नर्मदा मैया इतनी दूषित की नहीं मिल रहा जैविक सर्टिफिकेट

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Rahul Sharma
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नर्मदा मैया इतनी दूषित की नहीं मिल रहा जैविक सर्टिफिकेट

Bhopal.





मध्यप्रदेश सरकार नर्मदा नदी की पट्टी में खेती करने वाले किसानों को जैविक खेती करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। हर सभा में चाहे वो मुख्यमंत्री हो या कृषि मंत्री या फिर सरकार का किसी और विभाग का मंत्री हर कोई नर्मदा पट्टी में जैविक खेती को बढ़ावा देने की पैरवी करता नजर आता है। हाल ही में नर्मदा के संरक्षण को लेकर हुई बैठक में खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि नर्मदा किनारे जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। अब नर्मदा के आसपास जैविक खेती करना है तो किसान किस पानी का इस्तेमाल करेगा, जाहिर तौर पर नर्मदा नदी का ही पानी खेती के लिए इस्तेमाल करेगा। लेकिन आपको जानकर ये हैरानी होगी कि जो किसान जैविक खेती के लिए नर्मदा के पानी का इस्तेमाल कर रहे हैं उन्हें जैविक खेती का प्रमाण पत्र ही नहीं मिल रहा। मध्यप्रदेश जैविक प्रमाणीकरण संस्था ये सर्टिफिकेट देती है। कारण...नर्मदा दूषित हो चुकी है, दूषित भी इतनी कि इसका पानी जैविक खेती करने लायक तक नहीं बचा है।







अधिकारी कर देते हैं सर्टिफिकेट देने से मना





नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़ी मेधा पाटकर कहती है कि जो किसान नर्मदा नदी से पानी लेकर जैविक खेती कर रहे हैं, उन्हें अधिकारी सर्टिफिकेट देने से मना कर देते हैं। सवाल यह है कि जो पानी खेती करने लायक नहीं वह पीने लायक कैसे हो सकता है। बड़वानी के किसान हरिओम नर्मदा नदी से पानी लेकर जैविक खेती करते हैं, जब इसके सर्टिफिकेट के लिए उन्होंने एप्लाई किया तो अधिकारियों ने यह कहकर मना कर दिया कि नर्मदा नदी दूषित है, जिसके कारण उन्हें जैविक प्रमाणपत्र नहीं दिया जा सकता। इधर मध्यप्रदेश जैविक प्रमाणीकरण संस्था के राकेश ने बताया कि नदी में प्रदूषण होता है, इसलिए जब इसके सेंपल टेस्ट के लिए भेजे जाते हैं तो यह जैविक खेती के मापदण्ड में फेल हो जाते हैं।







क्यों जरूरी है जैविक प्रमाणीकरण का सर्टिफिकेट





मध्यप्रदेश जैविक प्रमाणीकरण संस्था से जैविक खेती करने वाले हर किसान को जैविक सर्टिफिकेट लेना अनिवार्य नहीं है, यह पूरी तरह से किसान की इच्छा पर निर्भर करता है। यदि किसान जैविक सर्टिफिकेट लेता है तो उसका प्रोडक्ट सर्टिफाइड होने से मार्केट में डिमांड बढ़ जाती है और उसके इसे दाम भी अच्छे मिलते हैं। इसके लिए किसान को मध्यप्रदेश जैविक प्रमाणीकरण संस्था में एप्लाई करना होता है। कई निजी एजेंसी भी इसका सर्टिफिकेट जारी करती है। आवेदन करने के बाद टीम आकर सेंपल लेती है और उसकी जांच की जाती है। यदि खेती पूरी तरह से आर्गेनिक हो रही है तो जैविक प्रमाणपत्र जारी कर दिया जाता है, वरना आवेदन को निरस्त कर दिया जाता है।  







जैविक खेती में एमपी देश में अव्वल





भारत सरकार के कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधीकरण यानी एपीडा से मिले आंकड़ों के अनुसार मध्यप्रदेश जैविक खेती के मामले में देश में अव्वल है। हालांकि बीते 6 सालों में मध्यप्रदेश में जैविक खेती का रकबा 6 लाख 37 हजार 837 हेक्टेयर कम हुआ है। बावजूद इसके यह क्षेत्रफल, उत्पादन से लेकर एक्सपोर्ट तक एमपी प्रथम पायदान पर है। वर्ष 2020—21 में मध्यप्रदेश में जैविक खेती का क्षेत्रफल 16 लाख 37 हजार 730 हेक्टेयर था। इसी साल उत्पादन 13 लाख 92 हजार 95 मेट्रिक टन हुआ। इसमें से 2683 करोड़ का 5 लाख 636 मेट्रिक टन एक्सपोर्ट किया गया।  







सबसे ज्यादा नर्मदा जबलपुर में प्रदूषित





नर्मदा के पानी की क्वालिटी की मॉनीटरिंग के नाम पर कैसे फर्जीवाड़ा हो रहा है, अब हम आपको इसके बारे में बताएंगे। दरअसल, अक्टूबर 2021 में पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश में रोजाना 150 एमएलडी से ज्यादा गंदगी मां नर्मदा में मिल रही है। इसमें से सबसे ज्यादा जबलपुर में रोज 136 एमएलडी याने मिलियन लीटर पर गंदगी नर्मदा में मिल रही है। महेश्वर में यह रोज 3.2 एमएलडी और होशंगाबाद में 10 एमएलडी गंदगी नर्मदा में मिल रही है। इसी पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की 2020-21 की रिपोर्ट के अनुसार, जबलपुर में जमतरा और रोड ब्रिज के पास नर्मदा नदी के पानी की क्वालिटी ए ग्रेड की है।







एसटीपी प्लांट भी शुरू नहीं





प्रदेश के मुखिया सीएम शिवराज सिंह चौहान ने अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि नर्मदा जयंती तक जो नाले सीधे नदी में मिल रहे हैं, वहां एसटीपी प्लांट शुरू हो जाना चाहिए, पर ऐसा हुआ नहीं। एसटीपी प्लांट शुरू होना तो दूर की बात है, अभी भी कई जगह यह बने तक नहीं है। नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़ी रहीं मेघा पाटकर का कहना है कि सरकार ने इजराइली कंपनी को ट्रीटमेंट प्लांट बनाने का ठेका दिया। कंपनी बहुत धीरे काम कर रही है। मध्य प्रदेश के बड़े शहर हों या छोटे, ड्रेनेज का पानी बिना ट्रीटमेंट सीधे ही नदी में मिल रहा है।







प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का फर्जीवाड़ा





नर्मदा जयंती के अवसर पर जब द सूत्र ने इसके बारे में पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की मॉनीटरिंग सेल की प्रभारी वैज्ञानिक राजश्री शुक्ला से बात की तो उन्होंने कहा कि बोर्ड की ओर से नर्मदा नदी के पानी की जांच 5 पॉइंट पर की जाती है, इनसे से अधिकांश पॉइंट के पानी की गुणवत्ता 1 कैटेगरी और शेष पॉइंट की गुणवत्ता बी कैटेगरी की है। जबकि पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के विश्वसनीय सूत्र के मुताबिक, दरअसल बोर्ड नर्मदा नदी में उन जगहों पर ही सैंपल लेता है, जहां हमेशा प्रदूषण का लेवल कम हो या ना के बराबर, क्योंकि बोर्ड की रिपोर्ट में ही यदि नर्मदा ज्यादा प्रदूषित दिखने लगेगी तो पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की मॉनीटरिंग पर ही सवाल खड़े हो जाएंगे। इस पूरे फर्जीवाड़े को सामान्य शब्दों में कहा जाए तो जिस जगह सबसे ज्यादा गंदगी नर्मदा में मिल रही हो, जिस जगह एसटी प्लांट शुरू नहीं हुए हो तो क्या नर्मदा स्वतः ही उस गंदगी को साफ कर रही है, जिससे पानी की गुणवत्ता ए क्वालिटी की आ रही है। जाहिर है, ऐसे चमत्कार सरकारी रिकॉर्ड में ही हो सकते हैं।



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