Indoe. नगर निगम के ताजा आरक्षण ने इंदौर के कई नेताओं की चाल बदल दी है। भाजपा और कांग्रेस के कुछ ऐसे पार्षद जो अपनी जीत की सिल्वर जुबिली मना चुके हैं, वे एक बार फिर नए वार्ड में जाएंगे, वहीं कुछ ऐसे भाग्यशाली भी हैं जिनके घर में ही मनमाफिक आरक्षण हो गया है।
सबसे ज्यादा परेशानी उन पार्षदों को हो रही है जिन्होंने पिछली पारी में अपने वार्ड में गहरी पैठ कर ली थी लेकिन चार इंच कि चिट्ठी ने सारा गणित गड़बड़ा दिया। इसमें भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों के पार्षद हैं।
कांग्रेस-
छोटे यादव- ये कांग्रेस के वो दिग्गज पार्षद हैं जिन्होंने अपने पहले चुनाव में महेंद्र हार्डिया (अभी चार बार के भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री) को हराया था। उसके बाद चर्चा में आ गए थे। 1995 में पहली बार पार्षद बने थे तब से लगातार जीत रहे हैं परिषद व मेयर चाहे भाजपा के बने लेकिन छोटे जीत जाते हैं। पहला चुनाव ही अपने वार्ड से लड़े थे उसके बाद लगातार वार्ड बदलते जा रहे हैं। इस बार भी आरक्षण में इनका वाार्ड ( नंबर 53) महिला हो गया है। इन्हें यदि टिकट मिलता है तो नए वार्ड से लड़ना पड़ेगा।
फौजिया शेख अलीम- आजाद नगर क्षेत्र में बीते 25 साल से या तो शेख अलीम जीत रहे हैं या उनकी पत्नी फौजिया जीत रही है। महिला वार्ड होता है फौजिया लड़ लेती हैं और पुरुष वार्ड होता है शेख अलीम खुद। अभी फौजिया पार्षद और नेता प्रतिपक्ष रही हैं। भाग्यशाली हैं इस बार इनका वार्ड ( नंबर 53) अनारक्षित है। मतलब शेख परिवार के लिए मैदान इस बार भी खुला है।
चिंटू चौकसे-इकलौते ऐसे कांग्रेसी पार्षद हैं जो कैलाश विजयवर्गीय और रमेश मेंदोला की दो नंबर विधानसभा में अलग-अलग वार्ड से पंजा लहराते रहे हैं। इस बार इनका वार्ड सामान्य हो गया है। अभी इस वार्ड से इनकी पत्नी पार्षद हैं, अब ये खुद दावेदार हो सकते हैं।
दीपू यादव-विधायक का चुनाव लड़ चुके दीपू यादव का वार्ड (नंबर 10) इस बार सामान्य हो गया है। मतलब वे दावेदारी कर सकते हैं। यह वार्ड यादव परिवार का घरेलू वार्ड है। दीपू पहले यहां से पार्षद रहते हुए विधायक के टिकट तक पहुंचे थे। हालांकि हार गए थे। फिलहाल इस वार्ड से उनकी पत्नी विनीतिका पार्षद हैं।
अभय वर्मा- पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा के भतीजे हैं और चार पारियों से लगातार जीत रहे हैं। इस बार इनका वार्ड (61) अजा महिला हो गया है। इन्हें भी नए वार्ड में जाना पड़ेगा।
भाजपा-
चंदू शिंदे- बीस साल से पार्षद हैं। लगातार जीत रहे हैं। चारों बार चार अलग-अलग वार्ड से लड़े। हर वार्ड में काम के बूते पर जीतते हैं और पिछले वार्ड के काम से नया वार्ड जीत लेते हैं। पांचवी बार भी दावेदार हैं लेकिन वार्ड (नंबर 25) महिला के लिए आरक्षित हो गया है। जाहिर है इन्हें पांचवी बार भी किसी पांचवे नए वार्ड ले लड़ना पड़ेगा यदि पार्टी टिकट देती है तो।
राजेंद्र राठौर-बीस साल से पार्षद हैं। इस बार इनका वार्ड (33) सामान्य हो गया है। मतलब मैदान खुला है। इससे पहले चार में से तीन बार अलग-अलग वार्ड से लड़कर जीत हासिल कर चुके हैं। नगर निगम की कई समितियों के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
मुन्नालाल यादव-बीस साल से पार्षद हैं। चार पारियों में अलग-अलग वार्ड से चुनाव लड़कर जीत के रेकार्ड बना चुके हैं। इस बार इनका वार्ड (34) सामान्य महिला हो गया है। ये शायद इकलौते पार्षद हैं जो अपने वार्ड के अलावा आसपास के वार्ड में भी अपनी पसंद के टिकट न केवल दिलवाते हैं, बल्कि उन्हें जिताते भी हैं। इस बार इन्हें भी नया वार्ड ढूंढना पड़ेगा।
अजय नरूका-भाजपा के वरिष्ठ पार्षद हैं और पिछली परिषद में सभापति थे। ये भी अलग-अलग वार्ड से लड़ चुके हैं। इस बार इन्हें वर्तमान वार्ड (42) ही मनमाफिक होने की उम्मीद थी, लेकिन वार्ड महिला हो गया। इन्हें आसपास के वार्ड में जाना पड़ सकता है।
कई दिग्गज नेताओं को चिंता मे डाला चार इंच की चिट्ठी ने, ढूंढेंगे नए वार्ड
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