अंकुश मौर्य, BHOPAL. आज से करीब 9 साल पहले यानी 31 जुलाई 2014 को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सीएम हेल्पलाइन की शुरुआत की थी। 181 को सीएम हेल्पलाइन का कॉल सेंटर नंबर बनाया गया था। सीएम हेल्पलाइन शुरू करने के पीछे उद्देश्य ये था कि आम आदमी एक सिंगल कॉल से अपनी समस्या दर्ज करा सके और संबंधित विभाग के अधिकारी समस्या का निराकरण करें। लेकिन जिस चाह और उत्साह के साथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हेल्पलाइन शुरू की थी। अधिकारियों ने उसकी राह उतनी ही कठिन कर दी। अब हालात ये हैं कि अधिकारी समस्या का हल करने की बजाए शिकायत को बंद करने की तरकीब लगाते हैं। यहीं वजह हैं कि भ्रष्टाचार के मामलों और रसूखदारों के खिलाफ की गई शिकायतें फोर्सफुली बंद कर दी जाती हैं।
शिकायतों के निराकरण के लिए चार लेवल बनाए थे
सीएम हेल्पलाइन पर होने वाली शिकायतों के निराकरण के लिए चार लेवल बनाए गए थे। एल-1, एल-2, एल-3 और एल-4। यानी शिकायत के निवारण के लिए चार स्तर के अधिकारियों तक जाती है। एल-1, एल-2 के अधिकारियों के पास 1-1 हफ्ते का समय होता है। एल-3 के अधिकारियों को 15 दिन में शिकायत का निवारण करना होता है। जिसके बाद शिकायत ऑटोमेटिक एल-4 स्तर पर ट्रांसफर हो जाती है। उच्च अधिकारी को 7 दिन में निराकरण करना होता है।
एल-3 स्तर पर बंद हो रही शिकायतें
सीएम हेल्पलाइन पर की जा रही शिकायतों को लेवल-3 पर फोर्सफुली बंद कर दिया जाता है। क्योंकि यदि शिकायत एल-4 स्तर तक जाती हैं तो मामला सीएम समीक्षा में पहुंच जाता है। लिहाजा अधिकारी एल-3 पर ही समस्या का निराकरण करने की बजाए उसे बंद कर देते हैं। उदाहरण के लिए आप सहकारिता विभाग में कोई शिकायत करते हैं तो पहले वो एल-1 अधिकारी यानी उपायुक्त सहकारिता के पास जाएगी। उसके बाद एल-2 अधिकारी कलेक्टर के पास उसके बाद एल-3 स्तर पर संयुक्त संचालक सहकारिता के पास दर्ज होती है। निराकरण न होने पर एल-4 स्तर में प्रमुख सचिव को ट्रांसफर हो जाती है। लिहाजा विभाग के अधिकारी एल-3 स्तर तक ही निपटारा कर देते हैं। ताकि मामलों को विभाग प्रमुख और मुख्यमंत्री की नजर से बचाया जा सके।
अधिकारियों के खिलाफ शिकायतें बंद कर जाती हैं
शिकायतकर्ता विवेक दीक्षित ने अक्टूबर 2021 में तत्कालीन संयुक्त आयुक्त आवाससंघ अरविंद सिंह सेंगर के खिलाफ सीएम हेल्पलाइन में शिकायत दर्ज कराई थी। आरोप था कि सेंगर ने नियमों को ताक पर रखकर अपने परिजन को दानिश हाउसिंग सोसाइटी में प्लॉट दिला दिए। लेकिन इस शिकायत पर कार्रवाई करने की बजाए सहकारिता विभाग के अधिकारियों ने एल-3 स्तर पर ये कहते हुए बंद कर दिया कि शिकायत का निराकरण आयुक्त सहकारिता विभाग करेंगे।
दोनों ही विभाग एक दूसरे पर जिम्मेदारी डालते रहे
इसी मामले में शिकायतकर्ता विवेक दीक्षित ने नगर निगम भोपाल में शिकायत करते हुए बताया कि अवैध तरीके से अलॉट किए गए प्लॉट्स पर सेंगर के रिश्तेदार मकान निर्माण कर रहे हैं। उन पर रोक लगाई जाए। लेकिन नगर निगम के अधिकारियों ने ये कहते हुए शिकायत को बंद कर दिया कि मामला सहकारिता विभाग से जुड़ा है। लिहाजा मकान निर्माण पर रोक नहीं लगाई गई। यानी दोनों ही विभाग एक दूसरे पर जिम्मेदारी डालते रहे और कार्रवाई से बच निकले।
निगम की दलील- रजिस्ट्री शून्य हो जाएगी तो परमीशन निरस्त कर देंगे
इसी तरह विवेक दीक्षित ने गौरव गृह निर्माण सोसाइटी से संबंधित शिकायत की थी। उनका कहना था कि अपात्र लोगों को सोसाइटी में प्लॉट आवंटित किए गए है। उन प्लॉट्स पर मकान निर्माण किया जा रहा है। जबकि सहकारिता विभाग में इन प्लॉट्स पर रजिस्ट्री शून्य करने की कार्रवाई प्रचलित है। लिहाजा नगर निगम निर्माण पर रोक लगाई, लेकिन कार्रवाई करने की बजाए नगर निगम के अधिकारियों ने ये दलील देते हुए शिकायत को बंद कर दिया कि जब रजिस्ट्री शून्य हो जाएगी तो बिल्डिंग परमीशन निरस्त कर देंगे।
शिकायत बंद कर कहा- मामले में फैसला उच्च अधिकारी करेंगे
शिकायतकर्ता नितिन सक्सेना ने सीएम हेल्पलाइन में शिकायत दर्ज कराई थी कि वार्ड– 54 में स्थित एमराल्ड पार्क सिटी कॉलोनी पर जलकर के 62 लाख रुपए बकाया है। लेकिन नगर निगम के अधिकारी बिल्डर से बकाया वसूल नहीं कर रहे, जबकि आम आदमी के खिलाफ कुर्की की कार्रवाई तक कर दी जाती है, लेकिन इस शिकायत पर कार्रवाई करने की बजाए उसे ये कहते हुए बंद कर दिया कि मामले में फैसला उच्च अधिकारी करेंगे।
शिकायत करना भी मुश्किल
आम आदमी के लिए सीएम हेल्पलाइन पर शिकायत करना भी आसान नहीं है। कॉल सेंटर में बैठे लोग शिकायत दर्ज करने की बजाए सवालों की झड़ी लगा देते हैं और शिकायत दर्ज करने से ही मना कर देते हैं। इंद्रपुरी इलाके में रहने वाले रविंद्र शर्मा ने अतिक्रमण के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने की कोशिश की थी। लेकिन सीएम हेल्पलाइन पर शिकायत ही दर्ज नहीं की गई।