संजय गुप्ता/ज्ञानेंद्र पटेल INDORE. इंदौर हाईकोर्ट बेंच द्वारा रिटायर हाईकोर्ट जज ईशवर सिंह श्रीवास्तव की अध्यक्षता में बनी कमेटी के दौरान भूमाफिया भी पेश हुए। मंगलवार दोपहर में हुई बैठक में भूमाफिया के चेहरों पर कोई शिकन नहीं दिखी और सब निश्चिंत भाव में दिखे। भूमाफिया चंपू अजमेरा ने तो द सूत्र के संवाददाता को जो पीड़ित बनकर मिला, वहीं ऑफर दे दिया कि आप प्लॉट भूल जाओ, मैं आपको बुकिंग अमाउंट का दोगुना दे देता हूं। करीब तीन घंटे तक कमेटी के साथ चर्चा होने के बाद चंपू की लग्जरी कार आराम से हाईकोर्ट परिसर में लग जाती है और वह बैठकर इत्मिनान से चला जाता है।
पीड़ित या उनके अधिवक्ता अपना पक्ष रख सकते हैं
वहीं पहली बैठक के दौरान तय हुआ कि तीनों कॉलोनियों के मामले में पीड़ित या उनके अधिवक्ता आकर अपना पक्ष रख सकते हैं, सभी को सुना जाएगा। हर कॉलोनी के लिए पांच-पांच दिन का समय रखा गया है। कमेटी की बैठक में अपर कलेक्टर डॉ. अभय बेडेकर के साथ ही चारों जोन के एडिशनल डीसीपी जयवीर सिंह भदौरिया, राजेश व्यास, राजेश रघुवंशी और अभय विश्वकर्मा शामिल थे।
इस तरह रहेगा सुनवाई का शेड्यूल
दस मई से 13 मई तक कालिंदी गोल्ड के लिए सुनवाई की जाएगी। इसके बाद 14 को ऑफ रहेगा। कमेटी फिर 15 से 19 मई तक फीनिक्स कॉलोनी के पीड़ितों के पक्ष सुनेगी और फिर 22 से 26 मई तक कमेटी सेटेलाइट हिल कॉलोनी की सुनवाई करेगी। जब फीनिक्स की सुनवाई होगी तब 15 मई को लिक्विडेटर को भी आना होगा क्योंकि कंपनी लिक्विडेन में चल गई है। सुनवाई का समय दोपहर तीन से छह बजे तक रहेगा।
रजिस्टर्ड 255 के सिवा भी कोई अन्य पीड़ित आ सकता है
कमेटी के सामने 255 लोगों की रजिस्टर्ड शिकायतें हैं जो पीड़ितों ने रखी थी। हालांकि, इसमें से सौ का निराकरण हो चुका है और 155 का बाकी है, जो प्रशासन की हाईकोर्ट की रिपोर्ट में हैं। वहीं इसके अलावा भी प्रशासन के पास बाद में कई पीड़ित पहुंचे हैं, जैसे कि कालिंदी में रजिस्टर्ड 96 पीड़ितों के सिवा भी 22 लोग अन्य बाद में पहु्ंचे हैं। कमेटी के सामने अभी भी वह पीड़ित सामने आ सकते हैं जिन्होंने अभी तक प्रशासन के सामने अपनी शिकायत दर्ज नहीं कराई है।
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नीलेश नहीं आया, बाकी भूमाफिया पेश हुए
नीलेश अजमेरा को गिरफ्तारी से छूट मिलने के बाद भी वह कमेटी के सामने पेश नहीं हुए और उसकी ओर से अधिवक्ता आए। वहीं चिराग शाह को पहले से ही हाईकोर्ट स्तर से ही जमानत मिली है और कोई गिरफ्तारी नहीं होना है, उनकी ओर से भी अधिवक्ता पेश हुए। वहीं चंपू के साथ हैप्पी धवन, निकुल कपासी और महावीर जैन पेश हुए।
कमेटी को कई सवालों का हल ढूंढना है
हाईकोर्ट द्वारा गठित इस कमेटी को कई सवालों के जवाब ढूंढकर अपनी रिपोर्ट बनाना है। हाईकोर्ट ने अगली सुनवाई 21 जून को रखी हुई है। इसमें पहले दिन ही कई सवाल कमेटी के सामने आ गए जैसे कि पीड़ितों ने बोल दिया है कि हमे तो राशि के बदले प्लॉट चाहिए। हालांकि, यह बात भी आई कि जब कॉलोनी में प्लॉट ही कम है तो फिर कैसे मिलेंगे? लेकिन कमेटी को इन्हीं मुद्दों पर अपनी रिपोर्ट देना है, क्योंकि 10-15 साल से पीड़ित परेशान है और भूमाफिया जमा की कई पांच-छह लाख राशि के बदले में आठ-दस लाख रुपए ही देने को तैयार है। जबकि उस प्लॉट का बाजार भाव आज छह-सात गुना हो चुका है और भूमाफिया इसे बेचकर ठगी कर चुके हैं।
इस तरह है तीनों कॉलोनियों मामले
- कालिंदी में कुल 96 शिकायतें हैं, जिसमें से 34 रिजिस्ट्री वाले और 62 रसीद वाले हैं, जिसमें से रजिस्ट्री में 19 केस और रसीद में 8 केस निपटे हैं, कुल 27 केस निपटे हैं।
इस तरह है सेटेलाइट और फिनिक्स में कानूनी पेंच
सेटेलाइटः इस कॉलोनी में तकनीकी तौर पर कई पेंच है। यह जमीन कई बार बिकी और दूसरों के पास गई। इसमें कैलाश गर्ग और चंपू के बीच विवाद चल रहा है। गर्ग ने यहां की जमीन के एक हिस्से पर बैंक से करोड़ों का लोन लिया है। वहीं हाईकोर्ट में किसान बोल चुके हैं कि हमारी जमीन पर सौदा पूरा किए बिना ही चंपू ने नक्शा पास कराया और चंपू व उनकी पत्नी योगिता ने धोखाधड़ी की है। बाद में प्लाट बेच दिए, जो जमीन मूल रूप से किसान की ही है क्योंकि रजिस्ट्री तो हुई ही नहीं, ऐसे में यदि प्लाट यहां लोगों को दिए भी जाते हैं तो उसका मतलब नहीं निकलेगा क्योंकि किसान से लेकर गर्ग और बैंक तक इस जमीन के स्वामित्व को लेकर सवाल खड़े करेंगे। वहीं किसान के अनुसार तो फिर टीएंडसीपी से पास नक्शा ही गलत है। ऐसे में किसी को प्लाट भी मिलेगा तो वह स्वामित्व के विवाद में उलझ जाएगा।
फिनिक्सः इसमें चंपू ने एक अलग पेंच फंसाया है, यहां भी जमीन को लेकर विवाद तो है ही, संदीप तेल (अग्रवाल) के भाई प्रदीप अग्रवाल से जमीन का विवाद है, जो प्रशासन ने कब्जे में ली थी ताकि प्लाट मिल सके, लेकिन उन्होंने अब आपत्ति लगा दी है। वहीं फिनिक्स कंपनी को पेंरेटल ड्रग्स से एक करोड़ का लोन नहीं चुकाने के चलते दिवालिया घोषित किया जा चुका है, जिसका केस भी हाईकोर्ट इंदौर में चल ही रहा है। ऐसे में जब कंपनी दिवालिया हो गई है तो फिर जब तक इस केस का कानूनी निराकरण नहीं होता है, मामला उलझा रहेगा। कुल मिलाकर चंपू ने एक करोड़ का लोन उठाकर और दिवालिया होकर पीड़ितों के करोड़ों रुपए उलझा दिए हैं।
ब्याज की दर भी कमेटी को तय करना होगी
कमेटी के सामने जिनके डायरी, रसीद पर सौदे हैं, उन्हें यदि प्लाट नहीं मिल रहा है तो कैसे राशि चुकाई जाएगी, इसे भी देखना है। जब साल 2010-12 के दौरान सौदे हुए तब यहां 400 से 600 रुपए प्रति वर्गफीट में सौदे हुए यानी एक हजार वर्गफीट करीप पांच-छह लाख में बिका। यही राशि अधिकांश डायरी, सौदे में दर्ज है। आज यहां प्लाट औसतन तीन हजार वर्गफीट के बाजार भाव में हैं। यानि यहां प्लाट 30-35 लाख रुपए का हो चुका है। यदि इन्हें इस पर सात से आठ फीसदी पीपीएफ की ब्याज दर से भी राशि चुकाई जाती है तो यह अधिकतम 10 से 12 लाख रुपए ही होगा, वहीं पीड़ित 12 साल से लड़ाई लड़ रहे हैं वह अलग, जिसमें कानूनी लड़ाई में ही उनके लाखों रुपए लग चुके हैं, ऐसे में पीड़ितों को कोई लाभ नहीं होगा। इसलिए वह इस सौदे के बदले प्लाट मांग रहे हैं या बाजार मूल्य से राशि वापसी। अब कमेटी को तय करना है कि इनका किस तरह से विधिक अधिकार बनता है कि इन्हें प्लाट दिया जाए या किस मूल्यांकन से राशि लौटाई जाए। अभी तो भूमाफिया केवल मूल राशि पर छह फीसदी ब्याज चुकाकर ही पिंड छुड़ाने में लगे हुए हैं। ऐसे में पीड़ित को ब्याज सहित राशि भी उनके जख्म को भर नहीं पाएगी।