे कार्यरत हो। साथ ही आयकर दाता हों, वे इस योजना में असंगठित श्रमिक नहीं माने जाएंगे। वे हितलाभ प्राप्त करने के लिए पात्र नहीं होंगे।





    संबल कार्ड के फायदे







    • मुख्यमंत्री जन कल्याण संबल योजना के लाभ



  • गर्भवती महिलाओं को मातृत्व की सुविधा


  • छात्रों को शिक्षा प्रोत्साहन


  • दुर्घटनाग्रस्त लोगों को स्वास्थ्य बीमा कवर


  • बिजली बिल की माफ़ी


  • बेहतर कृषि के उपकरण प्रदान करना


  • अंत्येष्टि सहायता देना


  • निःशुल्क स्वास्थ्य देखभाल आदि जैसे लाभ






  • संबल 2 योजना पुरानी संबल योजना से कैसे अलग







    • योजना को री-लॉन्च के साथ ही इसे हाईटेक किया जा रहा है, जिससे जनता आसानी से इससे जुड़ सके। शिवराज सरकार के संबल -2.0 योजना में बायोमेट्रिक और केवाईसी के आधार पर रजिस्ट्रेशन होगा, जिससे पारदर्शिता बढ़ेगी।



  • ‘सुपर 5000’: सीएम शिवराज सिंह चौहान ने जनवरी में बताया था कि संबल योजना में इस बार नई सुपर 5000 योजना को जोड़ रहे हैं। संबल परिवारों के ऐसे 5000 बच्चे जो 12वीं में सबसे ज्यादा नंबर लाएंगे, उन्हें 30000 रुपये प्रोत्साहन राशि के रूप में दिए जाएंगे। इसके साथ ही संबल योजना में संबल परिवारों के ऐसे बच्चे जो राष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेंगे, उन्हें 50 हजार रुपये दिए जाएंगे।


  • 14000 रु तक की प्रसूति सहायता मदद: प्रदेश में संबल योजना को फिर से शुरू करने पर इसमे कई नए फायदे जोड़े हैं। संबल योजना की पात्र कोई गरीब के शिशु को जन्म देने पर जन्म देने से पहले 4 हजार और जन्म देने के बाद 12 हजार रुपये उनके खाते में आएंगे।  






  • सभी चुनावी राज्यों में बीजेपी का मूलमंत्र: गरीब कल्याण पर खास फोकस





    हाल ही में हुई बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये साफ कह दिया कि जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं वे गरीब कल्याण पर खास फोकस करेंगे। प्रदेश बीजेपी ने इसे जीत का मूल मंत्र बनाया है। और यही कारण है कि संबल टू पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। यह योजना भी गेम चेंजर के रूप में देखी जा रही है। भोपाल में जनवरी में हुई भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में बीजेपी सांसद एवं उपाध्यक्ष संध्या राय ने भी बताया था कि बीजेपी सरकार और पार्टी के तौर पर गरीब वर्गों पर ज्यादा फोकस कर रही है।





    'लाड़ली बहना' परआरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू





    हालांकि, दोनों योजनाओं में लाड़ली बहना योजना तो अभी शुरुआती दौर में है और योजना का प्रारूप अभी तैयार होना है। इसके बाद रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू होगी। पर इस मामले पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो चुका है... बीजेपी जहाँ इससे गदगद है तो कांग्रेस की नजर में ये झूठी घोषणा और चुनावी स्टंट है।





    बीजेपी सरकार के लिए महिलाऐं समाज की नींव पर कमलनाथ के लिए वे सजावटी वस्तु: नेहा बग्गा, MP बीजेपी प्रवक्ता





    द सूत्र से बातचीत में मध्य प्रदेश बीजेपी प्रवक्ता नेहा बग्गा शिवराज सरकार की लाड़ली बहना स्कीम की तारीफ़ करते हुए कहती हैं: "मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान महिलाओं को समाज की रीढ़ की हड्डी के रूप में देखती हैं, जिसको मजबूत बनाए बिना एक मजबूत समाज की नींव रखना मुमकिन नहीं हैं। और इसीलिए शिवराज सरकार ने राज्य की महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक तौर पर महिलाओं को सशक्त करने के लिए हमेशा ही काम किया है। फिर चाहे वो लाड़ली लक्ष्मी योजना हो या महिलाओं को राजनैतिक तौर पर सशक्त करने के लिए लोकल बॉडीज के चुनावों में 50% का आरक्षण देने की बात हो। अब लाड़ली बहना योजना के 1000 रुपए से महिलाओं को आर्थिक रूप से और भी मजबूती मिलेगी।" बग्गा कमलनाथ सरकार पर संबल योजना को लेकर भी बरसी, उन्होंने कहा: "अगर हम कांग्रेस सरकार की बात करें तो उनके नेता कमलनाथ महिलाओं को सजावटी वस्तु कह चुके हैं। और इसी कमलनाथ सरकार ने गरीबो के लिए चलाई जा रही संबल योजना को भी बंद कर दिया था।





    1000 रुपए प्रतिमाह सिर्फ झूठा वादा, शिवराज सिंह झूठ की मशीन: संगीता शर्मा, उपाध्यक्ष, मीडिया विभाग, कांग्रेस





    वहीँ कांग्रेस मीडिया विभाग की उपाध्यक्ष संगीता शर्मा बीजेपी के लाड़ली बहना योजना के  दाँव को झूठे वादे बताती हैं...द सूत्र को उन्होंने बताया: "मध्य प्रदेश में बहन-बेटियों के नाम से ऐसी कई सरकारी योजनाएँ चल रहीं हैं...जो कि जमीनी स्तर पर गबन, घोटाले और भ्रष्टाचार की शिकार हैं.....मध्य प्रदेश सरकार का वित्तीय घाटा पूरा नहीं हो पा रहा हैं, सरकार क़र्ज़ से दबी हुई हैं...ऐसे में इस योजना का पैसा कहाँ से आएगा? इसलिए लाड़ली बहना योजना में बहनों को 1000 रुपए प्रतिमाह देने की घोषणा सिर्फ झूठे वादे भर हैं और इसिलए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह भी बस झूठ की मशीन बन कर रह गए हैं।"





    कांग्रेस योजनाओं के तोड़ की तलाश में





    कांग्रेस इन दोनों योजनाओं का तोड़ तलाश रही है। कांग्रेस जानती है कि यदि सीएम के इस दांव ने काम कर दिया तो उसके लिए 2023 का चुनाव जीतना दूर की कौड़ी हो जाएगा। यही कारण है कि कांग्रेस इन योजनाओं को बीजेपी का छलावा बता रही है। कांग्रेस नेता कहते हैं कि यह जनता को भ्रम में डालने वाली बात है। कमलनाथ अक्सर  कहते हैं कि शिवराज बहुत बड़े कलाकार हैं, उनको राजनीति में नहीं बल्कि फिल्मी दुनिया में होना चाहिए। जाहिर है उनका इशारा सीएम की इसी तरह की कार्यशैली को लेकर होता है। कांग्रेस अब अपने वचन पत्र में कोई नया कार्ड खेलने की तैयारी करने लगी है। इसके पहले भी बीते उत्तर प्रदेश विधान सभा के चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने भी महिला वोटरों को लुभाने के लिए 'लड़की हूं लड़ सकती हूं' नाम का एक दांव खेला था। 'लड़की हूं लड़ सकती हूं' अभियान के तले लड़कियों और महिलाओं को जोड़ने का काम किया था। प्रियंका गांधी के नेतृत्व में यूपी की सड़कों पर कांग्रेसी इसके माध्यम से प्रचार - प्रसार करते नजर आए लेकिन विधान सभा चुनावों में कोई ख़ास असर नहीं दिखा। इसी के तर्ज पर एमपी महिला कांग्रेस ने ये अभियान चलाया इसमें महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष शोभा ओझा को जिम्मदारी दी गई थी।





    शिवराज मामा की सक्सेसफुल छवि और सरकार की लोक-लुभावन योजनाएं





    सियासी जानकार बताते हैं कि वो शिवराज सरकार की लाडली लक्ष्मी योजना ही थी जिसके बाद से शिवराज मामा के रूप में जनता में फेमस हुए। और आज आम जनता में उन्हें CM शिवराज से ज्यादा शिवराज मामा के तौर पर जाना जाता है। पर ऐसा नहीं है कि शिवराज सिंह चौहान की बीजेपी सरकार सिर्फ लाड़ली लक्ष्मी, संबल 2.0, और लाड़ली बहना के जरिये ही महिलाओं को लुभा रही है। आजीविका मिशन के तहत महिलाओं के स्व सहायता समूहों को ऋण उपलब्ध कराकर उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने की पहल भी हुई है। सरकार कई अन्य योजनाएं भी चला रही है जो इसी महिला वर्ग पर केंद्रित है...जैसे:





    लाड़ली लक्ष्मी योजना टारगेट - गौरतलब है कि प्रदेश में 1 अप्रैल, 2007 को शुरू की गई लाड़ली लक्ष्मी योजना की फिलहाल 44 लाख से अधिक लाड़ली लक्ष्मी बेटियां हितग्राहीं हैं, जिनको ये योजना टारगेट करती है।





    विधवा पेंशन योजना टारगेट - 1 अप्रैल 2022 को दिए गए सरकारी आंकड़े अनुसार,  ये योजना राज्य की  2160609 विधवा महिलाओं पर केंद्रित है। इस योजना के तहत मध्य प्रदेश सरकार राज्य की बेसहारा विधवा महिलाओं को आर्थिक सहायता पेंशन के रूप में उपलब्ध कराती है। सरकार 18 से 60 साल उम्र के बीच की विधवा महिलाओं को प्रतिमाह ₹600 की पेंशन राशि सीधा बैंक खाते में ट्रांसफर करती है। इसमें 300 रुपये केन्द्रांश तथा 300 राज्यांश रुपये सम्मिलित है।





    सुकन्या समृद्धि योजना एक आंकड़े के अनुसार, मध्य प्रदेश में सुकन्या समृद्धि योजना में 23 लाख से भी ज्यादा खाते खुल चुके हैं। इनमें दो हजार 238 करोड़ रुपये से अधिक की राशि इक्कट्ठी की गई है। प्रधानमंत्री सुकन्या समृद्धि योजना की शुरुआत 2 दिसम्बर 2014 को हुई थी।







    मध्य प्रदेश की लड़कियों और महिलाओं पर केंद्रित इन सभी सरकारी योजनाओं के बीच कुछ सवाल अभी भी सरकार को चुनाव के दौरान परेशान कर सकते है:





    विधानसभा में प्रतिनिधित्व घट रहा!





    आधी आबादी के वोट साधने के इस खेल के बीच नोट करने वाली बात ये है कि प्रदेश में 230 विधानसभा सीटें हैं और उनमें सिर्फ 21 महिलाएं विधायक हैं। प्रतिशत के लिहाज से देखा जाए तो आबादी भले आधी हो मगर विधानसभा में प्रतिनिधित्व उनका सिर्फ 10 प्रतिशत के आसपास। बीजेपी की 14 महिला विधायक हैं यानी करीब 6 फीसदी प्रतिनिधित्व, कांग्रेस की 6 यानी करीब 3 फीसदी और एक बीएसपी की विधायक हैं। जबकि 2013 के चुनाव में 31 महिला विधायक चुनीं गई थी यानी करीब 14 फीसदी प्रतिनिधित्व। इसका मतलब ये है कि प्रतिनिधित्व तो घट गया। इस कारण कई बार महिला-हित के मुद्दे सदन में कम ही उठ पाते हैं, क्योंकि उनसे जुड़ी समस्याओं को उठाने वाले प्रतिनिधि ही कम होते हैं। अब सवाल ये भी है कि 65 फीसदी महिलाओं को बीजेपी टारगेट कर रही है तो क्या महिलाओं को उसके अनुपात में टिकट दिए जाएंगे? प्रदेश सरकार कह तो लगातार रही है कि महिलाओं की भागीदारी 50 प्रतिशत होगी लेकिन घटते हुए आंकड़े साफ़ बता रहे हैं कि महिलाओं की स्थिति वोटर के तौर पर कुछ और और प्रतिनिध्त्व के वक़्त कुछ और है।





    राज्य में महिला की सेहत हाशिये पर





    दूसरा बड़ा सवाल ये कि मध्य प्रदेश में महिला स्वास्थ्य हाशिये पर बना हुआ है। मातृ मृत्युदर में प्रदेश माताओं की मौत में तीसरे नंबर पर है। हालात ये हैं कि मध्यप्रदेश मातृ मृत्युदर में हाई रिस्क जोन बन गया है। प्रदेश में हर 100000 जीवित जन्म पर 163 माताओं की मौत हो रही है। यह हाल तब है जब राज्य का MMR यानी की मातृ मृत्यु दर 163 (वर्ष 2017-19) है। यह दर राष्ट्रीय मातृ मृत्यु दर 103 से भी ज्यादा है। इसमें सिर्फ असम ( 205) और उत्तर प्रदेश (167) ही MP से आगे हैं यानी कि MMR में मध्य प्रदेश तीसरे नंबर पर है। यह मातृ मृत्यु दर 'वेरी हाई' यानी हाई रिस्क जोन की केटेगरी में आती है। 'वेरी हाई' केटेगरी उन राज्यों को दी गई है जिनमें प्रति 100,000 जीवित जन्मों पर 130 या इससे अधिक मातृ मृत्युदर है। ऐसे में शिवराज सरकार की महिलाओं को दी जाने वाली लाड़ली बहना नाम की नई सौगात पर इसके शुरु होने से पहले ही सवाल उठ रहे हैं।





    मध्य प्रदेश में महिला सुरक्षा ख़राब





    राज्य का वर्ष 2022 का आंकड़ा बताता है कि एमपी महिला हिंसा के मामलो में टॉप टेन में आता है। राज्य में बलात्कार के मामले छह फीसदी बढ़े हैं।





    अब इसीलिए सवाल ये है कि जिस राज्य में पोलिसीमाकिंग में महिलाओं का प्रतिशत बढ़ने की बजाय घट रहा हो, महिला की सुरक्षा और स्वास्थ्य से जुड़े हादसे आए दिन सामने आते रहते हों, वहाँ इन मुद्दों को योजनाओं में दिए जाने वाले एक हजार रुपए से पार पाया जा सकता हैं? और शिवराज सिंह चौहान का मामा से भाई बनने का सफर और इन योजनाओं का कितना फायदा ईवीएम तक पहुंचता है.... ये तो चुनाव परिणाम ही बताएँगे।





    MP समेत सभी चुनावी राज्यों में राजनीतिक दल लोकलुभावन घोषणाओं में जुटे





    यहाँ पर पर एक और बात भी तय है कि शिवराज की कमान से ये तीर निकल चुके हैं जिनको रोकने के लिए कांग्रेस को मजबूत कवच की आवश्यकता जरुर होगी। त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड ये तीन राज्य है जहां इसी महीने चुनाव है। राजनीतिक दल लोकलुभावन घोषणाओं में जुटे हैं। कांग्रेस ने त्रिपुरा के लिए अपना घोषणापत्र जारी किया है, जिसमें पुरानी पेंशन योजना बहाल करने, 50 हजार नए रोजगार सृजित करने, कृषि मजदूरों की दिहाड़ी में बढ़ोतरी और हर महीने 150 यूनिट मुफ्त बिजली देने का वादा किया है। वहीं बीजेपी जल्द ही अपना घोषणा पत्र लाने वाली है, जिसमें नौकरी, अस्पतालों में एम्स जैसी सुविधा, सामाजिक पेंशन बढ़ाकर 2 हजार रु. करना बताया है। 53 फीसदी घरों को पीने का पानी जैसे वादे शामिल हो सकते हैं।





    कर्नाटक कर्नाटक की बात करें तो दोनों ही राजनीतिक दल महिला वोटों को अपने पाले में करने की जुगत भिड़ा रहे हैं। यहां मई में विधानसभा चुनाव है। कांग्रेस ने महिलाओं के लिए 2000 रुपये प्रति माह की पेशकश कर दी है। बीजेपी के विधायक प्रेशर कुकर,साड़ियां और रसोई का सामान बांटने में जुटे हैं। महिलाओं पर फोकस है क्योंकि 49 फीसदी महिला आबादी है और 2.55 करोड़ वोटर्स।





    मप्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान इधर मप्र के साथ छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी चुनाव है। छत्तीसगढ़ सरकार ने हाल ही में बेरोजगारी भत्ता देने का ऐलान कर दिया है। ओल्ड पेंशन स्कीम पहले ही लागू कर चुकी है। छत्तीसगढ़ में आरक्षण को लेकर भी दांव खेला जा रहा है जिसपर फिलहाल सियासत हो रही है और वो ठंडे बस्ते में पड़ा है। तो राजस्थान में गेहलोत सरकार राशन की दुकानों के जरिए आम आदमी की रसोई तक पहुंच बनाने की तैयारी कर कर रही है। सरकार तय करने जा रही है कि 27 हजार राशन दुकानों से 10 लाख लोगों को खाद्य सुरक्षा योजना से जोड़ा जाएगा और राशन दुकानों से मिर्च मसाले और तमाम खाद्य सामग्री बेची जाएगी वो भी सस्ते दामों पर। इसके लिए कंपनियों से बातचीत की जा रही है, यानी हर राजनीतिक दल अपने तरीके से जनता को लुभाने में जुटा है।



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