फिर अकेले पड़े सीएम शिवराज, अब किसने छोड़ा साथ ?

author-image
The Sootr CG
एडिट
New Update
फिर अकेले पड़े सीएम शिवराज, अब किसने छोड़ा साथ ?

हरीश दिवेकर, Bhopal. मिशन-2023 में शिव की सेना का असल सिपहसालार कौन है। क्या शिवराज सिंह चौहान के साथ कोई सेना बची भी है या नहीं। या फिर 2018 की तरह शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर चुनावी रण में अकेले ही उतरे नजर आएंगे और जंग जीतने के दावे भी करेंगे। वैसे ये सवाल न्यूज स्ट्राइक के जरिए हम उठा रहे हैं। पर इस बारे में खुद सीएम को सोचने की जरूरत है। क्या जब वो आंख उठाकर अपने इर्द गिर्द नजर डालते हैं तब उन्हें अपना कोई वफादार, निष्ठावान नेता नजर आता है। जिस पर वो आंख मूंदकर भरोसा कर सकें और अगले मिशन की ओर बढ़ चलें। जो नेता उनके अपने माने जाते थे वो भी उनसे छिटके नजर आते हैं। उन नेताओं की फेहरिस्त लंबी होती जा रही है जो टीम शिवराज छोड़कर नए आए दिग्गजों की शरण ले रहे हैं।





कौन है सीएम शिवराज का विश्वासपात्र ?





शिवराज सिंह चौहान मुखिया के पद पर काबिज हैं। इस नाते उनके इर्द-गिर्द भीड़ दिखना लाजिमी है। लेकिन ये भीड़ उनकी हिमायती है या सिर्फ फोटो खिंचवा सरीखे लोग ही उनके पास नजर आ रहे हैं। जो पीछे सिर्फ इसलिए खड़े हैं कि कहीं किसी चैनल के फ्रेम में उनकी तस्वीर भी दिखाई दे जाएगी और वो आलाकमान की नजरों में एक्टिव मान लिए जाएंगे। सिवाय इसके क्या कोई ऐसा चेहरा शिवराज सिंह चौहान के आसपास नजर आता है। जिसे शिवराज सिंह चौहान खुद अपने विश्वासपात्रों में गिनते हों।





सेनापति भी वही और सिपाही भी वही





विधानसभा चुनाव नजदीक आते-आते एक बार फिर ऐसा ही सिनेरियो खिंचता चला जा रहा है जिसमें शिवराज सिंह चौहान पूरे रण में अकेले ही खड़े नजर आ रहे हैं। इस रण में उन्हें दुश्मन से मुकाबला करने की रणनीति तैयार करनी है। अपनी थकी हारी रूठी नाराज सेना में नई जान फूंकनी है। सबोटेज की फिराक में बैठे असंतुष्टों से निपटना है और सही कैंडिडेट को टिकट भी देना है। यानि इस रण के राजा भी वही हैं, सेनापति भी वही और सिपाही भी वही हैं। ये शेर आपने जरूर सुना होगा कि मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर, लोग जुड़ते गए कारवां बनता गया। लेकिन शिवराज सिंह चौहान के मामले में माजरा उलटा ही नजर आता है। वो जब सूबे की सियासत को थामने निकले थे तो लंबी-चौड़ी भीड़ उनके साथ थी। लेकिन हर कार्यकाल के साथ वो अकेले पड़ते नजर आ रहे हैं।





टीम नहीं बना सके सीएम शिवराज





ये अहसास खुद सीएम शिवराज सिंह चौहान करवा चुके हैं कि वो कितने अकेले पड़ चुके हैं। ये अकेलापन आज का नहीं है। बल्कि साल 2018 के चुनावी रण में भी शिवराज सिंह चौहान निहायती अकेले खड़े नजर आए। ये वो मौका था जो अपनी सरकार को मैं कहकर बुलाने वाले शिवराज बाबू लाल गौर और उमा भारती को भी जीत का क्रेडिट देते नजर आए। हालांकि तब तक टीम कसने में देर हो चुकी थी और उसके बाद देर पर देर होती चली गई। शिवराज सिंह चौहान ने अकेले चुनाव लड़ने के बाद हार का मुंह भी देखा। उसके बावजूद टीम नहीं बना सके। बल्कि कुछ विश्वासपात्र नौकरशाहों और रिश्तेदारों से घिरे रहने के इल्जाम ही उन पर लगते रहे हैं। उनके खेमे के कुछ खास नेता भी अब उनके नहीं है। ऐसा सुनने में आता है।





जब किया 'मैं' की जगह 'हम' का इस्तेमाल





शिवराज सिंह चौहान के अकेलेपन का अहसास पहली बार तब हुआ जब अगस्त 2018 की एक सभा में उन्होंने विकास का क्रेडिट मैं शब्द के साथ खुद को देने की जगह उमा भारती और बाबूलाल गौर को भी याद किया। कहा कि हम तीनों ने मिलकर प्रदेश की किस्मत बदली। बाबू लाल गौर तो खैर रहे नहीं और उमा भारती को भी अब अपने भाई की कुछ खास फिक्र नहीं है। इससे पहले कभी शिवराज सिंह चौहान ने उमा भारती को दिग्विजय सरकार को उखाड़ फेंकने का श्रेय तक नहीं दिया था। ऐसे में शिवराज का साथ देना उमा भारती भी कहां मुनासिब समझती होंगी। एक बार के क्रेडिट से कोई असर पड़ा नहीं। उमा भारती शिवराज से ज्यादा अपने भतीजे ज्योतिरादित्य सिंधिया की शान में कसीदे काढ़ती हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया बड़े दल के साथ बीजेपी में आए हैं। कई मंत्री उनके वफादार हैं। अपने वफादारों के लिए वो आउट द बॉक्स जाकर फेवर ला रहे हैं और कर रहे हैं। शायद इसलिए उनका खेमा इस कदर मजबूत होता जा रहा है कि शिवराज कैबिनेट के कुछ मंत्री भी अब उन्हीं की शरण में हैं। जिसमें से गोपाल भार्गव भी बताए जा रहे हैं।





धीरे-धीरे दूरियां बना रहे खासमखास





खबर तो यहां तक है कि शिवराज के खासमखास रहे भूपेंद्र सिंह भी अब उनसे दूरियां बना रहे हैं। दूसरे वरिष्ठ मंत्री भी शिवराज सिंह चौहान के विश्वासपात्रों की जमात में दिखाई नहीं देते। विश्वास सारंग और रामेश्वर शर्मा अक्सर सीएम के साथ होते हैं लेकिन जब मौका पड़ता है शिवराज सिंह चौहान से ज्यादा तारीफें यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की करते नजर आते हैं। जो अक्सर शिवराज की मुश्किलें ही बढ़ाती हैं। मजबूरन शिवराज को भी उन पर अमल करना पड़ता है या कम से कम ऐलान तो करना ही पड़ता है। वीडी शर्मा भी अध्यक्ष पद पर काबिज हैं। कई मामलों में टीम वीडी शर्मा, टीम शिवराज पर भारी नजर आती है। ये वही फेज है जिससे शिवराज सिंह चौहान साल 2018 में भी गुजरे थे। उस वक्त कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने शिवराज  सिंह चौहान के निहायती अकेले होने की भविष्यवाणी कर दी थी। पॉलीटिकल माहौल को भांपते हुए दिग्विजय सिंह ने तुरंत कांग्रेस के असंतुष्टों को मनाने का काम संभाला। बाकी काम कमलनाथ और सिंधिया के जिम्मे आए। राहुल गांधी की भी ताबड़तोड़ संभाएं हुईं। लेकिन बीजेपी की ओर सब कुछ शिवराज सिंह चौहान के ही बूते रहा। नरेंद्र मोदी और अमित शाह के दौरे ना के बराबर रहे। डैमेज कंट्रोल का काम भी शिवराज सिंह चौहान के कंधों पर ही रहा। तो क्या ये मान लिया जाए कि शिवराज का कुनबा 2018 की हार के बाद से ही वीरान है।





कुनबे का मुखिया बदलने पर सस्पेंस बरकरार !





जो हालात पांच साल पहले थे वही मिशन-2023 के पहले भी नजर आ रहे हैं। अकेले पड़े शिवराज क्या एक बार फिर चुनावी बिसात पर मात खाने के लिए चल पड़े हैं। शिवराज के कुनबे के इस खालीपन को शायद आलाकमान भी भांप चुके हैं। इसलिए माना जा रहा है कि अब फैसले या रणनीति अकेले शिवराज नहीं बनाएंगे। संगठन का दखल पूरी तरह होगा। कुनबे का मुखिया बदला जाएगा चुनाव से पहले या चुनाव के बाद फिलहाल इस पर सस्पेंस बरकरार है। पर ये तय माना जा रहा है कि मैं और मेरा प्रदेश का राग अलापने वाले शिवराज सिंह चौहान की जगह इस बार कोई और चेहरा चुनावी मैदान में बीजेपी का परचम बुलंद करने उतरेगा। हालांकि अब भी समय है। शिवराज सिंह चौहान चाहें तो अपने इर्द-गिर्द बुना जा चुका जाल तोड़कर अपनों के बीच आ सकते हैं और पैठ मजबूत करने की कोशिश एक बार फिर कर सकते हैं।



MP News मध्यप्रदेश MP भोपाल Bhopal BJP बीजेपी News Strike न्यूज स्ट्राइक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चुनाव CM Shivraj Singh Chouhan election मध्यप्रदेश की खबरें mission 2023 मिशन 2023 alone अकेले