संजय गुप्ता, INDORE. खासगी ट्रस्ट (Khasgi Trust) मामले में एमपी सरकार (MP Govt.) को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले पर पुर्निविचार याचिका दायर (review petition filed) करनी चाहिए। यह सलाह शासकीय अधिवक्ता ने संभागायुक्त कार्यालय द्वारा मांगी गई विधिक राय पर दी है। इस सलाह के आधार पर अब नोडल अधिकारी ने संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव (Department of Culture Principal Secretary) को पत्र लिखकर जल्द से जल्द इस मामले में रिव्यू याचिका दायर करने के लिए कहा है। यह मंजूरी आते ही जल्द इसमें रिव्यू याचिका दायर कर दी जाएगी। नोडल अधिकारी ने पत्र लिखे जाने की पुष्टि द सूत्र से की है।
यह विधिक राय दी गई है
खासगी ट्रस्ट की संपत्तियां मप्र शासन की हैं। हाईकोर्ट ने भी सुनवाई के बाद यह फैसला दिया था और इसी आधार पर शासन ने इन संपत्तियों को अपने नाम करने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी थी। कई राज्यों और मप्र में भी इन संपत्तियों को राजस्व रिकार्ड में मप्र शासन के नाम दर्ज भी किया जा चुका है। ऐसे में मप्र शासन को चाहिए कि वह जल्द इन संपत्तियों को शासन की बताते हुए अपने नाम करने के लिए रिव्यू .याचिका दायर करे।
सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश दिए था
हाईकोर्ट ने खासगी ट्रस्ट मामले में अक्टूबर 2020 में फैसला दिया था कि यह संपत्तियां ट्रस्ट की नहीं होकर मप्र शासन की है और जहां भी यह संपत्तियां हैं, उन्हें मप्र शासन के नाम दर्ज कराया जाए। साथ ही मुख्य सचिव स्तर की कमेटी इस मामले की जांच करें और ईओडब्ल्यू द्वारा जांच कराई जाए। लेकिन ट्रस्ट द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका में हाल ही में यह फैसला सुनाया कि संपत्तियां ट्रस्ट की है और इस ट्रस्ट को रजिस्ट्रार पब्लिक ट्रस्ट के तहत रजिस्टर्ड कराया जाए और रजिस्ट्रार बिकी संपत्तियों के मामले में जांच करें। सुप्रीम कोर्ट ने इन संपत्तियों को खासगी ट्रस्ट के तहत ही माना था।
यह है पूरा मामला
साल 2012 से यह मामला चल रहा है। तत्कालीन सांसद सुमित्रा महाजन ने हरिद्वार में कुशावर्त घाट बिकने की जांच करने के लिए सीएम को पत्र लिखा था। तत्कालीन प्रमुख सचिव मनोज श्रीवास्तव ने जांच कर इसमें भारी अनियमितता पाई। तत्कालीन कलेक्टर आकाश त्रिपाठी और संभागायुक्त संजय दुबे ने जांच कराई और संपत्तियों को मप्र शासन में निहित माना। इसके बाद से लगातार कानूनी लड़ाई चल रही है।
ऐसे बना था खासगी ट्रस्ट
भारत सरकार और मध्य प्रदेश सरकार (तब की मध्य भारत सरकार) के साथ 22 अप्रैल 1948 को लिखे अभिलेख के आधार पर 7 मई 1949 को हुए समझौते में होलकर स्टेट के तत्कालीन महाराजा यशवंतराव होलकर ने इन संपत्तियों का विलय मध्य प्रदेश सरकार में कर दिया था। इसके साथ ही समझौते के तहत महाराजा यशवंतराव होलकर ने डेड स्टॉक आर्टिकल्स में बेशकीमती ज्वेलरी, सोना, चांदी के आभूषण, बर्तन भी सरकार के पक्ष में हस्तांतरित किए थे, जो बाद में ट्रस्ट की ओर परिवर्तित होनी थी। उस वक्त समझौते के अनुसार इस संपत्तियों की देखरेख का जिम्मा होलकर स्टेट को देते हुए सरकार ने इसके बदले 2 लाख 91 हजार 952 स्टेट को देना स्वीकार किया। इस समझौते के आधार पर 27 जून 1962 को खासगी देवी अहिल्याबाई होलकर चैरिटेबिल ट्रस्ट का निर्माण किया, जो मध्य परदेश सरकार में निहित हुई और इन संपत्तियों की देख-रेख करने लगा। ट्रस्ट की अध्यक्ष महाराजा यशवंत राव होलकर के निधन के बाद उत्तराधिकारी उनकी पुत्री ऊषादेवी होलकर बनीं।